गोस्वामी तुलसीदास की प्रामाणिक रचनाएँ | Tulsidas Ki Rachnaye In Hindi

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गोस्वामी तुलसीदास की प्रामाणिक रचनाएँ Tulsidas Ki Rachnaye In Hindi तुलसीदास जी की साहित्यिक रचनाएं तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन सी है ? Tulsidas Ki 12

तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन सी है ? | Tulsidas Ki 12 Rachnaye


गोस्वामी तुलसीदास की प्रामाणिक रचनाएँ Tulsidas Ki Rachnaye In Hindi तुलसीदास जी की साहित्यिक रचनाएं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित ग्रन्थों की संख्या के सम्बन्ध में विद्वानों में बहुत मतभेद है। नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्टों में तुलसी की 36 रचनाएँ प्रकाश में आ चुकी हैं। प्रामाणिकता की दृष्टि से केवल 12 ग्रन्थ ही नागरी प्रचारिणी सभा ने तुलसी ग्रन्थावली में संग्रहीत किया है, जो निम्नलिखित हैं- 

1.रामचरित मानस, 
2. रामलला नहछू, 
3. बरवै रामायण, 
4. पार्वती-मंगल, 
5. जानकी- मंगल, 
6. रामाज्ञा-प्रश्न, 
7. वैराग्य-संदीपनी, 
8. गीतावली, 
9. कवितावली, 
10. दोहावली, 
11. श्रीकृष्ण गीतावली एवं 
12. विनय-पत्रिका। 


रामचरितमानस  

गोस्वामी तुलसीदास की प्रामाणिक रचनाएँ | Tulsidas Ki Rachnaye In Hindi
इस प्रबन्धकाव्य की रचना गोस्वामी जी ने सं0 1631 वि० चैत्र शुक्ल 9, मंगलवार को प्रारम्भ की। इस ग्रन्थ को भारतवर्ष में एक धार्मिक ग्रन्थ के रूप में पूज्य समझा जाता है। इसमें कुल लगभग 5100 चौपाइयाँ हैं। इस ग्रन्थ द्वारा तुलसी ने 'राम' को नर और नारायण दोनों का समन्वय करके इसे लौकिक और पारलौकिक दोनों ही तरह का बना दिया है। प्रबन्ध के रूप में इसकी विशेषताएँ आचार्य शुक्ल ने इस प्रकार बताया है- 'रचना-कौशल, प्रबन्ध-पटुता, सहृदयता, इत्यादि सब गुणों का समाहार रामचरितमानस में मिलता है। कथा के मार्मिक स्थलों की पहचान, कथाकाव्य के सम्पूर्ण अंगों का उचित समीकरण एवं प्रसंगानुकूल भाषा और रसों का सम्यक् प्रस्फुरण इत्यादि दृष्टियों से 'मानस' हिन्दी साहित्यावकाश का देदीप्यमान महाकाव्य है। 

रामचरितमानस के सम्बन्ध में कवि बेनी ने कहा है कि- 

"वेदमत सोधि-सोधि सोधि के पुरान सब, 
संत और असंतन को भेद को मिटावतो । 
कपट कुराही कर कलि के कुचाली जीव, 
राम नाम हूँ की कौन चरचा चलावतो । 
'बेनी कवि कहैं मानो मानो हो प्रतीति यह, 
पाहन हिए में कौन प्रेम उपजावतो । 
भारी भव सागर उतारतो कवन पार, 
जौ पै रामायन तुलसी न गावतो ।।" 

इस तरह यह स्पष्ट है कि गोस्वामी जी का 'रामचरितमानस' विश्व को बन्धुत्व, शान्ति, प्रेम, त्याग, कर्त्तव्य-परायणता एवं परोपकार का संदेश प्रदायक है। 

रामलला नहछू

इस ग्रन्थ की गणना रसिक पूर्ण शृंगारिक ग्रन्थों में की गई है। हिन्दू परिवारों में यज्ञोपवीत, विवाह आदि के अवसरों पर गाये जाने वाले लोक प्रचलित छन्द 'सोहर' में इसकी रचना हुई है। इसमें कुल 20 छन्द हैं। लोक-जीवन का सजीव एवं पूर्ण चित्र उपस्थित करने में यह रचना अकेली ही बहुत ललित एवं सशक्त है। इसका रचनाकाल सम्वत् 1611 माना गया है। 

बरवै रामायण

इस ग्रन्थ में 69 बरवै छन्दों में 'रामचरितमानस' की पूरी कथा वर्णित है। इसमें काण्ड विभाजन भी है। बालकाण्ड में 19, अयोध्याकाण्ड में 8, अरण्यकाण्ड में 6, विष्किंधाकाण्ड में 2, सुन्दरकाण्ड में 6, लंकाकाण्ड में 1, एवं उत्तरकाण्ड में 27 बरवै छन्द हैं। बरवै छन्द पहले से ललित तो माना जाता था, साथ ही तुलसी जैसे महाकवि के हाथ में पड़कर यह उत्कृष्ट काव्य सौन्दर्य से और भी प्रोद्भाषित हो उठा है। 

पार्वती मंगल

इस ग्रन्थ में शिव-पार्वती के विवाह का वर्णन है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० 1643 वि० । इसमें कुल 164 छन्द हैं। काव्य-सौन्दर्य और प्रौढ़ता की दृष्टि से यह उच्चकोटि की रचना मानी जाती है । 

जानकी मंगल

राम-जानकी विवाह पर मंगल छन्द में यह ग्रन्थ लिखा गया है। इस ग्रन्थ में कुल 216 छन्द हैं। उनमें से 192 अरुण छन्द और 24 हरिगीतिका छन्द है। इसकी भाषा अवधी है और रचनाकाल सं० 1627 वि०। 

