किशोरियों की शिक्षा और उनका भविष्य

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पंचायत की ओर से लगातार वन विभाग से समन्वय बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि इस नदी पर पुल का निर्माण हो जाये और गांव वालों की एक प्रमुख समस्या का न

पुल की कमी लड़कियों के स्कूल जाने में बाधा बन रही है


मारे गांव से राजकीय इंटर कॉलेज सैलानी मात्र एक किमी की दूरी पर है, जहां गांव की लगभग 20 से 25 लड़कियां पढ़ने जाती हैं. लेकिन बरसात के मौसम में हम लगभग दो-दो महीने कॉलेज नहीं जा पाती हैं क्योंकि हमारे गांव और इंटर कॉलेज के बीच एक नदी है जिस पर कोई पुल नहीं बना हुआ है. अन्य महीनों में तो इसमें पानी बहुत कम बहता है, जिसे हम किसी प्रकार पार कर लेते हैं. लेकिन बरसात के महीने में यह नदी विकराल रूप धारण लेती है. इसमें पानी का अत्यधिक बहाव होता है जिसकी वजह से इसे पार करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. अगर इस पर पुल बना होता तो बारिश के दिनों में भी हमारा कॉलेज नहीं छूटता." यह कहना है 17 वर्षीय किशोरी रजनी का, जो उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से 54 किमी और गरुड़ ब्लॉक से करीब 28 किमी दूर लगतीबगड़िया गांव की रहने वाली है.

रजनी कहती है कि कई बार तो जब बरसात नहीं होती है तो उस समय भी हमें नदी के बीच से गुज़र कर जाने में डर लगता है क्योंकि नदी के अंदर चिकने पत्थर होते हैं जिससे फिसलने का डर बना रहता है. आसपास जंगल होने के कारण अक्सर पानी के अंदर सांप होते हैं, जिसका काटने का डर भी रहता है. एक बार नदी पार करते हुए गांव की एक लड़की को अचानक सांप ने काट लिया था. जिससे बड़ी मुश्किल से उसकी जान बचा पाये थे. वह कहती है कि हम गांव की किशोरियों को अपने जीवन में पढ़ाई को लेकर बहुत संघर्ष करना पड़ता है. एक ओर जहां सामाजिक जागरूकता की कमी और अन्य परिस्थितियों के कारण हमें पढ़ने से रोका जाता है वहीं दूसरी ओर ये पुल न होने से रुकावट और अधिक बढ़ जाती है. अगर इस नदी पर एक छोटा सा पुल बन जाता तो शायद हमें इतनी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता. गांव की एक अन्य 16 वर्षीय किशोरी तानिया बताती है कि पिछले वर्ष स्कूल की अर्धवार्षिक परीक्षा देने जाते समय वह नदी में पैर रखते ही फिसल गई, जिससे उसे बुरी तरह चोट लगी और वह उस दिन परीक्षा देने भी नहीं जा सकी. वह कहती है कि हल्की वर्षा होने पर भी मम्मी पापा हमें स्कूल जाने से मना कर देते हैं क्योंकि नदी के पत्थर पर फिसलने का जोखिम बहुत बढ़ जाता है.

पुल की कमी लड़कियों के स्कूल जाने में बाधा बन रही है
2011 की जनगणना के अनुसार लगतीबगड़िया गांव की आबादी लगभग 600 है जबकि साक्षरता की दर 60 प्रतिशत के आसपास है जिसमें महिलाओं की तुलना में पुरुषों की साक्षरता दर अधिक दर्ज की गई है. वैसे तो इस गांव में अन्य कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव है लेकिन गांव वालों के लिए पुल का नहीं होना सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है. 35 वर्षीय दीपा देवी कहती हैं कि हमारे गांव के आसपास जितने भी गांव हैं, सब जगह नदियों पर पुल बने हुए हैं या फिर छोटे-छोटे डैम बने हैं, जिससे गांव वालों को किसी भी मौसम में कहीं भी आने जाने में असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है. बस एक हमारा ही एक गांव है जहां अभी तक पुल नहीं बना है. इसके न होने की वजह से हमें घर के लिए राशन लाने में भी बहुत दिक्कत होती है. राशन को सिर पर रखकर नदी पार करना बहुत मुश्किल होता है. मन में डर रहता है कि कहीं पैर फिसल गया तो हमारा सारा राशन पानी में बह जाएगा, बारिश के दिनों में कैसे जान जोखिम में डाल कर इस नदी को पार करते हैं यह केवल लगतीबगड़िया गांव के लोग ही समझते हैं. इस संबंध में कई बार पंचायत की सभा में यह बात उठी है लेकिन अभी तक इस नदी पर सभी को पुल बनने का इंतज़ार है.

