पत्रिका में षष्ठम भाव में स्थित भावेशों व ग्रहों की स्थिति को जानकर तथा उनसे संबंधित सेवाभाव को अपनाकर हम उनसे संबंधित अच्छे परिणामों की प्राप्ति कर स
षष्ठम भाव: भौतिक व आध्यात्मिक व्याख्या
जन्म कुंडली में तीसरे, छठवें और ग्यारहवें भाव को सामुहिक रूप से त्रिषडाय भाव कहा जाता है। इसी प्रकार जन्म कुंडली के तीसरे, छठवें, दसवें तथा ग्यारहवें भाव के समूह को उपचय भाव कहते हैं तथा छठवें, आठवें तथा बारहवें भाव के समूह को त्रिक भाव या दुःख स्थान कहते हैं। तीनों समूहों में छटवाँ भाव सभी में उपस्थित है। छठवाँ भाव भौतिक रुप से सामान्यतया रोग, ऋण, रिपु का भाव कहलाता है। चूँकि यह भाव रोग का है इसलिए स्वास्थ्य का भाव भी यही है। यह भाव शत्रुओं का है इसलिए यह जीवन के संघर्षों, प्रतियोगिताओं तथा प्रतियोगिताओं से प्राप्त होने वाली सफलताओं का भी भाव है। यह भाव रोजमर्रा की दिनचर्या को भी दिखाता है, साथ ही यह जातक के कार्य करने की तथा जोखिम उठाने की क्षमता को भी प्रदर्शित करता है। इसके अतिरिक्त कोर्ट कचहरी का भाव भी यही है। यदि छटवें भाव का स्वामी लग्न पत्रिका व नवांश दोनों में मजबूत स्थिति में हो अथवा छटवें भाव में कोई ग्रह शक्तिशाली होकर स्थित हो तो उसकी दशा/अंतर्दशा में जातक कोर्ट केस अथवा प्रतियोगिता या लड़ाई-झगड़ा आदि में विजय प्राप्त करता है। छटवाँ भाव जातक के जॉब/नौकरी तथा सेवा का भी भाव है।
आध्यात्मिक रूप से कहा जाए तो पत्रिका का छटवाँ भाव जातक के षड् रिपुओं का भाव है जिसके अंतर्गत काम (इच्छा), क्रोध (गुस्सा), लोभ (लालच), मोह (लगाव), मद (अहंकार), और मात्सर्य (ईर्ष्या) आते हैं। छटवाँ भाव भौतिक रूप से लिए गए रुपए पैसे के कर्ज को तो बताता ही है लेकिन साथ ही यह जन्म जन्मांतर के हमारे कर्जों को भी दिखाता है, इसलिए षष्ठम भाव का भावेश यदि पीड़ित अवस्था में हो उसकी दशा/अंतर्दशा जातक के लिए तकलीफदेह सिद्ध होती है क्योंकि इस समय उसके पूर्व जन्मों के कर्जों का हिसाब-किताब होता है। षष्ठेश जिस भाव में स्थित होता है, जातक के उस भाव से संबंधित जन्म जन्मांतर के कर्ज (शारीरिक, मानसिक, भौतिक अथवा आध्यात्मिक) होते हैं, जो उसे षष्ठेश की दशा/अंतर्दशा में चुकाने होते हैं। छटवें का छटवाँ भाव ग्यारहवाँ भाव है। अतः जितनी पीड़ा छटवाँ भाव देता है, उससे कई गुना अधिक पीड़ा इच्छाओं की आसक्ति के रूप में ग्यारहवाँ भाव देता है, तभी तो ग्यारहवाँ भाव त्रिषडाय भावों में सर्वाधिक पीड़ादायक है। षष्ठम भाव में स्थित सात्विक ग्रह जैसे सूर्य, चंद्र और गुरु, जातक को षड् रिपुओं पर विजय प्राप्त करवाने में सहायक होते हैं। पत्रिका में षष्ठेश अच्छी स्थिति में हो तो उसकी दशा/अंतर्दशा में जातक प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर अच्छी नौकरी पा सकता है लेकिन यदि षष्ठेश पीड़ित हो तो उसकी दशा/अंतर्दशा में जातक को रोग, ऋण, रिपु के रूप में पीड़ा की प्राप्ति होती है। यदि किसी भाव का स्वामी छटवें भाव में स्थित हो और वह लग्न पत्रिका और नवांश दोनों में पीड़ित हो तो उस भावेश की दशा/अंतर्दशा में जातक को उस भाव से संबंधित रोग हो सकते हैं। लेकिन उस ग्रह से संबंधित सेवा करके उसके अशुभ प्रभावों से छुटकारा पाया जा सकता है।
यदि लग्नेश षष्ठम भाव में स्थित हो जाए तो यह भाव बहुत महत्वपूर्ण बन जाता है। जातक जीवन के संघर्षों पर सदैव विजय प्राप्त करता है क्योंकि ऐसी स्थिति में जातक स्वयं अपने संघर्षों अर्थात् रोग, ऋण, रिपुओं को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है। लग्नेश मजबूत हो तो जातक अनुशासित जीवन शैली का पालन करता है और अपने स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखता है। इसके अतिरिक्त लोग जातक के प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ईर्ष्या अथवा शत्रुता कर सकते हैं अर्थात् जातक का व्यक्तित्व ही उसके शत्रुओं को जन्म देता है। यदि षष्ठम भाव में लग्नेश मजबूत स्थिति में हो तो जातक अपने भौतिक शत्रुओं से तो जीतता ही है साथ ही वह अपने षड् रिपुओं पर भी विजय प्राप्त करता है। इस स्थिति में यदि जातक सेवाभाव से ओत-प्रोत हो तो वह जीवन भर अच्छे स्वास्थ्य का आनंद उठाता है और कर्ज और शत्रुओं से भी बचा रहता है। यहां बैठकर लग्नेश बारहवें भाव पर भी दृष्टि डालता है, जो इस बात का प्रतीक है कि सेवा से ही जातक की मुक्ति संभव है।
यदि द्वितीयेश षष्ठम भाव में अच्छी स्थिति में हो तो यह अपनी दशा/अंतर्दशा में जातक के जीवन में धनागम करवा सकता है क्योंकि दूसरा, छटवाँ और दसवाँ भाव सामुहिक रूप से अर्थ त्रिकोण में आते हैं और उपचय भाव भी हैं। इसके अलावा छटवाँ भाव दूसरे से पंचम भाव है। अतः यह स्थिति अच्छी मानी जाती है, इस स्थिति में जातक का धन समय के साथ बढ़ता है। इस स्थिति में जातक बैंकिंग अथवा भोजन से संबंधित कोई कार्य अपना सकता है। लेकिन यदि द्वितीयेश षष्ठम में पीड़ित स्थिति में हो तो वह रुपए पैसों के लिए अपने कुटुंब से शत्रुता भी कर सकता है इसके अलावा उसे गले से संबंधित रोग हो सकता है।
छटवाँ भाव तीसरे का चौथा है। तीसरा भाव छोटे भाई बहनों का, कसरत का, प्रयत्नों का, मेहनत का भाव है। अतः छोटे भाई बहनों का सुख, मेहनत मशक्कत का सुख अथवा कसरत का सुख छटवें भाव से ही देखा जाता है। इसलिए यदि तीसरे भाव का स्वामी छटवें भाव में अच्छी स्थिति में हो तो जातक को छोटे भाई-बहनों का सुख मिलता है। उसे कसरत का सुख मिलता है इसलिए उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है इसके अलावा उसे उसके प्रयत्नों का भी फल प्राप्त होता है। जातक मीडिया, मार्केटिंग, सेल्स इत्यादि में टूरिंग जाॅब में हो सकता है। यदि तृतीयेश षष्ठम में पीड़ित अवस्था में हो तो जातक की अपने छोटे भाई बहनों से शत्रुता हो सकती है अथवा उसे कंधे/बाजुओं में पीड़ा/सर्वाइकल पेन हो सकता है।
छटवाँ भाव चौथे भाव का तीसरा है। चौथा भाव जमीन-जायदाद, गाड़ी, मकान, माता तथा जातक के सुख-शांति का भाव है। अतः छटवें भाव से माता के भाई-बहन अर्थात जातक के मामा-मौसियों को भी देखा जा सकता है। इसके अलावा छटवें भाव से यह भी देखा जा सकता है कि जातक अपनी जमीन-जायदाद, मकान-गाड़ी, सुख-शांति इत्यादि के लिए कितना प्रयास करता है। यदि चतुर्थेश षष्ठम भाव में अच्छी स्थिति में हो तो जातक को जमीन-जायदाद के लिए किए गए प्रयासों में सफलता प्राप्त होती है। लेकिन यदि चतुर्थेश षष्ठम भाव में खराब स्थिति में हो तो उसे जमीन-जायदाद के मामलों में कोर्ट कचहरी का सामना भी करना पड़ सकता है और वह कर्जे में डूब भी सकता है। इसके अतिरिक्त उसे पेट से संबंधित बीमारियाँ भी हो सकती है।
षष्ठम भाव, पंचम भाव का दूसरा भाव है। पंचम भाव बुद्धि, विवेक, संतान तथा पूर्व अर्जित पुण्यों का भाव है। अतः यह भाव संतान के धन की जानकारी दे सकता है साथ ही संतान कैसी होगी यह भाव यह भी बता सकने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त षष्ठम भाव पूर्व अर्जित पुण्यों के भोग का भी भाव है। अतः यदि पंचमेश षष्ठम भाव में अच्छी स्थिति में तो जातक अथवा जातक की संतान प्रतियोगिता में विजयी होती है। इस स्थिति में जातक की तीक्ष्ण बुद्धि/विवेक अथवा श्रेष्ठ संतान ही उसके शत्रुओं को जन्म देती है क्योंकि इन चीजों के कारण ही लोग जातक से ईर्ष्या करते हैं। यदि पंचमेश षष्ठम भाव में पीड़ित हो तो जातक को हृदय से संबंधित रोग हो सकते हैं।
छटवें भाव का स्वामी यदि छटवें भाव में ही स्थित हो तो वह उस भाव को मजबूत कर देता है। ऐसी स्थिति में षष्ठेश की दशा/अंतर्दशा में जातक को नौकरी से संबंधित अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं परंतु उसके रोग, ऋण, रिपु भी बढ़ सकते हैं जिन्हें सेवाभाव से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
छटवाँ भाव सप्तम भाव के लिए व्यय का भाव है। सप्तम भाव वैवाहिक संबंधों का भाव है, साथ ही यह व्यवसाय तथा व्यवसाय में की जाने वाली साझेदारी का भी भाव है। अतः यदि षष्ठम भाव का भावेश सप्तम में स्थित हो जाए और बुरे प्रभाव में हो तो उसकी दशा/अंतर्दशा में वैवाहिक संबंधों में दरार पड़ सकती है अथवा व्यावसायिक साझेदार के साथ अनबन हो सकती है। इसके अतिरिक्त जातक को कमर से संबंधित पीड़ा का सामना भी करना पड़ सकता है।
छटवाँ भाव अष्टम का ग्यारहवाँ भाव है। अष्टम भाव आयु भाव है, अतः षष्टम स्थान आयु के लाभ का स्थान है। यदि अष्टमेश छठवें भाव में अच्छी स्थिति में हो तो जातक को अच्छा स्वास्थ्य तथा लंबी आयु प्राप्त होती है। इसके विपरीत यदि अष्टमेश छटवें स्थान में पीड़ित हो तो यह जातक के स्वास्थ्य और आयु के लिए खतरा बन सकता है। अष्टमेश यदि षष्ठम में हो तो जातक रिसर्च और डेवेलपमेंट, मैनुफैक्चरिंग, टैक्सेशन आदि में नौकरी कर सकता है। यदि छटवें भाव में अष्टमेश पीड़ित स्थिति में हो तो उसकी की दशा/अंतर्दशा में जातक को यौन रोग हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थिति में जातक के जीवन में आने वाले किसी बड़े बदलाव के कारण उसे जीवन का सार समझ में आने लगता है।
छटवाँ भाव नवम भाव का दशम स्थान है। नवम भाव पिता व धर्म का भाव कहलाता है। अतः छटवाँ भाव पिता के कर्म तथा उनकी समाज में उनकी स्थिति (स्टेटस) को दिखाता है। यह हमारे धर्म का कर्म स्थान है। अतः यदि नवमेश छटवें भाव में पीड़ित स्थिति में हो तो जातक अपने धर्म पर विश्वास करना छोड़ भी सकता है अथवा नास्तिक भी बन सकता है। नवमेश छटवें भाव में अच्छी स्थिति में हो तो जातक अध्यापक, प्रोफेसर, कंसल्टेंट बनकर नौकरी कर सकता है। यदि जातक अपने पिता अथवा गुरु से प्राप्त ज्ञान का उपयोग लोगों की सेवा करने में करता है, तो उसका नवम भाव मजबूत होता है और उसे नवम भाव से संबंधित अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है।
छटवाँ भाव दशम भाव का नवम स्थान है। अतः यह स्थान कर्म के भाग्य को प्रदर्शित करता है यदि दशमेश छटवें भाव में अच्छी स्थिति में हो यह जातक अपने कर्म का विस्तार सही दिशा में करता है तथा उसके कर्म, धर्म के अनुकूल होते हैं। यदि जातक सेवा की भावना से कार्य करता है तो उसे जॉबमें तरक्की तथा स्थायित्व की प्राप्ति होती है।
छटवाँ भाव ग्यारहवें भाव का आठवाँ भाव है। अतः छटवाँ भाव जातक के लाभ की आयु/मृत्यु को प्रदर्शित करता है। यदि एकादशेश छटवें भाव में पीड़ित स्थिति में हो तो यह अपनी दशा/अंतर्दशा में जातक के लाभ को अचानक ही किसी शत्रुता अथवा रोग अथवा कोर्ट केस में व्यय करवा सकता है। यदि एकादशेश छटवें भाव में अच्छी स्थिति में हो तो जातक किसी सोसाइटी या एनजीओ में नौकरी कर सकता है। इस स्थिति में जातक को मिलने वाले लाभ के कारण जातक के शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है (ईर्ष्या के वशीभूत)। इसके अतिरिक्त यदि जातक सेवाभाव में रुचि रखता है तो उसके लाभ में वृद्धि होगी।
छटवाँ भाव बारहवें भाव का सातवां भाव है। इसलिए यदि द्वादशेश छटवें भाव में अच्छी स्थिति में होता है तो जातक आध्यात्मिकता तथा भोग विलास के बीच अच्छा संतुलन स्थापित करता है। जातक विदेश में नौकरी कर सकता है। यह स्थिति विपरीत राजयोग निर्माण करती है क्योंकि इस स्थिति में जातक जितना अधिक रोग, ऋण, रिपु से संघर्ष करता है और जितना अधिक सेवा भाव को अपनाता है, उसकी मुक्ति या मोक्ष का मार्ग उतना ही अधिक प्रशस्त होता चला जाता है।
षष्ठम भाव षड् रिपुओं का भाव है इसलिए षष्ठम भाव में स्थित ग्रह प्रथम दृष्टया पीड़ित ही माना जाता है। यदि वह ग्रह नवांश में भी पीड़ित हो तो उस ग्रह से संबंधित रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि उस ग्रह से संबंधित कार्यकत्वों के अनुसार जातक सेवा करने लगे तो उस ग्रह के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
यदि छटवें भाव में सूर्य स्थित हो और पीड़ित न हो तो जातक प्रतियोगिताओं में विजयी होता है तथा अपनी नौकरी में उच्च स्थान पर होता है व कार्यक्षेत्र में प्रसिद्धि भी प्राप्त करता है, जिसके कारण ईर्ष्यावश उसके शत्रु भी बढ़ते हैं और जितने ज्यादा उसके शत्रु बढ़ते हैं, उतनी ही अधिक उसकी प्रसिद्धि भी बढ़ती है। इसके अतिरिक्त जातक नौकरी में बेहद अनुशासित और नियमित दिनचर्या का पालन करने वाला भी होता है। लेकिन यदि सूर्य पीड़ित हो तो हृदय व हड्डियों के रोग दे सकता है। जातक अपने पिता की सेवा व सम्मान के द्वारा सूर्य को मजबूत कर सकता है।
छठवें स्थान में चंद्रमा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती क्योंकि इस स्थिति में जातक जीवन के प्रति उदासीनता का अनुभव करता है और उसे अपना भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए काफी प्रयास करना पड़ता है। यदि चंद्रमा पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो स्थिति बिगड़ने से बच सकती है। इस स्थिति में यदि चंद्रमा पीड़ित भी हो तो जातक को फेफड़ों से संबंधित रोग हो सकते हैं। जातक अपनी माता की सहायता, सेवा व सम्मान करके चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से बच सकता है।
यदि छटवें स्थान में मंगल की स्थिति शुभ मानी जाती है। षष्ठम स्थान का मंगल शत्रुओं और प्रतियोगिताओं में विजय तो दिलवाता ही है साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा रखता है क्योंकि इस स्थिति में जातक अपने स्वास्थ्य के प्रति अत्यधिक सचेत रहता है, स्फूर्तिवान होता है और नियमित दिनचर्या रखकर व्यायाम इत्यादि में भी रुचि लेता है। इन सब गुणों के कारण ईर्ष्यावश जातक के शत्रु बढ़ते हैं और शत्रुओं के बढ़ने से मंगल और अधिक बलवान होता जाता है। यदि मंगल पीड़ित हो तो रक्त विकार से संबंधित रोग अथवा एक्सीडेंट हो सकते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए जातक को अपने छोटे भाई बहनों की सेवा व सहायता करना चाहिए।
छटवें स्थान पर यदि बुध स्थित हो तो जातक अपने बुद्धि चातुर्य से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके उन्हें अपना मित्र बनाने में सक्षम होता है। लेकिन यदि पीड़ित हो तो जातक को नसों से संबंधित बीमारियाँ, नर्वस ब्रेकडाउन इत्यादि करवा सकता है। इससे बचने के लिए जातक को चाहिए कि वह अपनी बुद्धि को बच्चों तथा लोगों की सेवा में लगाए।
छटवें भाव में स्थित गुरु जातक को नौकरी में ऊँचा ओहदा दिलवाने में सहायक होता है। इस भाव में स्थित गुरु की नवम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जो जातक के धनागम में भी सहायक होती है। लेकिन यदि यहाँ स्थित गुरु पीड़ित अवस्था में हो तो जातक को शुगर व लीवर से संबंधित बीमारियाँ हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए जातक को अपने ज्ञान का उपयोग सेवा में करना चाहिए तथा अपने गुरु की सेवा भी करना चाहिए।
यदि छटवें स्थान पर शुक्र स्थित हो तो यह जातक को बड़े और सुंदर संस्थान में नौकरी का सुख दे सकता है। काल पुरुष की पत्रिका के अनुसार शुक्र इस भाव में नीच का होता है। अतः यदि जातक की पत्रिका में शुक्र इस स्थान में पीड़ित हो तो अपनी दशा/अंतर्दशा में जातक की पत्नी या पति को रोगी बना सकता है अथवा जातक को किसी यौन रोग से पीड़ित कर सकता है या किसी सेक्स स्कैंडल में फँसा सकता है अथवा व्यवसाय में हानि भी करवा सकता है। महिलाओं व कन्याओं की सेवा सुश्रुषा से इस स्थिति से निजात पाया जा सकता है।
छटवें स्थान पर शनि की स्थिति अच्छी मानी जाती है क्योंकि शनि धैर्य, दृढ़ता और मेहनत के साथ संघर्षों से जूझने की क्षमता प्रदान करता है। लेकिन इस स्थान पर पीड़ित शनि दीर्घकालिक रोग दे सकता है, इससे बचने के लिए जातक को अपने सेवकों व कर्मचारियों की सहायता अवश्य करनी चाहिए।
षष्ठम स्थान पर राहु की स्थिति शुभ मानी जाती है क्योंकि राहु येन केन प्रकारेण कूटनीति से शत्रुओं से और संघर्षों में विजय प्राप्त करवाने में सहायता करता है। यहाँ स्थित राहु शत्रुओं को भ्रमित कर देता है। शत्रुओं के बढ़ने से राहु का बल भी बढ़ता है। लेकिन यहाँ स्थित राहु सर्पदंश, दवाइयों का रिएक्शन इत्यादि भी करवा सकता है।
षष्ठम स्थान पर स्थित केतु के कारण जातक अपने रोग ऋण रिपुओं के प्रति उदासीनता का भाव रखता है, इसलिए इस भाव में केतु की स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। अतः यदि षष्ठम भाव में केतु स्थित हो तो जातक के लिए नियमित दिनचर्या व स्वास्थ्य का ध्यान रखना अति आवश्यक है अन्यथा यह स्थिति जातक के स्वास्थ्य व नौकरी के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती है।
इस प्रकार पत्रिका में षष्ठम भाव में स्थित भावेशों व ग्रहों की स्थिति को जानकर तथा उनसे संबंधित सेवाभाव को अपनाकर हम उनसे संबंधित अच्छे परिणामों की प्राप्ति कर सकते हैं। आध्यात्मिक उपायों से बढ़कर कोई उपाय नहीं होता क्योंकि आध्यात्मिक उपायों से ही पूर्व जन्मों के हमारे अशुभ कर्मों से मुक्ति संभव है।
- डॉ. सुकृति घोष,प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र
शा. के. आर. जी. कॉलेज,ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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