पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोलियों का परिचय और विशेषताएँ

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पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोलियों का परिचय


श्चिमी हिन्दी का विकास शौरसेनी अपभ्रंश हुआ है। इसकी पाँच बोलियाँ है ,जिसका विवरण निम्नलिखित है - 

खड़ी बोली

खड़ी बोली उपभाषा का क्षेत्र उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्रनगर, सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद जिलों तथा आधुनिक उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून आदि तक फैला हुआ है। खड़ी बोली का मानक रूप ही वर्तमान काल में राजस्थान के रूप में अपनाया गया है। आज के समय में साहित्यिक भाषा के रूप में इसी का प्रयोग किया जाता है। खड़ी बोली के दो साहित्यिक रूप मिलते हैं- शुद्ध एवं परिनिष्ठित हिन्दी और उर्दू । शुद्ध एवं परिनिष्ठित हिन्दी में संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों की बहुलता होती है, जबकि उर्दू में अरबी व फारसी भाषा के शब्दों का बाहुल्य होता है। हिन्दी और उर्दू का व्याकरण और वाक्य रचना-पद्धति समान है। इन दोनों में केवल शब्दावली का ही अन्तर है। इसके अतिरिक्त हिन्दी बायें से दायीं ओर लिखी जाती है, जबकि उर्दू दायें से बायीं ओर। 

ब्रजभाषा

ब्रजभाषा का क्षेत्र समूचा ब्रजमण्डल है, जिसके प्रमुख केन्द्र हैं- मथुरा, आगरा, अलीगढ़, धौलपुर आदि नगर। ब्रजभाषा अपने लालित्य माधुर्य और संगीत के कारण विश्व की मधुरतम भाषाओं में परिगणित होती है। कृष्ण की जन्मस्थली और लीला-भूमि से सम्बन्धित होने के कारण यह उत्कृष्ट कोटि के कृष्ण-भक्ति-काव्य की भाषा रही है। इसमें रचित कृष्ण-काव्य में ब्रज संस्कृति जीवन्त रूप में साकार हो उठी है। 

हरियाणवी

पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोलियों का परिचय
यह हरियाणा राज्य में बहुसंख्यक लोगों द्वारा प्रयुक्त की जाती है। इसमें अनेक लोक साहित्यिक कृतियों की रचना भी हुई है। इसकी अनेक उपबोलियाँ हैं, जिन्हें मुख्यतः छः भागों में बाँटा जा सकता है- बाँगरू, अहीरवाटी, कौरवी, ब्रजभाषा, बागड़ी व अम्बालवी । बाँगरू रोहतक जिले के आस-पास की बोली है और यह णकार बहुला भाषा है। खाणा (खाना), गाणा (गाना) जैसे शब्दों का प्रयोग इसकी प्रमुख विशेषता है। दूसरी प्रमुख उपभाषा अहीरवाटी है जो कि रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, नारनौल, कोसली आदि के क्षेत्रों में बोली जाती है। वस्तुत: यह हरियाणा के यदुवंशी अहीरों अथवा यादवों की बोली है। राजस्थान से सटा होने के कारण इस क्षेत्र की बोली पर राजस्थानी भाषा का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसमें घोड़ा को घोड़ो, था को थो, गोबिन्दा का गोबिन्दो (गोबिन्दो आयो थो । ) बोला जाता है। कौरवी भाषा जो कि मूलत: मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर की प्रमुख बोली है। यह हरियाणा के यमुना नदी के निकटवर्ती क्षेत्र सोनीपत, पानीपत आदि में बोली जाती है। पलवल के आस-पास के क्षेत्र में ब्रजभाषा ही बोल-चाल की भाषा है, क्योंकि यह क्षेत्र मथुरा के निकट पड़ता है। इसमें ब्रजभाषा के समान ही काला को कारा, मरोड़ को मरोर का उच्चारण होता है अर्थात् 'ड' और 'ल' की ध्वनि 'र' में बदल जाती है। भिवानी, हिसार आदि के क्षेत्रों में बागड़ी बोली का प्रयोग होता है तथा अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र आदि क्षेत्रों की बोली में अम्बालवी भाषा का प्रयोग होता है। जिस पर पहाड़ी व पंजाबी का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।

कन्नौजी

कन्नौजी का प्रमुख केन्द्र उत्तर प्रदेश के कन्नौज है। वैसे यह हरदोई, शाहजहाँपुर, पीलीभीत, इटावा तथा कानपुर में बोली जाती है। इसमें कुछ लोक-साहित्य भी मिलता है। यह ब्रजभाषा से प्रभावित है। ब्रजभाषा का 'गयो' कन्नौजी में 'गाओ' तथा 'भया' 'भओ' हो जाता है।

बुंदेली

बुन्देली या बुन्देलखण्डी 'बुन्देलखण्ड' की प्रमुख बोली है। यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। उत्तर प्रदेश में इसका क्षेत्र झाँसी, जालौन, हमीरपुर, जिलों तथा मध्यप्रदेश में ग्वालियर, भोपाल, ओड़छा, सागर, होशंगाबाद आदि तक व्याप्त है। इसमें लोक-साहित्य की समृद्ध परम्परा मिलती है। 

इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के उपरांत इस निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है कि पश्चिमी हिंदी की बोलियाँ भारत के बृहत्तर भाग में बोली जाती है।




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