शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है

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शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और बाबा रामदेव नगर और उसके जैसी अन्य स्लम बस्तियों के बच्चों के इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाने

स्लम बस्तियों में भी शिक्षा को बढ़ावा देने की ज़रूरत


राजस्थान सरकार जल्द ही राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करने वाली है. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा विभाग की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार राज्य में विभिन्न कैडरों के कुल 3,70,873 पदों में से करीब एक लाख 25 हजार पद खाली हैं. इस प्रक्रिया से राज्य के सरकारी स्कूलों में प्रभावित होती शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. आज भी राज्य में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां शिक्षा की लौ पूरी तरह से जल नहीं सकी है. इनमें ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ शहरी क्षेत्रों में आबाद स्लम बस्तियां भी शामिल हैं. जहां रहने वाले बच्चों विशेषकर किशोरियों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर नहीं मिल पाते हैं.

गुलाबी शहर के नाम से मशहूर जयपुर, न केवल राजस्थान की राजधानी है बल्कि इसे राज्य का दिल भी कहा जाता है. इसे अपनी ऐतिहासिक विरासत को सहेजने और आधुनिक विकास के मिश्रण के लिए भी जाना जाता है. लेकिन इस चकाचौंध के साथ इसका एक दूसरा पक्ष भी है और वह है शहर की स्लम बस्तियां. जहां के निवासियों को बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इसमें शिक्षा एक प्रमुख मुद्दा है. जहां स्कूल की सुविधा नहीं होने से नई पीढ़ी शिक्षा से वंचित रह जा रही है. बाबा रामदेव नगर ऐसी ही एक स्लम बस्ती का उदाहरण है. यहां रहने वाली 16 वर्षीय गीता बताती है कि वह कभी स्कूल नहीं जा सकी है क्योंकि बस्ती में कोई स्कूल नहीं है. सरकारी स्कूल बस्ती के बाहर दूसरी ओर है जहां पहुंचने के लिए भीड़ भाड़ वाले मुख्य सड़क को पार करके जाना होता है. लेकिन माता-पिता दोनों ही दैनिक मज़दूर हैं और सुबह ही मज़दूरी करने निकल जाते हैं. ऐसे में उसे स्कूल पहुंचाने वाला कोई नहीं था. जब वह बड़ी हुई तो पिता ने छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखने का कहकर उसे स्कूल नहीं जाने दिया. जबकि उसके छोटे भाई बहन भी स्कूल नहीं जाते हैं और दिनभर खेलते हैं.

स्लम बस्तियों में भी शिक्षा को बढ़ावा देने की ज़रूरत
वहीं 17 वर्षीय अंजलि बताती है कि पांचवीं तक उसके पिता उसे स्कूल छोड़ने जाते थे, लेकिन इसके बाद उसे भी घर के छोटे भाई बहनों का ख्याल रखने की बात कहकर स्कूल जाना छुड़वा दिया गया. वह बताती है कि सिर्फ वह और गीता ही नहीं, बल्कि इस बस्ती की रहने वाली लगभग सभी लड़कियां ऐसे ही कारणों से या तो कभी स्कूल नहीं जा सकी हैं या फिर पांचवीं से आगे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी हैं. अंजलि कहती है कि यहां परिवारों में शिक्षा के प्रति कोई विशेष उत्साह नहीं है और बात जब लड़कियों की शिक्षा की आती है तो मामला और भी कम हो जाता है. शिक्षा के अभाव के कारण किशोरियां अपने अधिकारों को समझने से भी वंचित रह जाती हैं. जिससे वह यौन उत्पीड़न, बाल विवाह और घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती हैं. वह कहती है कि यदि बस्ती के अंदर स्कूल खुल जाए तो बहुत सारी लड़कियों के पढ़ने का ख्वाब पूरा हो सकता है. 

