मन्नू भंडारी के उपन्यासों में दांपत्य समस्याएँ

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मन्नू भंडारी के उपन्यासों में दांपत्य समस्याएँ मन्नू भंडारी, हिंदी साहित्य की एक प्रमुख लेखिका हैं, जिन्होंने अपने उपन्यासों में मध्यवर्गीय भारतीय जी

मन्नू भंडारी के उपन्यासों में दांपत्य समस्याएँ


न्नू भंडारी, हिंदी साहित्य की एक प्रमुख लेखिका हैं, जिन्होंने अपने उपन्यासों में मध्यवर्गीय भारतीय जीवन की जटिलताओं और विशेषकर दांपत्य संबंधों की समस्याओं को बड़ी गहराई से चित्रित किया है। उन्होंने अपने पात्रों के माध्यम से समाज में व्याप्त रूढ़ियों, अपेक्षाओं और बदलते मूल्यों के कारण उत्पन्न होने वाले दांपत्य संकटों को उजागर किया है।

परिवार का ठोस आधार दाम्पत्य संबंध होता है। परिवार का नैरंतर्य बनाए रखने के लिए दाम्पत्य सम्बन्धों की अविच्छिन्नता आवश्यक है। डॉ० माधवी जाधव के अनुसार- "दाम्पत्य संबंध में अलगाव, दरार, टूटन तथा घुटन निर्माण के लिए कोई एक ठोस कारण नहीं है। पति या पत्नी का प्रचंड अहं, रुचि तथा विचारों में असमानता, समझदारी तथा लचीलेपन की कमी, अर्थ-संबंधता तथा अर्थाभाव की स्थिति, शारीरिक तथा मानसिक असंतुष्टि, पर-पुरुष तथा पर-स्त्री गमन की प्रवृत्ति, त्रिकोण प्रेम, पति-पत्नी में अविश्वास तथा संशय, नारी का अपने स्वत्व के प्रति जागरण तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व की चाह, देह-धर्म की तिलांजलि, पति की व्यसनाधीनता आदि कई कारक हैं, जो दाम्पत्य जीवन में जहरीला धुआँ फैलाकर उसे विषाक्त बना रहे हैं। दिनों-दिन दाम्पत्य जीवन विविध समस्याओं में घिरकर मुक्ति के लिए छटपटा रहा है।" मन्नू जी ने अपने उपन्यासों में दाम्पत्य सम्बन्धों की समस्याओं को बाह्य एवं आन्तरिक दोनों स्तरों पर उठाया है। मन्नू जी द्वारा अभिव्यक्त दाम्पत्य संबंधों की समस्याओं को निम्नवत विश्लेषित किया जा सकता है-
 

अहं के कारण दाम्पत्य संबंधों में अलगाव

आज तक पुरुष का अहं दाम्पत्य पर हावी था किन्तु अब शिक्षित और आत्मनिर्भर नारी अपने अहं के साथ पुरुष को बराबर की चुनौती दे रही है। वह बराबर अपनी परिस्थितियों को अपने अनुकूल मोड़ने को तत्पर है। डॉ० माधवी जाधव के अनुसार- "पत्नी का यह नया रूप झेलने तथा सहने की क्षमता आज भी पुरुषों में नहीं आ पाई है। अतएव दोनों के अहं की टकराहट के कारण दाम्पत्य जीवन में तान-तनाव पैदा होता है और अंततोगत्वा संबंध-विच्छेद तक की विकराल समस्या निर्मित होती है। दिनोंदिन संबंध-विच्छेद की यह समस्या भारतीय जीवन में विस्तार पा रही है और सामाजिक समस्या का रूप धारण कर रही है और इसके निवारण के लिए एक सामूहिक प्रयत्न की आवश्यकता महसूस हो रही है।"
 
मन्नू भंडारी के उपन्यासों में दांपत्य समस्याएँ
मन्नू जी के उपन्यासों में 'आपका बंटी' ऐसा उपन्यास है जिसमें निजी अहं के कारण दाम्पत्य संबंधों के बिखराव को बखूबी दर्शाया गया है। अजय और शकुन परस्पर दम्भ के कारण एक दूसरे को कष्ट पहुँचाते हैं-"समझौते का प्रयत्न भी दोनों में एक अंडरस्टै डेंग पैदा करने की इच्छा से नहीं होता था वरन एक-दूसरे को पराजित करके अपने अनुकूल बना लेने की आकांक्षा से।" दम्पत्ति परस्पर तर्कों और बहसों में ही डूबे हुए थे। दोनों इसी प्रतीक्षा में थे कि कौन किसके आगे पराजित हो जाए। इसी उधेड़बुन में उनके मध्य तो दूरियाँ आ गयीं। उन्हें उनका बेटा बंटी भी नहीं पाट पाया और उनका सात वर्षों का वैवाहिक जीवन अहं की भेंट चढ़ गया। वे दोनों सम्बन्ध विच्छेद कर अलग हो गए। अजय और शकुन से भी ज्यादा उनके बेटे को आघात पहुँचा। डॉ० ज्ञान अस्थाना के अनुसार-"आधुनिकता की आँधी में बहते हुए, अपने व्यक्तित्व और अहं की स्वतंत्रता के नाम पर आज हमारे परिवारों में कितना विष घुसा आ रहा है कि देश की भावी पीढ़ी लावारिस सी बनाकर द्वंद्व में जीने और टूटने को छोड़ दी जा रही है।"
 
