सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का सारांश | धर्मवीर भारती

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सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का सारांश धर्मवीर भारती लेखक ने अपने विचार माणिक मुल्ला के माध्यम से पाठकों के समक्ष रखे हैं उपन्यास एक कहानी में अनेक कह

सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का सारांश | धर्मवीर भारती


र्मवीर भारती द्वारा रचित लघु उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' सन् 1952 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास 'उपोद्घात' शीर्षक से शुरू होकर सातवीं दोपहर में समाप्त हुआ है। पहली, दूसरी, तीसरी और छठी दोपहर के पश्चात् अनध्याय दिया गया है। इस उपन्यास में लेखक ने अपने विचार माणिक मुल्ला के माध्यम से पाठकों के समक्ष रखे हैं। उपन्यास के प्रारम्भ में 'उपोद्घात' शीर्षक के अंतर्गत लेखक ने माणिक मुल्ला का परिचय और उनकी कहानियों के विषय का उल्लेख किया है। इसके बाद के कथानक को निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
 

पहली दोहपर (नमक की अदायगी)

माणिक मुल्ला कश्मीरी थे और अपने भाई तथा भाभी के साथ रहते थे। जब भाई का स्थानान्तरण हो गया तो वे अकेले ही रहने लगे। वे नौकरी करते थे, जबकि ओंकार, प्रकाश आदि अन्य लड़के पढ़ते थे। वह गर्मी की दोपहर थी। सब लोग कमरा बन्द करके बैठे थे और माणिक मुल्ला ने 'नमक की अदायगी' शीर्षक कहानी सुनाई - उन दिनों मैं दस वर्ष का था। घर के बगल की कोठी में एक जमुना गामक लड़की रहती थी जिसकी आयु पन्द्रह वर्ष थी। वह माणिक मुल्ला से दो काम करवाती थी-सस्ते किस्म की प्रेम कहानियों की पत्रिकाएँ मँगवाना और इलाहाबाद शहर के किसी भी सिनेमाघर में लगने वाले नये चित्र के गानों की किताब मँगवाना। धीरे-धीरे जमुना बीस की हो गयी और माणिक मुल्ला पन्द्रह के । जमुना जब भी माणिक को पकड़ पाती, कान मसल देती या चुटकी काट लेती। पास ही महेसर दलाल का घर था। सारा मुहल्ला जानता था कि जमुना का विवाह इनके लड़के तन्ना से होगा। जब विवाह की बात चली तो जमुना की माँ ने मना कर दिया, क्योंकि सजातीय होने पर भी तन्ना नीचे गोत्र का था। जमुना खूब रोयी। धीरे-धीरे जमुना माणिक की ओर आकर्षित होने लगी। जमुना जब भी एकांत पाती, माणिक को ऐसे दबोचती कि दम घुटने लगता। माणिक की भाभी गाय के लिए रोटी प्रतिदिन बनाती थी जिसे खिलाने का काम माणिक मुल्ला को करना पड़ता। माणिक दिन में स्कूल जाते थे अतः कभी-कभी रात को रोटी खिलाने जाना पड़ता। इस काम के लिए उन्हें जमुना के घर के अहाते से होकर जाना पड़ता था और जमुना ऐसे मौकों की ताक में रहती थी। माणिक को डर लगता था। तब उसे रिझाने के लिए जुमना ने बेसन के पुए खिलाने का लालच दिया। फिर तो रोज का ही मिलना हो गया। इस मिलन का अन्त सुखद नहीं रहा क्योंकि जमुना का विवाह एक वृद्ध जमींदार से हो गया।
 
पहली दोपहर की कहानी के पश्चात् लेखक ने 'अनध्याय' शीर्षक के अन्तर्गत कहा है कि हमारे देश में नब्बे प्रतिशत लड़कियों की स्थिति जमुना जैसी ही है। जब दहेज आदि कारणों से समय पर विवाह नहीं हो पाता, तो वे सस्ती प्रेम कथाएँ पढ़कर जी बहलाती हैं और माणिक मुल्ला जैसे कम आयु के लड़कों की चिकोटी काटकर या दबोचकर काम की भूख शांत करने की चेष्टा करती हैं।
 

दूसरी दोपहर (घोड़े की नाल)

