प्लेटो की काव्य विषयक अवधारणा की विवेचना

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प्लेटो की काव्य विषयक अवधारणा की विवेचना प्लेटो प्राचीन यूनानी दार्शनिक और विचारक काव्य के प्रति एक जटिल दृष्टिकोण रखते थे उन्होंने काव्य को अनुकरण

प्लेटो की काव्य विषयक अवधारणा की विवेचना


प्लेटो, प्राचीन यूनानी दार्शनिक और विचारक, काव्य के प्रति एक जटिल दृष्टिकोण रखते थे। उन्होंने काव्य को "अनुकरण का अनुकरण" माना, जिसका अर्थ है कि यह वास्तविकता का तीसरा स्तर प्रतिनिधित्व करता है।

प्लेटो का जीवन परिचय 

पाश्चात्य काव्यशास्त्र के आदि आचार्य प्लेटो माने गये हैं। प्लेटो का समय 427 ई. पू. से 347 ई.पू. माना गया है। प्लेटो वास्तव में एक दार्शनिक थे। अपने युग में अन्य चिन्तकों के समान उन्होंने साहित्य के साथ-साथ जीवन के अन्य पक्षों पर भी चिन्तन किया है। अपनी दार्शनिक चेतना के अनुरूप उन्होंने सृष्टि और जीवन के विविध प्रश्नों पर विचार करते हुए परम सत्य की परिकल्पना की और इसी तारतम्य में उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि परम सत्य की प्राप्ति में काव्य कहाँ तक बाधक अथवा साधन होता है। स्पष्ट है कि उक्त विचारधारा के अनुसार वही काव्य स्वीकार्य होगा, जो परम सत्य की प्राप्ति में सहायता देगा। दूसरी ओर यदि काव्य अपनी तन्मयता में व्यक्ति को मूल या वास्तविक सत्य से दूर ले जाता है, तो वह प्राह्य न होकर बिल्कुल त्याग देने योग्य वस्तु माना जायेगा । 

स्पष्ट है कि प्लेटो के चिन्तन में मूलतः परम सत्य की परिकल्पना प्रमुख है। उनकी दृष्टि मूलतः काव्य पर केन्द्रित नहीं है। उनका काव्य सम्बन्धी विवेचन आनुषंगिक है और उनके चिन्तन की व्यवस्था में उसका प्रमुख स्थान है। इसी कारण कुछ विद्वानों का मत है कि प्लेटो में काव्यशास्त्रीय विद्वान् का रूप प्रधान नहीं है, फिर भी प्लेटो ने काव्य के विषय में जिन समस्याओं को प्रस्तुत किया है वे काव्य की महत्वपूर्ण एवं मूल समस्यायें हैं। वे समस्यायें आज की आलोचना के समक्ष भी चुनौती के रूप में प्रस्तुत हैं तथा आज का समीक्षक भी उन समस्याओं से निरन्तर जूझ रहा है। प्लेटो के काव्य सम्बन्धी विवेचन का महत्व इसी बात में निहित हैं कि प्लेटो के चिन्तन में उनका स्थान गौण होते हुए भी वह काव्य की मूल एवं बुनियादी समस्याओं को उभारता है तथा हमें उन समस्याओं के विषय में सोचने हेतु प्रेरित करता है।
 
प्लेटो यूनान के विचारकों में अपना अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्लेटो का साहित्य 'प्लेटो से सेवा' नाम से प्रकाशित हुआ। प्लेटो ने जो कुछ भी लिखा है सुकरात तथा उसके शिष्यों के संवाद के रूप में लिखा है और उसी के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए हैं। जिस संवाद में जिस विषय की या जिस शिष्य की प्रधानता है, उसी के नाम से उस वार्तालाप का नामकरण किया गया है। 'रिपब्लिक', 'एपौलोजी', 'फ्राइड्स', 'क्रेटाइलस' आदि उसके प्रसिद्ध राजनीतिक ग्रन्थ हैं। प्लेटो ने तत्वदर्शन, नीतिदर्शन, प्रजातन्त्र, साहित्य, कला आदि अनेक विषयों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। उसके ये विचार इन ग्रन्थों में यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं।
 

प्लेटो की काव्य विषयक अवधारणा

काव्य मानव-जीवन की विशिष्ट एवं प्रभावशाली उपलब्धि है । प्राचीन यूनान में कवि के साथ-साथ कविता का पाठ करने वालों की भी परम्परा पाई जाती थी, विशिष्ट समारोहों में राजदरबारों में या सभाओं में उत्कृष्ट काव्य के अंशों को पढ़ा जाता था। वे श्रोताओं को गम्भीर रूप से प्रभावित करते थे, इसलिए उन्हें भी कवि के समान ही विशिष्ट शक्ति सम्पन्न माना जाता है ।

प्लेटो की दृष्टि में काव्य प्रकृति की एक अनुकृति है और प्रकृति स्वयं विचार की अनुकृति है। इस प्रकार काव्य का विषय प्लेटो की शब्दावली में सत्य से बहुत दूर है। इसके साथ ही प्लेटो ऐसे काव्य को भी काव्य मानते हैं, जो व्यक्ति में सद्बुद्धि को सम्पुष्ट करता है। ऐसा काव्य ही जन-सामान्य के लिए प्रेरणास्पद हो सकता है तथा उसकी सामाजिक उपयोगिता उसे आदर्श काव्य का स्वरूप प्रदान करती है।
 
प्लेटो के अनुसार काव्य की सत्ता सापेक्ष है। उनके अनुसार काव्य का महत्व इस बात पर निर्भर करता है, कि वह जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने में कहाँ तक सहायक सिद्ध होता है। प्लेटो ने काव्य के सापेक्ष विवेचन की पद्धति को प्रारम्भ किया और यह पद्धति आधुनिक काल तक चली आयी है। 

नीतिवादी एवं मार्क्सवादी काव्य दृष्टियों की विवेचना पद्धति की बुनियादी विशेषता का यही रूप सापेक्षतावादी दृष्टि है, जिसे काव्य में अपनाकर कवि अपने कृतित्व को व्यापकता प्रदान करता है। प्लेटो कविता को सामाजिक कसौटी पर रखते हुये यह घोषणा करते हैं, कि सामाजिक न्याय-नियम की उपेक्षा करके कोई कविता सिद्ध नहीं की जा सकती। प्लेटो के मत में 'उपयोगिता' ही कविता की प्रमुख कसौटी है, 'सौन्दर्य' नहीं। दार्शनिक एवं सुधारवादी समीक्षक के रूप में महान् एवं शाश्वत सत्य की खोज करते हुये प्लेटो ने 'सत्य' को भी कविता की कसौटी माना है, किन्तु वे 'आनन्द' को कविता की कसौटी स्वीकार नहीं करता है। यद्यपि उन्होंने यह उल्लेख अवश्य किया है कि होमर ने 'आनन्द' को कविता की कसौटी माना था। जहाँ तक काव्य से आनन्द के सम्बन्ध का प्रश्न है। प्लेटो का मानना है कि कविता सामाजिक सीमाओं में रहकर ही सहृदय को आनन्द प्रदान करती है। वह कविता के सौन्दर्य को श्रेष्ठता एवं उदात्तता तक ही सीमित मानता है। अपने ग्रन्थ रिपब्लिक में उसने लिखा है-"It shall be no argument that a poem or poet is charming admirable or seven sacred vain arguments of aesthetics."
प्लेटो की काव्य विषयक अवधारणा की विवेचना
 
प्लेटो से पूर्व काव्य का प्रयोजन दो प्रकार का माना जाता था। प्रथम, आनन्द प्रदान करना और दूसरे, शिक्षा देना । काव्य के इस द्विविध प्रयोजन के साथ-साथ यह भी स्वीकार किया जाता था कि काव्य की रचना दैवी प्रेरणा पर आधारित है। कवि बनता नहीं जन्म लेता है। इस उक्ति को उस काल में सत्य माना गया था। होमर ने अपनी कृतियों द्वारा यह पूर्ण रूप से सिद्ध करने का प्रयास किया है, कि काव्य का लक्ष्य है— आनन्द प्रदान करना। इस आनन्द की सृष्टि कवि कलात्मक भ्रम द्वारा करता है। दूसरी ओर कुछ विचारक ऐसे भी हैं जो काव्य का प्रयोजन अथवा उद्देश्य शिक्षा देना मानते हैं। ऐसे आलोचकों में हैसिओड का नाम उल्लेखनीय है । इस प्रकार स्पष्टतः प्लेटो से पूर्व काव्य के दो प्रयोजन माने जाते थे - आनन्द और शिक्षा । वास्तव में काव्य आनन्द के ब्याज से शिक्षा प्रदान करता है ।

काव्य का सत्य काव्य का ऐसा गुण है, जो निश्चित रूप से उसमें पाया जाता है। काव्यसत्य काव्य में अनिवार्य रूप से बना रहता है और कुछ इस प्रकार का होता है कि उसके प्रति सहृदय पाठक वास्तव में अपनी स्वीकृति देता है।काव्य में जो अलग वक्तव्य निहित रहते हैं, काव्य का सत्य वस्तुतः उनसे अलग होता है।
 

प्लेटो के प्रतिपाद्य का मूल आधार

प्लेटो के प्रतिपाद्य का मूल आधार उनका अनुकरण-सिद्धान्त है। आपने इसी सिद्धान्त को केन्द्र में रखकर काव्य सम्बन्धी सभी विषयों की व्याख्या की है और कला-विवेचन तथा काव्य-विवेचन भी इसी सिद्धान्त के आधार पर प्रस्तुत किया है। प्लेटो एक प्रत्ययवादी दार्शनिक है। उसका अनुकरण-सिद्धान्त भी इसी कारण प्रत्यय पर आधारित है। प्लेटो के वाङ्मय में शब्दों का विशिष्ट प्रयोग किया है और कहीं-कहीं एक शब्द को अलग-अलग अर्थों में भी प्रयुक्त किया है। 'अनुकरण' शब्द के विषय में भी यही प्रक्रिया सामने आई है। उसने प्रतिबिम्ब, छाया, झलक, साम्य, प्रतिनिधित्व, अभ्यास, नकल आदि शब्दों का प्रयोग अनुकरण शब्द के अर्थ में किया है और परस्पर भिन्न शब्दों के रूप में भी। इसी प्रकार अनुकरण शब्द तो कला, दैवी सृष्टि, हीनता, कृति आदि अनेक रूपों में अनेक बार प्रस्तुत किया गया है।
 
संगीत, नृत्य और चित्रकला का विवेचन हमें प्लेटो के प्रन्थों में सभी जगह मिलता है, परन्तु काव्य के विषय में उसने सजग और व्यवस्थित तथ्य प्रस्तुत किए हैं, 'रिपब्लिक', 'लॉज', 'एपौलीज' तथा 'मैंने' में यह विचार अपेक्षाकृत अधिक विस्तार के साथ दिखाई देते हैं। उसके विस्तृत साहित्य में काव्य शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। रिपब्लिक में इसे संगीत का एक भाग माना गया है। बालकों को शिक्षा देने के लिए प्लेटो व्यायाम और काव्य को आवश्यक मानता है और संगीत में भी काव्य को सम्मिलित करता है। सिम्पोजियम में उसने काव्य के अन्तर्गत सम्पूर्ण कलाओं को सम्मिलित किया है, परन्तु जहाँ वह काव्य शब्द का प्रयोग सामान्य अर्थ में करता है, वहाँ उसका आशय महाकाव्य, गीतकाव्य, कथा-कहानियाँ, त्रासदी एवं कामदी आदि विभिन्न रूपों में लेता है।

प्लेटो की काव्य विषयक अवधारणाएं जटिल और बहुआयामी हैं।  उनके विचारों ने काव्य सिद्धांत और आलोचना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  प्लेटो के काम आज भी प्रासंगिक हैं और काव्य की प्रकृति, उद्देश्य और मूल्य पर बहस को जन्म देते हैं।

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