आधुनिकता बोध के परिणामस्वरूप परंपरागत मूल्य दूषित हो रहे हैं। वर्तमान में थोड़ी सी अनबन भी दांपत्य संबंधों में बिखराव पैदा कर रही है। उच्च शिक्षा, आर्थिक स्वतन्त्रता आदि ने नारी के व्यवहार में श्रेष्ठता ग्रंथि को जन्म दिया है।
 

विवाहेतर संबंधों के कारण दाम्पत्य में तनाव

डॉ० माधवी जाधव के अनुसार - "पति-पत्नी के बीच सम्बन्धों के विघटन का प्रमुख कारण किसी तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति है। ये तीसरा व्यक्ति पुरुष या स्त्री कोई भी हो सकता है। दांपत्य-जीवन को विषाक्त तथा विघटित करने वाले विविध कारकों में प्रभावी कारक दाम्पत्य जीवन में तीसरे का प्रवेश है। आज तक पुरुष पत्नी के सिवा अन्य स्त्रियों से सम्बन्ध स्थापित करते रहे। समाज द्वारा उनके यह सम्बन्ध नाजायज होकर भी जायज माने गये। उनकी पत्नियाँ भी पति के परस्त्री सम्बन्ध को बिना विरोध तथा विद्रोह के स्वीकार करती रहीं। परन्तु आप स्त्री पुरुष समानता के युग में शिक्षित आत्मनिर्भर स्वत्व के प्रति जागरूक स्त्रियाँ दाम्पत्य जीवन में तीसरे का प्रवेश सह नहीं पाती। तब पति-पत्नी का अलगाव अनिवार्य हो जाता है। पति-पत्नी सम्बन्ध में तान-तनाव पैदा हो जाता है। घुटन, अकेलेपन, संत्रास को झेलते हुए सम्बन्ध सिर्फ ढोये जाते हैं। कभी-कभी सम्बन्ध दरकते दरकते पूर्णत: टूट भी जाते हैं।"

'एक इंच मुस्कान' उपन्यास में रंजना अमर से अत्यधिक प्रेम करती है और अमर के छीने जाने के भय से वह सदैव परेशान रहती हैं। वह पति की महिला मित्र अमला को स्वीकार नहीं कर पाती। पति को अत्यधिक प्रेम करने वाली रंजना अमला को अपने पति के साथ स्वीकार नहीं कर सकती है। इस कारण अमर और रंजना के मध्य दीवार खड़ी हो जाती है। जो दाम्पत्य सम्बन्धों में तनाव और घुटन पैदा करती है। रंजना अमर से कहती है-"अपने कौन से दुःख को उसकी हथेलियों में सिर गाड़कर तुम हल्का कर रहे थे? मैं क्या समझती नहीं अमर हूँ......दोनों के बीच की दीवार तुम दोनों का दुःख एक ही है और वह शायद मैं बाधा। मुझे तोड़ क्यों नहीं फेंकते अमर ?" अमर के समझाने पर भी रंजना अमला की उपस्थिति को अपने जीवन में स्वीकार नहीं कर पाती। रंजना घर छोड़कर चली जाती है। दाम्पत्य सम्बन्धों में तीसरे व्यक्ति का होना एक ऐसा अलगाव पैदा कर देता है जिसकी परिणति सम्बन्ध विच्छेद में ही होती है।
 

इच्छा विरुद्ध विवाह के कारण दाम्पत्य संबंधों में अलगाव

इच्छा के विरुद्ध माता-पिता या अभिभावकों द्वारा विवाह कर देने से दाम्पत्य जीवन संत्रासमय हो जाता है। ऐसी स्थिति में पति-पत्नी के मध्य किसी तीसरे व्यक्ति का प्रवेश हो जाना. स्वाभाविक है। 'स्वामी' उपन्यास की सौदामिनी का विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध घनश्याम से होता है। वह सोचती है-"नहीं नहीं, वह किसी की भी पत्नी बनकर नहीं रह सकेगी।" ऐसा सोचकर ही वह पति के घर आती है। डॉ० माधवी जाधव के अनुसार- "यही दाम्पत्य सम्बन्ध की विडम्बना है पर लेखिका ने उन्हें अपने खूँटे पर बाँध रखा है। विवाहित स्त्रियाँ अपने विवाहपूर्व प्रेमियों के साथ भागने लगेंगी तो पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों में संकट की स्थिति पैदा होगी। शायद लेखिका का पारिवारिक सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा तथा आगे आने वाली समस्याओं से बचाने का यह प्रयत्न है।"
 
उपर्युक्त विवेचन से यह ज्ञात होता है कि मन्नू जी के उपन्यासों में दाम्पत्य सम्बन्धों की विभिन्न समस्याओं को सही रूप में रूपाकार दिया गया है। डॉ० माधवी जाधव के अनुसार- "मन्नू भण्डारी ने दाम्पत्य सम्बन्धों को अनेक समस्याओं के जाल में फँसाने वाले सभी कारकों एवं उनके परिणामों सहित उभारने का सफल प्रयास किया है जो वर्तमान दाम्पत्य सम्बन्धों के विघटन की सही तथा पूर्ण तस्वीर उपस्थित करने में सक्षम हैं। दाम्पत्य संबंधों की समस्या का अंकन आगत कडुवाहट तथा विकरालता का भी बोध कराते हैं। दाम्पत्य संबंधों का संदर्भ अधिकांश मात्रा में नगरीय तथा मध्य वर्ग रहा है क्योंकि वही लेखिका का अनुभूति विश्व रहा है।"

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