रोजगार की कमी से जूझता कालबेलिया समुदाय

SHARE:

कालबेलिया जनजाति की सर्वाधिक आबादी राजस्थान के पाली जिले में है. अजमेर जिला और इसके आसपास के गांवों में भी इनकी बड़ी संख्या में आबादी पाई जाती है. इसमे

रोजगार की कमी से जूझता कालबेलिया समुदाय


मारे देश में सदियों से विभिन्न जातियां और समुदाय निवास करती हैं. यह देश के अलग अलग राज्यों में स्थाई रूप से अपनी पहचान और संस्कृति के साथ फल फूल रही हैं. अर्थव्यवस्था के विकास में भी इनमें से सभी का अपने अपने स्तर पर योगदान होता है. लेकिन कुछ समुदाय ऐसे भी हैं जिनकी अपनी संस्कृति तो है परंतु यह स्थाई रूप से कहीं भी निवास नहीं करते थे. ऐसे समुदाय को घुमंतू या खानाबदोश समुदाय के रूप में पहचान मिली. हालांकि समय बदलने के साथ यह समुदाय भी देश के अलग अलग राज्यों में स्थाई रूप से बसने लगा है. लेकिन घुमंतू पहचान होने के कारण इसके सामने कई चुनौतियां भी हैं. एक ओर जहां इनकी स्थाई पहचान नहीं बन सकी है, वहीं रोज़गार इस समुदाय का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

राजस्थान का कालबेलिया समुदाय भी इन्हीं में एक है. जिसमें आज भी शिक्षा और रोज़गार एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है. यह समुदाय राज्य के अन्य ज़िलों के साथ साथ अजमेर से करीब 11 किमी दूर नाचनबाड़ी गांव में भी बड़ी संख्या में आबाद है. घूघरा पंचायत स्थित इस गांव में लगभग 500 घर है, जहां अधिकतर कालबेलिया समुदाय की बहुलता है. इस समुदाय की सुंदर देवी बताती हैं कि उनके चार बेटे हैं. सभी का अपना परिवार है. लेकिन किसी के पास भी रोज़गार का स्थाई साधन नहीं है. वह सभी मज़दूरी करने प्रतिदिन अजमेर शहर जाते हैं. कभी उन्हें काम मिलता है तो कभी पूरे दिन खाली बैठ कर चले आते हैं. कभी कभी उनके बच्चे स्थानीय चूना भट्टी या खेतों में काम कर आय का माध्यम सृजित करते हैं. वह कहती हैं कि बेटों का स्थाई रोज़गार नहीं होने के कारण घर में अक्सर आर्थिक कठिनाइयां आती हैं. हालांकि उन्होंने घर में कुछ बकरियां और मुर्गियां पाल रखी हैं जिसका दूध और अंडे बेचकर घर में राशन की व्यवस्था हो जाती है. लेकिन यह स्थाई रूप से रोज़गार का हल नहीं है. सुंदर देवी के अनुसार उनके चारों बेटे पांचवीं से आगे पढ़ नहीं सके है. ऐसे में उनके लिए बेहतर रोज़गार का मिलना भी कठिन है.

रोजगार की कमी से जूझता कालबेलिया समुदाय
वहीं 62 वर्षीय कांता देवी बताती हैं कि उनका बेटा स्थानीय चूना भट्टी में काम करने जाता है. जहां उसे दस हज़ार रूपए मासिक वेतन मिलता है. लेकिन इससे घर का महीने भर का खर्च पूरा नहीं हो पाता है. इसलिए वह छुट्टी के दिन खेतों में मज़दूरी भी करने निकल जाता है. वह बताती है कि उनके पति सांप पकड़ने का काम करते हैं. आसपास के गांवों में जब किसी घर से सांप निकालना होता है तो लोग उन्हें बुलाते हैं. इस काम में उन्हें अच्छी रकम और खाने पीने का सामान भी मिलता है, जिससे घर में राशन की पूर्ति हो जाती है. वह बताती हैं कि उनका बेटा पांचवीं तक पढ़ा हुआ है. इस आधार पर उसे कहीं भी रोज़गार नहीं मिल रहा है. कांता देवी कहती हैं कि अच्छा रोज़गार प्राप्त करने के लिए उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती है जबकि अभी भी कालबेलिया समाज में शिक्षा के प्रति पूरी तरह से जागरूकता नहीं आई है. स्वरोज़गार के संबंध में बात करने पर कांता देवी कहती हैं कि वह लोग आर्थिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं कि खुद का कोई रोज़गार शुरू कर सकें.

इसी समुदाय की 19 वर्षीय सूरमा कहती है कि उसके पति स्थानीय मार्बल फैक्ट्री में काम करते हैं. जहां उन्हें बहुत कम मज़दूरी मिलती है. परिवार का किसी प्रकार गुज़ारा चलता है. कई बार घर में राशन व्यवस्था करने के लिए वह अपनी सास के साथ शहर में फेरी लगाने (भिक्षा मांगने) निकल जाती है. वह कहती है कि पर्व त्योहारों के समय वह अजमेर के संभ्रांत इलाकों में जाकर फेरी लगाती है. जहां से उसे अक्सर आटा, चावल, कपड़े और कुछ पैसे मिल जाते हैं. जिससे परिवार का गुज़ारा चलता है. इसके अतिरिक्त प्रत्येक शनिवार को भी वह अपनी सास के साथ अजमेर शहर के आसपास के इलाकों में फेरी लगाने जाया करती है. सूरमा कहती है कि जिस ज़मीन पर उसका घर बना है वह अस्थाई है. उनके पास ज़मीन का कोई पट्टा नहीं है. जिस पर वह खेती कर फसल उगा सकें.

सूरमा के अनुसार विभिन्न सामाजिक कारणों से कालबेलिया समाज में शिक्षा के प्रति अभी भी जागरूकता बहुत कम है. परिवार पढ़ने से अधिक रोज़गार करने पर ज़ोर देता है. जिससे इस समाज के युवाओं में शिक्षा के प्रति गंभीरता नहीं होती है. आगे चलकर यही उनके विकास में रुकावट बन जाता है. उनके लिए रोज़गार के बेहतर अवसर समाप्त हो जाते हैं. वह कहती है कि यदि कालबेलिया समाज में शिक्षा के प्रति गंभीरता आ जाए तो न केवल बहुत से युवाओं का जीवन संवर जायेगा बल्कि उनके सामने रोज़गार के कई विकल्प खुल जायेंगे. दरअसल कालबेलिया सदियों से एक घुमंतू समुदाय के रूप में दर्ज रहा है. एतिहासिक रूप से इन्हें सांप पकड़ने वाला समुदाय माना जाता है. यह एक जगह स्थाई निवास की अपेक्षा गांव के बाहर खुले मैदानों या चरागाहों में अपना पड़ाव डाला करते थे. कालांतर में इस समुदाय के कुछ परिवार राजस्थान के विभिन्न ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थाई रूप से आबाद होने लगे.

वर्तमान में, कालबेलिया जनजाति की सर्वाधिक आबादी राजस्थान के पाली जिले में है. अजमेर जिला और इसके आसपास के गांवों में भी इनकी बड़ी संख्या में आबादी पाई जाती है. इसमें नाचनबाड़ी गांव भी प्रमुख है. इसके अतिरिक्त सरदार सिंह की ढाणी, किशनगढ़, काला तालाब, जुणदा रूपनगर और अराई में भी कालबेलिया समुदाय की एक बड़ी संख्या आबाद है. वर्तमान में इस समुदाय में साक्षरता की दर कम है. वहीं सरकार की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाने के बावजूद रोज़गार के मामले में इस समुदाय को अभी भी काफी विकास करने की आवश्यकता है. इसे सरकार और प्रशासन के साथ मिलकर एक प्रभावी भूमिका निभाने की ज़रूरत है. (चरखा फीचर)



- संतरा चौरठिया
अजमेर, राजस्थान

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका