वर्गोत्तम ग्रहों के फल यदि कोई ग्रह लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका दोनों में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम कहलाता है। ऐसा ग्रह सामर्थ्यवान्
वर्गोत्तम ग्रहों के फल
यदि कोई ग्रह लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका दोनों में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम कहलाता है। ऐसा ग्रह सामर्थ्यवान् हो जाता है। यदि वर्गोत्तम ग्रह अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा मित्र राशि में हो तो उसका सामर्थ्य और भी अधिक हो जाता है। माना जाता है कि जातक वर्गोत्तम ग्रह से संबंधित कार्य पिछले जन्मों में कई बार कर चुका होता है, इसलिए इस जन्म में जातक के अंदर वर्गोत्तम ग्रह से संबंधित गुण और कौशल स्वतः ही अंतर्निहित होते हैं और अक्सर उस ग्रह से संबंधित कार्यकत्वों से जातक संतुष्ट रहता है लेकिन यदि नवांश में वर्गोत्तम ग्रह अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो रहा हो तो जातक को उस ग्रह के कार्यकत्वों व गुणों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयत्न करना पड़ता है।
वर्गोत्तम ग्रह बली होता है, क्योंकि लग्न पत्रिका तथा नवांश में यदि ग्रह एक ही राशि में स्थित हो तो उस राशि में उस ग्रह के परिणाम निश्चित अथवा बली माने जा सकते हैं। लेकिन इसका कदापि यह अर्थ नहीं है कि वर्गोत्तम ग्रह सदा बहुत अच्छे परिणाम ही देते हों। इस बात को पूर्णतः समझने के लिए वर्गोत्तम ग्रह के विभिन्न प्रकारों को समझना आवश्यक है। वर्गोत्तम ग्रह तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम : राशि वर्गोत्तम। द्वितीय: तत्व वर्गोत्तम तथा तृतीय: भाव वर्गोत्तम। यदि कोई ग्रह लग्न तथा नवांश पत्रिका दोनों में समान राशि में स्थित हो तो उसे राशि वर्गोत्तम कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में राशियों को तीन तत्वों में विभाजित किया गया है। जिसमें से मेष, सिंह तथा धनु राशि अग्नि तत्व राशियाँ हैं। वृषभ, कन्या तथा मकर राशि पृथ्वी तत्व राशियाँ हैं। मिथुन, तुला वह कुंभ राशि वायु तत्व राशियाँ हैं तथा कर्क, वृश्चिक और मीन राशि जल तत्व राशियाँ हैं। इस प्रकार यदि कोई ग्रह लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका दोनों में समान तत्व राशियों में स्थित हों तो उसे तत्व वर्गोत्तम कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई ग्रह लग्न पत्रिका में धनु राशि में हो तथा नवांश पत्रिका में मेष राशि में हो तो वह दोनों पत्रिकाओं में अग्नि तत्व राशि में ही स्थित है। तब इस स्थिति में ग्रह को तत्व वर्गोत्तम कहा जाता है। अग्नि तत्व राशियाँ ईमानदारी, अनुशासन, विश्वसनीयता तथा नैतिकता का द्योतक होती हैं। पृथ्वी तत्व राशियाँ भौतिक उपलब्धियां तथा धन लाभ का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार वायु तत्व राशियाँ जातक की बौद्धिक क्षमता का अकलन करती हैं। जल तत्व राशियाँ भावनात्मकता तथा संवेदनशीलता का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार जब कोई ग्रह लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका दोनों में समान तत्व वाली राशियों में हो तो उसके विशेष परिणाम प्राप्त होने की संभावना बलवती हो जाती है। अग्नि तत्व ग्रह जैसे सूर्य, मंगल और केतु अग्नि तत्व राशियों में वर्गोत्तम होकर बहुत अच्छे परिणाम देते हैं। पृथ्वी तत्व का ग्रह बुध, पृथ्वी तत्व राशियों में यदि वर्गोत्तम हो तो बहुत अच्छे परिणाम देता है। इस प्रकार वायु तत्व के ग्रह शनि और राहु, वायु तत्व राशियों में ही वर्गोत्तम होकर बहुत अच्छे परिणाम देते हैं। जल तत्व के ग्रह जैसे शुक्र और