आधुनिक समाज में व्याप्त समस्याएं

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आधुनिक समाज में व्याप्त समस्याएं सामाजिक समस्याएं कौन कौन सी होती हैं भारत की प्रमुख सामाजिक समस्याएं जातिवाद गरीबी सामाजिक समस्याएं जनसंख्या वृद्धि

आधुनिक समाज में व्याप्त समस्याएं


धुनिक समाज में व्याप्त समस्याएं सामाजिक समस्याएं कौन कौन सी होती हैं भारत की प्रमुख सामाजिक समस्याएं जातिवाद गरीबी सामाजिक समस्याएं जनसंख्या वृद्धि बाल अपराध बाल श्रम नशाखोरी कन्या भ्रूण हत्या bharat ki pramukh samajik samasya आधुनिक सामाजिक समस्याएं निबंध का उद्देश्य आधुनिक सामाजिक समस्याएं निबंध हिंदी में भारतीय समाज मुद्दे एवं समस्याएं गरीबी बेरोजगारी तथा निरक्षरता - प्रत्येक समाज अपने सदस्यों की आकांक्षाओं इच्छाओं की पूर्ति का साधन होता है। समाज के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि उसका प्रत्येक सदस्य प्रसन्न हो और समाज के साधनों का उपभोग सभी व्यक्ति समान रूप से कर सकें। इसके लिए समाज कुछ नियम व मान्यताएँ निर्धारित करता है; किन्तु समय के साथ-साथ जब सामाजिक मान्यताएँ नष्ट होने लगती है और कुछ शक्तिशाली व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के लिए समाज के साधनों और सुविधाओं का उपभोग करने लगते हैं, जिससे अधिकांश व्यक्ति साधनहीन हो जाते हैं तो समाज में अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
 

हमारा समाज और विविध समस्याएँ

कई वर्षों की परतन्त्रता के कारण हमारे समाज में अनेक प्रकार की कुरीतियों ने जन्म ले लिया। वही कुरीतियाँ आज हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ी हैं। आज हमारे देश में अनेक नई आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बुराइयाँ भी उत्पन्न हो गईं। 

ईश्वर की दृष्टि में सभी मनुष्य समान हैं, किन्तु हमने अपनी सुविधा के लिए समाज मैं अनेक वर्गों की रचना कर दी है। हजारों वर्षों पूर्व किए गए इस वर्ग-विभाजन को आज भी हम उसी रूप में मानते चलते आ रहे हैं। यदि कोई नीची जाति का युवक आगे बढ़कर कुछ करना चाहता है तो सबसे पहले उसकी जाति उसके मार्ग की बाधा बनती है। इसमें सन्देह नहीं कि समाज के किसी भी युवक का विकास समाज या राष्ट्र का विकास है। इस प्रकार की संकीर्ण विचारधाराओं के फलस्वरूप पूरा राष्ट्र उस प्रगति से वंचित हो जाता है।

नारी शोषण

कभी हमारे देश में नारी को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे, किन्तु मध्य युग में मुगलों के शासन काल में उसे उसके सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। आज पुरुष उसे सेविका से अधिक नहीं समझता और उस पर अनेक प्रकार के अत्याचार करता है। जिस नारी को त्याग और ममता की प्रतिमूर्ति समझा जाता रहा है, जो पुरुष की जन्मदात्री है, वही नारी आज पुरुष द्वारा ही शोषण का शिकार हो रही है। यद्यपि भारतीय संविधान में नारी को पुरुषों के समान ही अधिकार प्रदान किए गए हैं किन्तु व्यावहारिक रूप से वह उन अधिकारों से वंचित है और उसे आज भी पुरुष की कृपा पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

दहेज प्रथा की समस्या

दहेज प्रथा ने नारी-समाज को असह्य पीड़ा दी है। कितनी ही युवतियाँ प्रतिदिन दहेज की वेदी पर बलि चढ़ाई जा रही हैं; फिर भी हमारी आँखें बन्द हैं। दहेज के इस अभिशाप के कारण सुयोग्य और सुन्दर कन्यायों का विवाह अयोग्य युवकों के साथ कर दिया जाता है।

भ्रष्टाचार की समस्या

आधुनिक समाज में व्याप्त समस्याएं
समाज की आर्थिक समस्याओं के अन्तर्गत भ्रष्टाचार की समस्या सर्वाधिक विशाल है। भ्रष्टाचार का मुख्य कारण रिश्वत है । यद्यपि रिश्वत लेना और देना कानूनी अपराध है; किन्तु फिर भी आज यह 'दस्तूर' के रूप में प्रचलित हो रही है । अपना काम कराने के लिये आप रिश्वत देने को विवश हैं। रिश्वत के कारण भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। भ्रष्टाचार का दूसरा रूप है- कालाबाजारी या चोरबाजारी। अधिक लाभ कमाने के लालच में व्यापारी सामान को गोदामों में छिपाकर रख देते हैं और उन वस्तुओं की कमी पैदा करके उसे ऊँचे दामों पर बेचते हैं। इस काले धन का उपयोग पुनः सामाजिक भ्रष्टाचार को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
 
हमारा देश शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्रकार की बेकारी से ग्रस्त है । जब योग्य व्यक्ति को इच्छित काम नहीं मिलता है तो अपना पेट भरने के लिए वह चोरी, डकैती और इसी प्रकार के अन्य आर्थिक-सामाजिक अपराधों की ओर अग्रसर होता है वस्तुतः बेरोजगारी की समस्या समाज का सबसे बड़ा अभिशाप है।
 
हमारी चालीस प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या गरीबी के स्तर से नीचे अपना जीवन व्यतीत कर रही है। अधिक लाभ कमाने के लालच में व्यापारी चीजों के दाम बढ़ाते चले जाते हैं। सरकार की नीतियाँ भी महँगाई बढ़ाने में सहायक हो रही हैं। अतः देश के विकास के लिए महँगाई की समस्या पर नियन्त्रण करना आवश्यक है।
 

जनसंख्या वृद्धि

इसके अतिरिक्त जनसंख्या वृद्धि हमारे समाज की ऐसी समस्या है, जिसका निदान हमारे ही हाथ में है; किन्तु अज्ञानवश हम इस ओर ध्यान ही नहीं देते। समाज की सभी समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या में वृद्धि होना है। हमारे साधन सीमित हैं; किन्तु जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जिसके फलस्वरूप हम सुविधाओं से वंचित रहते हैं। यदि हमें समाज को समृद्ध बनाना है तो जनसंख्या वृद्धि को रोकना होगा। सरकार इस समस्या को रोकने का प्रयास कर रही है, किन्तु सामाजिक चेतना के अभाव में इस समस्या से छुटकारा पाना असम्भव-सा प्रतीत होता है।




इन सबके अतिरिक्त मानव-निर्मित समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण की समस्या है। हरे-भरे जंगल काटे जा रहे हैं। कारखानों का धुआँ और कचरा इस प्रदूषण को बढ़ाने में अत्यधिक सहयोग कर रहा है। एक ओर वायु दूषित हो रही है तो दूसरी ओर नदियों का जल भी विषैला होता जा रहा है।
 
प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार व सामाजिक संस्थाएँ निरन्तर प्रयत्न कर रही हैं किन्तु ये प्रयास ऊँट के मुँह में जीरा ही सिद्ध हो रहे हैं।
 
उपसंहार - यदि हम अपने समाज और राष्ट्र का कल्याण चाहते हैं तो हमारा कर्त्तव्य है कि हम इन सामाजिक बुराइयों को दूर करें । 

सामाजिक समस्याओं का निदान केवल कानून बनाकर नहीं हो सकता। इसके लिए आवश्यक है कि समाज की मानसिकता को बदला जाए। जब समाज का प्रत्येक सदस्य इन बुराइयों को दूर करने के लिए कृतसंकल्प हो जाएगा; तभी इनका निदान सम्भव होगा। 

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