भुवन मोहन सिन्हा का चरित्र चित्रण | निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद

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भुवन मोहन सिन्हा का चरित्र चित्रण निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद दहेज तथा अनमेल विवाह की समस्याओं को प्रकट करने सामाजिक उपन्यास निर्मला मार्मिक

भुवन मोहन सिन्हा का चरित्र चित्रण निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद


भुवन मोहन सिन्हा का चरित्र चित्रण निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद - दहेज तथा अनमेल विवाह की समस्याओं को प्रकट करने वाला सामाजिक उपन्यास निर्मला मुंशी प्रेमचन्द का एक मार्मिक उपन्यास है। दहेज प्रथा की भयानकता ने निर्मला के जीवन को नारकीय बना दिया था। इस उपन्यास में यदि कोई अपराधी है तो वह है भुवनमोहन सिन्हा। उसी के एक अपराध के कारण निर्मला का जीवन दुःखों से घिर जाता है।बाबू भालचन्द्र और रंगीलीबाई के पुत्र तथा सुधा के पति डॉ. भुवनमोहन सिन्हा के चरित्र की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं- 

आकर्षक व्यक्तित्व का धनी 

भुवनमोहन भालचन्द का बड़ा पुत्र है जो कॉलेज में पढ़ता है। पढ़ाई में तो वह तेज है ही साथ ही साथ शारीरिक दृष्टि से भी आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी है। लेखक ने उसके व्यक्तित्व का वर्णन इस प्रकार किया है- "ऐसे सुन्दर, सुडौल, बलिष्ठ युवक कॉलेजों में बहुत कम देखने में आते हैं। बिल्कुल माँ को पड़ा था, वही गोरा-चिट्टा रंग, वही पतले-पतले गुलाब की पत्ती के से होंठ, वही चौड़ा माथा, वही बड़ी-बड़ी आँखें, डील-डौल बाप का सा था। ऊँचा कोट, ब्रीचेज, टाई, बूट, हैट उस पर खूब खिल रहे थे। हाथ में एक हॉकी स्टिक थी। चाल में जवानी का गरूर था, आँखों में आत्मगौरव । " 

धन का लोभी

भुवन मोहन सिन्हा का चरित्र चित्रण निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद
भुवनमोहन डॉक्टरी के अन्तिम वर्ष में पढ़ रहा है उसका विचार है कि दहेज में यदि कहीं से एक लाख रुपया मिल जाये तो जीवन आनन्द से कटे । भुवनमोहन के शब्दों में देखिए- "रुपये किसे काटते हैं ? लाख रुपये तो लाख जनम में भी न जमा कर पाऊँगा। इस साल पास भी हो गया तो कम से कम पाँच साल तक रुपये की सूरत नजर नहीं आयेगी। फिर दो-सौ रुपये महीने कमाने लगूँगा। रुपये जमा करने की नौबत ही न आयेगी। दुनिया का कुछ मजा न उठा सकूँगा। किसी धनी लड़की से शादी हो जाती तो चैन से कटती। मैं ज्यादा नहीं चाहता, बस एक लाख नकद हो या फिर कोई ऐसी जायदाद वाली बेवा मिले, जिसके एक ही लड़की हो।" 

भुवनमोहन की दृष्टि में पत्नी के गुण चाहें कैसे भी हों, उनका कोई महत्व नहीं है। दहेज के रूप में अधिक धन लाने वाली पत्नी की गालियाँ भी सुननी पड़ें, तो वह सहने को तैयार है। वह अपनी माँ रंगीलीबाई से कहता है-“धन सारे ऐबों को छिपा देगा। मुझे वह गालियाँ भी सुनाये तो भी चूँ न करूँ। दुधारू गाय की लात किसे बुरी मालूम होती है।" 

आत्मबल का अभाव

उसमें आत्मबल का नितान्त अभाव है। जब उसे पता चलता है कि निर्मला ही वह लड़की है जिससे उनकी शादी होने वाली थी, तो वह पश्चाताप करते हैं। एक दिन जब निर्मला उनके घर उनकी पत्नी से मिलने आती है तो वे अपने हृदय पर काबू नहीं रख पाते और निर्मला से कहते हैं- "रोज सुधा की खातिर से बैठती हो, आज मेरी खातिर बैठो। बताओ, कब तक इस आग में जला करूँ। सत्य कहता हूँ निर्मला ....।" यही शब्द उनकी जीवनधारा को बदल देते हैं। उनके इन शब्दों से उनके चरित्र का निबलता के दर्शन होते हैं। अन्त में, अपनी इसी कृत्य के पश्चाताप हेतु डॉ. भुवनमोहन आत्महत्या कर लेते हैं। 

धैर्यशाली

डॉ. भुवनमोहन में नौकरी पाने और समय बीतने के साथ गम्भीरता आ जाती है। जब सुधा मैके में रह रही निर्मला को बुलाने के लिए जाती है तो वहाँ उसका पुत्र बीमार पड़ जाता है और मर जाता है। सुधा भयभीत है कि उसके पति उसे क्या कहेंगे ? लेकिन डॉक्टर साहब इसको सहज भाव से लेते हैं और सुधा को धीरज बँधाते हैं। वे सुधा को समझाते हुए कहते हैं-"सुधा! तुम इतना छोटा दिल क्यों करती हो ? मोहन अपने जीवन में जो कुछ करने आया था, वह कर चुका था। फिर वह क्यों बैठा रहता.!....मोहन की मृत्यु ने आज हमारे द्वैत को बिल्कुल मिटा दिया है। आज ही हमने एक दूसरे का सच्चा स्वरूप देखा है।"
 

हितैषी एवं उपदेशकुशल

डॉ. भुवनमोहन मुंशी तोताराम के सच्चे हितैषी हैं। जब उनका पुत्र जियाराम उद्दण्ड हो जाता है तो वे उसे समझाते हैं कि उसे अपने पिता के प्रति ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। उनकी बात सुनकर जियाराम कहता है- "डॉक्टर सिाहब! मैं बहुत लज्जित हूँ। दूसरों के बहकावे में आ गया था। अब आप मेरी जरा भी शिकायत नहीं सुनेंगे। आप पिताजी से मेरे अपराध क्षमा करा दीजिए। मैं सचमुच बहुत अभागा हूँ। मैंने उन्हें बहुत सताया।" 

निष्कर्ष इस सम्पूर्ण विवरण से ज्ञात होता है कि डॉ. भुवनमोहन एक भावुक हृदय व्यक्ति हैं। पत्नी के सामने अपनी चरित्रहीनता प्रकट होने पर आत्महत्या कर लेते हैं । कुछ वर्षों पूर्व तक दहेज का लोभी होने के पश्चात् भी पश्चाताप के रूप में निर्मला की बहिन कृष्णा की शादी अपने छोटे भाई से बिना दहेज के करा देते हैं। भुवनमोहन का चरित्र प्रारम्भ में तो अनेकों विषमताओं से भरा हुआ है किन्तु धीरे-धीरे समय बीतने के साथ- साथ उनके विचारों में काफी बदलाव आ जाता है। 

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