सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का उद्देश्य | धर्मवीर भारती

SHARE:

सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का उद्देश्य धर्मवीर भारती भविष्य का घोड़ा नवीन समाज को लाएगा और जीवन अधिक सुखी, समृद्ध तथा प्रकाशमय बनेगा। यही व्यक्त कर

सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का उद्देश्य | धर्मवीर भारती


र्मवीर भारती का उपन्यास "सूरज का सातवाँ घोड़ा" सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से चिंतन करने को प्रेरित करता है।

उपन्यास कला के सात प्रमुख तत्त्वों में उद्देश्य भी एक तत्त्व है। सभी जानते हैं कि प्रत्येक कार्य का कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है, साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है। उद्देश्यविहीन रचना कभी भी सफल नहीं होती। लेखक धर्मवीर भारती ने माणिक मुल्ला के शब्दों में कहा है- "हिन्दी में बहुत से कहानीकार इसीलिये प्रसिद्ध हो गए हैं कि उनकी कहानी में कथानक चाहे लँगड़ाता हो, पात्र चाहे पिलपिले हों, लेकिन सामाजिक तथा राजनीतिक निष्कर्ष अद्भुत होते हैं।" वास्तविकता तो यह है कि कोई भी रचनाकार युग जीवन की अपेक्षाओं की उपेक्षा नहीं कर सकता। डॉ० धर्मवीर भारती के उपन्यासों का प्रमुख विषय 'प्रेम' है पर इसके माध्यम से उन्होंने अपने विचार दर्शन और प्रयोजन को भी प्रस्तुत कर दिया है।
 
धर्मवीर भारती के उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' का मुख्य विषय 'प्रेम' है, लेकिन सही अर्थों में उसका उद्देश्य समाज का विश्लेषण है। लेखक ने कहा भी है- "ये कहानियाँ वास्तव में प्रेम नहीं, वरन् उस जिंदगी का चित्रण करती हैं; जिसे आज का निम्न-मध्यवर्ग जी रहा है। उसमें प्रेम से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है आज का आर्थिक संघर्ष, नैतिक विश्रृंखलता, इसीलिए इतना अनाचार, निराशा, कटुता और अँधेरा मध्यवर्ग पर छा गया है। पर कोई-न-कोई ऐसी चीज है; जिसने हमें हमेशा अँधेरा चीरकर आगे बढ़ने, समाज व्यवस्था को बदलने और मानवता के सहज मूल्यों को स्थापित करने की ताकत और प्रेरणा दी है। चाहे उसे आत्मा कह लो चाहे कुछ और।" लेखक धर्मवीर भारती ने अपने इस उपन्यास में निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए हैं - 

श्रम की महत्ता

लेखक श्रम की महत्ता का समर्थक है। इस उपन्यास का पात्र तन्ना घर के काम करने में हेठी नहीं समझता और लकड़ी चीरने जैसे कठिन काम को भी आसानी से करता है। लेखक ने श्रम की प्रतिष्ठा सत्ती के माध्यम से इन शब्दों में की है- "इस मेहनत करने वाली स्वाधीन लड़की के व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था जो न पढ़ी-लिखी भावुक लिली में था और न अनपढ़ी दमित मन वाली जमुना में था।......वह उन्हें धरती पर सहज मानवीय भावना से जीने की प्रेरणा देती थी। वह कुछ ऐसी भावनाएँ जगाती थी जो ऐसी ही कोई मित्र-संगिनी जगा सकती थी जो स्वाधीन हो, जो साहसी हो, जो मध्यवर्ग की मर्यादाओं के शीशे के पीछे सजी हुई गुड़िया की तरह बेजबान और खोखली न हो। जो सृजन और श्रम में, सामाजिक जीवन में उचित भाग लेती हो, अपना उचित देय देती हो।"
 

