हिन्दी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा का उद्भव एवं विकास

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हिन्दी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा का उद्भव एवं विकास


हिन्दी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा हिन्दी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा का उद्भव एवं विकास राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा की विशेषताएं हिन्दी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा के कवियों का कृतित्व राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि - राष्ट्रीय काव्यधारा को राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा भी कहा गया है। छायावादी काल में काव्य की तीन प्रमुख धाराएँ विकसित हुईं- 
  1. छायावादी काव्यधारा, 
  2. राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा और 
  3. प्रणय काव्यधारा। 
इन तीन अन्तर्धाराओं में से प्रथम वर्ग के अन्तर्गत प्रसाद, पन्त, निराला, महादेवी वर्मा के नाम लिये जा सकते हैं, जबकि द्वितीय वर्ग में माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' और रामनरेश त्रिपाठी को रखा जा सकता है, जबकि तृतीय वर्ग में प्रेम और मस्ती की काव्य रचना करने वाले हरिवंशराय बच्चन, नरेन्द्र शर्मा और रामेश्वर शुक्ल अंचल के नाम हैं। 

राष्ट्रीय काव्यधारा की विशेषताएं

हिन्दी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा का उद्भव एवं विकास
राष्ट्रीय धारा के कवियों ने देशवासियों को स्वतन्त्रता-आन्दोलन में कूद पड़ने के लिए प्रेरित किया तथा भारत की आन्तरिक विसंगतियों एवं विषमताओं को दूर करने का आह्वान किया। बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' की निम्न पंक्तियों में भारत की यथार्थ स्थिति का चित्रण करते हुए भारतवासियों को जाग्रत होने के लिए कहा गया है- 

ओ भिखमंगे, अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिरदोहित । 
तू अखण्ड भण्डार शक्ति का, जाग अरे निद्रा सम्मोहित । 

उन्होंने देश के नवयुवकों को स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर आत्म बलिदान के लिए प्रेरित करते हुए कहा- 

है बलिवेदी सखे प्रज्वलित माँग रही ईंधन क्षण-क्षण । 
आओ युवक लगा दो तो तुम अपने यौवन का ईंधन ॥

'नवीन' जी की एक अन्य रचना में क्रान्ति एवं ध्वंस का स्वर विद्यमान है- 

कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए। 
एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर से आए । 

'निराला' की निम्न कविता में भी 'ध्वंस' के यही स्वर सुनाई पड़ते हैं- 

एक बार बस और नाच तू श्यामा । 
सामान सभी तैयार 
कितने ही असुर, चाहिए कितने तुझको हार ? 

माखनलाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता 'पुष्प की अभिलाषा' भी उल्लेखनीय है जिसमें कवि ने एक पुष्प को उस पथ पर अपना बलिदान देने के लिए तत्पर दिखाया गया है, जो बलिदानी वीरों का पथ है- 

चाह नहीं है सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ । 
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ ॥ 
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ । 
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ ॥ 
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक ।
मातृभूमि पर सीस चढ़ाने जिस पथ पर जावें वीर अनेक ॥ 

राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि

राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं का विवरण निम्न प्रकार है- 
  1. माखनलाल चतुर्वेदी (1889-1968 ई.)- उपनाम एक भारतीय आत्मा, प्रभा, प्रताप, कर्मवीर के सम्पादक, रचनाएँ-हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिनी । 
  2. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' (1897-1960 ई.)- कुंकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मिरेखा, हम विषपायी जनम के, क्वासि । 
  3. सुभद्राकुमारी चौहान (1905-1948 ई.)- त्रिधारा, मुकुल इनके काव्य-संग्रह हैं। इनकी 'झाँसी की रानी' कविता विशेष लोकप्रिय हुई। 
  4. रामनरेश त्रिपाठी (1889-1960 ई.)- मानसी, पथिक, स्वप्न । 
  5. रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974 ई.)- रेणुका, हुंकार, परशुराम की प्रतीक्षा, कुरुक्षेत्र, उर्वशी । 
  6. सियारामशरण गुप्त (1895-1963 ई.)- मौर्य विजय, अनाथ, दूर्वादल, विषाद आद्रा, पाथेय, मृण्मयी, बापू आदि। 

राष्ट्रीय काव्यधारा के कवियों ने युगीन आन्दोलनों का उल्लेख भी अपनी रचनाओं में किया है। इनमें से अधिकांश कवि स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेते रहे थे, अत: उनकी रचनाओं में तथ्यपरकता दिखाई पड़ती है। इन कवियों ने भारत के अतीत गौरव का गान किया, विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए जनता का आह्वान किया, देश में स्वातन्त्र्य चेतना को जगाया और मानव- मूल्यों- सत्य, न्याय, प्रेम, स्वाधीनता आदि की प्रतिष्ठा की।

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