पहली दोपहर की अधूरी कहानी को आगे बढ़ाते हुए माणिक मुल्ला ने कहा- जब बहुत दिनों तक जमुना की शादी
सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का सारांश | धर्मवीर भारती
न हुई तो दूर के रिश्ते की रामो बीबी के भतीजे से शादी करके मुक्ति पा ली। उसकी दो पत्नियाँ पहले ही मर चुकी थीं। जमुना के पिता बैंक में क्लर्क थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जमुना विवाह के समय पति की आयु देखकर बहुत दुखी हुई, पर जो वस्त्राभूषण मिले उनसे सारी पीड़ा दूर हो गयी। वह जब भी मायके लौटती तो अपने पति और उनके प्यार की बहुत प्रशंसा करती। एक दिन पिता बैंक से लौटे तो उन्होंने बताया कि हिसाब में एक सौ सत्ताईस रुपया तेरह आने कम पड़ गये हैं, अगर कल जमा न किये तो जेल में डाल दिये जायेंगे। जमुना के पास ढाई-तीन सौ रुपये थे। वह दे सकती थी, पर साफ मना कर दिया। दूसरे ही दिन ससुराल भी चली गयी कि यहाँ माँ-बाप कितने दिन के हैं। अपने होने वाले बाल-बच्चों को भी तो देखना है।
 
जमुना ससुराल में सुखी थी, पर संतान की कमी थी। सन्तान के लिए एक अनुष्ठान हेतु जमुना रामधन तांगे वाले के साथ नित्य गंगा स्नान करने जाने लगी। रामधन के सुझाव के अनुसार घोड़े की नाल की अंगूठी बनवाकर पहनी और भगवान की कृपा से एक पुत्र की माँ बनी। दुर्भाग्य यह रहा कि पुत्र जन्म के कुछ ही समय बाद वृद्ध जमींदार चल बसे। विधवा जमुना पवित्रता से जीवन व्यतीत करने लगी। अकेला घर काटने को दौड़ता इसलिए एक कोठरी रामधन को रहने के लिये दे दी। एक दिन रेल में यात्रा करता रामधन माणिक मुल्ला को मिला। उसने अपने भाग्योदय की बात बताई। माणिक मुल्ला का भाग्य जाग जाए, इस हेतु उसने एक नाल भेज दी कि अंगूठी बनवाकर पहन ले।
 
दूसरी दोपहर की कहानी के बाद अनध्याय शीर्षक है जिसमें लेखक ने आदर्श तथा यथार्थ का विश्लेषण किया है और जमुना, माणिक मुल्ला, रामधन आदि की मार्क्सवादी व्याख्या की है।
 

तीसरी दोपहर (शीर्षक माणिक मुल्ला ने नहीं बताया)

तीसरी दोपहर को उमस भरे वातावरण में माणिक मुल्ला ने तन्ना की कहानी सुनाई-तन्ना की माँ का निधन सबसे छोटी संतान को जन्म देने के पश्चात् हो गया था। परिवार में पिता महेसर दलाल, तन्ना और उसकी तीन बहनें हैं। बच्चों के पालन-पोषण के बहाने महेसर दलाल एक औरत को घर ले आये, जिसे बच्चे बुआ कहते थे। वह औरत बच्चों से नौकरों जैसा काम लेती और खाने को आधा पेट ही देती। सबसे बुरी हालत तन्ना की थी। मंझली बहन अपंग है, जो घर भर में फिसल-फिसल कर बहनों और तन्ना को गालियाँ देती है। तन्ना प्रायः भूखा ही स्कूल जाता और लौटकर लकड़ी चीरने जैसे काम करने पड़ते थे। इस पर भी बुआ की शिकायत पर तन्ना की पिटाई हो जाती थी। तन्ना को जमुना और उसकी माँ का ही सहारा था। जमुना तन्ना से छोटी थी। वह तन्ना को घर बुलाकर प्यार से खिलाती। दोनों एक दूसरे से सुख-दुख की बातें करते। ऐसी दशा में ममता और प्यार उत्पन्न होना स्वाभाविक था। जब विवाह की बात चली तो जमुना की माँ ने इनकार कर दिया, क्योंकि तन्ना नीचे गोत्र का था।
 
महेसर दलाल ने घोषणा की कि लकड़ी के ठूंठ को साड़ी पहनाकर तन्ना की शादी कर दूँगा, पर जमुना से तन्ना की शादी नहीं करूँगा। उन्होंने तन्ना को मारा-पीटा और तीन दिन तक भूखा भी रखा। इसके बाद उन्होंने तन्ना को आर. एम. एस. में नौकरी दिला दी। वियोगी तन्ना एफ. ए. में फेल हो गये थे। उन्होंने तन्ना का विवाह एक रूपवती विधवा की सुन्दर बेटी से करा दिया। इण्टर पास उस वधू की शिक्षा बन्द करा दी गई। दोनों ओर से विवाह की जिम्मेदारी होने के कारण महेसर दलाल अक्सर विधवा समधिन के घर रुक जाते। लाचार बुआ एक दिन घर छोड़कर चली गई और जाते-जाते घर से जेवर-कपड़ा भी समेट ले गयी। इधर महेसर दलाल एक साबुन वाली लड़की पर खम लुटाने लगे। परिणामस्वरूप तन्ना की जिम्मेदारी बढ़ गयी। घर चलाना और बहनों के विवाह के लिये तैयारी करना। रात में आर. एम. एस. के काम के अलावा दोपहर में ए.आर. पी. का काम भी सम्भाल लिया। अधिक भार के कारण तन्ना बहुत शीघ्र ही बूढ़ा और कमजोर हो गया।
 
एक दिन पता चला कि वह लड़की मरी पायी गई, जिसके साथ महेसर दलाल का नाम जोड़ा जा रहा था। कुछ दिनों बाद जमुना का विवाह हो गया। महेसर दलाल मर गये। तन्ना कमजोर होते गये और पत्नी के कलह तथा अधिकारियों की डाँट खा-खाकर उनका मन असंतुष्ट रहने लगा। एक दिन रेलगाड़ी में डाक ले जा रहे थे कि नीमसार जाते तीर्थयात्रियों में जमुना और रामधन मिले। जमुना ने कहा कि मेरे घर चलकर रहो, स्वास्थ्य सुधर जायेगा। लेकिन नैतिकता में आस्था रखने वाले तन्ना उसके साथ न गये। घर लौटे और बीमार पड़ गए। नौकरी से निकाल दिये गये। यूनियन की कृपा से नौकरी तो मिल गई पर एक दिन डाक ले जाते समय ट्रेन से गिर पड़े और दोनों टाँगें कट गयीं। इसके पश्चात् 'अनध्याय' शीर्षक से तन्ना की मन:दशा का उल्लेख किया गया है।
 

चौथी दोपहर (मालवा की युवरानी देवसेना की कहानी)

चौथी दोपहर का विषय प्रेम-त्रिकोण है, जिसके केन्द्र में सुन्दर युवती लिली है। लिली के दो विरोधी बिन्दु माणिक मुल्ला और तन्ना हैं। माणिक मुल्ला और लीला (लिली) परस्पर प्रेम करते हैं। माणिक मुल्ला जैसे जमुना को फुटपाथी साहित्य लाकर देते थे, वैसे ही लिली को 'स्कंदगुप्त' आदि स्तरीय साहित्य पढ़वाते हैं। माणिक मुल्ला लिली को समझाते हैं कि वह देवसेना के समान बने । जहाँ उसकी शादी हो रही है, कर ले। कम्मो लिली की सहेली है। वह समझाती है कि अभी रो रही हो, पर पति को पाकर मुझे याद भी नहीं करोगी। कम्मी को किसी काम से बाजार जाना था। साथ पाने के लिए वह लिली को भी ले गई और दोनों सहेलियाँ हँसती-इठलाती घर लौंटी। उसी दिन शाम को महेसर दलाल तन्ना से विवाह कराने के संदर्भ उसे देखने आने वाले थे। तन्ना का विवाह इसी लिली से हुआ।
 

पाँचवीं दोपहर (काले बेंट का चाकू)

पाँचवीं दोपहर को माणिक ने सत्ती की कहानी सुनाई। सत्ती चालढाल में मस्ती भरी थी, पर उसकी मर्जी के बिना उसे कोई छेड़ भी नहीं सकता था, क्योंकि उसकी कमर में काले बेंट का चाकू हमेशा रहता था। उसके तथाकथित चाचा चमन ठाकुर, जब सेना में भर्ती होकर बलूचिस्तान गये थे, तब तीन-चार वर्ष की अनाथ बच्ची मिली। एक हाथ कट जाने से सेवामुक्त होकर वे इलाहाबाद के इस मुहल्ले में बस गये और साबुन बनाने का काम शुरू कर दिया। जब सत्ती सोलह-सत्रह की हो गई तो साबुन बनाने, बेचने आदि का सारा काम उसने सम्भाल लिया। अब चमन ठाकुर हुक्का पीकर दिन गुजारने लगे। सत्ती और चमन ठाकुर जब साबुन की बिक्री का हिसाब कर रहे थे, तब हिसाब जोड़ने की गलती को सुधारने को लेकर माणिक मुल्ला का उससे परिचय हुआ। धीरे-धीरे माणिक मुल्ला और सत्ती एक-दूसरे को चाहने लगे।
 
सत्ती ने एक दिन माणिक मुल्ला को बताया कि चाचा मुझ पर बुरी नजर रखता है और जब मुझ पर बस नहीं चला तो पाँच सौ रुपये लेकर मुझे महेसर दलाल को सौंप दिया। कुछ दिनों बाद माणिक मुल्ला के भाई और भाभी को पता चला कि दोनों की मित्रता प्रेम में बदल रही है तो उन्होंने माणिक को मना कर दिया कि वह उन लोगों से मेलजोल न रखे।
 
एक रात सत्ती एक पोटली में रुपया, गहने आदि लेकर माणिक मुल्ला के घर आ गई कि उसे लेकर भाग चले परन्तु कायर माणिक ने धोखा देकर सत्ती को पकड़वा दिया। चमन ठाकुर आया और सत्ती को ले गया। सत्ती गाली देती हुई चली गई। अगले दिन सुना गया कि चमन ठाकुर और महेसर दलाल ने सत्ती का गला घोंट दिया।
 

छठी दोपहर (क्रमागत)

संत्ती की मृत्यु से माणिक मुल्ला को बहुत दुःख हुआ। वे स्वयं को इसका दोषी मानने लगे और स्वयं को नष्ट करने पर तुल गए। मित्रों ने बहुत समझाया पर वे नहीं माने। एक दिन माणिक ने देखा कि एक भिखारिन गोद में बच्चा लिये गाड़ी खींच रही है जिसमें एक आदमी बैठा है। वह आदमी चमन ठाकुर था और स्त्री सत्ती थी। जब मुल्ला को लगा कि सत्ती अपने बाल-बच्चों के साथ प्रसन्न है तो उसकी निराशा जाती रही। अब उन्होंने कविता-कहानी छोड़कर तन्ना के रिक्त स्थान पर आर. एम. एस. में नौकरी कर ली। इन्हीं माणिक मुल्ला से प्रकाश ओंकार, लेखक आदि की मित्रता हुई और दोपहर में उनके घर अड्डा जमने लगा। इस कथन के पश्चात् 'अनध्याय' शीर्षक से विगत् जीवन पर विचार किया गया है। 

सातवीं दोपहर (सूरज का सातवाँ घोड़ा)

उपन्यास का यह अंतिम अध्याय वस्तुतः उपन्यास का उपसंहार है, जिसमें माणिक मुल्ला ने कहा है कि अब कोई नयी कहानी नहीं सुनाऊँगा। कारण यह कि एक अविच्छिन्न क्रम में इतनी प्रेम-कहानियाँ पर्याप्त हैं और ये कहानियाँ वास्तव में एक पूरा उपन्यास है।यह उपन्यास सुखांत भी है और दुःखान्त भी । विधवा जमुना का सुखद जीवन, लिली का विवाह, सत्ती के चाकू से माणिक मुल्ला की जान बच जाना आदि घटनाएँ उपन्यास को सुखांत बनाती हैं। तन्ना की रेल दुर्घटना, सत्ती का भिखारी जीवन और माणिक मुल्ला का विरही जीवन इस उपन्यास को दुःखांत स्वरूप प्रदान करते हैं। प्रेम-कहानी के स्वरूप का कोई सुनिश्चित ढाँचा नहीं होता, अतः इन कहानियों को 'नेति प्रेम कहानियाँ' भी कहा जा सकता है। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि इस उपन्यास का कथानक रोचक यथार्थ के धरातल पर स्थापत है। इसके कथानक पर अज्ञेय जी का यह कथन सटीक बैठता है कि 'सूरज का सातवा घोड़ा' उपन्यास एक कहानी में अनेक कहानी नहीं बल्कि अनेक कहानियों में एक कहानी है।

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