चंद्रमा, जल तत्व राशियों में ही वर्गोत्तम हों तो बहुत अच्छे परिणाम देते हैं। इसके साथ ही अग्नि तत्व के ग्रह वायु तत्व की राशियों में तथा वायु तत्व के ग्रह अग्नि तत्व की राशियों में वर्गोत्तम होकर भी बहुत अच्छे परिणाम दे सकते हैं। इसी प्रकार जल तत्व के ग्रह पृथ्वी तत्व की राशियों में तथा पृथ्वी तत्व के ग्रह जल तत्व की राशियों में वर्गोत्तम होकर भी बहुत अच्छे परिणाम देने की क्षमता रखते हैं क्योंकि अग्नि और वायु में नैसर्गिक मैत्री होती है क्योंकि वायु के बिना अग्नि प्रचलित नहीं हो सकती इसी प्रकार पृथ्वी और जल में भी नैसर्गिक मैत्री होती है क्योंकि जब पृथ्वी और जल एक साथ होते हैं तो उन्नति होती है। बृहस्पति आकाश तत्व का ग्रह है तथा राशियों में आकाश तत्व की कोई राशि नहीं होती, लेकिन चूँकि आकाश सब जगह मौजूद होता है इसलिए बृहस्पति किसी भी तत्व की राशि में वर्गोत्तम होकर अच्छे परिणाम दे सकता है।
यदि कोई ग्रह लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका दोनों में समान भाव में हो तो वह भाव वर्गोत्तम कहलाता है। भाव वर्गोत्तम होने पर उस विशेष ग्रह का उस विशेष भाव पर अधिक प्रभाव पड़ता है। कई ज्योतिष शास्त्री भाव वर्गोत्तम को अच्छा मानते हैं, लेकिन अनेक ज्योतिषविदों का इस विषय में मतांतर है, क्योंकि भाव वर्गोत्तम होने पर हो सकता है कि, ग्रह लग्न पत्रिका में उच्च राशि में हो लेकिन नवांश पत्रिका में नीच राशि में स्थित हो। ऐसी स्थिति में ग्रह के खराब परिणाम प्राप्त होने की संभावना अधिक होती है। सभी ज्तोतिष शास्त्री राशि वर्गोत्तम को एक मत से महत्वपूर्ण मानते हैं।
ग्रह किसी राशि में विशेष नक्षत्र में विशेष पद में होने पर ही वर्गोत्तम हो सकता है, जैसे यदि कोई ग्रह मेष राशि में अश्विनी नक्षत्र के प्रथम पद में हो तभी वह वर्गोत्तम होता है। उसी प्रकार कोई ग्रह वृषभ राशि में रोहिणी नक्षत्र के द्वितीय पद में, मिथुन राशि में पुनर्वसु नक्षत्र के तृतीय पद में, कर्क राशि में पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ पद में, सिंह राशि में पूर्वा फाल्गुनी के प्रथम पद में, कन्या राशि में चित्रा नक्षत्र के द्वितीय पद में, तुला राशि में चित्रा नक्षत्र के तृतीय पद में, वृश्चिक राशि में अनुराधा नक्षत्र के चतुर्थ पद में, धनु राशि में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम पद में, मकर राशि में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के द्वितीय पद में, कुंभ राशि में शतभिषा नक्षत्र के तृतीय पद में तथा मीन राशि में रेवती नक्षत्र के चतुर्थ पद हो तभी वह वर्गोत्तम होता है। अतः जब कोई ग्रह वर्गोत्तम होता है, तब उसके परिणामों का विश्लेषण करते समय उसके नक्षत्र के गुण थर्मों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
यदि किसी जातक की लग्न पत्रिका और नवांश पत्रिका दोनों के लग्न में एक ही राशि हो तो उसे लग्न वर्गोत्तम कहा जाता है। लग्न वर्गोत्तम होने पर जातक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है। लग्न के वर्गोत्तम होने पर वह व्यक्ति विशेष की आयु को लंबा कर सकता है, क्योंकि इस स्थिति में जातक शरीर से सामर्थ्यवान् होता है। लग्न वर्गोत्तम होने से जातक को समाज में सम्मान की प्राप्ति हो सकती है।
यदि जातक की पत्रिका में सूर्य वर्गोत्तम हो तो ऐसी स्थिति में जातक के अंदर सूर्य के गुणों का समावेश अवश्य होता है तथा सूर्य से संबंधित परिणाम उसे तीव्रता से प्राप्त होते हैं। इसलिए इस स्थिति में जातक में नेतृत्व क्षमता व आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा होता है, इस कारणवश वह लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र होता है। ऐसे लोगों को दूसरों से काम करवाना भली प्रकार आता है। जातक आज़ाद व्यक्तित्व वाला व अकेलेपन को पसंद करने वाला हो सकता है। इस कारण विवाह के संदर्भ में सूर्य का वर्गोत्तम होना बहुत अच्छा नहीं माना जाता। सूर्य के वर्गोत्तम होने पर संभव है कि जातक के पिता की स्थिति बहुत अच्छी हो। इस स्थिति में जातक के जीवन में उसके पिता का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यह भी संभव है कि जातक अपने पिता के आदर्शों पर चलता हो। इसके साथ ही चूँकि सूर्य आत्मा का प्रतीक भी है, इसलिए जातक सुदृढ आत्मा का स्वामी होता है। जातक को समाज में मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सूर्य यदि अग्नि तत्व राशियों में वर्गोत्तम हो तो अधिक अच्छे फल प्रदान करता है। लेकिन यदि सूर्य वर्गोत्तम होने के साथ-साथ नवांश में अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो जाए तो जातक को जीवन भर सूर्य के गुणों तथा कार्यकत्वों को अधिकता से पाने की लालसा रहती है।
किसी भी जातक की पत्रिका में चंद्रमा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, इसलिए यदि किसी जातक की पत्रिका में चंद्रमा वर्गोत्तम हो तो यह अत्यधिक शुभ माना जाता है। चंद्रमा मन, माता का सुख, कैश-फ्लो, भावनाएँ इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए चंद्रमा के वर्गोत्तम होने पर जातक को चंद्रमा के गुण व कौशल स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। चंद्रमा के वर्गोत्तम होने पर जातक भावना प्रधान, कल्पनाशील, संगीत व कला प्रेमी होता है साथ ही वह दूसरों के मन की भावनाएँ बिना कहे ही समझ सकता है तथा भावनाओं के सहारे ही लोगों को जीतने की क्षमता रखता है। ऐसे जातकों की अंतर्दृष्टि (इंट्यूशन पॉवर) बहुत अच्छी होती है। यदि चंद्रमा जल तत्व राशियों में वर्गोत्तम हो तो जातक अच्छे मन का स्वामी होता है, साथ ही उसकी माता बहुत अच्छी हो सकती है, वह मन से शांत हो सकता है। इस स्थिति में जातक को चंद्रमा के कार्यकत्वों से संबंधित सुखों की प्राप्ति हो सकती है। यदि किसी जातक की लग्न पत्रिका में चंद्रमा शुभ प्रभाव में हो लेकिन नवांश पत्रिका में उस पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा तो इस स्थिति में जातक के अंदर चंद्रमा के कार्यकत्वों को अधिकता में प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हो सकती है उदाहरण के लिए वह माता के स्नेह अथवा मन की शांति के लिए अत्यधिक लालायित हो सकता है, साथ ही वह भावनात्मक उठा-पटक का अनुभव भी कर सकता है तथा भावनात्मक सहारा पाने की तीव्र इच्छा रख सकता है।
यदि जातक की पत्रिका में मंगल वर्गोत्तम हो तो वह जातक को अत्यधिक ऊर्जावान, साहसी, जोशीला व लड़ाकू प्रवृत्ति का बना सकता है। जातक प्रतियोगी भावना रखने वाला तथा चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करने वाला होता है। जातक खिलाड़ी हो सकता है, साथ ही वह शारीरिक तंदरुस्ती के प्रति सचेत भी होता है। जातक इंजीनियरिंग या किसी टेक्नीकल कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है। मंगल भाई-बहन और भूमि का भी प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इस स्थिति में जातक को भाई-बहनों का तथा भूमि का सुख भी प्राप्त हो सकता है। अग्नि तत्व राशियों में मंगल यदि वर्गोत्तम हो तो अत्यधिक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यदि वृश्चिक राशि में मंगल वर्गोत्तम हो तो जातक को ज्योतिष तथा गुप्त विद्याओं में संबंधित अच्छे परिणामों की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन वृश्चिक राशि में वर्गोत्तम होने पर जातक को अचानक चोट-चपेट का सामना भी करना पड़ सकता है। यदि नवांश में वर्गोत्तम मंगल पर अशुभ प्रभाव हो तो जातक जीवन भर मंगल के कार्यकत्वों तथा गुणों को अधिकता से प्राप्त करने के लिए लालायित रह सकता है।
यदि पत्रिका में बुध वर्गोत्तम हो तो यह जातक को शिक्षा व संचार के क्षेत्र में सफलता दिलवा सकता है। ऐसा जातक अपनी वाणी के प्रभाव से, हाजिर जवाबी से तथा हँसोड़ स्वभाव के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कई बार ऐसे जातक कई प्रकार की भाषाएँ आसानी से सीखकर बोल लेते हैं। जातक रिश्तेदारों, छोटे-भाई बहनों तथा दोस्तों के बीच काफी लोकप्रिय होता है। ऐसे जातक तीक्ष्ण बुद्धि वाले होते हैं तथा उनमें विश्लेषण करने की क्षमता बहुत अच्छी होती है। जातक में व्यापारिक बुद्धि कूट-कूटकर भरी होती है। ऐसे जातक व्यापार के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। इसके अलावा ऐसे जातक एक अच्छे सेल्समेन बन सकते हैं तथा वह मार्केटिंग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे जातकों को नए फैशन, नए ट्रेंड, नई टेक्नोलॉजी की अच्छी जानकारियाँ होती हैं। यदि पृथ्वी तत्व राशियों में बुध वर्गोत्तम होता है तो बहुत अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है। लेकिन यदि वर्गोत्तम बुध नवांश कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो वह बुध के गुणों तथा कार्यकत्वों को प्राप्त करने के लिए सदैव लालायित रहता है तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए उसे अधिक प्रयास करना पड़ता है।
जातक की पत्रिका में गुरुदेव बृहस्पति वर्गोत्तम हो तो जातक ज्ञानी होता है तथा ज्ञान प्राप्ति की दिशा में सदैव प्रयासरत रहता है। ज्ञान के कारण लोग ऐसे जातकों की ओर आकर्षित होते हैं। जातक को गुरु की कृपा प्राप्त हो सकती है। वह दर्शनशास्त्र का ज्ञाता हो सकता है। ऐसे जातक धर्म गुरु, शिक्षक अथवा पथ-प्रदर्शक हो सकते हैं। जातक धर्म का प्रचारक तथा धर्म की राह पर चलने वाला हो सकता है। जातक की संतान अच्छी हो सकती है, क्योंकि बृहस्पति संतान का भी कारक होता है
यदि शुक्र वर्गोत्तम हो तो जातक को धन, सौंदर्य, ग्लैमर, कला, प्रेम, घर, गाड़ी, सुख-सुविधाएँ तथा विवाह का सुख अवश्य प्राप्त होता है और उसे इन चीजों का संतोष भी रहता है लेकिन यदि नवांश में शुक्र अशुभ प्रभाव से पीड़ित हो तो जातक को सुख सुविधा, धन इत्यादि शुक्र के कार्यकत्वों से संबंधित चीजों के प्रति असीमित लालसा रहती है तथा जातक को उन चीजों को प्राप्त करने के लिए अधिक मेहनत करना पड़ता है। शुक्र के वर्गोत्तम होने पर जातक की रुचि संगीत, नृत्य, कला, चित्रकारी, पेंटिंग अथवा डिजाइनिंग में हो सकती है। शुक्र के वर्गोत्तम होने पर जातक को उसके प्रेमी/प्रेमिका अथवा पति/पत्नी का बहुत प्रेम प्राप्त होता है। ऐसे जातक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। ऐसे जातक फिल्म लाइन में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है।
यदि जातक की पत्रिका में शनि वर्गोत्तम हो तो जातक कर्मठ, सेवाभावी, मेहनती, धैर्यवान, अनुशासन पसंद व समाज सुधारक हो सकता है। दीर्घकालिक कार्य को भी ऐसे जातक धैर्यपूर्वक कर पाने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातकों का ध्यान उनके कर्म पर अवश्य होता है। इस स्थिति में जातक धीरे-धीरे अपनी नौकरी में ऊंचे पद को प्राप्त कर सकता है। यदि द्विस्वभाव राशियों में शनि वर्गोत्तम हो तो इस स्थिति में संभव है कि जातक कर्म के क्षेत्र में असमंजस की स्थिति में रहे अथवा वह दो जगह नौकरी करके पैसे कमा सकता है।
