शब्दहीन | हिन्दी कहानी

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शब्दहीन महानगर की व्यस्ततम सड़क,तीव्र गति से भागती गाड़ियां, शहर का शोरगुल कहीं सब्जी की रेडी,कहीं कपड़ा,कहीं किराना,हर कोई अपने जीवन की भाग दौड़ मे

शब्दहीन


हानगर की व्यस्ततम सड़क,तीव्र गति से भागती  गाड़ियां, शहर का शोरगुल कहीं सब्जी की रेडी,कहीं कपड़ा,कहीं किराना,हर कोई अपने जीवन की भाग दौड़ में व्यस्त।किसी के पास भी अवकाश नहीं कि  अपनी व्यस्तताओं की खोह से बाहर झांक कर देखें। हर व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल भाग रहा है।
      
वहीं सड़क के किनारे एक कुत्ते के बच्चे अपनी मां की गोद में जीवन के अपाधापी  और आवश्यकताओं से इतर खेल में खोए हुए हैं।  मां का दूध पीकर पेट भर गया अब उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है। कभी अलसाए हुए अंगड़ाई लेते हैं अधखुले मुंह और अंधे लेते सड़क को झांकते हैं, जैसे सोचते हो कि उल्टा लेते हुए दुनिया कैसे दिखती है। तभी दूसरा पिल्ला  उसकी गोद में चढ़कर गर्दन पर काटने लगता है ',  जैसे कह रहा हो इन मनुष्य को क्या देखते हो मेरे साथ खेलो  जीवन का आनंद यहां  है। वहां तो केवल भाग रहे हैं। किस दिशा में किस ओर?? उन्हें खुद भी नहीं पता …।
   
कभी एक पिल्ला  दूसरे के पीठ पर चढ़ जाता और होने से गर्दन  के बालों को खींचता, कभी पहला  दौड़कर जोर से दूसरे के पेट पर कूदता। उनके पास में लेटी हुई उनकी मां कभी आंखें बंद कर उस आनंद को महसूस करती। कभी लेटे-लेटे आंखें खोल दोनों को निहारती। कभी दोनों पिल्ले मुख्य सड़क की ओर कदम बढ़ाते तो उन्हें रोकती।अपनी मूक भाषा में जैसे उनसे उनके कुछ नाम रखे हो, जैसे उन्हें समझ रखा हो कि वहां नहीं जाना है। 
    
कभी जब वह भोजन की तलाश में जाती है तो वह दोनों ही सड़क के नीचे एक कोने में दुबक  जाते। उनकी दुनिया शब्दहीन अवश्य थी किंतु रंग नहीं उनके काले सफेद स्याह  रंगों में भी अजब आकर्षण विद्यमान था।अगली सुबह भी हर रोज की ही तरह व्यस्त थी आज दोनों की मां जल्द ही भोजन की तलाश में निकलना चाहती थी। लेकिन आज बच्चे भी साथ चलना चाहते थे।  वह बार-बार अपनी नाक से उनको धकेलती,लेकिन वह फिर पीछे आने की जिद करते। इस जिद में जब माँ हारने  लगी  तो वह गुर्रा कर डांटती हुई होले  से झपटी।
  
एक बच्चा तो डरकर दुबक  कर  छिप  गया लेकिन दूसरा कनखियों से अब भी झांक ही रहा था । पहला बच्चा अपने टांगों में अपनी नाक छुपाए बैठ गया जबकि दूसरा उसके पीठ में अपने आधे शरीर को रख अपनी मां को देख रहा था। इधर मां जैसे ही सड़क पार करने लगी  एक बच्चा दौड़कर उसके पीछे आ गया। सड़क पर दौड़ती गाड़ियां यहां से वहां, वह समझ नहीं पा रहा था कि किस दिशा में जाए???दूसरी और मां सड़क के पार ओझल होने की तैयारी में थी ……तभी।

एक जोर की चीख …………। गाड़ी की ……। ……….. पीछे से कुत्ते की भी।कुत्ता बिलबिला उठा …..........।निरीक्षण के लिए गाड़ी रुकी और खिड़की से आदमी ने बाहर कर निकालकर दुनिया भर की गाली दी और आगे बढ़ गया।

शब्दहीन

सड़क पर खून बहने लगा। वह  दर्द से चिल्ला रहा था माँ चीख  सुनकर पीछे भागी  तो उसका ही बच्चा था जो दर्द से कराह रहा  था। सड़क के दूसरी ओर दूसरा बच्चा डर से कापता हुआ उसे भयावह मंजर को देख रहा था।बच्चों की उसे तरफ को आंखों में लिए मन चारों ओर देखने लगे जैसे कह रही हो कोई तो ऐसे बचा लो! आप मानव हो,समर्थ हो,आप चाहे तो इसे बचा सकते हैं।
  
पर अफ़सोस!..... यह मानवो  की दुनिया है यहां किसी को किसी के लिए समय ही कहां है???  कभी पतली सी आवाज निकाल कर अपना दर्द इंसानों तक पहुंचाने का प्रयास करती। कभी अपनी नाक से बच्चे को धकेल कर उसे उठाने का प्रयास करती।कोई उसे दुत्कार कर चला जाता क्योंकि वह बीच रोड में खड़ी थी। कोई दर्द से उसे देखता जो क्षणिक  था। कोई नाक दबाकर भी चला जाता। हर बार हर गाड़ी को उम्मीद से देखती है मां,,केवल निराश ही होती।

तभी एक दुकानदार बाहर निकाल कर आता है, शायद वह थोड़ा दयावान था उसने  बच्चे को देखा..... उसका काफी खून रिस चुका था। अब बच्चे की चीखने की आवाज काफी धीमी हो गई थी। वह उसे बच्चे  को उठाकर रोड के उस किनारे  रख देता है जहां वह रहती थी।एक पल को तो मन को उम्मीद जगी कि शायद यह इंसान मेरे बच्चे को बचा लेगा। लेकिन वह भी टूट गई थी। ठीक वैसे ही जैसे उसकी आवाज के साथ उसके सांसों की डोर टूट रही थी। अभी भी मां अपने बच्चों की तड़प के साथ अपनी आस  बनाए  हुए थी।
  
बच्चों को सड़क में किनारे रखने तक वह अपनी उम्मीद भरी आंखों से उसे ऐसे देख रही थी जैसे यह वह व्यक्ति है जिसके स्पर्श मात्र से उसका बच्चा जी उठेगा। किंतु वह व्यक्ति उसे छोड़कर चला गया। लेकिन वह मां अभी भी उसे उम्मीद भरी नजरों से देख रही थी। कभी वह अपने बच्चों का मुंह चाटती, कभी घाव वाले स्थान को देखती  जहां से खून बह रहा था। कभी दाएं बैठती, कभी बाएं, कभी खड़े होकर उसे निहारती कभी नाक से उसे जगाने का प्रयास करती। उसके पास ही बैठा उसका भाई सूनी आंखों से उसे ऐसे देख रहा था जैसे समय कुछ पीछे चल जाए और वह फिर पहले जैसे उठकर उसके साथ खेले। उसके मन का डर भी झलक रहा था कि अब वह कभी सड़क पार नहीं करेगा।

इधर उसे व्यक्ति के मन में एक बार फिर दया उमड़ आई और  वह एक पैकेट बिस्किट का ले आया उसके मुंह पर डाल गया। वह बिस्किट उसने दूसरे बच्चे को खाने दिया क्योंकि उन्ही  के लिए तो वह भोजन की तलाश कर रही थी। धीरे-धीरे उसे बच्चे  की सांस उखड़ गई। अब दर्द था ना तकलीफ ना कोई कतरा रक्त का ही। बस था तो केवल सड़कों का शोर और ठंडी देह। माँ  को एहसास हो चला था कि उसके संतान नहीं रही है। वह उसे चाटने लगी। उसका मुंह चाट  कर  एक बार फिर जगाने का प्रयास करने लगी। कभी नाक से उसे धकेलती, कभी सांसों को सुघने का प्रयास करती। किंतु वह ठंडा पड़ चुका था पूरी तरह।

मनुष्यों की  दुनिया में आवाजों के संदेश होते हैं,किंतु उस शब्दहीन दुनिया में भी कोई ना कोई माध्यम अवश्य  होता है। जहाँ से सन्देश जाते है। कुछ ही देर में सड़क के किनारे कुत्तों की गस्त होने लगी। कुत्ते बच्चे को सूंघते, फिर मां के पास जाकर उसका मुंह सूंघते, जैसे अपनी भाषा में कुछ कह रहे हों। मां से मिलकर कुछ दूर जाकर बैठ जाते। सड़क की दूसरी ओर कौवो  की गस्त  बढ़ रही थी। कुछ पास के पेड़ों में भी उड़ कर बैठ गए थे। धीरे-धीरे कौवे मृत देह की ओर कदम बढ़ाने लगे। काफी देर तक तो मां उन्हें डरा कर भागने का प्रयास करती रही। जैसे वह  अभी मानसिक रूप से तैयार नहीं थी कि उसके बच्चे के अंतिम यात्रा का समय हो चुका है। जब धीरे-धीरे दर्द का एहसास मन में जमने लगा, तो कुत्तों ने दूसरी दिशा में अपने कदम बढ़ाए। वह सड़क के उसी  छोर  से नीचे उतरते हुए जंगल की ओर ओझल होने का प्रयास करने लगे। उनके पीछे वह मां और बेटा भी हो लिए। एक अंतिम बार उसने अपने मृत  बच्चों को निहारा  और फिर सड़क से ओझल होने लगी। इधर कव्वे तेजी से आए और उसे मृत् देह को अपने पंजे में दबाकर उस दुनिया की ओर ले चले जो शब्दहीन थी किंतु भाव नहीं।उनकी शब्द हीन दुनिया में कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ था और...।


- डॉ चंचल गोस्वामी 
पिथौरागढ़, उत्तराखंड 

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