दिल्ली में आवारा कुत्ते सुप्रीम कोर्ट का आदेश और संवैधानिक संतुलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या लंबे समय से एक गंभीर म
दिल्ली में आवारा कुत्ते सुप्रीम कोर्ट का आदेश और संवैधानिक संतुलन
भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा रही है। यह न केवल जनसुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक आयामों को भी छूता है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में स्थानांतरित करने का एक सख्त आदेश जारी किया है, जिसने इस विषय को फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। यह आदेश न केवल कानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) और पशु कल्याण के बीच संतुलन की बहस को भी उजागर करता है। यह लेख इस जटिल मुद्दे के विभिन्न पहलुओं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के निहितार्थ, और इसके सामाजिक-नैतिक प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डालता है।
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या कोई नई बात नहीं है। अनुमान के अनुसार, दिल्ली में करीब 8 से 10 लाख आवारा कुत्ते हैं, जो सड़कों, गलियों और सार्वजनिक स्थानों पर घूमते हैं। ये कुत्ते समय-समय पर लोगों, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं पर हमला करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप रेबीज जैसी घातक बीमारी के मामले सामने आते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में देश में कुत्तों के काटने के 37 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए, और दिल्ली में रेबीज से होने वाली मौतों की संख्या भी चिंताजनक रही। हाल ही में रोहिणी के पास एक 6 साल की बच्ची की रेबीज से मृत्यु ने इस समस्या की गंभीरता को और उजागर किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की घटनाओं का स्वतः संज्ञान लेते हुए 28 जुलाई 2025 को एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सुनवाई शुरू की। कोर्ट ने इस मुद्दे को "बेहद परेशान करने वाला और चिंताजनक" बताते हुए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट और सख्त है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), और नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) को आठ सप्ताह के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पकड़े गए कुत्तों को किसी भी हाल में उनके मूल स्थान पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा। इसके लिए दिल्ली सरकार को 5,000 कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाने और इनमें नसबंदी, टीकाकरण और देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी और बुनियादी ढांचे की व्यवस्था करने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जनसुरक्षा सर्वोपरि है और इस मामले में भावनाओं को कोई स्थान नहीं दिया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति या संगठन इस प्रक्रिया में बाधा डालता है, तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई, जिसमें प्राथमिकी दर्ज करना और अदालत की अवमानना का मामला शामिल है, की जाएगी।
यह आदेश संवैधानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, इस मामले में केंद्र में है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। रेबीज जैसी घातक बीमारी, जो आवारा कुत्तों के काटने से फैलती है, इस अधिकार का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या पशु कल्याण कार्यकर्ता उन लोगों को वापस ला सकते हैं जो रेबीज का शिकार हो गए? इस तरह की टिप्पणी से कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मानव जीवन को प्राथमिकता देना उसका प्राथमिक उद्देश्य है।
हालांकि, यह आदेश कई कारणों से विवादों में भी घिर गया है। पशु कल्याण संगठनों, कार्यकर्ताओं और कुछ राजनेताओं ने इसे अव्यावहारिक, क्रूर और पर्यावरणीय संतुलन के लिए हानिकारक बताया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह न केवल आर्थिक रूप से बोझिल है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी बिगाड़ सकता है। उनके अनुसार, 10 लाख कुत्तों को शेल्टर होम में रखने के लिए 15,000 करोड़ रुपये का प्रारंभिक खर्च और साप्ताहिक 5 करोड़ रुपये का भोजन खर्च आवश्यक होगा, जो दिल्ली सरकार के लिए असंभव है। पेटा इंडिया और अन्य संगठनों ने भी इस आदेश को एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) नियमों के खिलाफ बताया, जो नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके मूल स्थान पर वापस छोड़ने की वकालत करते हैं।
एबीसी नियम, जो 2001 में लागू किए गए थे, आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने का एक वैज्ञानिक और मानवीय तरीका माना जाता है। इन नियमों के तहत, कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के बाद उन्हें उसी क्षेत्र में वापस छोड़ दिया जाता है, ताकि उनकी आबादी धीरे-धीरे कम हो और रेबीज जैसी बीमारियों का प्रसार रोका जा सके। सुप्रीम कोर्ट का 2024 का एक पूर्व आदेश, जस्टिस संजय करोल और जेके माहेश्वरी की पीठ द्वारा दिया गया, भी इन नियमों का समर्थन करता था। लेकिन 11 अगस्त 2025 का नया आदेश इस नीति के उलट प्रतीत होता है, जिसने विरोध को और हवा दी। पशु प्रेमियों का तर्क है कि कुत्तों को स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखना न केवल अमानवीय है, बल्कि यह उनकी प्राकृतिक स्वतंत्रता को छीनने जैसा है। बॉलीवुड अभिनेत्री जाह्नवी कपूर ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि आवारा कुत्ते सड़कों की "दिल की धड़कन" हैं और उन्हें पिंजरे में बंद करना कोई समाधान नहीं है।
इसके अलावा, इस आदेश को लागू करने की व्यावहारिक चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दिल्ली में वर्तमान में पर्याप्त शेल्टर होम नहीं हैं। केवल 20 एबीसी केंद्र हैं, जो 30-40 कुत्तों को एक सप्ताह तक ही रख सकते हैं। 10 लाख कुत्तों को रखने के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन, हजारों बाड़ों और अरबों रुपये के बजट की आवश्यकता होगी। एक कुत्ते को स्थायी रूप से रखने के लिए 40-45 वर्ग फुट जगह की जरूरत होती है, और इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों को पकड़ने के लिए दिल्ली के पास केवल 24 कुत्ता-पकड़ने वाली वैन हैं, जो पूरी तरह अपर्याप्त हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश बिना ठोस योजना और संसाधनों के लागू नहीं हो सकता। साथ ही, कुत्तों को एक छोटी जगह में बंद करने से त्वचा संक्रमण और रेबीज जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है, जो उल्टा जनसुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
इस मुद्दे ने सामाजिक और राजनीतिक बहस को भी जन्म दिया है। जहां दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा और बीजेपी नेता विजय गोयल ने इस आदेश का स्वागत किया है, वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे "क्रूर और अदूरदर्शी" करार दिया। राहुल गांधी ने सुझाव दिया कि नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल जैसे उपायों से इस समस्या का समाधान संभव है, बिना कुत्तों के प्रति क्रूरता बरते। इंडिया गेट पर पशु प्रेमियों के विरोध प्रदर्शन और सोशल मीडिया पर चल रही बहस ने इस मुद्दे को और गर्म कर दिया है।
दिल्ली के पड़ोसी क्षेत्रों जैसे नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद से कुत्तों के आने की संभावना भी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि कुत्ते क्षेत्रीय सीमाओं से बंधे नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश केवल दिल्ली तक सीमित है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का समाधान राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र नीति के बिना संभव नहीं है। साथ ही, यह भी विचारणीय है कि क्या यह आदेश पशु कल्याण के प्रति भारत की सांस्कृतिक संवेदनशीलता के अनुरूप है, जो सभी जीवों के प्रति करुणा की बात करता है।
निष्कर्षतः, सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक जटिल समस्या का समाधान करने का प्रयास है, जो जनसुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है। हालांकि, इसके व्यावहारिक और नैतिक निहितार्थों ने इसे विवादास्पद बना दिया है। इस आदेश को लागू करने के लिए दिल्ली सरकार को न केवल संसाधनों की आवश्यकता होगी, बल्कि एक ऐसी नीति की भी जरूरत है जो मानवीय और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोणों को समाहित करे। यह मुद्दा न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक है कि हमें अपनी नीतियों में संतुलन, संवेदनशीलता और व्यावहारिकता को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि न तो मानव जीवन खतरे में पड़े और न ही पशुओं के प्रति क्रूरता बरती जाए।


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