भाषा विज्ञान के अंगों का विश्लेषण और उपयोगिता भाषा विज्ञान भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन का क्षेत्र है जो भाषा की संरचना, कार्यप्रणाली और विकास को समझता ह
भाषा विज्ञान के अंगों का विश्लेषण और उपयोगिता
भाषा विज्ञान भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन का क्षेत्र है जो भाषा की संरचना, कार्यप्रणाली और विकास को समझता है।भाषा विज्ञान के अंगों से अभिप्राय उन अवयवों अथवा घटकों से है जिनका भाषा-विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है, जो सर्वप्रथम उच्चरित होती है। ध्वनियों के सम्मेल से पद अथवा शब्द का निर्माण होता है पदों के मिलने से वाक्य की रचना सुनिश्चित होती है और वाक्यों के द्वारा अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। अस्तु, इस आधार पर मुख्य रूप से भाषा-विज्ञान के चार अंग होते हैं -
- ध्वनि-विज्ञान (Phonology)
- पद-विज्ञान (Morphology)
- वाक्य-विज्ञान (Syntax)
- अर्थ विज्ञान (Semantics)।
ध्वनि विज्ञान (Phonology)
ध्वनि भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है। उच्चरित भाषा में सर्वप्रथम ध्वनि की आवश्यकता पड़ती है। ध्वनि ही भाषा का मूल-तत्त्व होती है। ध्वनि-विज्ञान के अन्तर्गत ध्वनि का समग्र विश्लेषण किया जाता है। ध्वनि की परिभाषा, उसके प्रकार, उसकी उत्पत्ति तथा उसके प्रकारों का व्यवस्थित वर्गीकरण प्रस्तुत किया जाता है। इसके अतिरिक्त एकाधिक ध्वनियों के सम्मेल से होने वाले परिवर्तनों तथा ध्वनियों में तीव्रता एवं मन्दता आने के कारणों का उल्लेख करते हुए उससे सम्बन्धित विभिन्न नियमों एवं उपनियमों का सम्यक विश्लेषण ध्वनि विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार, ध्वनि-विज्ञान, भाषा विज्ञान का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी अंग है।
पद विज्ञान (Marphology)
पद-विज्ञान को भाषा-विज्ञान के अन्तर्गत अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे-रूप-विज्ञान, रूप-विचार, पद आदि । भाषा विज्ञान के इस अंग के अन्तर्गत पद से सम्बन्धित सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया जाता है। पद अथवा रूप किसे कहते हैं? इसकी परिभाषा क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है? इसके घटक अथवा अवयव कौन-कौन-से हैं? इनका विभाजन किस आधार पर होता है ? आदि तथ्यों का विवेचन-विश्लेषण पद-विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। लिंग, विभक्ति, वचन, पुरुष, काल, प्रकृति, प्रत्यय, उपसर्ग आदि बिन्दुओं की विवेचना भी इसके अन्तर्गत होती है। इसके अतिरिक्त शब्द और पद के बीच क्या और कितना अन्तर है ? इसकी विवेचना करते हुए पद-निर्माण के प्रकारों का भी उल्लेख किया जाता है। इस प्रकार, पद-विज्ञान-भाषा विज्ञान का दूसरा और महत्त्वपूर्ण अंग है।
वाक्य-विज्ञान (Syntax)
वाक्य-विज्ञान भाषा-विज्ञान का तीसरा महत्त्वपूर्ण अंग है। जिस प्रकार एकाधिक ध्वनियों के सम्मेल से पद अथवा रूप की निर्मिति होती है, उसी प्रकार एकाधिक अथवा विभिन्न प्रकार के पदों अथवा रूपों के सम्मेल से वाक्य-रचना होती है। वाक्य विज्ञान को भाषा-विज्ञान में वाक्य-विचार अथवा वाक्य-रचना-शास्त्र भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत वाक्य से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं पर व्यापकता के साथ प्रकाश डाला जाता है। डॉ. कपिलदेव द्विवेदी ने लिखा है कि- “वाक्य-विज्ञान में वाक्य की रचना किस प्रकार होती है ? वाक्य में पदों का अन्वय किस प्रकार होता है ? अन्वय का आधार क्या है ? कर्ता, क्रिया, कर्म आदि का किस स्थान पर निवेश होता है ? वाक्य के कितने भेद हैं? इत्यादि बातों का विवेचन किया जाता है।
वाक्य-विज्ञान को अध्ययन की सुविधा के लिए विद्वानों ने तीन भागों में विभक्त किया है -
- वर्णनात्मक वाक्य-विज्ञान (Discriptive Syntax)
- ऐतिहासिक वाक्य-विज्ञान (Historical Syntax)
- तुलनात्मक वाक्य-विज्ञान (Comparative Syntax)।
वर्णनात्मक वाक्य-विज्ञान के अन्तर्गत वाक्य की रचना से सम्बन्धित सामान्य बातों की चर्चा होती है। ऐतिहासिक वाक्य-विज्ञान के अन्तर्गत वाक्य-रचना का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करते हुए उसके इतिहास पर प्रकाश डाला जाता है तथा तुलनात्मक वाक्य-विज्ञान के अन्तर्गत एकाधिक भाषाओं के वाक्यों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।
अर्थ विज्ञान (Semantics)
अर्थ-विज्ञान के अन्तर्गत अर्थ से सम्बन्धित विविध पहलुओं का मूल्यांकन किया जाता है। अर्थ-विज्ञान को भाषा-विज्ञान में अर्थ-विचार भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत अर्थ की परिभाषा; शब्द और अर्थ का सम्बन्ध, अर्थ का निर्धारण, अर्थ-परिवर्तन क्यों होता है और कैसे होता है? उसके क्या-क्या कारण होते हैं तथा अर्थ-परिवर्तन की क्या दिशाएँ होती हैं? आदि बिन्दुओं पर व्यापकता के साथ प्रकाश डाला जाता है। इसके अतिरिक्त अर्थ-विज्ञान के अन्तर्गत पर्यायवाची शब्द, नानार्थक शब्द, विलोम शब्द आदि का भी विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है। भाषा में अर्थ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि अर्थ के अभाव में अभिव्यक्ति व्यर्थ हो जाती है। अत: भाषा-विज्ञान में अर्थ-विज्ञान का अन्य अंगों की तुलना में अत्यधिक महत्त्व होता है। अर्थ को व्याख्यायित करते हुए डॉ. कपिलदेव द्विवेदी ने लिखा है कि, "जिस प्रकार मानव-शरीर का सार भाग आत्मा है, उसी प्रकार भाषा रूपी शरीर की आत्मा अर्थ है।"
वाक्य-विज्ञान की ही तरह से अर्थ-विज्ञान का अध्ययन भी तीन रूपों में किया जाता है-
1. समकालिक अर्थ-विज्ञान
2. ऐतिहासिक अर्थ-विज्ञान
3. तुलनात्मक अर्थ-विज्ञान ।
भाषा-विज्ञान के उपर्युक्त चार प्रमुख अंगों के अतिरिक्त इसके कुछ गौण अंग भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. भाषा की उत्पत्ति ।
2. कोश-विज्ञान।
3. लिपि-विज्ञान
4. भाषाओं का वर्गीकरण।
5. शैली-विज्ञान ।
6. प्रागैतिहासिक खोज"।
7. मनोभाषा-विज्ञान।
8. भू-भाषा-विज्ञान।
9. भाषिक भूगोल।
10. समाज भाषा-विज्ञान ।


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