भारत में भिक्षावृत्ति की बढ़ती समस्या पर निबंध

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भारत में भिक्षावृत्ति की बढ़ती समस्या पर निबंध भीख माँगना एक कला है जिसमें निपुण होने के लिए अभ्यास बहुत आवश्यक है। भीख माँगने के अनेक तरीके हैं जैसे

भारत में भिक्षावृत्ति की बढ़ती समस्या पर निबंध


भीख माँगना एक कला है जिसमें निपुण होने के लिए अभ्यास बहुत आवश्यक है। भीख माँगने के अनेक तरीके हैं जैसे-रोकर भीख माँगना, हँसकर भीख माँगना, पागलों वाली हरकत करके भीख माँगना, आँखें दिखाकर भीख माँगना इत्यादि । इन सभी में भीख पाने का सबसे साधारण तरीका दाता के मन में करुणा पैदा करना है। हम भारतीय तो वैसे भी ज्यादा ही कोमल हृदय होते हैं तथा किसी का दुख हमसे देखा नहीं जाता। दूसरी ओर हमारे देश में दान पुण्य को जीवन मुक्ति का मार्ग बताया गया है। अतः हमारे समाज में भिक्षावृत्ति की समस्या तथाकथित दयालु तथा धर्मात्मा लोगों की देन है।
 

भिक्षावृत्ति का अर्थ

भिक्षावृत्ति का शाब्दिक अर्थ है 'भीख माँगने' की प्रवृत्ति' अर्थात् भीख माँगकर जीवनयापन करना भिक्षावृत्ति कहलाता है। भिक्षावृत्ति का सहारा लेने वालों में न मान-सम्मान होता है, न पुरुषत्व और न ही पुरुषार्थ । भिक्षावृत्ति के लिए लोगों के सामने गिड़गिड़ाना, हाथ फैलाना, झूठे सच्चे बहाने बनाकर स्वयं को दीन-हीन दिखाना कोई आसान काम नहीं है। यह काम एक बेहया या बेशर्म व्यक्ति ही कर सकता है या फिर यह कहे कि हीन मनोवृत्ति के लोग ही भीख माँग सकते हैं।

भिक्षावृत्ति का इतिहास

हमारे देश में भिक्षा का इतिहास बेहद पुराना है। प्राचीन काल में भिक्षावृत्ति तथा भिक्षा देने का कार्य पुण्य माना जाता
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था। लोगों का मानना था कि कोई भी अपने दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटना चाहिए। इसका प्रमाण तो रामायण में भी मिलता है, जब सीता माता भिखारी के वेश में आए रावण को दान देने के लिए 'लक्ष्मण रेखा' तक पार कर गई थी। ऋषि मुनियों के आश्रम में ब्रह्मचारी तथा संन्यासी भीख माँगकर ही जीवनयापन करते थे तथा जिसके यहाँ भीख माँगने कोई भी आता था वह स्वयं को धन्य समझता था। अध्ययनशील विद्यार्थी को भिक्षा देना अथवा लेना इसलिए उचित समझा जाता था क्योंकि विधाध्ययन के पश्चात् वह देश की सेवा करेगा। समय के बदलाव के साथ हमारे देश में मुगलों का शासन स्थापित हुआ। मुगलों ने भारतवासियों को लूटा तथा उन्हें निर्धन बना दिया। ऐसी परिस्थितियों में लोगों ने भिक्षावृत्ति को पेट पालने का जरिया बना लिया। इसके पश्चात् हमारे देश पर अंग्रेजों ने शासन किया। उनके शासनकाल में जो व्यक्ति मेहनती तथा परिश्रमी थे तथा जिनमें चाटुकारिता की विधा मौजूद थी, उन्होंने अंग्रेजी की नौकरी करके जीवनयापन किया, परन्तु जो हाथ-पैर नहीं हिलाना चाहते थे उन्होंने भिक्षा माँगना ही अपना पेशा बना लिया। वैसे अंग्रेजों के समय में भिक्षावृत्ति बहुत कम थी क्योंकि अंग्रेज इसके सख्त विरोधी थे। 

इसके पश्चात् सन् 1947 में हमारा देश आजाद तो हो गया, परन्तु अंग्रेज जाते-जाते 'भारत को सोने की चिड़िया' के स्थान पर निर्धनता का वस्त्र पहना गए। वे यहाँ से जाते-जाते धन-सम्पत्ति सब कुछ लूटकर ले गए। भारत पर अरबों रुपयों का विदेशी ऋण हो गया। बहुत अधिक जनसंख्या बेरोजगार हो गई, ऊपर से प्रकृति की मार अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि ने प्रलयकारी दृश्य उत्पन्न कर दिया। परिणामस्वरूप मेहनत-मजदूरी करके रोटी कमानेवाला इन्सान भी सड़क पर आ गया तथा कटोरा लेकर मजबूरी में भीख माँगने लगा। धीरे-धीरे हमारी अर्थव्यवस्था सुधरने लगी परन्तु निकम्मे किस्म के लोगों ने फिर भी भिक्षावृत्ति का दामन नहीं छोड़ा।

भिखारियों के प्रकार

भिखारी अनेक प्रकार के होते हैं। एक तो जन्मजात भिखारी होते हैं अर्थात् जो बच्चे भिखारी के यहाँ जन्म लेते हैं वे आगे चलकर भिखारी ही बनते हैं। इस प्रकार भिखारियों की संख्या बढ़ती जाती है। कुछ भिखारी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, जो देश में छोटी सी विपत्ति आ जाने पर भी कटोरा लेकर भीख माँगने निकल पड़ते हैं। तीसरे प्रकार के भिखारी वे होते हैं जो शारीरिक रूप से अपंग होते हैं या फिर किसी विशेष बीमारी के शिकार होते हैं। अब ऐसे में वे कोई काम तो कर नहीं सकते इसलिए भीख माँगकर ही गुजारा करते हैं। चौथे प्रकार के भिखारी वे होते हैं जो वृद्ध समर्थ परिवार से सम्बन्ध रखते हुए भी अपने प्रियजनों द्वारा परित्यक्त कर दिए जाते हैं। इनमें से कुछ मजबूरीवश भिक्षावृत्ति अपनाने लगते हैं। अब भिक्षा लेने वाला चाहे किसी भी श्रेणी का क्यों न हो, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण विषय है। आजकल तो भिखारियों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हो रही है तभी तो चप्पे-चप्पे पर चाहे रेलवे स्टेशन हो या बस स्टॉप, बाजार, गलियों, घरों, लाल बत्तियों, मेलों-ठेलों, शाही-ब्याह सभी जगह भिखारी दिखाई पड़ते हैं। 

आजकल कुछ खाते-पीते व्यक्ति भी भिखारी का रूप धारण करके दया-करुणा का लाभ उठाकर मुफ्त में धन एकत्रित करके मौज-मस्ती करते हैं, नशा, चरस, गाँजा आदि पीते हैं साथ ही भिक्षा न देने वाले को गालियाँ, बददुआ भी देते हैं, साथ ही लूटपाट भी करते हैं। एक अन्य श्रेणी उन भिखारियों की भी होती है जो अपने घर से भागकर पेशेवर गुण्डों या माफिया गिरोहों के चक्कर में फँसकर भिखारी बना दिए जाते हैं। इनका बहुत शोषण किया जाता है, हाथ-पैर काट दिए जाते हैं साथ ही भिक्षा माँगने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। आजकल इस प्रकार के भिखारियों की संख्या बहुत अधिक है। इन सबके अतिरिक्त भी भीख माँगने के नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं।
 

भिक्षावृत्ति रोकने के उपाय

किसी भी समस्या के कारण बताने के स्थान पर उसका समाधान ढूँढना अधिक आवश्यक है। भिक्षावृत्ति को रोकने के भी कारण खोजने होंगे। वैसे हमारे यहाँ यह कार्य बहुत कठिन है क्योंकि यहाँ के लोग धर्मभीरु हैं। वे किसी को खाली हाथ लौटाकर अपने ऊपर पाप नहीं चढ़ाना चाहते या फिर वे यह भी सोचते हैं कि दो-चार रुपए देने से क्या फर्क पड़ जाएगा। बस यही रवैया भिक्षावृत्ति को बढ़ावा दे रहा है। अतः इसको रोकने के लिए सबसे पहले भिक्षावृत्ति को दण्डनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। भिक्षुओं को पकड़कर उनकी जाँच-पड़ताल करनी होगी। 

शारीरिक रूप से स्वस्थ भिखारियों के लिए कार्य का प्रावधान करना होगा। शारीरिक रूप से अपंग भिखारियों को भी उनकी सामर्थ्य के अनुसार कार्य देने होंगे। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि हमें अपने ऊपर भी रोक लगानी होगी। हमें स्वयं से दृढ़ निश्चय करना होगा कि हम किसी को भी भीख नहीं देंगे वरन् उसे कोई कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि तन्दुरुस्त व्यक्ति को भीख देना पुण्य नहीं पाप है। हम भीख देकर उस व्यक्ति को अकर्मण्य बना रहे हैं तथा समाज में कोढ़ फैला रहे हैं। विद्वानों का कहना है कि दान भी पात्र देखकर देना चाहिए। आदि दान देना ही है तो गरीबों के बच्चों को पढ़ाओं, अनाथ असहायों को भोजन करवाओ या फिर किसी भूखे-लाचार को दान दो। कर्महीन मनुष्य भिक्षा या दान का अधिकारी नहीं हो सकता। 

उपसंहार

जहाँ आज एक ओर हमारा देश प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति के शिखर हैं, वहीं दूसरी ओर कर्महीन मनुष्यों की भी कमी नहीं है, जो दूसरों के आगे हाथ फैलाकर अपना जीवनयापन करते हैं। यह सब देखकर दूसरे देश हमारा मजाक बनाते हैं। हमें दूसरे राष्ट्रों की नजरों में ऊपर उठना है, न ही मखौल का विषय बनना है। भारत में भिक्षावृत्ति सुधार गृहों या मात्र कानूनी रोक से समाप्त नहीं होगी, वरन् भिक्षा माँगने वाले को भी यह दृढ़ संकल्प करना होगा कि जब भगवान ने हाथ-पैर दिए हैं तो काम करके खाना चाहिए न कि दूसरों के रहमोकरम पर आश्रित रहकर पेट भरना चाहिए। भारत में भिक्षावृत्ति एक कोढ़ के समान है जो दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हमें इसको मिल-जुलकर समाप्त करना चाहिए।

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