नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन

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अमर्त्य सेन एक ऐसे भारतीय अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में देश के नाम को रोशन किया है। उन्हें 1998 में अर्थशास्त्र के नोबल

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन


दुनिया भर में योग्यताओं को प्रोत्साहित करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग पुरस्कार दिए जाते हैं। 'नोबेल पुरस्कार' विश्व का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है । यह विश्व की सर्वोत्तम रचना अथवा सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को दिया जाता है। यह पुरस्कार हर वर्ष दिया जाता है। इस दृष्टि से हमारा देश बहुत महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश की महान विभूतियों-गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, हरगोविन्द खुराना, सी.बी.रमन, सुबह्मणयम् चन्द्रशेखर, मदर टेरेसा आदि को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 1998 का नोबेल पुरस्कार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में प्रो. अमर्त्य सेन को प्रदान किया गया है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रो. अमर्त्य सेन प्रथम भारतीय ही नहीं, अपितु पूरे एशिया के प्रथम व्यक्ति हैं।
 

जीवन परिचय एवं शिक्षा

प्रो. अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवम्बर 1933 को शान्ति निकेतन (पश्चिमी बंगाल) में हुआ था। 'शान्ति निकेतन' नामक संस्था की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। अमर्त्य सेन ने स्नातक की परीक्षा कोलकत्ता के 'प्रेसिडेन्सी कॉलेज' से सन् 1953 ई. में पास की थी। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए आप यूरोप चले गए। वहाँ 'कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय' से उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहाँ से लौटकर सन् 1956-58 ई. में 'जटिवपुर विश्वविद्यालय' में अध्ययन शुरू कर दिया। यहीं पर आपको 'डी-लिट्' की उपाधि से विभूषित किया गया। कुछ समय के पश्चात् आपने सन् 1953-1968 तक दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स विभाग में अध्यापन कार्य किया। इसके पश्चात् ऑक्सफोर्ड, हारवर्ड तथा कैम्ब्रिज आदि विश्वविद्यालयों में कई उच्च पदों पर आसीन रहे।
 

कृतियाँ

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन
प्रो. अमर्त्य सेन बहुत बड़े लेखक हैं। उन्होंने लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने 200 से भी अधिक अध्ययन-पत्र लिखे हैं। प्रो. अमर्त्य सेन के कार्य अत्यंत महान एवं सराहनीय हैं। उन्हें स्टॉकहोम के एक समारोह में 10 दिसम्बर 1998 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके लिए उन्हें एक पदक तथा 76 लाख स्वीडिश क्रोनर (लगभग 4 करोड़) रुपए प्रदान किए गए। यह पुरस्कार उनके द्वारा कल्याणकारी अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अनूठे 
लेखन योगदान के लिए दिया गया है। वास्तव में प्रो. सेन ने सामाजिक सिद्धान्त के चयन कल्याण तथा गरीबी की परिभाषा तथा अकाल के अध्ययन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
 
प्रो. अमर्त्य सेन को जब यह नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया तब उनसे किसी पत्रकार ने पूछा- “नोबेल पुरस्कार प्राप्त करके आप कैसा महसूस कर रहे हैं। निःसन्देह यह आपके लिए अति हर्ष का क्षण है।" इसके जवाब में प्रो. सेन ने कहा, “मैं वास्तव में बेहद खुश हूँ, क्योंकि जिस विषय पर मैं और विश्व के अनेक अर्थशास्त्री कार्य कर रहे थे तथा अभी भी कर रहे हैं, उस विषय को आज मान्यता मिली है। यह विषय केवल उन लोगों के लिए ही प्रासंगिक नहीं, जो सुखी तथा सम्पन्न जीवन जीना चाहते हैं, बल्कि उन लोगों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, जिन्हें न तो भर पेट भोजन उपलब्ध है और न ही तन ढकने का कपड़ा तथा जीवन की न्यूनतम सुविधाएँ जैसे पीने का स्वच्छ पानी, सिर के ऊपर छत व चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं।"
 

प्रो. अमर्त्य सेन की उपलब्धियाँ

वे सही अर्थों में गरीबों के मसीहा है। उन्होंने निर्धनता को दूर करने तथा निर्धनता के कारणों जैसे 'अकाल' के बारे में बहुत गहन अध्ययन किया है। उन्होंने उन सिद्धान्तों का खंडन किया है जो अन्न की कमी को ही 'अकाल' का कारण बताते हैं । इसके विरोध में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है, “अकाल ऐसे समय में हुए, जब अन्न की आपूर्ति पिछले अकाल रहित वर्षों से ज्यादा कम नहीं थी। यह सब प्रशासनिक व्यवस्था की असफलता के कारण ही हुआ था। उन्होंने आगे इसे इस प्रकार स्पष्ट किया है कि सन् 1944 ई. के बंगाल अकाल में 30 लाख से अधिक लोग अन्न के अभाव में नहीं मरे थे, अपितु सरकारी तन्त्र की अयोग्यता के कारण काल का ग्रास बने थे।"

अमर्त्य सेन का महत्व

अमर्त्य सेन ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। उनके विचारों ने विकास के बारे में हमारी सोच को बदल दिया है। उन्होंने हमें बताया कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य केवल धन का संचय नहीं होना चाहिए, बल्कि लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना भी होना चाहिए।अमर्त्य सेन भारत का गौरव हैं और उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।

उपसंहार

वास्तव में प्रो. अमर्त्य सेन हमारे देश की महान विभूति हैं। उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर हम सभी भारतीयों का सिर गर्व से ऊँचा हो गया है । 

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