राहु जातक के स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए यदि यदि किसी जातक की पत्रिका में राहु वर्गोत्तम होता है तो जिस भाव में वह वर्गोत्तम हो उस भाव से संबंधित इच्छाओं को अत्यधिक बढ़ा देता है। उन इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए जातक राहु की प्रेरणा से नई-नई योजनाएँ बनाता है तथा अपरंपरागत तरीके से, सीमाओं को तोड़कर भी वह उन इच्छाओं की पूर्ति करने की कोशिश करता है। जिस जातक का राहु वर्गोत्तम होता है वह भीड़ से अलग अपनी नई राह पर चलने की कोशिश करता है तथा जोखिम लेने से नहीं डरते हैं। ऐसे जातक डिजिटल तकनीकों के अच्छे ज्ञाता होते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे जातक छल, कपट व चालाकी में भी माहिर होते हैं।
केतु जातक के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही केतु जातक को अंतर्मुखी बनाने का काम भी करता है। इसलिए यदि किसी जातक की पत्रिका में केतु वर्गोत्तम हो तो वह जातक को मोक्ष, आध्यात्म तथा शोध की दिशा में प्रेरित करता है इसके अतिरिक्त वह जातक को ज्योतिष जैसी गुप्त विधाओं तथा तंत्र-मंत्र जैसी विद्याओं की ओर भी ले जाने का प्रयास करता है। केतु वर्गोत्तम होने पर कई जातकों की छठी इंद्रिय जाग्रत रहती है।
शुक्र, बुध और चंद्रमा की वे राशियाँ जो सम हों, उनमें यदि कोई ग्रह वर्गोत्तम हो तो वह अच्छे परिणाम प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। सूर्य, शनि और मंगल की राशियां क्रूर कहलाती है इनमें से भी विषम राशियाँ अधिक क्रूर राशियाँ होती हैं। इस प्रकार यदि कोई ग्रह क्रूर राशि में वर्गोत्तम हो तो वह लड़ने और जीतने की प्रेरणा देता है। अर्थात् वह जातक को प्रयास के उपरांत ही अच्छे परिणाम प्रदान करता है। यदि कोई ग्रह उच्च का होकर वर्गोत्तम हो तो वह भी जातक को बहुत अच्छे परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है। यदि कोई ग्रह अग्नि तत्व राशि में वर्गोत्तम हो तो वह जातक को धार्मिक आचरण की ओर प्रवृत्त करता है यदि ग्रह पृथ्वी तत्व राशियों में वर्गोत्तम हो तो वह जातक की आर्थिक उन्नति करवाने में सहायक होता है, यदि कोई ग्रह वायु तत्व राशियों में वर्गोत्तम हो तो वह जातक की बौद्धिक क्षमता को बढ़ावा देने का काम करता है, इस प्रकार यदि कोई ग्रह जल तत्व राशियों में वर्गोत्तम हो तो वह जातक को मोक्ष की ओर ले जाने में सहायक होता है।
कोई भी ग्रह अपनी दशा में ही परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है। अतः कोई ग्रह यदि राशि या तत्व वर्गोत्तम होता है, तो उसके नैसर्गिक कार्यकत्वों में वृद्धि होती है, साथ ही वह जिन भावों का स्वामी होता है उन भावों के फलों को भी बढ़ा देता है। लेकिन राशि या तत्व वर्गोत्तम ग्रह जिस भाव में स्थित होता है, उसके परिणाम सामान्य विश्लेषण से ही प्राप्त होते हैं अर्थात् वर्गोत्तम ग्रह की स्थिति से किसी भाव के परिणामों में कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अतिरिक्त यदि वर्गोत्तम ग्रह नवांश में अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो जाता है तो जातक जीवन भर उस ग्रह के कार्यकत्वों से संबंधित गुणों को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक लालसा का अनुभव करता है अथवा उसे उस ग्रह के कार्यकत्वों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास करना पड़ सकता है। इस प्रकार वर्गोत्तम ग्रह जहां एक ओर राजयोग जैसा प्रभाव देते हैं, वही नवांश में अशुभ ग्रहों से पीड़ित होने पर उस ग्रह के कार्यकत्वों को प्राप्त करने की अतिरिक्त लालसा भी दे सकते है।
- डॉ. सुकृति घोष,
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र , शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश


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