उपलब्धि | हिंदी कहानी अपने कमरे में बंद अवनि लगातार रोए ही जा रही थी। उसे लग रहा था जैसे उसने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है। ...... पता नहीं कहा गलती ह
उपलब्धि | हिंदी कहानी
अपने कमरे में बंद अवनि लगातार रोए ही जा रही थी।
उसे लग रहा था जैसे उसने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है।
...... पता नहीं कहा गलती हुई???? आखिर ऐसा हुआ तो हुआ कैसे????
अवनि की रोते रोते हिचकिया बंध जाती।
कुछ देर शांत होती फिर रो पड़ती।
अब में अपने माता -पिता को क्या मुँह दिखाउंगी????
मेरे आस -पड़ोस वाले तो मुझे ताना मारेंगे.....।
और मेरे टीचर्स........।
???????
क्या कहूँगी में सब से...... क्या जवाब दूंगी?????
कुछ देर शांत होकर वह खुद को दिलासा देने का प्रयास करने लगी....।
लेकिन दिलासा.......। वह तो उसे आता ही नहीं था...।
कभी जरूरत ही नहीं पड़ी।
चारों ओर उसे वह बातें, आवाजे सुनाई देती...।
जो वह बचपन से सुनती चली आ रही थी।
बेटा..... अवनि इसबार तुम्हारे नंबर 98ही कैसे आए...।
इट्स वेरी बैड अवनि....। तुम्हें 99 स्कोर करना था....
तुम 100परसेंट भी कर सकती हो...।
लेकिन तुमने इसबार ध्यान नहीं दिया।
ये गलत बात है लास्ट ईयर तुम 100परसेंट थी।
इट्स नोट गुड....।
सॉरी मॉम...। अवनि डर गई उसकी आवाज लड़खड़ाने लगी...।
वह पहली दफा था ज़ब उसे पता चला था कि 99या 100परसेंट क्या होता है और क्यों जरुरी होता है???
उस समय वह यू केजी में ही पढ़ती थी।
घर को लौटते हुए उसे अपनी पसंदीदा आइसक्रीम भी खानी थी। लेकिन..... मिली नहीं...।
क्योंकि आज एक नंबर से उसकी डिवीज़न सेकंड थी।
माँ पढ़ी लिखी हॉउस वाइफ थी। पढ़ाई को लेकर स्ट्रिक्ट....।
माँ का मानना था कि आस पड़ोस में अपना रुतबा हमेशा कायम रहना चाहिए। और उसे कायम रखने के लिए पढ़ाई में हमेशा अव्वल आना है।
अवनि इकलौती संतान रही क्योंकि एक पर विशेष ध्यान देंगे तो वहीं सबसे बेहतर रहेगी।
अवनि को पहला सबक बहुत जल्दी मिल गया।
वार्षिक ही नहीं.... मासिक परीक्षाओं में भी उसका नंबर कटना... साप्ताहिक टॉर्चर होता।
धीरे धीरे अवनि उसमे ढल गई और कक्षा में विशेष हो गई। अब वह हमेशा ही फर्स्ट आती.... विद्यालय में टॉप रहती।
साथी महिलाओं के मध्य ज़ब उन्हें मंच पर पुरस्कार के लिए बुलाया जाता तो वह फूली नहीं समाती।
बड़े ही गर्व के साथ सीना ताने चलना और झूठी विनम्रता और दूसरों को झूठा शांत्वना देना उसे बहुत भाता।
अवनि तुम्हें हमेशा ऐसे ही पहले दर्जे पर रहना है.
दुनिया पहले को पूछती है.... दूसरे को कोई नहीं जानता...। ठीक है....।
जी माँ....। अवनि भी सबके मध्य तारीफ सुनकर फूली नहीं समाती।
अवनि का प्रथम स्थान.... उसके अंक..... उसका हर इवेंट में आगे रहना विद्यालय भी हमेशा ही भुनाता...।
आयोजनों में उसे बुलाना....।
सभी के सामने उसका बखान करना....।
अवनि को धीरे धीरे इन सब की ऐसी आदत लगी कि अब वह दूसरा दर्जा ना ही देख सकती थी और ना ही.... उसे उसका कोई अस्तित्व नजर आता था.
हाइस्कूल.... में प्रथम स्थान टॉपर लिस्ट में बारहवीं में प्रथम टॉपर....।
इस प्रकार के अचीवमेंट ने उसे दूसरे तीसरे के साथ दोस्ती तो रखने की आदत दी लेकिन बेकबेंचर और औसत दर्जे के बच्चे उसे नजर ही नही आते।
बारहवी के बाद अब दौर शुरू हुआ एक नई पढ़ाई, नई यूनिवर्सिटी का जहाँ अंको के बलबूते प्रवेश पाना आसान था।
अवनि ने पढ़ाई के साथ कोचिंग का रास्ता चुना उसे यह विश्वास था कि वह किसी भी बड़ी परीक्षा को आसानी से पास कर लेगी..।
आज तक वह जो अपने विद्यालय, परिवार, रिश्तेदार, आस पड़ोस से सुनती आई थी कि उसके जैसा कोई नहीं उन बातों ने उसके अंदर यह भाव भर दिया कि वह सबसे बेहतर है।
इस भाव ने उसके मन मस्तिष्क में यह बोझ भी डाला था कि उसे सबसे बेहतर बन कर रहना है। लेकिन वह इस विश्वास के साथ भी जी रही थी कि वह सबसे बेहतर है।
तैयारी के वर्ष बीतने के साथ अवनि ने पहली बार प्रतोयोगी परीक्षा का फार्म भरा और परीक्षा देने गई.
अरे...... यह भी यहां है..... सचिन को इग्नोर सा करती वह आगे बढ़ गई...। कक्षा में सबसे पीछे रहने वाला सचिन इस एग्जाम को देने आया है?????
आश्चर्य और तिरस्कार दोनों ही उसके मन में उभर आए।
परीक्षा हुई सभी अपने घर लौट गए।
कुछ माह उपरांत परिणाम आया वह प्रथम प्रयास में उत्तीर्ण हुई...।
यह बहुत अच्छा संकेत था...।
तुरंत ही सभी सफल बच्चे अगली तैयारी में जुट गए।
तैयारी की उम्र जैसे जल्दी ही बीत गई..।
अगली परीक्षा आ गई इस बार परीक्षा का नज़रिया अलग था....। परीक्षा के परिणाम में अवनि असफल हो गई...।
अवनि को रोते रोते सचिन का ध्यान हो आया....।
पहले उसने ध्यान झटक दिया...।.... लेकिन फिर ध्यान आया तो उसने परिणाम सूची देखी.....।
एक बार फिर आंसू उसे भिगोने लगे..।
अब लगने लगा कि शायद उसे कुछ भी नहीं आता.....
अगर...... अगर..... सबको पता चला कि यह भी सलेक्ट हुआ है तो सबको लगेगा कि मै यहां मौज मस्ती कर रही हूँ....।
मम्मी..... मम्मी..... मैने कुछ नहीं किया..... मै पढ़ रही थी.....। पता नहीं मेरे नंबर क्यों नहीं आए....। मम्मी मुझे माफ कर दो..... मम्मी......।
अवनि यह स्वयं से ही बड़बड़ा रही थी..।
उसे लग्ने लगा जैसे वह उसी एल केजी में है और मम्मी नाराज है....।
वह आइसक्रीम मांग रही है और नाराज मम्मी उसे नहीं दे रही।
मम्मी..... मै........। कहते हुए अवनि उठी और उसने तीन माले से छलांग लगा दी।
अवनि...........ई.. ई.... ई.... ई...। ईमारत में रहने वाले अन्य सहपाठी दौड़े चले आए।
आनन फानन में अवनि को अस्पताल पहुंचाया..।
अवनि... अवनि.... कहां है????
कहां है?????... हाफते हुए पिता पूछ रहे..।
आई. सी. यू. की ओर सभी ने इशारा किया। आंसू पोछती हुई माँ पूछ ही रही थी कि.......????
डाक्टर..... अवनि....।
अभी स्टेबल है......। बचा लिया है.....।... पर ठीक होने में समय लगेगा....।
माँ को कुछ समझ ही नहीं आया..... उसका रिजल्ट आने वाला था..... फिर... फिर... क्यों....। माँ आंसू पोछते हुए पूछने लगी...।
तभी अवनि की सहेली बिफर उठी... आंटी....... अभी भी परीक्षा...?????
क्यों...... कुछ गलत नहीं किया अवनि ने....।
आपकी.... वजह से...।
केवल पढ़ाई....।
बाकी की जिंदगी का कोई मोल नहीं..?????
अगर फर्स्ट नहीं आएंगे.... तो... जिंदगी ही नहीं......??????
काश उसे थोड़ा सामान्य रूप से जीना सिखाया होता...।
बच् तो जाएगी... डिप्रेशन से बाहर आ पाएगी..????
पढ़ाई के आलावा उसने कुछ सोचा ही नहीं...। क्योंकि बाकी कुछ सोचने और उसे जीने के लिए अपने उसे कुछ सिखाया ही नहीं आपने...।
सॉरी आंटी.... मै फर्स्ट नहीं आई.... पर इतना जानती हूँ कि मै मेहनत करुँगी तो लाइफ में किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर लुंगी...। कम से कम मेरे माता पिता ने मुझ पर बस्ते के साथ अपने सपनों का बोझ तो नहीं डाला। और ना ही मेरी पढ़ाई समाज में उनके रेपोटशन का हिस्सा रही।
और सॉरी आंटी... आपको ऐसे बोलने के लिए लेकिन ये जरूर सोचना कि आखिर इसकी इस हालत में दोष किसका है.?????? उपलब्धि क्या हासिल हुई??????
- डॉ चंचल गोस्वामी
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