हिंदी उपन्यास के विकास में प्रेमचंद का योगदान

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हिंदी उपन्यास के विकास में प्रेमचंद का योगदान Hindi upanyas aur Premchand Hindi upanyas ke kshetra me Premchand ka Yogdan Munshi Premchand उपन्यासकार

हिंदी उपन्यास के विकास में प्रेमचंद का योगदान


हिंदी उपन्यास के विकास में प्रेमचंद का योगदान Hindi upanyas aur Premchand Hindi upanyas ke kshetra me Premchand ka Yogdan Munshi Premchand उपन्यासकार प्रेमचंद Hindi novel Premchand  - प्रेमचंद के हिंदी उपन्यासों के यथार्थवाद से पूर्व हिंदी उपन्यास साहित्य पाठकों के मनोरंजन की वस्तु था और उनके मन बहलाव का खिलौना था। प्रेमचंद के पूर्ववर्ती उपन्यास साहित्य के सृजन काल को उपन्यासों का बाल्यकाल कह सकते हैं। प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास के विकास को अवरुद्ध करने वाले कारणों को समझा और उनको दूर करने की चेष्टा की। उन्होंने हिंदी उपन्यास साहित्य के विकास की दिशा बदल दी। 

इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप हिंदी उपन्यास कल्पना लोक से इतर ,वास्तविक जीवन के ठोस धरातल पर आ गया। प्रेमचंद जी अपने उपन्यासों में सद्भावना ,सदकांक्षा और उच्च आदर्श को लेकर आये। साहित्यकार के चिंतन का उसकी कृतियों पर प्रभाव पड़ता है। इसे स्वीकार करते हुए प्रेमचंद ने लिखा है - 

'वास्तव  में कोई रचना रचयिता के मनोभावों का ,उसके चरित्र का ,उसके जीवन आदर्श का ,उसके दर्शन का आइना होती है।'

प्रेमचंद का उपन्यास काल सन १९०० ई.से प्रारंभ हो जाता है। इस समय उनकी कुल बीस वर्ष की आयु थी। उनके
हिंदी उपन्यास के विकास में प्रेमचंद का योगदान
द्वारा टैगोर की अनेक अंग्रेजी कहानियों के अनुवाद उर्दू पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। प्रेमचंद जी ने सबसे प्रथम कहानी 'संसार का सबसे अनमोल रत्न' सन १९०० ई की है ,ज़माने पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसी वर्ष 'कृष्णा नामक उपन्यास की रचना की। सन १९०२ ई. में 'वरदान' ,सन १९०५ 'प्रेमा' तथा सन १९०६ ई. में आपने 'प्रतिज्ञा' नामक उपन्यास की रचना की। सन १९०८ ई. में जमाना प्रेस से प्रेमचंद की ही आठ कहानियों का एक संग्रह शोजेवतन के नाम से प्रकाशित हुआ। सरकार ने इस संग्रह को जब्त कर लिया। 

सन १९१४ ई. तक प्रेमचंद जी नबाबराय के नाम से कथा साहित्य की रचना करते रहे। शोजेवतन की जब्ती के पश्चात प्रेमचंद जी नबाब राय के स्थान पर प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। सन १९१४ ई से प्रेमचंद हिंदी की ओर आ गए।
 
सेवासदन प्रेमचंद जी का प्रथम उपन्यास है। यह सन १९१६ ई. में प्रकाशित हुआ। इससे पूर्व प्रेमचंद जी 'वरदान' ,'प्रतिज्ञा' या प्रेमा और 'रूठी रानी' उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे। रूठी रानी एक छोटा सा इतिहासिक उपन्यास है। इसमें राजपूतों की आदर्श वीरता के साथ उनको परस्पर फूट और ईर्ष्या के कारण हमारा देश पराधीन हुआ। सन १९०१ ई. में प्रेमचंद ने उर्दू प्रतापचंद नामक उपन्यास लिखा। सन १९०३ ई. वरदान के नाम से प्रकाशित हुआ। सन १९०४ में प्रकाशित प्रेमा उपन्यास उर्दू में हम खुर्मा और हम कबाब के नाम से प्रकाशित हो चुका था। बाद में प्रेमचंद जी ने प्रेमा में बहुत अधिक परिवर्तन किया और हिंदी में वह प्रतिज्ञा और उर्दू में बेवा नाम से प्रकाशित हुआ। इन उपन्यासों में कला की दृष्टि से कोई विशेषता नहीं है। अतः 'सेवासदन' को ही प्रेमचंद का प्रथम महत्वपूर्ण उपन्यास माना गया है। इसके प्रकाशन से ही उपन्यास क्षेत्र में प्रेमचंद जी का स्थायी रूप से महत्वपूर्ण स्थान निश्चित हो गया। 

प्रेमचंद के उपन्यासों के नाम

सेवासदन के बाद प्रेमचंद जी के निम्नलिखित उपन्यास प्रकाशित हुए - 
प्रेमाश्रम  - 1922
रंगभूमि - 1925 
निर्मला - 1925
कायाकल्प - 1926
प्रतिज्ञा - 1927
गबन - 1928
कर्मभूमि - 1932
गोदान - 1936
मंगलसूत्र - अपूर्ण

सन १९३६ ई. में ही प्रेमचंद ने मंगल सूत्र नामक उपन्यास लिखना शुरू किया था ,परन्तु उनकी मृत्यु ने इसे पूर्ण नहीं होने दिया। 

उपयुक्त उपन्यासों के रूप में प्रेमचंद उपन्यास क्षेत्र में अमर हो गए। उनके ये उपन्यास अन्य भाषाओँ के उच्च कोटि के उपन्यासों की कोटि में रखे जा सकते हैं। प्रेमचंद जी यथार्थ में हिंदी उपन्यास के सम्राट हैं। 


विडियो के रूप में देखें - 



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