गाँव का डिजिटल पुल सूरजपुर, मध्य भारत का एक छोटा-सा गाँव, जहाँ बरसात के बाद सड़कें कीचड़ से भर जाती थीं। गाँव के बाहर एक छोटी नदी बहती थी, जिसे पार क
गाँव का डिजिटल पुल
सूरजपुर, मध्य भारत का एक छोटा-सा गाँव, जहाँ बरसात के बाद सड़कें कीचड़ से भर जाती थीं। गाँव के बाहर एक छोटी नदी बहती थी, जिसे पार करने के लिए जर्जर बाँस का पुल ही एकमात्र रास्ता था। यह पुल हर साल बरसात में टूट जाता, और गाँववाले शहर से कट जाते। सूरजपुर के लोग मेहनती थे, लेकिन अवसरों की कमी और बाहरी दुनिया से दूरी ने उन्हें पीछे धकेल रखा था।
गाँव में दो समुदाय रहते थे—राठौर और मीणा। राठौर खेती में माहिर थे, तो मीणा मछली पकड़ने और हस्तशिल्प में। लेकिन दोनों के बीच पुरानी रंजिश थी, जो छोटी-छोटी बातों पर भड़क उठती। वे एक-दूसरे से कम बात करते और गाँव के विकास के लिए कभी एकजुट नहीं हुए।
इसी गाँव में एक दिन अनन्या आई, एक युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर। शहर की नौकरी छोड़कर वह अपने दादाजी की यादों को जीवित करने सूरजपुर लौटी थी, जो यहाँ स्कूल में शिक्षक थे। अनन्या ने देखा कि गाँव में बिजली और इंटरनेट था, लेकिन लोग इसका इस्तेमाल सिर्फ मनोरंजन के लिए करते थे। बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते, और बड़े फोन पर गपशप करते। उसने सोचा, क्यों न प्रौद्योगिकी को गाँव के विकास का जरिया बनाया जाए?
अनन्या ने स्कूल के बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें बुनियादी कोडिंग सिखानी शुरू की। बच्चे उत्साहित थे, लेकिन राठौर और मीणा समुदाय के बच्चे एक-दूसरे के साथ बैठने को तैयार नहीं थे। अनन्या ने दोनों समूहों को एक प्रोजेक्ट दिया—एक ऐसा ऐप बनाना, जो गाँव की समस्याओं को हल कर सके। उसने कहा, “यह तभी हो पाएगा, जब आप सब मिलकर काम करेंगे।”
शुरुआत में बच्चे झिझके। राठौर बच्चे चाहते थे कि ऐप खेती से जुड़ी समस्याएँ हल करे, जैसे मौसम की सटीक जानकारी दे। मीणा बच्चे चाहते थे कि ऐप उनके हस्तशिल्प को बाजार तक पहुँचाए। अनन्या ने दोनों को समझाया कि एक अच्छा ऐप सबकी जरूरतें पूरी कर सकता है। धीरे-धीरे बच्चे एक-दूसरे से बात करने लगे। राठौर का रोहन और मीणा की काव्या ने मिलकर एक ऐप का खाका तैयार किया, जो किसानों को मौसम और बीज की जानकारी देता, साथ ही हस्तशिल्प को ऑनलाइन बेचने का मंच भी देता।
इस प्रोजेक्ट ने न सिर्फ बच्चों को जोड़ा, बल्कि बड़ों का ध्यान भी खींचा। गाँव के सरपंच ने अनन्या से कहा, “हमें उस टूटे पुल का भी हल चाहिए।” अनन्या ने बच्चों के साथ मिलकर एक नया विचार निकाला—एक क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म, जिसके जरिए गाँववाले और शहर के लोग मिलकर नए पुल के लिए पैसे जुटा सकें। बच्चों ने ऐप में एक नया फीचर जोड़ा, जहाँ लोग दान दे सकते थे और बदले में मीणा समुदाय के हस्तशिल्प या राठौर समुदाय के जैविक उत्पाद खरीद सकते थे।
काम शुरू हुआ। राठौर और मीणा परिवार, जो पहले एक-दूसरे से कतराते थे, अब साथ बैठकर योजना बनाने लगे। मीणा समुदाय ने अपने हस्तशिल्प से जुटाए पैसे पुल के लिए दिए, तो राठौर समुदाय ने अपने खेतों से अनाज दान किया। अनन्या ने शहर के कुछ दोस्तों से संपर्क किया, और देखते-देखते क्राउडफंडिंग से पर्याप्त धन इकट्ठा हो गया। एक साल के भीतर, नदी पर पक्का पुल बनकर तैयार था।
पुल के उद्घाटन के दिन सूरजपुर में उत्सव सा माहौल था। राठौर और मीणा समुदाय के लोग कंधे से कंधा मिलाकर नाच रहे थे। अनन्या ने देखा कि बच्चे अब न सिर्फ कोडिंग सीख रहे थे, बल्कि एक-दूसरे के साथ दोस्ती भी निभा रहे थे। उसने गाँव में एक छोटा डिजिटल सेंटर खोला, जहाँ लोग अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचना सीखने लगे। सूरजपुर अब सिर्फ एक गाँव नहीं था—वह एक मिसाल बन चुका था, जहाँ प्रौद्योगिकी और एकता ने मिलकर पुरानी दीवारें तोड़ दी थीं।
अनन्या को लगा, शायद यही उसके दादाजी का सपना था—एक ऐसा गाँव, जहाँ लोग सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि एक-दूसरे के लिए भी जीएँ। और उस दिन, नए पुल पर खड़े होकर, उसने नदी के उस पार एक नई उम्मीद देखी।
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