गुलकी बन्नो कहानी की तात्विक समीक्षा | धर्मवीर भारती

SHARE:

गुलकी बन्नो कहानी की तात्विक समीक्षा धर्मवीर भारती गुलकी बन्नो एक ऐसी औरत की मार्मिक कहानी है जो समाज के उत्पीड़न और अन्याय का सामना करती है। कहानी मे

गुलकी बन्नो कहानी की तात्विक समीक्षा | धर्मवीर भारती


र्मवीर भारती की कहानी गुलकी बन्नो एक ऐसी औरत की मार्मिक कहानी है जो समाज के उत्पीड़न और अन्याय का सामना करती है। कहानी में गुलकी, एक गरीब औरत है जो अपनी रोजी-रोटी के लिए तरकारी बेचती है। वह एक छोटे से शहर या गांव में रहती है जहां बच्चे और अन्य लोग उसे परेशान करते रहते हैं।

कहानी-शिल्प की दृष्टि से श्री धर्मवीर भारती की 'गुलकी बन्नो' कहानी उनकी एक. सफल रचना है। कहानी-शिल्प के प्रमुख आधार कथावस्तु, पात्र अथवा चरित्र-चित्रण, संवाद, देशकाल, वातावरण, उद्देश्य एवं भाषा-शैली की दृष्टि से प्रस्तुत कहानी की संक्षिप्त समीक्षा इस प्रकार है -
 

कथावस्तु 

गुलकी बन्नो कहानी की कथावस्तु सामाजिक है। इसका सम्बन्ध आधुनिक समाज से है। सामाजिक विवादों का अत्यन्त सजीव चित्र प्रस्तुत किया है। समाज के पारस्परिक विवादों के साथ ही नारी के प्रेम एवं पति के उद्दण्ड रूप का नग्न वर्णन इसमें किया है। इस सबके अतिरिक्त कुष्ठ रोगियों के प्रति व्याप्त सामाजिक घृणा का नग्न चित्र भी कहानीकार प्रस्तुत करने में सफल रहा है। भारतीय समाज में वयस्कों का कर्त्तव्य निर्धारण भी किया गया है।
 
पति ही हिन्दू नारी का सर्वस्व है। देखिए -"हाय हमें काहे को छोड़ दियौ। तुम्हरे सिवा हमारा लोक-परलोक और कौन है। अरे हमरे मरै पर कौन चुल्लूभर पानी चढ़ाई ।"पति द्वारा परित्यक्त गुलकी समाज में अत्यन्त निराद्रित होती है, और वह कहीं की नहीं रहती है। वह समाज में अपमानित होती है। जीवन में भयंकर कष्ट उठाने पड़ते हैं। रात में गुलकी सो नहीं सकती और दिन में समाज के ठेकेदार उसे चैन नहीं लेने देते। गुलकी के प्रति बच्चों के कहे गये शब्दों को सुनकर मालूम नहीं पड़ता कि उसकी वेदना कहाँ होगी- 

"मार डाला कुबड़ी को। मार डाला कुबड़ी को।" समझ में नहीं आता कि इस समाज में कोई बुद्धजीवी भी था या नहीं।"
 
कहानीकार गुलकी की यथार्थ स्थिति का वर्णन करते नारी के आदर्श रूप को भी प्रस्तुत करता है। प्रतीत होता है कि धर्मवीर कहानी की नायिका गुलकी बन्नो द्वारा समाज में कुबड़ी का वास्तविक रेखाचित्र प्रस्तुत कर रहे हैं। कहानी के प्रारम्भ की दृष्टि से निम्नलिखित पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं -
 
"गुलकी की उम्र ज्यादा नहीं थी। यही हद से 25-26 वर्ष। पर चेहरे पर झुर्रियाँ आने लगी थीं और कमर के पास से वह इस तरह दोहरी हो गयी थी जैसे 80 वर्ष की बुढ़िया हो। बच्चों ने जब पहली बार उसे मुहल्ले में देखा तो उन्हें ताज्जुब भी हुआ और थोड़ा भय भी।" कहानी का आरम्भ, विकास एवं परिसमाप्ति सभी कलात्मकता से हुए हैं।"
 
