नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य पर हिंदी निबंध

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नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य पर हिंदी निबंध एक लोकतांत्रिक देश में, नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्राप्त होते हैं, जो उन्हें एक स्वतंत्र और सम्मानित ज

नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य पर हिंदी निबंध

किसी भी नगर में रहने वाला व्यक्ति 'नागरिक' होता है। 'नागरिक' शब्द अत्यन्त व्यापक अर्थ रखता है। समाज का सभ्य व्यक्ति ही नागरिक है, जो किसी भी गाँव, शहर या नगर का रहने वाला हो तथा उसे सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। आज का नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है या फिर वह स्वयं भी चुनाव में खड़ा हो सकता है। 18 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले सभी वयस्कों को, चाहे वे शिक्षित हो या अशिक्षित, स्त्री हो या पुरुष, किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो, अपने राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं परन्तु कोढ़ी, दिवालिये, साधु-संन्यासी या फिर मानसिक विक्षप्त व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित रखा गया है। प्रत्येक नागरिक के अधिकारों के साथ कर्त्तव्य भी जुड़े होते हैं, अर्थात् अधिकार एवं कर्त्तव्य अन्योन्याश्रित होते हैं अतः एक जागरुक एवं सभ्य नागरिक को अपने अधिकार पाने की इच्छा के साथ-साथ कर्त्तव्य निभाने की इच्छाशक्ति भी रखनी चाहिए।

एक लोकतांत्रिक देश में, नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्राप्त होते हैं, जो उन्हें एक स्वतंत्र और सम्मानित जीवन जीने में सक्षम बनाते हैं। साथ ही, इन अधिकारों के साथ-साथ कुछ कर्तव्य भी आते हैं, जो उन्हें समाज के प्रति जिम्मेदार बनाते हैं। अधिकार और कर्तव्य एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है।
 

नागरिकों के अधिकार

नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य पर हिंदी निबंध
संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को कुछ अधिकार प्राप्त हैं, जो दो भागों में विभाजित हैं-सामाजिक एवं राजनैतिक । सामाजिक अधिकारों में सर्वप्रथम मनुष्य को जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है। प्रत्येक नागरिक अपनी इच्छानुसार निडर होकर निश्चिंत जीवन जी सकता है। सामाजिक अधिकारों में ही दूसरा अधिकार सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार है। यदि किसी व्यक्ति ने वैध तरीकों से धन एकत्रित किया है तो कोई भी उस धन को उससे नहीं छीन सकता। उसे रहने के लिए घर, खाने के लिए भोजन व पहनने के लिए वस्त्र उचित मात्रा में मिलने चाहिए। हर नागरिक को सामुदायिक जीवन का अधिकार प्राप्त है, वह बालिग होकर अपना मनपसन्द जीवन साथी चुन सकता है। धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र होने के कारण हर व्यक्ति को अपनी मर्जी से कोई भी धर्म अपनाने की सुविधा प्राप्त है। इसके अतिरिक्त उसे अपनी पसंद का कार्य करने का अधिकार प्राप्त है । यदि कोई भी व्यक्ति बेकारी झेल रहा है तो शासन की ओर से उसको उसकी योगयता के आधार पर रोजगार मिलना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को निःसंकोच अपनी बात कहने का भी अधिकार है।

राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्गत प्रत्येक व्यस्क स्त्री-पुरुष को मत देने का अधिकार प्राप्त है । वह अपनी योग्यता के आधार पर किसी भी पद पर शासन कर सकता है। इस प्रकार एक राष्ट्र कितना विकसित, उन्नत एवं समृद्ध है, इस बात का पता उस राष्ट्र के नागरिकों को प्राप्त अधिकारों से चलता है। 