रामाज्ञा प्रश्न

इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० 1621 वि० है । इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर 243 छन्द हैं। 

वैराग्य संदीपनी 

यह कवि की प्रारम्भिक रचना है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल सम्वत् 1614 वि० है। इसमें कुल 62 दोहे चौपाइयों में राम लक्ष्मण सीता का ध्यान, सन्त स्वभाव वर्णन और शान्ति वर्णन है।

गीतावली

इस ग्रन्थ की अधिकांश कथावस्तु रामचरितमानस से मिलती-जुलती है। गीतावली के बालक ण्ड में 110, अयोध्याकाण्ड में 89, अरण्यकाण्ड में 17, किष्किन्धाकाण्ड में 2, सुन्दरकाण्ड में 51, लंकाकाण्ड में 23 और उत्तरकाण्ड में 38 पद या गीत हैं। इस ग्रन्थ में कथा का क्रम वाल्मीकि रामायण के अनुसार ही है। रस की दृष्टि से य काव्य उत्कृष्ट कोटि का है। यह ग्रन्थ ब्रजभाषा में लिखा गया है। अलंकारों के चातुर्य के र ही संगीतात्मकता इस ग्रन्थ में ज्यादा समृद्धि को प्राप्त हुई है। उस समय की लगभग समस्त राग-रागनियाँ गीतावली में समाहित हैं। इसमें कुल पदों की संख्या 328 है। इसका रचनाकाल सं० 1653 वि० है । 

कवितावली

इसमें राम का चरित्र काण्डों में विभाजित कर कवित्त में लिखा गया है, बीच-बीच में कुछ सवैया भी निहित है। कवितावली की रचना सं० 1669 वि० मानी जाती है। इसके बालकाण्ड में 22, अयोध्याकाण्ड में 28, अरण्यकाण्ड में 1, किष्किन्धाकाण्ड में 1, सुन्दरकाण्ड में 32, लंकाकाण्ड में 58 और उत्तरकाण्ड में कुल 183 छन्द हैं। यह ग्रन्थ काव्य स्वरूप के प्रबन्धात्मक मुक्तक के कोटि में आता है। इस ग्रन्थ में उपमा, उत्प्रेक्षा एवं रूपक अलंकार की बहुलता है। भावानुरूप भाषा ही इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें राम के शौर्य का वर्णन एवं हनुमान का लंकादहन सर्वश्रेष्ठ है। 

दोहावली

इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० 1640 वि० है। यह एक मुक्तक रचना है। इसमें कुल 573 दोहे हैं। सोरठे भी इसी संख्या के अन्तर्गत सतसई के और 2 दोहे वैराग्य संदीपनी के हैं। इन दोहों में सामान्यतः नीति-धर्म, भक्ति-प्रेम, राम-महिमा, खल-निन्दा, सज्जन-प्रशंसा आदि वर्णित है। ग्रन्थ का काव्य-गुण उच्चकोटि का है। 

श्रीकृष्ण गीतावली 

इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० 1658 वि० है । इसकी भी रचना ब्रजभाषा में हुई है। विभिन्न सुन्दर राग-रागनियों में बँधे 61 पदों में गोस्वामी जी ने श्रीकृष्ण के चरित्र का गान किया है। इस ग्रन्थ में कुछ पद सूर सागर के पदों से भी मिलते-जुलते हैं। इस ग्रन्थ में सरलता तथा सुबोधता के साथ-साथ मनोवैज्ञानिकता का पुट भी दर्शनीय है।
 

विनय पत्रिका

इसका रचनाकाल सं० 1653 वि० माना गया है। कहना न होगा कि विनय-पत्रिका में कलियुग के कुचालों से पीड़ित तुलसी के द्वारा अपने आराध्य देव राम के प्रति प्रस्तुत की गयी विनय की पत्रिका है। इसमें तुलसी ने राम से अनेक प्रकार से अपने उद्धार के लिए विनय किया है। यह खण्ड-काव्य है। इस ग्रन्थ में कुल 279 पद हैं।

विनय-पत्रिका तुलसी की भक्ति भावना का साकार रूप है। इस विषय में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत है कि- “भक्ति रस का पूर्ण परिपाक जैसा विनय-पत्रिका में देखा जाता है वैसा अन्यत्र नहीं (भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलम्बन के महत्त्व और अपने दैन्य का अनुभव परम आवश्यक अंग है)। तुलसी के हृदय से इन दोनों के ऐसे निर्मल शब्द-स्त्रोत निकले हैं, जिनमें अवगाहन करने से मन की मैल कटती है और अत्यन्त पवित्र प्रफुल्लता आती है।" इस प्रकार तुलसीदास एक महान् कवि थे। उनकी काव्य-साधना के सम्बन्ध में डॉ० उदयभान सिंह का कथन है कि- “तुलसीदास महाकवि थे। वे काव्य-सृष्टा और जीवन- -दृष्टा थे। वे प्रबन्धकार थे, उन्होंने महाकाव्य लिखा, निबन्ध, मंगलगीत लिखे। वे मुक्तककार भी थे। उन्होंने प्रगति मुक्तक लिखे, अगीत मुक्तक लिखे। उन्होंने अपनी रम्य रचनओं में रागात्मक साहित्य की अपूर्व श्रीवृद्धि की। उनके गौरव-ग्रन्थ हिन्दी के अमूल्य रत्न हैं। सौन्दर्य और मंगल का प्रेम और श्रेय का कवित्व और दर्शन का असाधारण सामञ्जस्य उनके साहित्य की पहली विशेषता है।"


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