वहीं 47 वर्षीय राजेश कालबेलिया कहते हैं कि "हम दैनिक मजदूर हैं. प्रतिदिन मजदूरी करने जाते हैं. ऐसे में बच्चों को पढ़ाने का विचार कहां आएगा?" वह कहते हैं कि मेरे पांच बच्चे हैं. सुबह सवेरे घर से निकल जाने के बाद बड़ी बेटी जो 11 वर्ष की है, अपने छोटे भाई बहनों का खयाल रखती है. यदि वह स्कूल जाएगी तो उन छोटे बच्चों को कौन देखेगा? वह कहते हैं कि इस बस्ती में बालिका शिक्षा के प्रति परिवारों की सोच बहुत नकारात्मक है. लड़कियों को पराया धन मान कर उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है. वहीं कई अन्य सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के कारण छोटे बच्चों को स्कूल भेजने की जगह काम पर लगा दिया जाता है. राजेश के अनुसार इस बस्ती में कई परिवार बांस से बने सामान तैयार करते हैं. वह अपने बच्चों को स्कूल भेजने की जगह उन्हें अपने साथ काम सिखाते हैं ताकि यह हुनर अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके.

जयपुर स्थित इस स्लम बस्ती की आबादी लगभग 500 से अधिक है. न्यू आतिश मार्केट मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूरी पर आबाद इस बस्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े समुदायों की बहुलता है. जिसमें लोहार, जोगी, कालबेलिया, मिरासी, रद्दी का काम करने वाले, फ़कीर, ढोल बजाने और दिहाड़ी मज़दूरी करने वालों की संख्या अधिक है. यहां रहने वाले सभी परिवार बेहतर रोज़गार की तलाश में करीब 20 से 12 वर्ष पहले राजस्थान के विभिन्न दूर दराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवास करके आये हैं. इनमें से कुछ परिवार स्थाई रूप से यहां आबाद हो गया है तो कुछ मौसम के अनुरूप पलायन करता रहता है. यहां शिक्षा के साथ साथ पीने का साफ पानी सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. इसका सबसे अधिक प्रभाव किशोरियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर होता है. यहां अधिकतर किशोरियां कुपोषण से ग्रसित हैं. वहीं उन्हें बोझ और पराया धन समझने की प्रवृत्ति भी उनके समग्र विकास में बाधा बन रही है. इस बस्ती में रहने वाली 16 वर्षीय किशोरी सांची कहती है कि अधिकतर घरों में छोटे भाई बहन की देखभाल के नाम पर लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा दी जाती है. लड़कियों को पढ़ने से अधिक घर का कामकाज सीखने पर ज़ोर दिया जाता है. वह कहती है कि यहां 16 वर्ष की आयु तक लड़कियों की शादी हो जाना आम बात है.

2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में साक्षरता की दर 66.11 प्रतिशत दर्ज की गई थी. इसमें पुरुषों में 79.19 प्रतिशत जबकि महिला साक्षरता दर लगभग 52.12 प्रतिशत दर्ज की गई थी. पिछले 13 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़ा होगा. जयपुर, अपने पर्यटन और संस्कृति के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी माना जाता है. यहां कई विश्वविद्यालय स्थापित हैं, जहां न केवल राजस्थान से बल्कि देश के अन्य राज्यों से पढ़ाई के लिए बड़ी संख्या में छात्र आते हैं. लेकिन इसी जयपुर में बाबा रामदेव नगर जैसे स्लम बस्ती के बच्चे गरीबी और अन्य कारणों से शिक्षा से वंचित हैं. ऐसे में इन्हें शिक्षा से जोड़ने की जरूरत है. स्कूलों में बेहतर बुनियादी ढांचे, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अभिभावकों के प्रशिक्षण जैसे उपायों से सुधार से यह संभव हो सकता है. वहीं घर से स्कूल की कम से कम दूरी किशोरियों को स्कूल तक लाने और पढ़ने के उनके ख्वाब को पूरा करने में अहम कड़ी साबित हो सकता है. वास्तव में, शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और बाबा रामदेव नगर और उसके जैसी अन्य स्लम बस्तियों के बच्चों के इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाने की आवश्यकता है. इसके लिए समाज और सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है. (चरखा फीचर्स)



- धीरज गुर्जर
जयपुर, राजस्थान

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