गुलकी बन्नो कहानी की तात्विक समीक्षा | धर्मवीर भारती
असहाय अबला के अनुरूप इस रूप चित्रण से कहानी का आरम्भ किसका ध्यान आकृष्ट न करेगा। गुलकी अपने पति द्वारा त्याग देने के उपरान्त मानसिक व्यथा के कारण ही समाज में घर-घर की ठोकरें खाती है। समस्त कथानक इसी के चरित्र-विकास को लेकर चलता है।कहानी का विस्तार नाटकीयता एवं कलात्मकता से होता है। विकास के कई सोपान हैं। गुलकी के समस्त कार्यों में बालक बाधा पहुँचाते हैं। उसकी दुकान को घेघा बुआ उजाड़ देती है। बुआ ही उसे पहले दुकान खुलवाती हैं। निरमल की माँ गुलकी के मन्तव्य से उसके मकान को नष्ट कर देती है। वही उसके मकान को भी खरीद लेती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सत्ती आगे बढ़कर गुलकी की सहायता को अग्रसित होती है।
 
"कभी रुपये पैसे की जरूरत हो तो बताना बहिना।" मुहल्ले के बच्चे अपने मनोविनोद से कथा के विकास में पर्याप्त योग देते हैं। उद्दण्ड एवं अनियन्त्रित बालक कथा के स्वाभाविक विकास में सहयोग देकर कथानक को आगे अग्रसर करते हैं। अपने पति के प्राप्त करने में गुलकी के हृदय में निराशा की भावना सर्व व्याप्त है। उसका मन किसी कार्य में नहीं लगता एवं उसे अपने मान अपमान का कोई भान नहीं है। अपने चरमोत्कर्ष पर कहानी उस अवस्था में पहुँचती है जब उसके जीवन का अवलम्बन मात्र दुकान घेघा बुआ द्वारा नष्ट कर दी जाती है। उसके रहने का भी आश्रय समाप्त हो जाता है। उसके ऊपर ढेर सारा कूड़ा डाल दिया जाता है। उसके और बुआ के मध्य का वार्तालाप दृष्टव्य है-  "इधर हमारा सौदा लगा है।" "ऐ है।" बुआ हाथ चमका कर बोली-"सौदा लगा है रानी साहब का । किरावा देय के दाई हियावा फटत है और टर्राय के दाई नटई में गाना पहिलवान का जोर तो देखो। सौदा लगा है तो हम का करी । नारी तो इहै खुली।" 

जब डाकिया गुलकी के घर वाले का पत्र लाकर देता है तो कहानी के अन्त की सूचना मिलती । असहाय गुलकी की विदा की तैयारी होने लगती है। उसके पिता का घर भी बिक जाता है। सभी मुहल्ले वाले उस बेटी को विदा करके ही अपने कर्त्तव्य को पूरा करते हैं। मुन्ना भाई अपनी बहिन को विदा कर देता है। वह उसके पैर भी छूता है।
 

पात्र एवं चरित्र चित्रण

'गुलकी बन्नो' कहानी में प्रमुख पात्रों की संख्या अधिक नहीं है। पुरुष पात्रों में गुलकी का घर वाला और ड्राइवर साहब ही प्रमुख पात्र हैं। बालकों में मुन्ना का नाम उल्लेखनीय है। मिरवा भी अपना सराहनीय भाग अदा करता है। कथा नायिका गुलकी एक पति परित्यक्ता स्त्री है। जिसके चरित्रोद्घाटन के लिए कथा संविधान के सभी सूत्र संगुम्फित हैं। वस्तुतः प्रस्तुत कहानी सामाजिक यथार्थ चित्र प्रधान है।इसके अन्तर्गत गुलकी की असीम वेदना, सहन शक्ति एवं समाज का निम्नवत घृणित एवं निन्दित स्थिति का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।गुलकी के अतिरिक्त स्त्री पात्रों में घेघा बुआ, मटकी, सत्ती वाली, मुन्ना की माँ और निरमल की माँ के नाम उल्लेखनीय हैं।
 
