प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता निबंध हिंदी में Adult Education Essay in Hindi praudh shiksha par nibandh प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध प्रौढ़ शिक्षा का लाभ उद्देश
प्रौढ़ शिक्षा निबंध हिंदी में
प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध प्रौढ़ शिक्षा निबंध हिंदी में praudh shiksha par nibandh praudh shiksha nibandh praudh shiksha par nibandh in hindi essay on praudh shiksha in hindi प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता निबंध, प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता निबंध हिंदी में Essay on Adult Education Essay on Adult Education in hindi- संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति विल्सन का कथन था कि, "प्रजातन्त्र की सफलता के लिए हमें अपने स्वामियों (जनता) को पढ़ाना चाहिए।" कथन का अभिप्राय यह है कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए जनता का शिक्षित होना आवश्यक है। इसका कारण है कि प्रजातन्त्र में जनता ही स्वामी होती है। बड़े खेद का विषय है कि भारत में आज भी निरक्षरता का प्रतिशत काफी है। एक सूचना के अनुसार भारत में तीन में से दो व्यक्ति निरक्षर हैं। 15 से 35 वर्ष के अनपढ़ युवाओं की संख्या 10 करोड़ है। इस जटिल समस्या के समाधान के लिए सरकार की ओर से प्रौढ़ शिक्षा योजना के नाम से कार्यक्रम निश्चित किया गया है।
प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ
प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ है ऐसे निरक्षर व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान की जाये, जो विषम परिस्थितियों में रहकर शिक्षा प्राप्त करने में असफल रहे और अपने व्यवसाय में लग गए। प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से ऐसे ही युवकों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसका उद्देश्य उन्हें शिक्षा प्रदान करने के साथ तकनीकी ज्ञान भी प्रदान करना है। इससे नागरिकता के कर्त्तव्यों के ज्ञान के साथ ही उन्हें राष्ट्र के सामने उपस्थित गम्भीर समस्याओं जैसे-बढ़ती जनसंख्या, अशिक्षा, बेकारी, मँहगाई आदि के विषय में जानकारी होगी और वे उन्हें हल करने के प्रयास में सक्रिय सहयोग देंगे।
भारत की स्वतन्त्रता को पचास वर्ष हो चुके हैं। इन वर्षों में राष्ट्र में शिक्षा के प्रचार- प्रसार की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना भी देश में तीव्र गति से हुई है इन सब प्रयासों के फलस्वरूप भी आज देश की 80% जनसंख्या अनपढ़ है जिसमें बच्चों के अलावा प्रौढ़ अधिक है। निरक्षरता का यह रूप नया नहीं अपितु सदियों पुराना है। प्राचीनकाल में मन्दिरों, मठों तथा मस्जिदों में छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था थी। किन्तु जब अंग्रेजों ने भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित किया तो प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करके अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया।
निरक्षरता एक अभिशाप
निरक्षरता एक ऐसा रोग व अभिशाप है जो किसी भी राष्ट्र की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। गाँधी जी के अनुसार-
है।" "सामूहिक निरक्षरता न केवल पाप है, प्रत्युत भारत के लिये लज्जाजनक बात भी नगरों तथा गाँव में रहने वाले 77 प्रतिशत प्रौढ़ आज भी निरक्षर है। उनका साक्षर होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उनकी सन्तान का। शिक्षा केवल रोजगार की दिशा में ही आवश्यक नहीं है बल्कि यह व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करती है। जब वयस्क व्यक्ति शिक्षित होंगे तो वह अपने देश की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्थिति से अवगत होंगे तथा अपने परिवार को उन्नत बनाने के साथ-साथ देश के विकास में सहयोग देंगे।
प्रौढ़ शिक्षा की योजनाएँ
इस योजना की कल्पना 1949 में की गयी। 1961 में एक कार्यक्रम की स्थापना की गयी। सितम्बर, 1969 को "प्रौढ़ शिक्षा मण्डल" की स्थापना को गयी। इस संस्था ने जहाँ इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया वहीं इसे पंचवर्षीय योजनाओं में स्थान दिया गया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना में 7.5 करोड़, तृतीय योजना में 12 करोड़ तथा छठी योजना में अरबों रुपयों की व्यवस्था की गयी।
इस कार्यक्रम में प्रौढ़ शिक्षा पाठ्यक्रम, शिक्षा प्रणाली, शिक्षण केन्द्र आदि बातों की ओर विशेष ध्यान दिया गया। कार्यक्रम 8 से 10 माह में समाप्त होना था। प्रौढ़ों को 35 घण्टे शिक्षा देने की व्यवस्था की गयी। इस कार्यक्रम में पुरुषों के साथ निरक्षर महिलाओं की शिक्षा की भी व्यवस्था की गयी है।
प्रौढ़ शिक्षा का लाभ
प्रौढ़ शिक्षा का पूर्ण लाभ तभी होगा जब यह सामाजिक विकास की प्रक्रिया पर आधारित हो। इस तथ्य को दृष्टि में रखते हुए भारत सरकार ने प्रौढ़ शिक्षा को विस्तार देकर सामाजिक शिक्षा का रूप प्रदान किया। शिक्षा के क्षेत्र में भारत के लिए प्रौढ़ शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है। सरकार इस दिशा में जागरुक है तथा व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास चल रहे हैं। सरकार द्वारा महाविद्यालयों में संचालित राष्ट्रीय सेवा योजना के अन्तर्गत भी प्रौढ़ शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया है।
प्रौढ़ शिक्षा को राष्ट्रीय कर्त्तव्य समझकर साक्षर युवक तथा युवतियों को निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने का प्रयास करना चाहिए। सरकार द्वारा भी इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये जा रहे हैं। हमें विश्वास है कि कुछ ही वर्षों में हमारे देश के अधिकांश प्रौढ़ साक्षर होंगे। साक्षर होने पर वे पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर सकेंगे। जिसके फलस्वरूप उनमें सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनतिक चेतना जाग्रत होगी तथा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा।
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