नागरिकों के कर्त्तव्य

भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को यदि अनगिनत अधिकार दिए हैं, तो उसके कुछ कर्त्तव्य भी निर्धारित किए हैं, जो निम्नलिखित हैं- 
  1. प्रत्येक नागरिक को देश के कानून की रक्षा एवं सम्मान करना चाहिए तथा सरकारी कानूनों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। 
  2. प्रत्येक नागरिक को संविधान तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान तथा अन्य राष्ट्रचिह्नों का पूर्ण सम्मान करना चाहिए। 
  3. हिंसा से दूर रहते हुए सार्वजनिक सम्पत्ति जैसे पार्कों, विद्यालयों, उद्यानों, सड़कों, ऐतिहासिक इमारतों आदि की सुरक्षा करनी चाहिए। 
  4. भारत की प्रभुता, एकता एवं अखण्डता की रक्षा करनी चाहिए। 
  5. एक जागरुक नागरिक की भाँति अपने मत का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। 
  6. कर चोरी कानूनन अपराध है इसलिए कर सही समय पर भरना चाहिए। 
  7. वन, नदी, झील, वन्य प्राणी तथा प्राकृतिक सौन्दर्य को बचाकर रखने की कोशिश करनी चाहिए। 
  8. कोई भी व्यक्ति चोरी, डकैती या अन्य कोई गलत कार्य कर रहा है, तो उसकी सूचना पुलिस को देनी चाहिए।
  9. भारतीय संस्कृति एवं स्वराष्ट्र की रक्षा हेतु सदा तत्पर रहना चाहिए। 

अधिकारों व कर्त्तव्यों का समुचित समन्वय

हम सभी सामाजिक प्राणी हैं तथा समाज अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के समुचित प्रयोग द्वारा ही विकास की राह पर अग्रसर हो सकता है। अधिकार तथा कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू है, एक रात है तो दूसरा दिन अर्थात् दोनों का अस्तित्व एक दूसरे में निहित है। अधिकार की चेष्टा से पूर्ण कर्त्तव्य बोध होना अत्यावश्यक है। महात्मा गाँधी ने कहा भी था कि जो व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों को ठीक प्रकार से निभाता चलता है, अधिकार उसे अपने आप मिल जाते हैं। अधिकारों के सुन्दर एवं आकर्षक संसार की शोभा कर्त्तव्यों से ही है। जब हम अपना कर्त्तव्य निभाते हैं तो हमें आत्मिक शान्ति मिलती है जिससे हमारी ही भलाई होती है। 'दूसरों का कर्त्तव्य मेरा अधिकार तथा मेरा कर्त्तव्य दूसरों का अधिकार' यह बात अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के परस्पर सम्बन्ध को भली भाँति स्पष्ट करती है।
 

आदर्श नागरिक के गुण

नागरिक तो हम सभी हैं परन्तु आदर्श नागरिक बनने के लिए कुछ गुणों का होना अति आवश्यक है। विनम्र, सहनशील, परिश्रमी, निष्ठावान, कर्त्तव्यपरायण, दानशील, मृदुभाषी, सहयोगी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति ही आदर्श नागरिक कहला सकता है। आदर्श नागरिक की बुद्धि चमत्कारिक होनी चाहिए। आदर्श नागरिक को ईर्ष्या, क्रोध, वैर-भाव, बदले की भावना जैसे दुर्गुणों से अपने आप को दूर रखना चाहिए। सीधा तथा सच्चा आदर्श नागरिक न केवल अपने नगर के लिए, अपितु अपने धर्म, जाति, समाज व राष्ट्र के लिए गौरव का प्रतीक होता है। आदर्श नागरिक धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग तथा वर्ण भेदभाव को न मानते हुए सभी के साथ विश्व-बन्धुत्व तथा मैत्री भाव रखता है । वह केवल कहता नहीं, अपितु उस पर अमल भी करता है। 

उपसंहार 

राज्य के अधिकार ही नागरिकों के कर्त्तव्य है तथा नागरिकों के अधिकार ही राज्य के कर्त्तव्य हैं। यदि राज्य तथा सरकार अपने कर्त्तव्यों का भली-भाँति पालन करेंगें तो नागरिक भी अपने अधिकारों का समुचित प्रयोग कर सकेंगे एवं यदि नागरिक अपने कर्त्तव्यों को ठीक से पूरा करेंगे तो राष्ट्र भी उन्नति करेगा। ऐसा होने पर ही भारतवर्ष जैसे प्रजातान्त्रिक देश में सुख एवं समृद्धि का वातावरण होगा।

एक सच्चा नागरिक वह होता है जो अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए अपने कर्तव्यों का भी पालन करता है। अधिकार और कर्तव्य दोनों ही एक लोकतांत्रिक समाज के लिए आवश्यक हैं। जब नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हैं और उनका पालन करते हैं, तभी एक स्वस्थ और समृद्ध समाज का निर्माण संभव होता है।

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