गुलकी भारतीय समाज में अपने पति द्वारा परित्यक्त महिला है। उसे हिन्दू समाज कितना महान् स्थान देता है, इसे देखकर नियति पर स्वयं उपहास सा आने लगता है। उसकी वयस 25- 26 वर्ष की होगी। कमर से झुक गयी है, अतः चेहरे पर झुर्रियाँ भी आ गयी हैं। वह अस्सी वर्ष की बुढ़िया सी लग रही है। जब पहली बार मुहल्ले में उसे देखा तो लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ। गुलकी इसी मुहल्ले में जन्मी थी। विवाहोपरान्त पति के द्वारा मरा बच्चा पैदा होने पर उसे ऊपर से धकेल दिया जाता है। अब इसके जीवन का निर्वाह भी कठिन है, लेकिन घेघा बुआ उसे अपने चबूतरे पर ही एक दुकान खुलवाकर खड़ा होने का सहारा देती है। लेकिन गुलकी का मन तो कहीं और ही लगा है। वह बालकों द्वारा तंग किये जाने पर भी अपने भाग्य को ही भला-बुरा कहती है। अपने दुर्दिन का प्रभाव उसके मन पर भी पड़ता है, यही नहीं वह अपनी मनःस्थिति का प्रकाशन मटकी द्वारा मूली खाने पर खपच्ची से मारकर करती है। देखिए -
 
"जाओ अपने घर रोओ ! हमारी दुकान पर मरने को गली भर के बच्चे हैं।" उसे अब किसी शक्ति का डर नहीं है- 
"किसने मारा है इसे।" बालक पूछते हैं। "हम मारा है।" कुबड़ी गुलकी ने बड़े कष्ट से होकर कहा- "का करोगे ? हमें मारोगे ?" गुलकी सारे मुहल्ले का उपहास बन गयी थी । बच्चों के शब्दों को देखिए- 
"मार डाला कुबड़ी को मार डाला कुबड़ी को।" गुलकी यह सब देखती है और मुँह फेर लेती है। गुलकी की बुरी दशा का चित्र कहानीकार ने दिग्दर्शित कराया है-
 
"काहे लड़कन के मुँह लगत हो ?" लोगों ने पूछा तो कुछ नहीं बोली। जैसे उसे पाला मार गया हो। उसने चुपचाप अपनी दुकान ठीक की और दाँत से खून पोछा, कुल्ला किया और बैठ गयी। वह शनैः शनैः बालकों में घुलना भी चाहती थी। इसी निमित्त उसने मिरया और मटकी के साथ संगत गाँठ ली थी। यह सहज आसक्ति कहानीकार ने किस सरल भाव से व्यक्त की है- "अकस्मात् शोर गुल को चीरता हुआ बुआ के चौतरे से गीत का स्वर उठा।"
 
गुलकी बैठी- बैठी सब समझ रही थी और जैसे इस निरर्थक घृणा में उसे कुछ रस सा आने लगा था। उसमें आदर्श नारी के बीज हैं और माता का हृदय भी मौजूद है। जब घेघा बुआ गरज कर बोली- "दुर कलमुँहै। अब दिन वित्तौभर के नाहीं ना और पुतिरियन के गाना गावै लगे। न बहन का ख्याल और न बिटिया का । और ए कूबड़ी हम बहूँ से कह देइत हैं कि हम चकला खाना खौले के बरे अपना चौतरी नहीं दिया रहा। हूँह चली हुँआ से मुजरा करावै।"
 
गुलकी ने पानी ऊपर छिटकाते हुए कहा- "बुआ बच्चे हैं। गा रहे हैं। कौन कसूर हो गया।" एक अन्य स्थल पर गुलकी का पावन रूप देखिए- "हाय हमें काहे को छोड़ दियौ। तुम्हरे सिवा हमरा लोक-परलोक और कौन है ? अरे हमरे मरै पर कौन चुल्लू भर पानी चढ़ाई।" आदि । 

