आत्महत्या हिंदी लघु कथा वो तड़पती रही....... हर बार बिना गलती की भी माफ़ी मांगती रही...। लेकिन हर बार... या तो वह डांट देता.... या बात करना ही बंद कर
आत्महत्या | हिंदी लघु कथा
वो तड़पती रही.......
हर बार बिना गलती की भी माफ़ी मांगती रही...।
लेकिन हर बार... या तो वह डांट देता.... या बात करना ही बंद कर देता।
कभी कहता देखो मेरे घर में पता लग गया है.... में ज्यादा बात नहीं कर सकता.....।...... पर बाकी लड़कियों से बात करता.... कभी कभी पूरी रात ऑनलाइन रहता.... पर जैसे ही वह बात करने की कोशिश करती ऑफलाइन हो जाता....।
कभी पूछ लेती.....तो फिर से नाराज और कोई ना कोई बहाना बना लेता....।
ना तो उसने उसे जाने दिया और ना पूरी तरह आने ही दिया। वह जानता था की कभी अगर उसे उसकी जरूरत होगी तो वह उसके लिए बिछने को भी तैयार होगी। ऐसा हुआ भी था.......। कभी दो-चार मीठी बातें कर लेता तो वह यह समझने लगती कि यह उससे बहुत प्यार करता है।..........वह दो-चार मजबूरी बताकर उसे अपने बातों में फंसा लेता।
वह नाराज होती भी तो भी वापस भी जाती....... क्योंकि शायद वह थी इतनी भोली या अपने प्यार के हाथों मजबूर हो गई थी।
जब भी उसे उसका शरीर चाहिए होता वह उसे मीठी-मीठी बातें करके बुला लेता। लेकिन यह सब कब तक चलता। एक दिन उसका मन भर गया.........और उसने उससे बातें करनी बंद कर दी। अब वह कुछ भी कहती वह उसकी बातों का जवाब नहीं देता। वह पूरी तरह ऐसा बन गया कि जैसे अब उसे उसकी कोई जरूरत ही नहीं थी। उसने बहुत कोशिश की लेकिन उसने उससे बात नहीं की।
ज़ब मन करता तो कॉन्टेक्ट करता....। कभी वह किसी से बात भी कर ले तो ईर्ष्या जाहिर करता। उसे इस बात के लिए जलील करता कि उसका सम्बन्ध उस व्यक्ति से भी है। बार बार उसे इस बात की सफाई देनी पडती कि उसका प्रेम सच्चा है।.... पर.. वह शायद ही विश्वास करता।
इतना सब भी वह समझ नहीं पाई उसे लगता कि वह उससे प्रेम करता है इसलिए शायद उसे जलन होती है।
यह कैसा प्रेम था.....। जो सिर्फ पुरुष की सुविधा पर निर्भर था। जहाँ स्त्री का अस्तित्व था ही नहीं।
उसने तो उसके शरीर से कभी प्रेम किया ही नहीं... ना ही उससे कभी कुछ माँगा फिर भी उसे बदले मे केवल तड़प मिली...। दूसरी ओर वह शरीर के आलावा और कुछ चाहता ही नहीं था... प्रेम भी नहीं। वह बस उससे उसका थोड़ा समय मांग रही थी जो समय निकल जाने के बाद उसने दिया ही नहीं। जब वह ज्यादा बात कोशिश करने लगी उसने उसे ब्लॉक कर दिया।
उसे उसकी जरूरत नहीं थी। फिर भी वह उसका इंतजार करती रही। उसे लगा शायद वह वास्तव में मजबूर है। पता नहीं प्रेम ही ऐसा भाव क्यों है जो इंसान को बेवकूफ बना देता है। वह रोती रही तड़पती रही...... मरना चाहा फिर भी इंतजार करती रही......।
ज़ब उसे लगा कि एक ही शहर में रहेगी तो शायद तड़पती रहेगी क्योंकि अब तो वह सामने देखकर भी नहीं पहचानता....।
अक्सर उसने उसे दूसरी लड़की के साथ देखा है। वह ख़ुश है। शायद वह उसे चाहता ही नहीं था....। पर जाने क्यों उसे लगता था कि एक दिन वह वापस आ जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ तो उसने शहर छोड़ने की ठान लीं। और वह चली गई उस शहर से... उससे बहुत दूर.....। शरीर से तो चली गई पर मन वहीं छोड़ गई।वह चाह के भी उसे भुला ना सकी। बहुत कोशिश की...। कांटेक्ट करने की भी कोशिश की.... पर जवाब में केवल निराशा ही हाथ लगी।
ज़ब उसने कोशिश करनी ही बंद कर दी। तड़पी... रोई पर कभी अपना दर्द बयां ना किया...। लंबा समय बीत जाने पर उसने उसे अनब्लॉक भी किया। क्योंकि वह भी जानता था कि अगर वह आज भी इंतजार कर रही है तो उसके काम की है।
ऐसा हुआ भी वह अपनी मूर्खता से बाहर नहीं निकल पाई थी। उसे लगता एक बार वह हर बात को क्लियर करता तो शायद वह इतना टूटती नहीं।
कभी उसे लगता कि शायद किसी जन्म की कोई दुश्मनी रही होगी इसलिए उसने उसके साथ ऐसा किया।या..... पता नहीं इसी जन्म में अनजाने ही कोई दुश्मनी की हो...... फिर तो बदले का इससे बेहतर रास्ता कोई ना था....।
जो भी हो वह हार गई.....।
चाकू से अपनी कलाई काटते हुए भी उसने उसी का नाम लिया जिसका नाम वह छीपाए रखने के लिए कभी किसी के सामने ना ले सकी।
बस खबर आई कि फलां शहर में एक लड़की ने आत्महत्या कर ली जिसका नाम उसने भी अख़बार में पढ़ा जिसका नाम वह अपनी इज्जत उछल ना जाए के लोभ में कभी लेना ही नहीं चाहता था।
समाचार भी पहचान अधिक उजागर नहीं कर रहा था क्योंकि नाम लेंगे तो बदनाम ही होगी वह जो जा चुकि थी मानसिक हत्या के जुर्म को आत्महत्या बना कर।
- डॉ चंचल गोस्वामी
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