नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि

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नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि हिंदी साहित्य के इतिहास में एक युगांतकारी व्यक्तित्व हैं। उनकी समीक्षा दृष्टि ने हिंदी साहित्य की समझ को बदल दिया और आलोचन

डॉ. नामवर सिंह की समीक्षात्मक दृष्टि


नामवर सिंह की समीक्षा समाजवादी जीवन दृष्टि एवं नई कविता के भावमय समन्वय पर आधारित है। इसी कारण उन्हें एक ओर जहाँ प्रगतिवादी आलोचक के रूप में जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर उनको नये आलोचकों की श्रेणी में भी रखा जाता है। अपने पूर्ववर्ती आलोचकों से उनकी पृथकता यह है कि उन्होंने नई कविता के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाया। मुक्तिबोध प्रगतिवादी आलोचकों से इसी प्रकार की अपेक्षा कर रहे थे।
 

डॉ. नामवर सिंह का समीक्षा साहित्य

  • छायावाद (1954) – डॉ. नामवर सिंह की यह प्रथम आलोचना कृति है। इस समयावधि में छायावाद पर जहाँ एक ओर आरोप लग रहे थे वहीं दूसरी ओर उसे कुछ समर्थन भी प्राप्त हो रहा था। छायावाद की समीक्षा करते हुए उन्होंने छायावादी काव्य छाया चित्रों में समाहित सामाजिक साथ को उद्घाटित किया, जबकि अन्य आलोचकों द्वारा छायावाद की ऐतिहासिक सामाजिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात किया गया। डॉ. नगेन्द्र का इस सन्दर्भ में कथन है कि, यह कृति निर्णीत रूप में मार्क्सवादी आलोचना का अधिक कलात्मक परिष्कृत स्वरूप था। शैली की सर्जनात्मक एवं स्वस्थ्ता भी इस कृति में महत्त्वपूर्ण है । 
  • इतिहास और आलोचना- इस पुस्तक में डॉ. नामवर सिंह द्वारा काव्य-समीक्षा के अतिरिक्त सामान्यतः साहित्यिक मूल्यों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। इस कृति के निबन्धों में 'व्यापकता एवं गहनता' निबन्ध मूल्यांकन के सामान्य विचारों को व्याख्यित करने का प्रयास किया गया है। इसके साथ ही अन्य निबन्धों में मार्क्सवादी दृष्टिकोण के आधार पर हिन्दी सामान्य के इतिहास को पुनर्व्यवस्थित किया गया । डॉ. नगेन्द्र के कथनानुसार- 'लेखक द्वारा इन निबन्धों के माध्यम से मूल्यांकनपरक आलोचना एवं साहित्यिक इतिहास के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया है।” 
  • कहानी : नई कहानी (1964) – इसके माध्यम से उपेक्षित तथा समीक्षा को भी काव्य-समीक्षा के स्तर पर पहुँचाने का प्रयास किया गया है। 
  • 'कवित्व के नये प्रतिमान' (1968) – इसमें नई कविता में सन्दर्भ के काव्य-मूल्यों सम्बन्धी प्रश्नों पर दृष्टिपात किया गया है।
  • 'दूसरी परम्परा की खोज' (1982)—इस पुस्तक में डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के व्यक्तित्व के साथ उनकी विभिन्न जीवन दृष्टियों की भी समीक्षा की गई है, इसमें लेखक ने अधिक प्रहारवादी दृष्टिकोण अपनाया है।

नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि

डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के एक स्तंभ हैं जिन्होंने अपनी समीक्षात्मक दृष्टि से हिंदी साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव लाए। वे एक प्रसिद्ध विद्वान, आलोचक, शिक्षक और लेखक थे जिन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया।उनकी आलोचना दृष्टि मे निम्नलिखित बिन्दु दृष्टिगोचर होते हैं - 
 

तुलनात्मक दृष्टि

डॉ. नामवर सिंह ने प्राचीन एवं आधुनिक आलोचना सिद्धान्तों पर समान दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने सिद्धान्तों को स्थापित किया था। आपके शब्दों मे -

“किन्तु आधुनिक काल में किन्हीं कारणों से यह परम्परा टूट गई तथा काव्य-भाषा का विश्लेषण काव्य के मूल्यांकन पर आधारित न रहकर भाव-विवेचन के पश्चात् कला-विवेचन के रूप में पीछे से जोड़ दिया जाने वाला एक गौण कार्य बन गया। नई कविता के प्रादुर्भाव के साथ जब पुनः कविता की रचना में 'वामर्थ प्रतिपति' को स्थापित किया गया तो स्वाभाविक रूप से काव्य-समीक्षा में भी उसका प्रतिफलन परिलक्षित होने लगा तथा पूर्ववर्ती आलोचना के दोष समाप्त करते हुए काव्य-भाषा को पुनर्मूल्यांकन के मूलाधार के रूप में प्रतिष्ठित करने हेतु प्रयत्न प्रारम्भ हुए।" 

काव्य भाषा

डॉ. नामवर सिंह की समीक्षात्मक दृष्टि
डॉ. नामवर सिंह की यह मान्यता है कि "यदि भाषा कवि के अनुभव एवं ज्ञान का साधन है तो कविता की भाषा का विश्लेषण कर उसकी अनुभव भक्ति का भी आंकलन किया जा सकता । अब इस स्पष्टीकरण के लिए कोई स्थान नहीं है कि कवि ने अनुभव तो बहुत किया लेकिन भाषा की है असमर्थता के कारण अपनी बात को पूर्णतः व्यक्त नहीं कर पाया।”
 

तीक्ष्ण आलोचक

गहन चिन्तन-मनन एवं अध्ययनशीलता के कारण डॉ. नामवर सिंह ने इतनी क्षमता विकसित हो गई है कि वे तीक्ष्ण प्रहार करने में समर्थ हैं। इसके अतिरिक्त उनके स्वयं के विचार भी इसमें सहायक हैं। आलोचकों एवं कवियों की आलोचना करते समय उनका स्वर प्रायः तीक्ष्ण हो उठता है।
 

अनुसन्धान की प्रवृत्ति

डॉ. नामवर सिंह उच्चकोटि के समीक्षक होने के साथ-साथ आलोचक भी हैं, इस अतिरिक्त अनुसन्धान के क्षेत्र में भी उनका पर्याप्त योगदान है। इस क्षेत्र में उनका दृष्टिकोण समाजवादी हो गया है। गहनतापूर्ण चिन्तन-मनन करने के उपरान्त परिपूर्ण विश्लेषण करके मौलिक तथ्य प्रस्तुत करने में उनकी सर्वमान्य महत्ता है।
 

सांगोपांग विवेचन

डॉ. नामवर सिंह की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्होंने विषय पर पूर्ण विचार किया है, उन्होंने विषय के किसी भी पक्ष को छोड़ा नहीं है, बल्कि सभी दृष्टियों से उस पर विचार किया है। 'काव्य भाषा और सृजनशीलता निबन्ध' में तथा 'दूसरी परम्परा की खोज' नामक कृति में इसके उदाहरण स्पष्ट रूप में परिलक्षित होते हैं। 

विद्वता की छाप

डॉ. नामवर सिंह एक मननशील एवं अध्ययनशील मनीषी हैं। उनकी आलोचना में इसके प्रकार के प्रमाण स्पष्ट रूप में प्राप्त होते हैं। प्रसिद्ध भारतीय एवं पाश्चात्य चिन्तकों के सिद्धान्तों के आधार पर विवेचन करना तो अनेक आलोचकों की विशेषता रही है, लेकिन अप्रचलित, अल्प प्रचलित मनीषियों के सिद्धान्तों को उल्लेखित करना उनकी विद्वता के प्रत्यक्ष रूप में प्रमाणित करता है। अंग्रेजी साहित्यकार हेवेल, प्रो. हवीब, अन्तकी योगाम्शी तथा पाश्चात्य पत्रिका 'द मॉर्डन क्वाटली' (लन्दन) आदि के सन्दर्भ इस बात की पुष्टि करतें हैं ।
 

वस्तुनिष्ठ आलोचना

डॉ. नामवर सिंह ने वस्तुनिष्ठ 'काव्य कृति' को ही स्वीकार किया है। उन्होंने इस बात को स्वीकारा है कि आलोचना 'कृति' की ही होनी चाहिए "आलोचक की वस्तुनिष्ठता इस बात पर आधारित है कि वह किसी कृति के मूल्यांकन की प्रक्रिया में उसके रूप की पुनर्दृष्टि अपने लिए करता है वह यथासम्भव अधिकाधिक मूल कृति के समीप है " 

उपसंहार - उक्त विशेषताओं के अतिरिक्त भी डॉ. नामवर सिंह की आलोचना पद्धति की अन्य अनेक विशेषताएँ हैं, जिनका उल्लेख अनेक स्थलों पर देखने को मिलता है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मार्क्सवादी समीक्षकों, आधुनिक समीक्षकों में नवीन भाव बोध एवं चिन्तन के साथ विशिष्ट विश्लेषण पद्धति के आधार पर हिन्दी आलोचना क्षेत्र को चमत्कृत करने वाले समीक्षकों में डॉ. नामवर सिंह को अपना एक विशिष्ट एवं अविस्मरणीय स्थान है। 

हिंदी आलोचना में नामवर सिंह का योगदान

डॉ. नामवर सिंह के योगदान ने हिंदी आलोचना को नया आयाम दिया। उन्होंने समीक्षा को केवल रचनाओं की व्याख्या और मूल्यांकन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे साहित्य, समाज और संस्कृति के बीच संबंधों को समझने का एक महत्वपूर्ण साधन बनाया।वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक युगांतकारी व्यक्तित्व हैं। उनकी समीक्षा दृष्टि ने हिंदी साहित्य की समझ को बदल दिया और आलोचनात्मक विमर्श को नई दिशा दी। वे हिंदी साहित्य के अध्येता और प्रेमी के लिए सदैव प्रेरणा स्त्रोत रहेंगे।

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