सत्ती वाली का चरित्र-चित्रण भी उल्लेखनीय है। उसने यथासमय गुलकी को सहायता दी थी। जब मुहल्ले के बालकों ने उसे अधिक परेशान किया तो सत्ती वाली के शब्द दृष्टव्य हैं- 'अच्छा किया तुमने। मेहनत से दुकान करो। अब कभी थूकने भी न जाना उसके यहाँ । हरामजादा, दूसरी औरत कर ले, चाहे दस और कर ले। सब का खून उसी माथे चढ़ेगा यहाँ कभी आवे तो कहलाना मुझ से किसी चाक से दोनों आँखें निकाल लूँगी।" कितना दीनों के प्रति अगाध स्नेह उसमें है। देखिए- "कभी रुपये पैसे की जरूरत हो तो बताना बहिना।" इसके विपरीत उसका उग्र रूप भी उभर कर सामने आया है- "बुलाया है तो बुलाने दो। क्यों जाय गुलकी ? अब बड़ा ख्याल आया है। इसलिए कि उसकी रखाइल के बच्चा हुआ है तो जाके गुलकी झाड़, बहारू करे, खाना बनाये, बच्चा खिलावे, और वह मरद का बच्चा गुलकी की आँख के आगे रखेल के साथ गुलछर्रे उड़ावे।"
 
आगे अन्य स्त्रियों द्वारा दबाव डालने पर उसका उत्तर देखिए- 
"नहीं छोड़ देगी तो जाय के लात खायेगी ?" 
वह निरमल की माँ के उद्देश्य को भली-भाँति जानती थी। इसलिए तो वह बोली- 
"हाँ! हाँ! बड़ी हिल न बनिये। उसके आदमी से आप लोग मुफ्त में गुलकी का मकान झटकना चाहती है। मैं सब समझती हूँ।"
 
इस प्रकार यदि सत्ती वाली गुलकी के प्रति सहृदय है तो उसमें व्यक्तित्व की स्पष्टता भी है। इसलिए वह तपाक से उत्तर देती है - "खबरदार जो कच्ची जबान निकाल्यो ! तुम्हारा चलित्तर कौन नै जानता। ओ ही छोकरा मालिक।''" जबान खींच लूँगी।" सत्ती गला फाड़कर चीखीं, "जो आगे एक हरूफ कहा ।"
 
उसका चरित्र भी कुछ संदिग्ध है। उसके आते ही सब काँपने लगते ही हैं। घिग्घी बँध जाती है और सब दरवाजा बन्द कर लेते हैं उसमें बड़ा साहस है। वह आदमियों से भी नहीं डरती है। साथ में चाकू भी रखती है। उसके निम्न शब्द देखिए- "यही कसाई है। गुलकी आगे बढ़कर मार दो चपोटा इसके मुँह पर। खबरदार जो कसाई बोला।"
 

परिसंवाद या कथोपकथन

कथोपकथन के माध्यम से कहानी नाटकीय बन पड़ती है। इनसे कहानी सजीव एवं चेतन हो जाती है। संवाद चरित्र विकास में भी सहायक है। संवाद चरित्र विकास में भी सहायक होते हैं। कहानी के संवाद छोटे एवं संख्या में कम होते हैं। बालकों एवं गुलकी के संवादों में विशेष स्फूर्ति के दर्शन होते हैं यथा- 
"किसने मारा है इसे?" 
"हम मारा है।" कुबड़ी गुलकी ने बड़े कष्ट से खड़े होकर कहा-" का करोगे ? हमें मारोगे।" "मारेंगे क्यों नहीं ?" 
मुन्ना बाबू ने अकड़ कर कहा। 
मेवा ने पीछे जाकर कहा- "ए कुबड़ी, ए कुबड़ी, अपना कूबड़ दिखाओ।"

उद्देश्य

कहानीकार ने 'अट्ठारहवीं शताब्दी' के हिन्दू समाज के राजनीतिक और सांस्कृतिक दशा का चित्रण करके दुःखी गुलकी के चरित्र को सौन्दर्य एवं आकर्षण प्रदान करना अपना परम कर्त्तव्य समझा है। प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने गुलकी के माध्यम से हिन्दू समाज में कुबड़ी एवं पति के द्वारा त्यक्त स्त्री की असहाय अवस्था का वर्णन किया है। साथ ही बालक कितने उच्छृंखल होते हैं। वे समाज में कुछ भी करें। उनपर किसी का नियन्त्रण नहीं है। गरीब गुलकी का पतन किस अवस्था तक किया जा सकता है। कोई भी नहीं कह सकता ? यह हिन्दू समाज की वस्तुस्थिति है। वह अपने प्रणय की वेदी पर सब कुछ अर्पित कर देती है।
 

देशकाल तथा वातावरण

देशकाल एवं वातावरण कहानी शिल्प का प्रमुख है। देश का अर्थ स्थान और काल से अभिप्राय है उस समय से जो घटना प्रक्रिया से सम्बद्ध हो। वातावरण का सजीव चित्रण तात्कालिक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक स्थिति के स्पष्ट करने में सहायक होता है। कहानी देशकाल तथा वातावरण की सजीवता से पाठकों के लिए विश्वस्त हो जाती है। कथानक और पात्र जिस परिवेश के लिए जाते हैं वह परिवेश मानो नेत्रों के सामने उतर आता है फिर सामाजिक कहानियाँ तो वातावरण के अभाव में सर्वथा निर्जीव ही रहती हैं। श्री धर्मवीर भारती द्वारा प्रस्तुत कहानी सामाजिक है। गुलकी का चरित्र हिन्दू समाज की स्त्री का एक जीता-जागता चित्र है। कहानी में तत्कालीन धार्मिक दशा का भी चित्र है - 

'अरे बेटा।" बुआ बोली - "भगवान् रहे न। तौन मथुरा पुरी में कुब्जा दासी के लात मारिन तो ओकर कूबर सीधा हुइ गवा। पति तो भगवान् है बिटिया ओके जय देव ।" 

राजनीति की स्थिति देखिए- 
"पक्का कागज लिख गया ?" हाँ, हाँ, रे हाकिम के सामने लिख गया।" स्त्री की दशा देखिए- 
"इसे ले तो जा रहे हैं, पर इतना कह देते हैं, आप भी समझा दें उसे - कि रहना हो तो दासी बनकर रहे। न दूध की न पूत की। हमारे कौन काम की, हर हाँ औरतिया की सेवा करे, उसका बच्चा खिलावे, झाड़-बुहारा करे तो दो रीटी खाय पड़ी रहे। परे कभी उसे जवान लड़ाई तो खैर नहीं। हमारा हाथ बड़ा जालिम है। एक बार कूबड़ निकला, अगली बार परान ही निकलेगा।"
 

भाषा शैली

भाषा ग्रामीण परिवेश का निर्माण करती है। उसमें अपभ्रंश तथा ठेठ ग्रामीण अँचल के शब्दों का प्रयोग किया गया है। इससे स्थानीय वातावरण का निर्माण हुआ है।यथा - मरद, मइया, औरतिया, परान, मूड़ पिराना आदि।
 
उर्दू शब्दावली का बाहुल्य है यथा-तस्वीर, उस्ताद, दुश्मन, ताकत, हद, ताज्जुब आदि इसके अतिरिक्त अंग्रेजी के बहु प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया है यथा-फोनोगिराफ, हिज मास्टर्स वायस, मनीजर, वाईकाट, हन्टर, लैमन जूस आदि।
 
निष्कर्ष
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह कहानी अति सामाजिक है। इसमें श्री धर्मवीर भारती ने पूर्ण कौशल के साथ हिन्दू समाज में भारतीय स्त्री की दयनीय दशा का वर्णन किया है। इसका शीर्षक भी 'गुलकी बन्नो' अत्यन्त समझदारी के साथ रखा गया है।
 
कहानी पाठकों के समक्ष तत्कालीन स्थिति का सजीव चित्रण उपस्थित कर देती है। पाठ वेदना, उपहास, घुटन तथा आँखों में अश्रु बिन्दु को छिपाये कहानी को पढ़ता जाता है तथा कहानीकार की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा भी करता जाता है। यही एक सफल कहानी की वास्तविक कसौटी होती है।गुलकी बन्नो कहानी हमें समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता के बारे में सोचने पर मजबूर करती है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें कमजोर लोगों की मदद करनी चाहिए और उनके अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका