काव्य में अलंकार का स्थान व महत्व

SHARE:

काव्य में अलंकार का स्थान व महत्व अलंकारों को अत्यधिक महत्त्व देने वाले सर्वप्रथम आचार्य भामह आते हैं, जिन्होंने अलंकार सम्प्रदाय की स्थापना की। वे अल

काव्य में अलंकार का स्थान व महत्व


काव्य, मानवीय भावनाओं का एक ऐसा माध्यम है जो शब्दों के जादू से मन को मोहित करता है। यह सिर्फ शब्दों का समूह नहीं होता, बल्कि यह कवि की आत्मा का दर्पण होता है। इस दर्पण को और अधिक चमकदार बनाने में अलंकारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अलंकार शब्दों के ऐसे आभूषण होते हैं जो काव्य को और अधिक सुंदर और आकर्षक बनाते हैं।

जिस प्रकार एक सुंदर वस्त्र को आभूषणों से सजाने से उसका सौंदर्य कई गुना बढ़ जाता है, उसी प्रकार काव्य को अलंकारों से सजाने से उसका प्रभाव और अधिक गहरा होता है। अलंकार काव्य को एक नया आयाम देते हैं और पाठक को एक नए अनुभव का आनंद देते हैं। अलंकारों के प्रयोग से कवि अपनी भावनाओं को अधिक प्रभावशाली तरीके से व्यक्त कर पाता है और पाठक उन भावनाओं को अधिक गहराई से महसूस कर पाता है।

काव्य की आत्मा रस है और अलंकार काव्य-शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि करने के हेतु हैं। आचार्यों ने अलंकारों को वस्त्राभूषण के तुल्य माना है। जिस प्रकार वस्त्राभूषणों से नग्न व्यक्ति का सभ्य संसार में होना सम्भव नहीं है, उसी प्रकार अलंकारों से विहीन काव्य की सत्ता बहुत कम सम्भव है। अलंकारों को काव्य का अस्थिर धर्म कहा गया है। काव्य में अलंकारों का होना अत्यन्त आवश्यक है। भारतीय संस्कृति कभी भी नग्नता की पूजक नहीं रही है। यहाँ पर वस्त्राभूषणों से युक्त किसी नारी या पुरुष में ही सौन्दर्य की कल्पना की गयी है।
 

अलंकारों का काव्य में महत्त्व

अलंकारों के सम्बन्ध में प्रायः लोगों को यह भ्रम होता है कि वे नितान्त बाहरी उपकरण हैं, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। वे वक्ता के हार्दिक ओज के व्यंजक होते हैं। जिस प्रकार प्रसन्न, सुखी रमणी ही अलंकार धारण करती है, उसी
काव्य में अलंकार का स्थान व महत्व
प्रकार कथन का उत्साह होने पर कथन में आलंकारिक शृंगार आता है और कभी-कभी ऐसा स्वाभाविक रूप से भी होता है। अलंकारों के काव्य में महत्त्व के सम्बन्ध में बड़ा विवाद रहा है। इस दृष्टि से आचार्यों के दो वर्ग हैं। एक वर्ग में उन आचार्यों का नाम आता है, जो काव्य में अलंकारों को अत्यधिक महत्त्व देते हैं, जिनमें भामह, दण्डी आदि आचार्यों की गणना की जा सकती है। दूसरे वर्ग में वे लोग आते हैं, जो काव्य में अलंकारों को स्वीकार तो करते हैं परन्तु इनकी आन्तरिक महत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं।
 
अलंकारों को अत्यधिक महत्त्व देने वाले सर्वप्रथम आचार्य भामह आते हैं, जिन्होंने अलंकार सम्प्रदाय की स्थापना की। वे अलंकारों को काव्य में आवश्यक मानते हैं, उनके अनुसार- 'न कान्तमपि निर्भूषं विभाति वनितामुखम्' अर्थात् 'वनिता का मुख सुन्दर होते हुए भी आभूषणों के बिना शोभा नहीं देता है।' हिन्दी में रीतिकाल के आचार्य केशवदास ने भी अलंकारों को विशेष महत्त्व दिया है। वे कहते हैं कि-
 
'जदपि सुजाति सुलक्षणी सुबरन सरस सुवृत्त । 
भूषण बिन न विराजई, कविता वनिता मित्त।।'
 
अलंकारवादी आचार्य पीयूषवर्षी जयदेव ने अपने ग्रन्थ 'चन्द्रालोक' में अलंकारों को बहुत अधिक महत्त्व दिया है। वे अलंकारों के विषय में बहुत अधिक कट्टरपंथी हैं, उन्होंने यहाँ तक कह डाला कि यदि कोई काव्य को अलंकाररहित मानता है, तो अपने को पण्डित मानने वाला वह व्यक्ति अग्नि को उष्णताहीन क्यों नहीं कहता -

'अंगीकरोति यः काव्यं शब्दार्थवन्लङ्कृती । 
असौ न मन्यते कस्मादनुष्णमनलंकृती।।'
 
दूसरे वर्ग में वे आचार्य आते हैं, जो काव्य में अलंकारों को उपर्युक्त स्थान देते हुए उसके अतिशायी महत्त्व को नहीं मानते हैं। आचार्य दण्डी, आचार्य वामन, आचार्य विश्वनाथ अलंकारों को काव्य की शोभा का कर्त्ता या अतिशयता का हेतु मानते हैं। आचार्य मम्मट ने कहा है कि, 'तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि ।'अर्थात् कभी-कभी अनलंकृत भी (अर्थात् प्रायः अलंकृत होना आवश्यक नहीं है), शब्द और अर्थमयी रचना कविता है।
 
'अग्निपुराण' में स्पष्टतः 'काव्यस्फुरदलङ्कारम्' कहा गया है। 'अग्निपुराण' के कर्त्ता का विचार भी अलंकारों के सम्बन्ध में रूढ़िवादी है। अन्यत्र अग्निपुराण में कहा गया है कि- “अर्थालंकाररहिता विधवैव सरस्वती' अर्थात् सरस्वती (कवि-वाणी) अर्थालंकार से रहित होने पर विधवा के समान है। इसमें सन्देह नहीं है कि स्त्री यदि शरीर के अनुकूल वस्त्राभूषण से सजा दी जाये, तो उसका सौन्दर्य निखर जाता है और वह अधिक सुन्दर, मनोहर, प्रभावोत्पादक लगने लगती है। उसी प्रकार कविता भी कामिनी के समान ही है, जो उचित और अनुकूल रूप में सजाये जाने पर अधिक सुन्दर और प्रभावोत्पादक लगेगी।काव्य में अलंकारों का प्रयोग उसी रूप में होना चाहिए, जो काव्य के प्रकृत सौन्दर्य को बढ़ाने में सहायक हो। जब अलंकारों का प्रयोग केवल प्रदर्शन के लिए होने लगता है, तब वह काव्य के स्वाभाविक सौन्दर्य को क्षीण कर देता है।
 
साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने अलंकारों को रसादीनुपकुर्वन्तो अर्थात् रस का उपकारक कहा है। यदि उपमा, उत्प्रेक्षा या अतिशयोक्ति के प्रयोग से काव्य-रस और भी उत्कर्ष को प्राप्त हो तो अलंकारों का प्रयोग सार्थक कहा जायेगा। वस्तु-वर्णन में सौन्दर्य की साधना का यह कार्य अलंकारों द्वारा किस प्रकार किया जा सकता है, इसका उदाहरण कवि विद्यापति, जायसी और सूर की आलंकारिक उक्तियों में देखा जा सकता है। अलंकारों के प्रयोग से साम्य और वैषम्य की अनूठी स्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं, साहित्य के जिज्ञासुओं से यह तथ्य छिपा नहीं है। आलंकारिक चमत्कार से युक्त ये रसात्मक युक्तियाँ श्रेष्ठ काव्य का उदाहरण हैं, जो कि निम्नवत् हैं- 

सुभग सरोवर नयन वै, मानक भरे तरंग । 
आवत तीर फिरावहीं, कालभौंर तेहि संग ।। - जायसी 

सटपटाति-सी ससिमुखी, मुख घूँघट पट ढाँकि । 
पावक-झर-सी झमकि कै, गई झरोखे झाँकि।। - बिहारी
 
मोर मुकुट की चन्द्रकनि यों राजत नन्द-नन्द । 
मनु-ससिसेखर की अकस, किये सेखर सतचन्द ।। - बिहारी
 
'कुन्दन की रंग फीको लगै, झलकै तसि अंगनि चारु गुराई। 
आँखिन मैं अलसानि चितौनि मैं मंजु विलासन की सरसाई ।। 
को बिन मोल बिकात नहिं, 'मतिराम' लहे मुसुकानि मिठाई। 
ज्यों-ज्यों निहारिये नेरे है, नैननि त्यों-त्यों खरी निकरै-सी निकाई।।' -मतिराम 

इस प्रकार काव्य में अलंकारों की सुन्दर और उपयुक्त योजना रस के उत्कर्ष में बड़ी सहायक होती है। रस-सञ्चार काव्य का मुख्य लक्ष्य है। यदि अलंकार इस रस-संचार के आश्रित और सहायक होकर आयें तो काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो जायेगा, इसमें सन्देह नहीं। वे अनिवार्य न होते हुए भी आवश्यक से हैं। कवि की वाणी यदि रसात्मक होने के साथ-साथ सुन्दर रूप से अलंकृत हो तो यह मणिकांचन संयोग है। अलंकारों को हमेशा कृत्रिमता और अस्वाभाविकता से दूर रखना चाहिए। 

काव्य में अलंकारों का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये काव्य को आभूषित करते हैं, भावनाओं को गहराई से व्यक्त करते हैं, पाठक को अधिक गहराई से उतरने में मदद करते हैं, काव्य को अधिक यादगार बनाते हैं और कवि को अपनी भावनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त करने में मदद करते हैं। अतः, काव्य का अध्ययन करते समय अलंकारों को विशेष ध्यान देना चाहिए।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका