माउंड का आनंद मनु डेढ़ दशक, बाद माउंड मेले में सम्मलित होने आ पाया है। विदेश में कार्य करने के कारण कभी कभी , अपने गाँव सैय्ज गाँव आता है।डेढ़ दशक से
माउंड का आनंद
मनु डेढ़ दशक, बाद माउंड मेले में सम्मलित होने आ पाया है। विदेश में कार्य करने के कारण कभी कभी , अपने गाँव सैय्ज गाँव आता है।डेढ़ दशक से मनु विदेश में चेफ का कार्य कर रहा है। चौहान साब पहले दुबई ले गए। बहुत से अमीर लोग रहते हैं वहाँ। ऊँची इमारतें। बहुत से नकली पेड़ पौधे। गर्मी भी है पर सुविधा है मौसम को ठंडा रखने को।
तीन वर्ष वहाँ काटे, धन दौलत कमा, धूम धाम से अपनी विवाह का आयोजन करा। चौहान साब ने, हंगरी में हिंदुस्तानी रेस्टोरेंट खोला, फिर जापान और कोलंबीआ में भी भोजनलाय बनाया। मनु को सब जगह भेजा, युवा चेफ की ट्रेनिंग के लिए। वैसे मनु नॉर्थ इंडियन, तिब्बती और ब्रिटिश ब्रेकफास्ट में बहुत कुशल है। इन सब से अच्छा वो पहाड़ी भोजन बनाता है। पहाड़ी में भी जाउंसर टेहरी का भोजन। मंदवा मक्की की रोटी, छाछ, सफेद मखाँन, कंडाली का कपुलि, भट की सूँ, लिंगडी, चावल के मिठे नमकीन पापड़,भात, बुरांश चटनी, चुइं,बाल मिठाईयाँ, अरसे और काढ पनीर। विदेश में पहाड़ी भोजन अपने सुपाच्य, सरल पाक शैली के लिए लोक प्रिय है।
कई बार पहाड़ से जुड़े पर्यटक, मनु के हाथ का भोजन कर विशेष रूप से बात कर, इनाम या कोई तोहफा दे जाते है। अपनी कलाई पर बंधी स्मार्ट वॉच को देख, टेहरी राज कुँवर की याद आ गयी। वो कई बार जापान आ कर मनु के हाथ का भोजन ग्रहण करते हैं। उन का अनुरोध है, टेहरी में हमारे राज महल में पहाड़ी रेस्तरां चलाओ। पर आने का समय नहीं मिला।आज बेटा, दस वर्षीय लोकेश, पहली बार माउंड मेले में सम्मलित हो रहा, बहुत अग्रह कर के बुलाया “पापा प्लीज़ आ जाएं, आप के साथ ही जाऊंगा। इस बार राज तिमरु हमारे गाँव में इकट्ठा हुआ है। पापा प्लीज।”
मनु बेटे की बात टाल नहीं पाया।
गाँव बीच बीच में आया है, पर अब बदलाव देख भौचक रह गया। हेलिकॉप्टर, ड्रोन, चौडी रोड, होमस्टै और विदेशी फूल फल की खेती। अंग्रेज़ी स्कूल चला रहे।
मनु हमेशा आश्चर्य चकित रहता था कि यहाँ के निवासी के पूर्वज इन सुनसान, बियावान पहाड़ी जंगलों में कैसे आ बसे? हाथ औजार से खेत, छानी, घर बनाये। बीज, ढोर डन्गार पाल लिए। देवथान, मन्दिर बनाये, जल स्त्रोत संभाले, सब कुछ पग डंडी खच्चार के सहारे और आज बड़ी सड़क आते कितने लोग गाँव छोड़ जा रहे।
“मैं भी उन में से एक हूँ, भगोडा, कठिन परिस्थिति से भागने वाले। यहीं बस जाऊँ, लौट आऊँ?”
“मनु, चल सब निकल गए।” बड़े भाई अंकुर ने कहा।
“पापा, तिमरु पौडेर। ममी ने आप के लिए अलग से बना कर रखा है।”
लड़के और पुरुष, ढोल ढमाओ, मश्क बीन और धप के साथ नाचते गाते, जाल और थैले ले कर अग्लैड नदी की ओर चल पड़े। कोई दौड़ रहा, कोई हंस रहा। अम्छु, किन्गोर, काफल तोड़ तोड़ खा रहे हैं। इस वर्ष कौउल् पर बहुत फल है, तोड़ो तो आम की महक आती है।
“पापा चलो, सब इंतज़ार कर रहे कब मछली पकड़े। बड़ी पार्टी, दावत होगी, आप हो यहाँ, दादी ने लाल धान अलग से कूट रखा है, ताई ने राइ का तेल पिरवाया है, मामा ने पनचक्की का आटा भेजा है, दीदी ने पहाड़ी फुदीने की चटनी बनाई है।”
“और मेरे बेटे, प्यारे बेटे ने क्या करा है?”
“पढ़ाई, पढ़ाई कर आप की तरह विदेश जाने की तैयारी।”
मनु के कान खड़े हो गए। विदेश आवास क्या इतना सुखदाई है। हाँ, थोड़ा पैसा है जो यहाँ बहुत है, पर परिवार से दूर, ना अपनी भाषा, ना समाज, ना लोक पर्व। ना बच्चों का साथ।
“बेटा, मैं यहीं रह जाऊँगा। हम यहीँ काम करेंगे। देख कितने पर्यटक आ रहे, उन्हें अपने गाँव का स्वाद देंगे।”
“सच पापा, यहीं रहोगे? कितना मज़ा आयेगा। सब मेले, यात्रा साथ साथ जायेंगे।”
“बिल्कुल बेटा। मैं यहीं रहुंगा।”
“पापा, जल्दी से राज तिमरु डाल दो। आज मैं ही सब से बड़ी और सब से अधिक मछली जमा करूँगा।”
हपड धपड में सब पानी में कूद गए। पानी एक दूसरे पर उछालने लगे। लोक गायक नंद जी और गायिका कीर्ति जल में खड़े खड़े माउंड गीत गाने लगे।
हंसी खुशी से दिन बीत गया।
मनु सब से, चालीस गाँव के बचपन के साथियों से मिल कर बहुत हल्का महसूस कर रहा था। कई साथी भावुक हो आंसू बहाते रहे। खुशी k
“पापा, ये देखो।” लोकेश ने कहा।
“अरे, वाह, इतनी मछली, क्या करेगा?”
“बांट दूँगा।”
“खायेगा नहीं?”
“ओ खाऊंगा, आप ने पकड़ी, ममी पकाईगी।” कहते हुए तेजी से आगे बढ़ गया। “पकड़ो, आओ प….पकड़ो, पापा।”
मनु धीरे धीरे चढ़ने लगा। मन ही मन सोचा, बेटा लोकेश, अगले वर्ष तुझे हरा दूँगा। आज नहीं चल पाऊँगा।
- मधु मेहरोत्रा
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