प्रकृति के साथ विकास करता गांव

SHARE:

प्रकृति के साथ विकास करता गांव यह दुनिया अब उस मोड़ पर खड़ी है, जहाँ पर्यावरण की चर्चा हर मंच पर गूंज रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके प्रति कार्रवाई

प्रकृति के साथ विकास करता गांव


ह दुनिया अब उस मोड़ पर खड़ी है, जहाँ पर्यावरण की चर्चा हर मंच पर गूंज रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके प्रति कार्रवाई अब भी अधूरी है। धरती का हर कोना इससे प्रभावित हो रहा है, और राजस्थान के बीकानेर जिले के लूणकरणसर ब्लॉक का नकोदेसर गांव भी इससे अछूता नहीं है। रेत के इस विस्तार में बसने वाले लोग सदियों से अपने जीवन, संस्कृति और आजीविका को प्रकृति के साथ जोड़कर जीते आए हैं।यहां के जल स्रोत और खेती की पारंपरिक प्रणालियों इस बात का प्रमाण हैं कि इंसान और प्रकृति का रिश्ता कितना गहरा और परस्पर है। मगर विकास के नाम पर हुए बदलावों ने इस ताने-बाने को कई जगह से कमजोर किया है।

बीते दो दशकों में नकोदेसर के आसपास का इलाका तेजी से बदला है। ईंट और कंक्रीट के मकानों ने यहां के पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित किया है। जहां कभी रेत के टीलों के बीच जीवन अपनी लय में बहता था, वहां अब धीरे धीरे औद्योगिक गतिविधियों की हलचल बढ़ गई है। पर अच्छी बात यह है कि यहां के लोग सिर्फ समस्या नहीं देखते, समाधान भी तलाशते हैं। वह विकास तो चाहते हैं लेकिन पर्यावरण का विकास भी देखना चाहते हैं। इस सोच ने गांव को को अपने पर्यावरणीय तंत्र को फिर से मजबूत करने की दिशा में व्यावहारिक कदम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं। नकोदेसर जैसे गांवों में लोग अब फिर से प्राकृतिक खेती की ओर लौट रहे हैं।

प्रकृति के साथ विकास करता गांव
यहां का हर ग्रामीण जानता है कि पर्यावरण से जुड़ी समझ किसी किताब से नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं से मिलती है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये अनुभव किसी वैज्ञानिक प्रयोगशाला से नहीं बल्कि उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण से आता है। यही वजह है कि जब ग्राम पंचायत और समुदाय साथ मिलकर काम करते हैं, तो बड़े बदलाव संभव होते हैं। नकोदेसर में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पेड़ पौधों का संरक्षण और उसे बढ़ावा देना इन्होंने न केवल अपने बुजुर्गों से सीखा है बल्कि अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास भी कर रहे हैं। यही कारण है कि इस गांव का बच्चा बच्चा पेड़ पौधों के संरक्षण के बारे में किसी वयस्क से अधिक जानता है। इसके अतिरिक्त स्वच्छता और कचरा प्रबंधन की पहल भी यहां अनुकरणीय उदाहरण है। यहां घर-घर से सूखा और गीला कचरा अलग-अलग एकत्र किया जाता है और पंचायत की मदद से डंपिंग सेंटर तक पहुंचाया जाता है। यह पूरी व्यवस्था समुदाय आधारित है, जिससे लोगों में जिम्मेदारी की भावना भी बढ़ी है। यह व्यवस्था ग्राम पंचायत की प्रबंधन प्रणाली के भीतर संचालित होता है और पूरी तरह टिकाऊ है। इसके लिए ई-रिक्शा की सुविधा दी गई है ताकि कचरा संग्रहण आसानी से हो सके।

नकोदेसर जैसे गांवों में पानी हमेशा से जीवन का आधार रहा है। सरकारी योजनाओं से मिलने वाली पेयजल सुविधा के बावजूद यहां के सत्तर से अस्सी प्रतिशत लोग अब भी अपने पारंपरिक जल स्रोतों पर निर्भर हैं। इन्हीं स्रोतों ने यहां की पारिस्थितिकी और जैव विविधता को जीवित रखा है। समुदाय की सहभागिता से कई तालाबों का जीर्णोद्धार हुआ है। जिसकी वजह से अब गांवों में लंबे समय तक जल उपलब्ध रहता है। यहां के ग्रामीण बताते हैं कि पहले तालाबों में केवल कुछ महीनों तक ही पानी रहता था, पर अब पूरे साल भर पशुओं और पक्षियों के लिए भी जल उपलब्ध रहता है। इससे टैंकरों पर निर्भरता कम हुई है और लोगों का आर्थिक बोझ घटा है। कुछ परिवारों ने घरों में वर्षा जल संग्रहण के लिए टांके भी बनाए हैं, जिससे पीने के पानी की व्यवस्था स्थायी हो गई है।

यहां की खेती भी प्रकृति से गहराई से जुड़ी रही है। इसके लिए पहाड़ी ढलानों से आने वाले वर्षा जल को मिट्टी के बांध बनाकर उसके पानी को रोका जाता है और उसी क्षेत्र में खेती की जाती है। गेहूं और चने की फसल इस पद्धति से पीढ़ियों से उगाई जाती रही है। इससे मिट्टी की नमी और स्थानीय वनस्पति भी संरक्षित रहती है। नकोदेसर के किसान बताते हैं कि जब मिट्टी के बांध की ऊंचाई बढ़ाई गई, तो पानी अधिक देर तक रुका और फसल भी पहले से कहीं बेहतर हुई। यह न सिर्फ खेती के लिए फायदेमंद है, बल्कि पक्षियों और जानवरों के लिए भी वरदान साबित हुआ है। इसके साथ-साथ पंचायत ने कुछ संस्थाओं के सहयोग से गांव में हरियाली बढ़ाने की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके लिए नकोदेसर में पंचायत और समुदाय के सहयोग से सार्वजनिक भूमि पर स्थानीय पौधे लगाए गए हैं। इन प्रयासों का असर सिर्फ जमीन पर नहीं, सोच में भी दिखता है। अब गांव का हर व्यक्ति अपने स्तर पर बदलाव का हिस्सा बनना चाहता है। छोटी-छोटी पहल जैसे एक पेड़ लगाना, कचरा अलग करना या तालाब की सफाई में हिस्सा लेना यही असली परिवर्तन का रास्ता बन रही हैं।

नकोदेसर के स्थानीय लोगों के ये प्रयास भले ही सीमित दायरे में हों, पर भविष्य में इसका प्रभाव गहरा नजर आएगा। अगर ग्राम पंचायतें, स्थानीय समुदाय और सरकार मिलकर इस तरह के प्रयासों को आगे बढ़ाएं, तो यह इलाका सिर्फ रेगिस्तान नहीं, बल्कि टिकाऊ विकास और पर्यावरण संतुलन का प्रतीक बन सकता है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति नकोदेसर गांव की यह कहानी बताती है कि जब लोग अपने परिवेश के साथ तालमेल बनाकर जीना सीख लेते हैं, तो बदलाव निश्चित होता है। रेत के इस समंदर में पेड़ पौधों का जीवन केवल हरियाली का ही संकेत नहीं है बल्कि यह एक उम्मीद भी है कि अगर हम प्रकृति के विकास पर ध्यान दें तो विनाश नहीं, आने वाले कल हरा भरा हो सकता है।(यह लेखिका के निजी विचार हैं)



- ममता,
लूणकरणसर, राजस्थान

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका