विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का वैभव

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विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का वैभव विजयनगर साम्राज्य, जो चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में फला-फूला, भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है

विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का वैभव


विजयनगर साम्राज्य, जो चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में फला-फूला, भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसने अपनी सांस्कृतिक समृद्धि, स्थापत्य कला और शक्तिशाली शासन व्यवस्था से विश्व को चकित किया। यह साम्राज्य न केवल दक्षिण भारत की राजनीतिक एकता का प्रतीक था, बल्कि हिंदू संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का भी एक मजबूत गढ़ था। उस समय, जब उत्तर भारत में विदेशी आक्रमणों और अस्थिरता का दौर चल रहा था, विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण में एक ऐसी सभ्यता को पोषित किया, जो कला, साहित्य, धर्म और व्यापार के क्षेत्र में अभूतपूर्व थी। इसकी राजधानी हम्पी आज भी अपने भव्य खंडहरों के माध्यम से उस गौरवशाली युग की कहानी कहती है।

विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का वैभव
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ईस्वी में हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी। इन दोनों भाइयों को संत विद्यारण्य का मार्गदर्शन प्राप्त था, जिन्होंने उन्हें साम्राज्य स्थापना के लिए प्रेरित किया। उस समय दक्षिण भारत दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों और स्थानीय राज्यों के बीच संघर्षों से जूझ रहा था। हरिहर और बुक्का, जो मूल रूप से काकतीय वंश के अधीन काम करते थे, ने तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नया साम्राज्य स्थापित किया। उन्होंने अपनी राजधानी विजयनगर (वर्तमान हम्पी) को बनाया, जो जल्द ही एक समृद्ध और वैभवशाली नगरी के रूप में प्रसिद्ध हो गई। इस साम्राज्य का नाम विजयनगर (विजय का नगर) इसके शासकों की महत्वाकांक्षा और शक्ति का प्रतीक था।

विजयनगर साम्राज्य ने अपने प्रारंभिक वर्षों में तेजी से विस्तार किया। हरिहर और बुक्का ने पड़ोसी राज्यों, जैसे होयसला और काकतीय वंश के अवशेषों, को अपने अधीन किया। साम्राज्य का वास्तविक वैभव तब सामने आया जब देवराय द्वितीय और कृष्णदेव राय जैसे शासकों ने शासन संभाला। देवराय द्वितीय ने साम्राज्य की सीमाओं को दक्षिण में कन्याकुमारी और पूर्व में उड़ीसा तक विस्तारित किया। उन्होंने न केवल सैन्य शक्ति को मजबूत किया, बल्कि विदेशी व्यापार और कूटनीति को भी बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में विजयनगर एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन गया, जहां पुर्तगाली, अरब, चीनी और फारसी व्यापारी आते थे।

विजयनगर साम्राज्य का स्वर्ण युग कृष्णदेव राय के शासनकाल (1509-1529 ईस्वी) में देखा गया। कृष्णदेव राय को विजयनगर का सबसे महान शासक माना जाता है। वे एक कुशल योद्धा, रणनीतिकार और कला के संरक्षक थे। उनके नेतृत्व में विजयनगर ने अपनी सैन्य शक्ति को चरम पर पहुंचाया। उन्होंने बहमनी सल्तनत और गजपति शासकों को परास्त कर साम्राज्य की सीमाओं को और विस्तारित किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध विजय थी रायचूर का युद्ध (1520 ईस्वी), जिसमें उन्होंने बहमनी सल्तनत के सुल्तान को हराया। इस विजय ने विजयनगर को दक्कन में सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित किया।

कृष्णदेव राय केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक विद्वान और कवि भी थे। उन्होंने तेलुगु साहित्य को प्रोत्साहन दिया और स्वयं आमुक्तमाल्यद नामक एक काव्य रचना की। उनके दरबार में अष्टदिग्गज नामक आठ महान कवि थे, जिन्होंने तेलुगु साहित्य को समृद्ध किया। कृष्णदेव राय ने कला और स्थापत्य को भी बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में निर्मित विठ्ठल मंदिर और हजारा राम मंदिर विजयनगर की स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। हम्पी की भव्यता, इसके बाजारों, मंदिरों और महलों ने विदेशी यात्रियों, जैसे पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस और फारसी यात्री अब्दुर रज्जाक, को आश्चर्यचकित कर दिया। इन यात्रियों ने अपने लेखों में विजयनगर को विश्व के सबसे धनी और सुंदर शहरों में से एक बताया।

विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था अत्यंत व्यवस्थित थी। साम्राज्य को प्रांतों में बांटा गया था, जिन्हें राज्य कहा जाता था, और प्रत्येक राज्य की देखरेख एक शाही अधिकारी करता था। स्थानीय स्तर पर ग्राम सभाएं स्वायत्तता के साथ कार्य करती थीं। विजयनगर शासकों ने सिंचाई व्यवस्था को बेहतर किया और तुंगभद्रा नदी पर बांध बनवाए, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार और हस्तशिल्प पर आधारित थी।विजयनगर के बाजारों में हीरे, मोती, रेशम और मसाले बिकते थे, जो विश्व भर में प्रसिद्ध थे। गोवा और कालीकट जैसे बंदरगाहों के माध्यम से साम्राज्य का विदेशी व्यापार फलता-फूलता था।

विजयनगर साम्राज्य की संस्कृति बहु-आयामी थी। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख केंद्र था, लेकिन यहाँ वैष्णव, शैव और जैन धर्मों का भी सम्मान किया जाता था। साम्राज्य के मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र थे, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के भी केंद्र थे। नृत्य, संगीत और नाटक विजयनगर की संस्कृति का अभिन्न अंग थे। होली, दीपावली और विजयदशमी जैसे त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते थे।

विजयनगर साम्राज्य का पतन 1565 ईस्वी में तालिकोटा के युद्ध के साथ शुरू हुआ। इस युद्ध में विजयनगर की सेना को दक्कन की पांच सल्तनतों (बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर, बरार और बीदर) की संयुक्त सेना ने परास्त किया। युद्ध के बाद विजयनगर की राजधानी हम्पी को लूटा गया और नष्ट कर दिया गया। इस हार ने साम्राज्य को कमजोर कर दिया, और इसके बाद यह कभी अपनी पूर्व गौरव को प्राप्त नहीं कर सका। हालांकि कुछ शासकों ने साम्राज्य को पुनर्जनन की कोशिश की, लेकिन सत्रहवीं शताब्दी तक विजयनगर का प्रभाव समाप्त हो गया।

विजयनगर साम्राज्य का अंत भले ही हो गया, लेकिन इसकी विरासत आज भी जीवित है। हम्पी के खंडहर, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, उस युग की भव्यता की गवाही देते हैं। विजयनगर ने दक्षिण भारत में हिंदू संस्कृति को संरक्षित किया और कला, साहित्य और स्थापत्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। यह साम्राज्य उस भारत की कहानी है, जो चुनौतियों के बावजूद अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सक्षम रहा। विजयनगर की कहानी केवल एक साम्राज्य की नहीं, बल्कि एक ऐसी सभ्यता की है, जिसने समय के साथ अपनी अमिट छाप छोड़ी।

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