सामाजिक कुरीतियाँ

सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास का उद्देश्य | धर्मवीर भारती
यद्यपि हिन्दू समाज वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित है तथापि समय के अंतराल और मुस्लिम समाज के दूषित प्रभाव के फलस्वरूप अनेक कुरीतियाँ घर कर गई हैं। वर्ण-भेद अब जाति और गोत्र भेद के रूप में अपना दुष्प्रभाव डालने लगा है। जमुना की माँ जमुना का विवाह तन्ना से इसलिए नहीं होने देती कि वह ऊँचे गोत्र की है और तन्ना नीचे गोत्र का है। माणिक मुल्ला जब सत्ती के प्रेम में पड़ जाते हैं और बात भैया-भाभी को पता चलती है तो वे ऊँच-नीच और खानदान का नाम लेकर उसे सत्ती से मिलने को इन शब्दों में मना करते हैं-"इन छोटे लोगों को मुँह लगाने से कोई फायदा नहीं। ये सब बहुत गन्दे और कमीने किस्म के होते हैं। माणिक के खानदान का इतना नाम है।" लेखक धर्मवीर भारती ने रूढ़ियों, परम्पराओं और कुरीतियों के विरोधस्वरूप लिखा है- "हम जैसे लोग जो न उच्च वर्ग के हैं न निम्न वर्ग के, जिनके यहाँ रूढ़ियाँ, मर्यादाएँ और परम्पराएँ भी ऐसी पुरानी और विषाक्त हैं कि कुल मिलाकर हम सबों पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि हम यन्त्र-मात्र रह जाते हैं। हमारे अन्दर ऊँचे और उदार सपने खत्म हो जाते हैं और एक अजब-सी जड़ मूर्च्छना हम पर छा जाती है।" इस प्रकार लेखक का उद्देश्य है कि हम झूठी मर्यादाओं और विकृतियों को अस्वीकार कर दें।
 

भविष्य में आस्था

लेखक आस्था और विश्वास का धनी है। उन्होंने प्रत्येक प्रेम कहानी का कल्याणकारी निष्कर्ष प्रस्तुत किया है। पहली दोपहर की कहानी में उन्होंने लिखा है-"इससे यह निष्कर्ष निकला कि हर घर में गाय होनी चाहिये, जिससे राष्ट्र का पशुधन भी बढ़े, संतानों का स्वास्थ्य भी बने। पड़ौसियों का भी उपकार हो और भारत में फिर से दूध-घी की नदियाँ बहें।" दूसरी दोपहर की कहानी में लेखक ने कहा है- "इससे यह निष्कर्ष निकला कि दुनिया का कोई श्रम बुरा नहीं। किसी भी काम को नीची निगाह से नहीं देखना चाहिए।" भारती जी उज्ज्वल भविष्य के प्रति आस्थावान हैं। अपने आशावादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए लेखक कहते हैं कि आज के बच्चे भविष्य का वह घोड़ा लाएँगे, जिस पर सूर्य का रथ आगे बढ़ेगा और अश्वमेध का दिग्विजयी घोड़ा दौड़ेगा।
 

आर्थिक अभाव

वर्तमान समाज में धन का स्थान सर्वोपरि है। सारे सम्बन्धों का केन्द्र बिन्दु धन है। आर्थिक अभावों से ग्रस्त मनुष्य क्या-क्या नहीं करता। जमुना को वृद्ध जमींदार से विवाह इसलिये करना पड़ता है कि उसके माता-पिता दहेज नहीं जुटा सकते थे। जमुना के पिता की दीन दशा का चित्रण लेखक ने इन शब्दों में किया है- "चूँकि जमुना के पिता बैंक में साधारण क्लर्क मात्र थे और तनख्वाह से क्या आता-जाता था, तीज-त्यौहार, मुंडन-देवकाज में हर साल जमा रकम खर्च करनी पड़ती थी और जैसा हर मध्यम श्रेणी के कुटुम्ब में होता है, वह पिछली लड़ाई में हुआ है, बहुत जल्दी सारा जमा रुपया खर्च हो गया और शादी के लिए कानी कौड़ी नहीं बची।'
 
आर्थिक अभाव के कारण ही तन्ना को पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ी। घर के खर्च और बहनों के ब्याह के लिये वह दो-दो नौकरियाँ करता है-दोपहर को आर०ए० पी० में और रात में आर० एम० एस० में। आर्थिक अभाव के कारण बुआ को महेसर दलाल के यहाँ रहना पड़ता है। तन्ना की गरीबी के कारण ही पत्नी लिली मायके चली जाती है। जब चमन ठाकुर का व्यवसाय चौपट हो जाता है, तो वह मात्र पाँच सौ रुपयों में सत्ती को महेसर दलाल के हाथों बेच देता है। अंत में उसे भीख माँगकर गुजर करनी पड़ती है। इस प्रकार आर्थिक अभावों के कारण व्यक्ति दुष्कर्म करने को विवश हो जाता है।
 

मार्क्सवाद का खंडन

सैद्धांतिक स्तर पर मार्क्सवाद बहुत ही लोकप्रिय जीवन-दर्शन है। लेखक धर्मवीर भारती की मार्क्सवाद में गहन आस्था रही है पर वे उसकी कमियों से क्षुब्ध भी हैं। लेखक ने इस उपन्यास में कहा है-"मुझे मार्क्सवादी शब्दजाल के पीछे भी असन्तोष, अहंवाद और गुटबन्दी दीख पड़ी है, उसकी ओर साहस से स्पष्ट निर्देश करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ, क्योंकि ये तत्त्व हमारे जीवन और हमारी संस्कृति की स्वस्थ प्रगति में खतरे पैदा करते हैं।" लेखक स्वीकार करता है कि मार्क्सवादी आदर्श झील के पानी पर जमीं आधी इन्च मोटी बर्फ का ही ज्ञान कराता है जल में निहित गंदगी और गहराई का बोध नहीं कराता । लेखक उपन्यास के एक पात्र के रूप में उपन्यास की मार्क्सवादी व्याख्या प्रस्तुत करता है, तो उसके खोखलेपन का संकेत भी देता है-"मार्क्सवाद भी ऐसा अभागा निकला कि तमाम दुनिया में जीत के झंडे गाड़ आया और हिन्दुस्तान में इसे बड़े-बड़े राहु ग्रस गए।"
 

धार्मिक आडम्बर

धर्म के नाम पर किए जाने वाले आडम्बर और अंधविश्वासों ने निम्न-मध्यवाय समाज को विविध विकृतियों से भर दिया है। लेखक उपन्यास के प्रारम्भ में लिखता है-" किस्मत की मार देखिये कि उसी समय मुहल्ले में धर्म की लहर चल पड़ी और तमाम औरतें जिनकी लड़कियाँ अनब्याही रह गई थ; जिनके पति हाथ से बेहाथ हुए जा रहे थे, जिनके जेवर बिक गए थे, जिन पर कर्ज हो गया था, सभी ने भगवान की शरण ली और कीर्तन शुरू हो गए और कंठियाँ ली जाने लगीं। माणिक की भाभी ने भी हनुमान चौतरा वाले ब्रह्मचारी से कंठी लीं और नियम से दोनों वक्त भोग लगाने लगीं और सुबह-शाम पहली टिक्की गऊ माता के नाम से सेंकने लगीं।" 

रामधन जमुना का शोषण धार्मिक अंधविश्वास के कारण ही कर पाता है। घोड़े की नाल से बनी अँगूठी पहनाकर जमुना को मातृत्व प्रदान करता है। वह उसके मोहजाल में फँसकर अपनी ही कोठी में रख लेती है और तीर्थयात्रा आदि में उसे अपने साथ ले जाती है।
 

अनाचार और अनैतिकता

हिन्दू समाज में नैतिकता और आदर्शों पर जितना अधिक जोर दिया गया है, उतना अधिक अनाचार और अनैतिकता बढ़ी है। लड़की जवान होने पर बिगड़ सकती है, ऐसा सोचकर माँ-बाप उस पर तरह-तरह के नियंत्रण लगाते हैं। जमुना की पढ़ाई पन्द्रह वर्ष की होते ही बन्द कर दी जाती है। अब वह अपना खाली समय प्रेमरस से भरी कहानियाँ और फिल्मी गीतों की किताबें पढ़कर व्यतीत करती है। उसे स्पर्श-सुख के लिए दस वर्षीय माणिक और समवयस्क तन्ना का आश्रय लेना पड़ता है। बेमेल विवाह की स्थिति में उसे शारीरिक सुख और संतान ताँगे वाले रामधन से प्राप्त होती है। महेसर दलाल अनैतिकता और दुराचार का ज्वलंत उदाहरण है। वह मातृहीन बच्चों के पालन-पोषण के नाम पर एक औरत को घर ले आता है। बच्चों की यह तथाकथित बुआ वस्तुतः महेसर दलाल की बहन नहीं रखैल है। जब महेसर दलाल अपनी विधवा समधिन से भी अनैतिक सम्बन्ध बना लेता है, तब यह बुआ सब धन और जेवर समेटकर चली जाती है। अनैतिक आचरण की सीमा तब टूट जाती है; जब पुत्री के समान पाल-पोसकर बड़ी की गई सत्ती से उसका चाचा ही सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है। स्पष्ट रूप से आर्थिक अभावों, अतिशय नियंत्रण, स्वच्छन्दता आदि कारणों से निम्न-मध्यवर्गीय समाज में अनैतिकता बुरी तरह प्रवेश कर गई है। 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि डॉ० धर्मवीर भारती ने अपने उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' में प्रेम के विभिन्न रूपों का निदर्शन करते हुए उज्ज्वल भविष्य के प्रति आस्था प्रकट की है। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि भविष्य का घोड़ा नवीन समाज को लाएगा और जीवन अधिक सुखी, समृद्ध तथा प्रकाशमय बनेगा। यही व्यक्त करना उनका वास्तविक उद्देश्य भी है।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका