कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश | शिवप्रसाद सिंह

SHARE:

कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश शिवप्रसाद सिंह कर्मनाशा नदी को एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है जो मानवता के खिलाफ उठने वाले अंधविश्वासों का

कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश | शिवप्रसाद सिंह


शिवप्रसाद सिंह की कहानी कर्मनाशा की हार भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और सामाजिक कुरीतियों का एक मार्मिक चित्रण है। कहानी में कर्मनाशा नदी को एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है जो मानवता के खिलाफ उठने वाले अंधविश्वासों का प्रतिनिधित्व करती है।

कर्मनाशा नदी के बारे में लोगों में यह विश्वास प्रचलित था कि एक बार नदी में बाढ़ आ जाय तो बिना मनुष्य की बलि लिए लौटती नहीं। नईडीह गाँव ऊँचाई पर था, इसलिए उन्हें भय नहीं रहता था। पिछले साल अचानक जब नदी का पानी नईडीह से जा टकराया तो पाँच बकरों की बलि दी थी, फिर भी एक अन्धी लड़की और एक अपाहिज बुढ़िया बाढ़ की भेंट चढ़ गई।
 
इस वर्ष भादों में फिर पानी उमड़ा। बड़े-बड़े पेड़ उखड़कर बह गये थे लोग घबड़ा रहे थे। ईसुर भगत ने कहा कि बहुत पानी गिरेगा। धन सेरा चाची ने कहा कि गाँव में पाप कर्म होगा तो प्रलय तो होगी ही। उसने बताया कि विधवा फुलवतिया के बच्चा हुआ है। यह न हुआ कि कहीं फेंक देती। यह कहकर वह चली गई। सबकी आँखों में नईडीह का भय था।
 
कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश | शिवप्रसाद सिंह
भैरों पांडे बैसाखी के सहारे अपनी बखरी के दरवाजे में खड़े बाढ़ के पानी को देख रहे थे। वे अपने कच्चे घर को देखते थे। आज से सोलह साल पहले उसके माता-पिता एक नन्हे लड़के को सौंप कर चल बसे थे। पैर से पंगु भैरों पाण्डे ने छोटे भाई को संभाला, पाण्डे के कानों में भी आवाज आई कि फुलबतिया के लड़का हुआ है। पाण्डे ने अपने भाई कुलदीप को बड़े प्यार से पाला था । एक दिन मुखिया जी ने कुलदीप की तन्दुरस्ती की तारीफ कर दी तो पाण्डे ने कहा कि इस लौंडे को दूध भी तो पचता नहीं ।
 
भैरों पांडे दिन भर बरामदे में बैठकर रुई की बिनौले निकालते, तूंमते, सूत तैयार करते और अपनी तकली नचा-नचा कर जनेऊ बनाते और जजमानी करते, पत्रा देखते, सत्यनारायन की कथा बाँच देते और इससे जो कुछ मिलता कुलदीप की पढ़ाई और उसके कपड़े-लत्ते आदि में खर्च हो जाता। कुलदीप कहीं चला गया है। पाण्डे को चैन नहीं है। वह लेटे हुए हैं। और दो वर्ष पहले की बात याद करते हैं जब फुलमती उनके आँगन में तुलसी की वन्दना करने लगी तब कुलदीप की उससे मुलाकात हुई। दोनों मुस्करा दिये। पाण्डे को खड़ा देखकर दोनों घबड़ा गए और फुलमती चली गई। कुलदीप की यह हालत कि वह गुमसुम हो गया और किताब में उसे फुलमती नजर आने लगी। पाण्डे ने उसे बहुत समझाया और फुलमती को भी डाँटा, लेकिन उनका मिलना बंद नहीं हुआ। वह फुलमती को कोसने लगे।
 
समय बीतता गया। कुलदीप भी खुश नजर आता। पाण्डे उसी चारपाई पर लेटे थे। उनका मन दुःखी था। उन्होंने कहा- 'पाण्डे के वंश में कभी ऐसा नहीं हुआ था।' पाण्डे ने रामायण की गुटका निकाली तो उसमें लाल निशान लगा था-

कह सीता भा विधि प्रतिकूला।मिलइन पावक मिटइन सूला ॥
सुनहु विनय मम विटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥
 
पाण्डे की आँखों में आँसू निकल आए और फूलमती के लिए बोले- 'यह चुड़ैल मेरा घर खा गई' - फिर उन्होंने सोचा कि आज उसके बच्चा हुआ है, कहीं यह न कह दे कि यह बच्चा कुलदीप का है। चार-पाँच महीने से कुलदीप भागा है। पहले कई दिनों तक वे जरूर बहुत बेचैन थे, किन्तु समय ने दुःख को भुलाने में मदद की।
 
फागुन का आरम्भ था। मुखिया जी की लड़की की शादी थी। सब लोग खुश थे। बारात आई। द्वार -पूजा की शोभा देखते ही बनती थी। बनारस की पतुरिया नाचने को आई। बाई ने गीत गाया-

नीच ऊँछ कुछ बूझत नाहीं, मैं हारी समझाय, 
ये दोनों नैना बड़े बेदरदी दिल में गड़ि गए हाय ।
 
कुलदीप आया तो उसने बताया कि वह नदी की तरफ चला गया था। पाण्डे ने फिर उसे समझाया कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है। उसे बड़े पुण्य से इस घर में जन्म मिला है। कुलदीप की समझ में कुछ नहीं आया। दोनों मिले रोए ।
 
चैत के महीने में कर्मनाशा उतर गई थी। उसके रेत में चलते हुए फुलमती ने कहा- 'तुम मुझे मझधार में लाकर छोड़ तो नहीं दोगे।' कुलदीप का उत्तर था- 'मैं अपने प्राण दे सकता हूँ, किन्तु... तुमको... कभी नहीं ।

पाण्डे उधर से गुजर रहे थे। रुके और सोचने लगे कि आज तक का सारा प्रयत्न निष्फल गया। फिर सोचने लगे- 'काश फुलमती अपनी ही जाति की होती। कितना अच्छा होता, वह विधवा न होती।' फिर पाण्डे ने कुलदीप को पुकारा, कुलदीप ! सीधे रास्ते पर आ जाओ, अच्छा होगा। तुमने भैरों का प्यार देखा है क्रोध नहीं, जिन हाथों से पाल पोसकर बड़ा किया है, उसी से तुम्हारा गला घोंटते मुझे देर न लगेगी। फिर उसने फुलमती को भी डाँटा ।
 
पाण्डे चारपाई पर पड़े पिछली बातें सोच रहे थे। छाती से सटक कर रामायण गुटका नीचे गिर पड़ी। वह कुलदीप को ढूंढ़ते फिरे लेकिन वह नहीं मिला। रात को उन्हें नींद नहीं आई। कुलदीप की याद सताती रही।
 
शाम को पाण्डे ने घर से बाहर आकर देखा कि नदी की ओर आदमियों की भीड़ खड़ी है। नदी में बाढ़ आने जैसी लग रही थी। लोग फुलबतिया और उसके बेटे की बलि देने की तैयारी कर रहे थे। उसने पाप किया है। पहले तो पाण्डे ने सोचा कि चलो ठीक है 'न रहेगी बाँस न बजेगी बाँसुरी!' फुलमती की माँ रो रही थी। मुखिया ने भैरों पाण्डे से पूछा कि उसकी क्या राय है ? पाण्डे आगे बढ़े। उन्होंने बच्चे को फुलमती की गोद से छीन लिया और बोले - ‘मेरी राय पूछते हो मुखिया जी ? तो सुनो, कर्मनाशा की बाढ़ दुधमुँहे बच्चे और एक अबला की बलि देने से नहीं रुकेगी, उसके लिए तुम्हें पसीना बहाकर बाँधों को ठीक करना होगा... कुलदीप कायर हो सकता है, वह अपने बहू- बच्चे को छोड़कर भाग सकता है। किन्तु मैं कायर नहीं हूँ, मेरे जीते जी बच्चे और उसकी माँ का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता है... समझे।' 

मुखिया ने कहा कि इसने पाप किए हैं, उसका दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा। पाण्डे ने कहा कि पूरा समाज ही कर्मनाशा नजर आता है। वह सबके पाप गिनाते हैं, सबकी बलि दो। इस पर मुखिया चुप हो गया।इस प्रकार फुलबतिया और उसके बेटे की रक्षा हुई। 

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका