मन्नू भंडारी के उपन्यासों में विविध नारी रूप

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मन्नू भंडारी के उपन्यासों में विविध नारी रूप मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य की एक प्रतिष्ठित लेखिका हैं जिन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से नारी जीवन

मन्नू भंडारी के उपन्यासों में विविध नारी रूप


न्नू भंडारी हिंदी साहित्य की एक प्रतिष्ठित लेखिका हैं जिन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से नारी जीवन के विविध पहलुओं को बड़ी गहराई से चित्रित किया है। उन्होंने नारी को एक सशक्त पात्र के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसने समाज के रूढ़िवादी ढांचे को चुनौती दी है।

मन्नू जी मूल रूप से नारी जीवन की कथाकार हैं। उन्होंने आधुनिक नारी को व्यर्थ की वर्जनाओं से मुक्त कर स्वतंत्रता का नया आकाश दिया है। उनके नारी पात्र नवीन लक्ष्यों का संधान करते हैं। डॉ० षीना ईप्पन के अनुसार- "मन्नू जी ने शिक्षित. नारियों के वैवाहिक जीवन की आंतरिक ट्रेजेडी की सूक्ष्म पहचान प्रस्तुत की है। उनके प्रायः सभी नारी पात्र युवा अवस्था के हैं, शिक्षित हैं, कामकाजी हैं। जो स्त्रियाँ काम नहीं करतीं, घर पर पूर्ण रूप से गृहस्थ धर्म निभाती हैं वे भी मुख्य रूप से शिक्षित हैं और अपने व्यक्तित्व की पहचान कराने के लिए संघर्ष करती हैं।" 

मन्नू जी के उपन्यासों में नारी के जो विभिन्न रूप दिखायी देते हैं उनका विश्लेषण निम्नवत किया जा सकता है - 

स्त्री पुरुष सम्बन्धों के परिप्रेक्ष्य में नारी

विवाह के प्रसंग में आधुनिक नारी अपने आप को अब परिवार, समाज, जाति, वर्ग और आयु के बन्धनों में बँधने को तैयार नहीं मानती। नारी आज समाज की संरचना में पुरुष के समकक्ष होने का दावा कर रही है। आज विवाह के संदर्भ में, यौन पवित्रता के सम्बन्ध में, आर्थिक-राजनैतिक स्वतंत्रता के संदर्भ में, घर और बाहरी क्षेत्र में सीमा निर्धारण के संदर्भ में नारी का अपना भिन्न दृष्टिकोण है। 

मन्नू भंडारी के उपन्यासों में विविध नारी रूप
'एक इंच मुस्कान' की रंजना अमर की सम्पूर्ण विशिष्टताओं और दुर्बलताओं को जानते हुए भी उससे प्रेम करती है। साथ ही वह अमर के प्रेम के लिए अपने माता-पिता और घर-बाहर तक को छोड़ने में संकोच नहीं करती। 'आपका बंटी' उपन्यास की शकुन अन्तर्जातीय विवाह करती है। 'स्वामी' की सौदामिनी पारिवारिक कलह और अपमान के कारण अपने पति का घर छोड़ने के लिए तत्पर होती है। मन्नू जी के उपन्यास की नारियाँ नैतिकता के परम्परागत बन्धनों से मुक्त हैं। वे एक पुरुष की अपेक्षा एकाधिक पुरुष का वरण भी विशेष परिस्थितियों में करती हैं। 'आपका बंटी' की शकुन डॉ० जोशी से शादी करती है। वहीं 'एक इंच मुस्कान' की अमला तो अकारण ही पति द्वारा त्यागे जाने पर कई पुरुषों से मेलजोल बढ़ाती है। शकुन उच्च शिक्षित कामकाजी नारी है। वह नारी के परम्परागत चरित्र को अस्वीकार करती है। वह कहती है- “सात वर्षों से विभागाध्यक्ष से प्रिंसिपल हो जाने के पीछे भी कहीं अपने को बढ़ाने से ज्यादा अजय को गिराने की आकांक्षा थी।...... इतने पर भी जब सामने वाला नहीं टूटा तो उसकी सारी प्रगति उसके अपने लिए ही जैसे निरर्थक हो उठी थी।" इसी तरह 'एक इंच मुस्कान' में नारी की आधुनिक मानसिकता इस तरह अभिव्यक्त होती है- "यह सड़ना नहीं चाहती निरन्तर बहना चाहती है। अनजानी अनदेखी दिशाओं में बहना चाहती है। दूर-दूर निरुद्देश्य सी लक्ष्यहीन सी निर्बन्ध और उन्मुक्त ।" 

अमला को मन्नू जी ने प्रतिक्रियावादी नारी के रूप में चित्रित किया है। विवाह ने उसे अपमान और आंतरिक पीड़ा दी है। इसलिए वह शेष जीवन में विवाह व्यवस्था का तिरस्कार कर मित्रता में ही सुख खोजती है। वह विवाह को नारी पर पुरुष के स्थायी आधिपत्य का साधन मानती है। उसके अनुसार - "कोई भी पुरुष मेरे जीवन का पूरक हो यह मेरे अहम को सह्य नहीं और समझ लो यह अहं अमला का पर्याय है। मैं विवाह करना नहीं चाहती, उस ऊँचाई को पाना चाहती हूँ जहाँ जाकर यह सब निरर्थक सा लगने लगे।" मन्नू जी ने अपने उपन्यासों में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के परम्परागत ढाँचे को अस्वीकार किया है।
 

आधुनिकता और परम्परा के अन्तर्द्वन्द्व में नारी

स्वतंत्रता के बाद स्त्री और पुरुष सैद्धान्तिक रूप से आधुनिकता के पोषक दिखायी देते हैं किन्तु व्यावहारिक रूप में वे परम्पराओं को तोड़ नहीं पाते। डॉ० षीना ईप्पन के अनुसार-"आधुनिक भावबोध ग्रस्त नारी स्वयं को पुरुष की सत्ता से मुक्त मानकर चलती है। वह अपने स्वतंत्र अस्तित्व और व्यक्तित्व की दुहाई देती हुयी स्वतन्त्रतापूर्वक आचरण के द्वारा अपने मन को खुश करती नजर आती है। यहीं परिवार में संघर्ष पैदा होता है। 

मन्नू जी ने 'आपका बन्टी' उपन्यास में यह बात भली-भाँति दर्शायी है। 'आपका बंटी' की शकुन और अजय में तनाव इतना बढ़ जाता है कि उनका एक साथ रहना भी सम्भव नहीं होता। शकुन अपने वैवाहिक जीवन के बारे में विचार करती है-"दस वर्ष का यह विवाहित जीवन एक अंधेरी सुरंग में चलते जाने की अनुभूति से भिन्न न था । आज जैसे एकाएक वह उसके अंतिम छोर पर आ गयी है। पर आ पहुँचने का संतोष भी तो नहीं है, धकेल दिये जाने के विवश कचोट भर है पर कैसा है यह छोर ? न प्रकाश, न वह खुलापन, न मुक्ति का एहसास।" शकुन अपने व्यक्तित्व को स्थापित करने के लिए तलाक तो लेती है लेकिन उसके मन में अतीत की पीड़ा रह जाती है। उपार्जन के लिए स्त्री के घर से बाहर निकलने की प्रक्रिया पारिवारिक सम्बन्धों को परिवर्तित कर देती है। कामकाजी होने पर भी आर्थिक दृष्टि से नारी पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है। परिवार की आर्थिक स्थितियाँ इन नारियों को नौकरी करने के लिए बाध्य करती हैं। 

'एक इंच मुस्कान' उपन्यास की रंजना परम्परावादी नारी के साथ-साथ आधुनिक भी है। वह कॉलेज में प्राध्यापिका है। अमर को वह अपना जीवन साथी चुन लेती है। विवाह के बाद वह अमर की व्यक्तिगत जिंदगी को अपने अनुरूप ढालना चाहती है। जब इसमें पराजित होती है तब वह अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए अमर को छोड़ देती है। इसी उपन्यास की अमला अपने को पूर्ण स्वतन्त्र मानती है। उसके अनुसार- "सब प्रकार के बन्धनों से मुक्त होना है। पति और परिवार ही नारी का सबसे सशक्त बन्धन होता है।" लेकिन वही अमला सभी प्रेमियों द्वारा त्याग दिये जाने पर जीवन के सम्बन्ध में सोचती है कि, "वह पत्नी भी बनी है, प्रेयसी और मित्र भी.....पर न वह किसी के जीवन को संवार सकी न कोई उसके जीवन को संवार सका और सारे संबन्ध एक असफल प्रयोग की तरह मन पर असह्य बोझ सा छोड़कर टूटते चले गये।" 

इस प्रकार परम्परागत जीवन पद्धति को त्यागने का उसका निश्चय उसे निराशा की ओर ले जाता है। 'स्वामी' उपन्यास की नायिका सौदामिनी स्वाभिमानी एवं पढ़ी-लिखी है। वह परम्परा आधुनिकता के संघर्ष के बारे में अपने मामा से कहती है- "देखिये हम लोग पढ़-लिख, सोच-विचार कर बौद्धिक रूप से तो बहुत आगे बढ़ जाते हैं। बहुत बड़ी बातें सोच डालते हैं और केवल सोचते ही नहीं उन्हें करने के लिए कदम भी बढ़ाते हैं पर उतना सब कर नहीं पाते। सदियों पुराने संस्कार हमें पीछे खींचते हैं और यह द्वन्द्व बराबर चलता रहता है। कुछ संस्कारों को हम तोड़ पाते हैं कुछ के आगे हम खुद टूट जाते हैं।"
 

संत्रास और घुटन से युक्त नारी

वर्तमान युग के नारी और पुरुष आधुनिक परिवेश में फैले मानवीय दुःख, अकेलेपन एवं संत्रास के शिकार हुए हैं। कुंठा, संत्रास और घुटन आज के मनुष्य की सबसे बड़ी नियति है। मन्नू जी ने अपने नारी पात्रों के द्वारा संत्रास और घुटन की स्थितियों को बखूबी स्वर प्रदान किया है। 'आपका बंटी' की शकुन, 'एक इंच मुस्कान' की अमला, 'स्वामी' की सौदामिनी आदि ऐसी नारियाँ हैं जो अपने-अपने जीवन के संत्रास से ग्रस्त हैं। 

डॉ० षीना ईप्पन के अनुसार, “शकुन की मानसिक स्थिति किसी भी आधुनिक नारी के मन का प्रतिबिम्ब है। वह न तो पूर्ण रूप से अपने अतीत को भूल पाती है, न पूर्ण रूप से भविष्य को सँवार पाती हैं। वह अपने पति अजय के सामने सदा बड़ा दिखने की कोशिश करती रही, दिखा न सकने का विक्षोभ लेकर उससे अलग हो गयी। दूसरे पति डॉ० जोशी के सामने बड़ा होने लायक कुछ पाती नहीं और छोटा बनकर रहना भी नहीं चाहती, क्योंकि वह उसके अहम् के लिए मंजूर नहीं है।" "एक इंच मुस्कान' की अमला पति से अलग होकर अपने को ऊँचा मानती है किन्तु जब उसका यह भाव टूटता है तो वह साधारण स्त्री बनकर पुरुष का साथ चाहती है- "मुझे सामान्य से ऊपर उठकर विशिष्ट बनना है और मैं विशिष्ट बन गयी। पर विशिष्ट बनने की भावना से प्रेरित होकर जहाँ मैं अनेकानेक बन्धन तोड़ती चली गयी।
 
वहीं अनजाने ही मिथ्या अभिमान और झूठे अहं की दीवारें अपने चारों ओर खड़ी करती चली गयी।" डॉ० सुरेश सिन्हा के अनुसार- "आधुनिकता की एक विडम्बना यह है कि हमें दोहरा व्यक्तित्व दे दिया है। घर पर हम घोर धार्मिक, परम्परावादी, नैतिकतावादी और रूढ़ होते हैं, पर घर से बाहर हम प्रगतिशील होने, नारी की स्वतन्त्रता का पक्षपाती होने और अछूतों के साथ समानता स्थापित करने की हवाई बातें करते हैं। यही अन्तर्विरोध, कृत्रिमता और द्वन्द्व, मूल्यहीनता, विघटन, संत्रास एवं निरर्थकता के बोध को जन्म देता है।"
 
डॉ० षीना ईप्पन के अनुसार - "मन्नू जी ने एक अलग परिप्रेक्ष्य में स्त्री के व्यक्तित्व को उभारा है। वह प्रेम को लेकर भावुक नहीं है-विवाह और प्रेम को वह दो स्तरों पर देख सकती है और विवाह के लिए प्रेम का त्याग कर सकती है। वह यह सोचकर निर्णय करती है कि जिंदगी को केवल भावुकता के आधार पर देखना नहीं चाहिए। प्रणय के अलावा भी नारी के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं जिनसे लड़ना ही जीवन की सार्थकता माननी चाहिए। आज की नारी के स्वतंत्र व्यक्तित्व की पहचान यहाँ स्पष्ट होती है। " 

स्वअस्तित्व बोध से युक्त नारी

आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारी पुरुष के समान है। महिला रचनाकार स्त्री पुरुष की समानता में विश्वास रखती है और नारी को अबला नहीं मानती है। मन्नू जी भी ऐसी ही रचनाकार हैं। डॉ० षीना ईप्पन के अनुसार - " मन्नू जी की शकुन और सौदामिनी अपने अहं को मिटाना भी नहीं चाहतीं साथ ही साथ अपने परिवार और पति से उपेक्षित दासी बनकर रहना भी पसन्द नहीं करतीं। दोनों भारतीय परम्परा और रूढ़ि से अलग होकर चलने वाली आधुनिक स्वतन्त्र नारियाँ हैं ।" "एक इंच मुस्कान' की अमला अपने जीवन में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करती है। इसलिए वह अपने प्रेमी कैलाश से कहती है-" अपने व्यवहार और अपनी हरकतों की आलोचना करने का अधिकार मैंने कभी किसी को नहीं दिया....तुम्हें भी नहीं इसे मत भूलो।" 'स्वामी' उपन्यास की मिनी उस पर होने वाले अत्याचार का विरोध करती है-"अन्याय करें वे और माफी माँगू मैं? वाह रे तुम्हारा न्याय।....यहाँ कदम-कदम पर जिस तरह का अन्याय होता है, उसमें चुप रहना मेरे लिए सम्भव नहीं।" 

"आपका बंटी' की शकुन में भी यह अस्तित्व बोध दिखाई देता है। वह फूफी से कहती है-"देखो फूफी मैं तुम्हारी इज्जत करती हूँ। अपनी माँ से भी ज्यादा... पर माँ को भी मैंने कभी अपनी बातों के बीच में नहीं बोलने दिया....मुझे याद नहीं वे कभी बोली हों... यह अधिकार तो मैं किसी को दे नहीं सकती।"

मन्नू जी के उपन्यासों में जीवंत नारी का सफल अंकन हुआ है।डॉ० षीना ईप्पन के अनुसार - "आधुनिक नारी की पूरी गरिमा वास्तविक सम्मान और मुक्ति की और माँग के उद्घाटन और उसकी रक्षा के प्रति मन्नू जी अधिक जागरूक रही हैं।उनके उपन्यास में सिर्फ इसका संकेत ही नहीं मिलता, बल्कि वे सबकी सच्चाई को खुलासा प्रस्तुत करती हैं।मन्नू जी के नारी पात्र इस महादेश की नारी जाति की असली तस्वीर होगी। इस दशा में मन्नू जी का प्रयास सराहनीय है।"

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