निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद समीक्षा | Nirmala Book Review In Hindi

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निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद समीक्षा Nirmala Book Review In Hindi निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद की तात्विक समीक्षा प्रेमचन्द का उपन्यास कथावस्तु

निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद की तात्विक समीक्षा 


निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद समीक्षा Nirmala Book Review In Hindi निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद की तात्विक समीक्षा - प्रेमचन्द का उपन्यास निर्मला एक सामाजिक समस्या को केन्द्र में रखकर लिखा गया उपन्यास है।निर्मला उपन्यास का प्रकाशन वर्ष 1927 ई. है।औपन्यासिक तत्वों की दृष्टि से यह एक सफल उपन्यास कहा जा सकता है। उपन्यास के छह तत्व स्वीकार किए गए हैं -

  1. कथावस्तु 
  2. चरित्र चित्रण 
  3. देशकाल 
  4. कथोपकथन 
  5. भाषा शैली 
  6. उद्देश्य।

निर्मला उपन्यास की कथावस्तु 

कथावस्तु की विशेषता में उपन्यास की मौलिकता, रोचकता, संक्षिप्ति, सहज प्रवाहमयता और एकान्विति पर बल
निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद समीक्षा | Nirmala Book Review In Hindi
दिया जाता है। 'निर्मला' इन सभी कसौटियों पर खरा उतरता है। 'निर्मला' की कथावस्तु सर्वथा मौलिक है। समाज में दहेज की कुप्रथा के कारण होने वाले बेमेल विवाह और उसके दुष्परिणामों को प्रेमचन्द ने अपने उपन्यास में सफलतापूर्वक दर्शाया है। निर्मला का विवाह एक सम्पन्न घराने में तय होता है परन्तु एकाएक दुर्घटनावश उसके पिता की मृत्यु के पश्चात् स्थितियाँ बदल जाती हैं। दहेज देने में असमर्थ निर्मला की माँ उसका विवाह एक प्रौढ़ व्यक्ति से कर देती है जो तीन संतानों का पिता है। निर्मला उस व्यक्ति को सम्मान तो देती है परन्तु प्रेम नहीं कर पाती। इस कारण पति के हृदय में संदेह के बीज अंकुरित होते हैं और वह अपने ही बड़े बेटे पर संदेह करने लगता है। धीरे-धीरे सारा परिवार बिखर जाता है- नष्ट हो जाता है। यही 'निर्मला' उपन्यास की मूल कथा का सार है। मूलकथा के अतिरिक्त निर्मला से सम्बन्ध रखने वाली उसकी सहेली सुधा की कथा भी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है जो एक दुःखद अंत के साथ समाप्त हो जाती है। निर्मला जीवन भर संघर्ष करती हुई विषम परिस्थितियों में भी जीवन जीने की चेष्टा करती है परन्तु अंत में मरने से पूर्व अपनी ननद रुक्मिणी को अपनी बेटी के लिए जो संदेश देती है वही उपन्यास का मुख्य तत्व है। निर्मला कहती है कि उसकी मृत्यु के बाद भले ही वह उसकी बेटी को कुँवारी रखे या फिर जहर देकर मार दे परन्तु किसी कुपात्र से उसका विवाह न करे। 

उपन्यास तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को सफलतापूर्वक चित्रित करता है और पाठकों में जिज्ञासा बनाए रखने में पूर्णतः सक्षम है। इसके विकास की गति में सहज प्रवाह विद्यमान है और घटनाएँ परस्पर भली प्रकार सम्बन्धित हैं। कथावस्तु के विश्लेषण की दृष्टि से यह एक सफल उपन्यास है। 

निर्मला उपन्यास के पात्र चरित्र चित्रण

उपन्यास का केन्द्रीय चरित्र निर्मला ही है। उपन्यास निर्मला के विवाह की तैयारी से आरम्भ होकर निर्मला की मृत्यु के पश्चात् समाप्त हो जाता है। निर्मला के जीवन में आने वाले पात्र ही इस उपन्यास के अन्य चरित्र हैं। निर्मला के पिता उदयभानुलाल एक अत्यन्त संवेदनशील व्यक्ति हैं परन्तु माता कल्याणी अत्यंत व्यावहारिक स्त्री है। पुरोहित मोटेराम की व्यावसायिक चतुरता और बाबू भालचन्द्र की वाक्पटुता को उभारने में प्रेमचन्द सफल रहे हैं। मुंशी तोताराम निर्मला से शादी करके जिस प्रकार अपनी आयु के कारण हीनभावना के शिकार होते हैं और अपने भीतर उपजी ग्रंथियों के कारण अपने पुत्र पर संदेह करने लगते हैं-उपन्यास के घटनाक्रम में यह सब चारित्रिक विशेषताएँ स्वाभाविक प्रतीत होती हैं। मंसाराम एक चरित्रवान लड़का है जो अपने स्वाभिमान को ठेस पहुँचने पर घर त्याग देता है। जियाराम और सियाराम के चरित्र भी उपन्यासकार द्वारा अत्यंत स्वाभाविक तरीके से उभारे गए हैं। 

मंसाराम का चरित्र भी कथा की आवश्यकता के अनुसार ही चित्रित है। निर्मला की ससुराल में ही रहनेवाली उसकी ननद रुक्मिणी एक विधवा स्त्री है जो परिस्थितिवश निर्मला से समय-समय पर घृणा और प्यार दोनों ही करती है। सुधा एक सहृदय स्त्री है जो निर्मला की पीड़ा को समझती है और किसी न किसी प्रकार उसकी सहायता करना चाहती है। वह अंत तक निर्मला से अपनी मित्रता का निर्वाह करती है। सुधा के पति डॉक्टर सिन्हा निर्मला के परिवार के शुभचिन्तक बन जाते हैं परन्तु मन ही मन वे निर्मला पर आसक्त भी हैं। दहेज के कारण इन्हीं डॉ. सिन्हा से निर्मला की शादी नहीं हो सकी थी। निर्मला से प्रणय निवेदन करने पर पत्नी से मिली प्रताड़ना पर आत्मग्लानि के कारण ही डॉ. सिन्हा आत्महत्या कर लेते हैं। इस प्रकार पात्रों की अधिकता होने के बाद भी उपन्यासकार ने सब चरित्रों के साथ न्याय किया है। 

देशकाल या वातावरण योजना

उपन्यास निर्मला एक सर्वकालिक उपन्यास है। किसी भी समाज में किसी भी समय निर्मला जैसी गरीब अभागी लड़कियों के साथ इस प्रकार की घटनाएँ घटित हो सकती हैं। परिस्थितियों के अनुकूल ही उपन्यास में वातावरण निर्मित किया गया है। सम्भवतः यह उपन्यास 1923 में प्रकाशित हुआ था। यह समय देश की स्वतंत्रता के लिए आरम्भ होने वाले छोटे-बड़े आंदोलनों का समय था। परन्तु उपन्यास में राष्ट्रीय जागृति वाली कोई बात दिखलाई नहीं देती। 'निर्मला' का समाज परम्पराओं और रुढ़ियों से जकड़ा हुआ एक अंधकारमय समाज है जिसमें प्रकाश का प्रवेश वर्जित है।
 

कथोपकथन

कथोपकथन पात्रों, घटनाओं और परिस्थितियों के अनुकूल चुटीले और मार्मिक हैं। कथोपकथन के द्वारा उपन्यासकार ने घटनाओं के विकास, उनकी लुप्त कड़ियों को जोड़ने तथा पात्रों के चरित्रांकन आदि प्रयोजनों की भी सिद्धि की है। उदाहरण के लिए मंसाराम और निर्मला के मध्य यह संवाद प्रस्तुत है जो मंसाराम के रुष्ट होने और निर्मला के मनाने की चेष्टा को प्रकट करता है । 

मंसाराम चौंककर बोला-कौन? 
निर्मला ने काँपते हुए स्वर में कहा- मैं तो हूँ। भोजन करने क्यों नहीं चल रहे हो? कितनी रात गई! 
मसाराम ने मुँह फेरकर कहा-मुझे भूख नहीं है। निर्मला- यह तो मैं तीन बार भूँगी से सुन चुकी हूँ। 
मंसाराम- तो चौथी बार मेरे मुँह से सुन लीजिए । 
निर्मला- शाम को भी तो कुछ नहीं खाया था, भूख क्यों नहीं लगी? 
मंसाराम ने व्यंग्य की हँसी हँसकर कहा-बहुत भूख लगेगी तो आएगा कहाँ से? 
निर्मला- मेरे कहने से चलकर थोड़ा-सा खा लो। तुम न खाओगे तो मैं भी जाकर सो रहूँगी 
मंसाराम- मेरे लिए आपको इतना कष्ट हुआ, इसका मुझे खेद है। 
निर्मला- यह तुम कैसे समझ सकते थे कि तुम भूखे रहोगे और मैं खाकर सो रहूँगी? क्या विमाता का नाता होने ही से मैं ऐसी स्वार्थिनी हो जाऊँगी? 

निर्मला उपन्यास की भाषा शैली

भाषा-शैली की दृष्टि से यह तथ्य अवश्य स्वीकार किए जाते हैं कि औपन्यासिक कृति की भाषा अधिक क्लिष्ट और दुरूह न हो, वह पात्रों की सामाजिक तथा मानसिक दशा के अनुकूल हो तथा उसमें भावाभिव्यंजना की पूर्ण क्षमता विद्यमान होनी चाहिए। 'निर्मला' की भाषा-शैली इन सभी कसौटियों पर खरी उतरती है।

जहाँ तक शब्द प्रयोग का सम्बन्ध है प्रेमचन्द की प्रवृत्ति उर्दू एवं हिन्दी की तद्भव शब्दावली के प्रयोग की ओर अधिक रही है। यद्यपि कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। वाक्य योजना की दृष्टि से उपन्यास में संक्षिप्त और लम्बे दोनों ही प्रकार के वाक्य मिलते हैं। अवसरानुकूल कहावतों ओर मुहावरों का प्रयोग भी हुआ है। 

निर्मला उपन्यास का उद्देश्य

प्रस्तुत उपन्यास 'निर्मला' के माध्यम से उपन्यासकार ने समाज में विद्यमान दहेज प्रथा से उत्पन्न होने वाली बुराइयों को इंगित किया है। देहज प्रथा के कारण ही समाज में बेमेल विवाह होते हैं और बेमेल विवाह पति-पत्नी अथवा शेष परिवार में से किसी के लिए भी शुभ नहीं होते । बेमेल विवाह के कारण जहाँ एक ओर लड़की का जीवन नारकीय हो जाता है वहीं दूसरी ओर परिवार का टूटना भी आरम्भ होता है। इस प्रकार इस उपन्यास के माध्यम से उपन्यासकार ने दहेज से उत्पन्न होने वाली सामाजिक बुराइयों को सफलतापूर्वक चित्रित किया है। उपन्यास से यही संदेश मिलता है कि दहेज और बेमेल विवाह समाज की भयानक कुरीतियाँ हैं जिन्हें समाप्त होना ही चाहिए।


विडियो के रूप में देखें - 



COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. बहुत ही सुंदर रहा लिखने का अन्दाज आप का जितनी प्रासंसा की जाए उतना ही कम है।

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