मेरी बरोट यात्रा | यात्रा संस्मरण

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हम बरोट पहुंच जाते हैं। उहल नदी पर बांध बनाकर पानी को रोका गया है और नहर से शानन प्रोजेक्ट की तरफ मोड़ दिया गया है। इस प्रोजेक्ट का निर्माण अंग्रेजो

मेरी बरोट यात्रा


जून, 2024 में भीषण गर्मी पड़ रही थी। हिमाचल प्रदेश के नीचले भाग पंजाब की तरह तप रहे थे। सारे पंजाबी पहाड़ों की ओर दौड़ रहे थे। शिमला से एक दिन में पाँच से छः लाख गाड़ियां गुजर रही थी। हिमाचल प्रदेश में महाविद्यालयों और विद्यालयों में छुट्टियां चल रही थी। जून महीना खत्म होने को था परंतु गर्मी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। शाम के समय मैं अवाहदेवी में सम्मी मैडिकल स्टोर के सामने वाली बेंच पर बैठा हुआ था। मेरे साथ अशोक गुलेरिया, प्रवक्ता (आई पी) बैठे हुए थे। वे मेरे परम मित्र हैं। वे उम्र में मुझसे बड़े हैं। हम राजनीतिक विषयों पर चर्चा कर रहे थे। केंद्र में चुनाव हुए थे और हिमाचल प्रदेश में भी उपचुनाव संपन्न हुए थे। हमीरपुर लोकसभा सीट से अनुराग ठाकुर तो जीत गए थे परंतु सुजानपुर से राजेंद्र राणा चुनाव हार गए थे। चर्चा गहन होती चली गई। पास से गुजर रहे चार-पाँच लोग भी चर्चा में शामिल हो गए। अंत में चर्चा का निष्कर्ष यह निकला कि कोई भी दल जीते या हारे, आम आदमी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। आम आदमी को तो स्वयं ही कमा के खाना पड़ता है। राजनीतिक दल केवल ठेकेदारों को ही पालते हैं। नौकरियों को उनके चम्मचे ले उड़ते हैं। 

मेरी बरोट यात्रा
उसके बाद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों की नियुक्ति में हुई धांधली पर भी चर्चा हुई। अशोक-"इन फालतू की बातों में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि कहीं घूमने चला जाए।" मैंने सहमति में सिर हिला दिया। अशोक-"कल सुबह ठीक पाँच बजे अपनी गाड़ी तैयार रखना, हम बरोट घूमने चलेंगे।" राजेश ने अपनी सहमति दे दी। अब अशोक ने मनोज को फोन लगा दिया। अशोक - "कल सुबह पांच बजे आ जाना हम बरोट घूमने चलेंगे।" मनोज - "नहीं मैं नहीं चलूंगा। सुबह पांच बजे मैं बगवाड़ा बैडमिंटन खेलने आऊंगा। " अगली सुबह मैं पाँच बजे ही थडू गांव की वर्षा शालिका के पास पहुंच गया। अशोक और मनोज वहां पहले से ही मौजूद थे। मनोज ने बैडमिंटन ले रखा था। मैं मनोज से-" भाई जी आप बैडमिंटन खेलने नहीं गए? " मनोज-" घर से तो बैडमिंटन खेलने ही निकला था, परंतु फिर मन बदल गया। मैंने सोचा बरोट ही चला जाए।" तभी राजेश गाड़ी लेकर आ जाता है। चारों गाड़ी में बरोट की तरफ निकल पड़ते हैं। धर्मपुर, जोगिंदरनगर से गुजरते हुए बरोट जाना होता है। धर्मपुर और जोगिंदरनगर के बीच में मछयान जगह आती है। यहां मछेंदरनाथ का मंदिर है। मछेंदरनाथ नाथ संप्रदाय के गुरू थे। उतर भारत में उनका यह एकमात्र मंदिर है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। वे गुरु का आशीर्वाद पाकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं। मंदिर के बगल में मछयाल नाम की झील है। श्रद्धालु इसमें नहाते हैं। लोगों का विश्वास है कि इसमें नहाने से त्वचा के रोग दूर हो जाते हैं। 

मनोज का मित्र जोगिंदरनगर में एक विद्यालय का प्रिंसिपल है। मनोज उसे फोन करके नाश्ता साथ में करने को बोलता है। नौ बजे के करीब हम जोगिंदरनगर पहुंच जाते हैं। प्रिंसिपल हमारा इंतजार कर रहा होता है। हम सब मिलकर नाश्ता करते हैं। प्रिंसीपल विद्यालय के लिए निकल जाता है और हम चारों बरोट घाटी की तरफ निकल पड़ते हैं। बरोट घाटी जोगिंदरनगर से चालीस किलोमीटर दूर है। जोगिंदरनगर से थोड़ी दूरी पर शानन विद्युत प्रोजेक्ट है। यह पंजाब सरकार के अधीन है। शानन प्रोजेक्ट से सात किलोमीटर की दूरी पर छपरोटू डैम है। रास्ते में टिक्कन उपतहसील पड़ती है। हमने सड़क किनारे गाड़ी को खड़ा कर दिया। यहां से हम बरोट घाटी के अलौकिक सौंदर्य का दर्शन करने लगते हैं। मानो धरती पर स्वर्ग है तो यहीं है। खेतों में काम करते हुए लोग दिखाई देते हैं। खेत उहल नदी के किनारे पर हैं। नदी के किनारे पर बड़े-बड़े पेड़ हैं। खेतों के उपर छोटा सा गांव बसा हुआ है। गांव को सड़क नहीं जाती है। पैदल रास्ते से ही गांव तक जाया जा सकता है। गांव में एक छोटी सी पाठशाला है। मैं अशोक से-"अगर यहां स्थानांतरित हो जाएं तो दुनिया से अलग हो जाएंगे।" अशोक-"दुनिया से तो अलग हो जाएंगे लेकिन स्वर्ग में पहुंच जाएंगे। धरती पर यहीं तो स्वर्ग है। मेरे कुछ मित्र यहां स्वैच्छिक स्थानांतरण लेकर आए हुए हैं। इस शांत वातावरण में व्यक्ति की आयु दस वर्ष बड़ जाती है। पहाड़ी लोग बहुत अच्छे होते हैं। वे कर्मचारियों को बहुत इज्जत देते हैं। " तभी एक औरत घास की गठरी उठाए हुए वहां से गुजरती है। उसका बेटा उसके पीछे बकरियों को हांकते हुए चल रहा होता है। अब हम गाड़ी में बैठकर बरोट की तरफ चल पड़ते हैं। रास्ते में बाण के बड़े - बड़े पेड़ दिखाई देते हैं। बाण की लकड़ी का डंडा कुल्हाड़ी में डाला जाता है। मैं बड़े गौर से बाण के पेड़ों को देख रहा था। मुझे पेड़ों पर कोई भी सीधी लकड़ी नहीं दिख रही थी। मेरी योजना लौटते समय कुछ सीधी टहनियों को काटकर लेने की थी। जिनसे में कुल्हाड़ी में डालने के लिए डंडा बना सकता। लेकिन मुझे कोई भी सीधी टहनी नहीं दिखाई देती तो मेरी यह योजना असफल हो जाती है। थोड़ी देर बाद हम बरोट पहुंच जाते हैं। 

उहल नदी पर बांध बनाकर पानी को रोका गया है और नहर से शानन प्रोजेक्ट की तरफ मोड़ दिया गया है। इस प्रोजेक्ट का निर्माण अंग्रेजों ने किया था। थोड़ी देर तक घूमने के बाद हम नदी के किनारे लुंगड़ इकट्ठे करने लगते हैं। लुंगड़ू एक तरह की सब्जी होती है जो पहाड़ों में ही मिलती है। लुंगड़ू इकट्ठा करने के बाद हम नदी में नहाने के लिए उतर जाते हैं। नदी का पानी बहुत ठंडा होता है। गर्मियों में ग्लेशियरों के पिघलने से नदी में जलस्तर बना रहता है। नदी का पानी नीचे धर्मपुर तक ठंडा ही रहता है। पानी ज्यादा गहरा नहीं था। नदी की धारा के साथ - साथ चलते-चलते हम काफी नीचे तक चले जाते हैं। फिर नदी की धारा के साथ - साथ वापस लौटा जाता है। कपड़े पहनकर हम वापस गाड़ी की तरफ चलते हैं। बांध के पास चमोह स्कूल के पाँच - छः अध्यापक मिल जाते हैं। वे सात दिन से घूमने के लिए निकले हुए हैं। आज उनका घर से बाहर आठवां दिन है। 

शाम को जोगिंदरनगर में प्रिंसिपल के साथ पार्टी मनाने की योजना होती है। बरोट से बकरे का मांस खरीदा जाता है। शाम को पांच बजे के करीब हम जोगिंदरनगर पहुंच जाते हैं। शराब पीने के लिए एक रेस्तरां में बैठा जाता है। बकरे के मांस को रेस्तरां वाला पका देता है। हम जल्दी ही घर लौटना चाहते हैं। लेकिन प्रिंसिपल कहता है कि हम अंधेरा होने के बाद ही रेस्तरां से निकलेंगे। क्योंकि अगर लोगों ने उसे नशे की हालत में देखा तो उसकी साख खराब होगी। वह उनके बच्चों को पढ़ाता है। हम सभी अध्यापक थे तो हम प्रिंसिपल की बात से सहमत हो जाते हैं। एक अध्यापक को शराब का सेवन करने जैसे काम करने ही नहीं चाहिए और अगर करे भी तो छुप कर करने चाहिए। जिससे वह समाज में गलत उदाहरण न पेश कर सके। अंधेरा होने के बाद हम जोगिंदरनगर से वापस अवाहदेवी की तरफ चल पड़ते हैं।


- विनय कुमार, 
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश

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