गांव की एक अन्य महिला 25 वर्षीय पूजा अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि 'जब मैं गर्भवती थी तो नदी को पार करके अपना चेकअप और अल्ट्रासाउंड करवाने जाने के लिए मुझे बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. नदी को पार करने में हर समय डर लगा रहता था कि कहीं मेरा पैर फिसल न जाए और मैं गिर न जाऊँ. मेरे लिए बहुत मुश्किल और मानसिक रूप से डरा देने वाला समय गुज़रा था. यदि इस नदी पर पुल बना होता तो मुझे मानसिक रूप से इतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ती. वह कहती हैं कि अभी भी हमारे लिए समस्या ख़त्म नहीं हुई है. नवजात बच्चे के टीकाकरण के लिए इस नदी को पार कर अस्पताल जाना बहुत बड़ी चुनौती है. हाल के दिनों में अक्सर बारिश हो जाने की वजह से मैं बच्चे का समय पर टीकाकरण नहीं करा पाई.

गांव के 85 वर्षीय बुजुर्ग उमराव सिंह दोसाद कहते हैं कि पुल बनने का इंतजार करते करते मेरी सारी उम्र निकल गई, लेकिन आज तक इस नदी पर पुल का निर्माण नहीं हो सका है. कितने ही सरपंच और ग्राम प्रधान बदल चुके हैं लेकिन पुल की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. वह बताते हैं कि साल 2016 में गांव वालों के सामूहिक प्रयास से इस नदी के ऊपर पगडंडी जैसा एक पुल बनाया गया था. लेकिन वर्षा के दिनों में नदी के तेज़ बहाव के आगे वह पगडंडी ठहर नहीं पाई और बह गई. तब से लेकर अभी तक हम गांव वाले पुल की समस्या से जूझ रहे हैं. उमराव सिंह सरकार से गुजारिश करते हुए कहते हैं कि हमने तो अपनी जिंदगी ऐसे ही काट ली है, लेकिन पुल की कमी से कहीं गांव की आने वाली पीढ़ी विशेषकर लड़कियां स्कूली शिक्षा से वंचित न रह जाएं.

इस संबंध में गांव के ग्राम प्रधान कैलाश सिंह भी मानते हैं कि यहां पुल न होना एक बड़ी समस्या है. जिससे गांव वालों का जीवन प्रभावित हो रहा है. लोगों को आने जाने में असुविधा हो रही है और बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है. वह कहते हैं कि इस पुल के निर्माण में दो सबसे बड़ी बाधा है. एक ओर जहां पंचायत के पास इसके निर्माण के लायक पर्याप्त बजट नहीं है, वहीं दूसरी ओर इस नदी की भूमि उत्तराखंड वन विभाग के अंतर्गत आती है. जिससे स्वीकृति प्राप्त एक लंबी और जटिल कागज़ी प्रक्रिया है. कैलाश सिंह कहते हैं कि इसके बावजूद पंचायत की ओर से लगातार वन विभाग से समन्वय बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि इस नदी पर पुल का निर्माण हो जाये और गांव वालों की एक प्रमुख समस्या का निवारण हो सके. इस समय यहां पुल का निर्माण न केवल गांव की ज़रूरत है बल्कि किशोरियों की शिक्षा और उनका भविष्य भी इस पर निर्भर है. (चरखा फीचर्स)


- करीना दोसाद
गरुड़, उत्तराखंड

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