राजेंद्र यादव की कहानी कला की समीक्षा

SHARE:

राजेंद्र यादव की कहानी कला की समीक्षा कथा संगठन पात्र एवं चरित्रांकन कथोपकथन भाषा शैली राजेंद्र यादव की कहानियों में उद्देश्य राजेन्द्र यादव कथा शिल

राजेंद्र यादव की कहानी कला की समीक्षा


यी कहानी के प्रमुख स्तम्भ राजेंद्र यादव की कहानियों में स्थितियों की प्रमुखता रहती है ,विवरण की नहीं। साथ ही उनमें व्यंग का भी गहरा पुट रहता है ,भले ही वह अप्रत्यक्ष रूप से हो। राजेन्द्र यादव कथा शिल्पी के रूप में प्रसिद्ध हैं और इनकी कहानियाँ जीवन से जुड़ी हैं ,जिनमें जीवन के प्रति आस्था  है ,संकल्प और जिजीविषा है। उनकी कहानियाँ उद्देश्यपूर्ण और यथार्थबोध से संपृक्त है। संक्षेप में उनकी कहानी कला को इस प्रकार से परखा जा सकता है - 

कथा संगठन 

राजेंद्र यादव की कहानियों में  कथानक प्रायः आधुनिक यथार्थ से जुड़े हैं। अतः वे जीवन से भी जुड़े हैं। एक आलोचक की धारणा है कि समाज ने इस मध्य जो करवट ली ,उसकी धड़कन की प्रतिध्वनि की नब्ज पकड़कर एक नवीन चेतना के साथ उस जिम्मेदारी को उठाने में आप सफल रहे हैं। वस्तुतः राजेन्द्र यादव की कहानियों में इस परिवर्तित होते हुए रूप की व्यंजना बड़ी रोचक और प्रवाहमयी है। उनके कथानक जीवन संघर्ष और विषमताओं के चित्र उतारने में बेजोड़ हैं। साथ ही अधिकतर कहानियाँ नारी की करुण स्थिति से है। परिणामतः ये कहानियाँ कहीं तो धार्मिक ,कहीं सामाजिक और कहीं नैतिक बंधन तोड़ती भी दिखाई देती है। इनकी कहानियों में कहीं विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त शोषण के प्रति अत्यधिक आक्रोश है और उसका व्यंगात्मक रूप में पर्दाफाश किया गया है। इनकी कहानियाँ संबंधों की टूटन ,अजनबीपन। फ़ालतू होने बोध ,तनाव जैसी विषम स्थितियाँ और सामाजिक विकृतियों को भी विशलेषण दिखाई देता है। 

पात्र एवं चरित्रांकन

राजेंद्र यादव की कहानी कला की समीक्षा
राजेन्द्र यादव की कहानियों के पात्र प्रायः मध्यवर्गीय या उच्चवर्गीय ही हैं ,वे महानगरीय हैं और महानगरीय आधुनिक सभ्यता के प्रतिनिधि हैं जो प्रायः हारे ,टूटे ,पीड़ित ,निराश और जीवन से उखड़े हुए हैं। इनकी कहानियों में पात्रों का जीवन सहज स्वाभाविक कम ,कृत्रिम ही ज्यादा होता है। पात्रों की अपनी कुछ दुर्बलताएँ होती हैं ,समस्याएँ होती हैं ,उलझाने और संघर्ष होते हैं और ये पात्र प्रायः द्वन्द में ही जीते दिखाई देते हैं। फिर इनके पात्र प्रायः इसी पृथ्वी के हैं ,काल्पनिक नहीं है। वे हमारे मध्य के ही हैं ,जिनकी अपने ढर्रे पर चल रही जिंदगी होती है ,अभाव होते हैं ,कुंठाएँ होती है ,घुटन होती है। आज व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। अतः पात्रों की इस स्थिति को सामाजिक परिवेश से जोड़कर ही उभारा गया है। राजनीतिक क्षेत्र में महानगरीय मानसिकता और आधुनिक यथार्थता परिलक्षित होती है ,जहाँ देश गौण और व्यक्ति की लिप्सा ही प्रधान हो जाती है और इस राजनीति ने पात्रों की दमघोंटू अवस्था में ला खड़ा किया है। उन्होंने परम्परा और आधुनिकता का संघर्ष भी दिखाया है। अतः पात्र टूटे संबंधों के कारण एकाकी ,अभिशप्त ,निर्वासित ,अजनबी ,अपरिचित ,अन्तरद्वन्द में उलझे ,लड़ते ,हारते ,जीतते और टूटते दिखाई देते हैं। जहाँ तक चरित्रांकन का प्रश्न हैं तो वह पात्रानुकूल ही हैं ,स्वाभाविक है ,स्थितियाँ एवं परिस्थितियों में से ही विकसित होता दिखाई देता है ,उसमें गढ़ने जैसी स्थिति नहीं नहीं है। 

कथोपकथन 

राजेंद्र यादव की कहानियाँ जीवनगत स्थितियों को उभारती हैं। अतः उनमें कथोपकथन अत्याधिक सहायक बन पड़े हैं। कथोपकथन पात्रों के व्यक्तित्व ,उनकी मनस्थितियों तथा चारित्रिक विशेषताओं को प्रकट करने में पूर्ण सक्षम हैं ,साथ ही उनमें कथा को आगे बढ़ाने की भी विलक्षण शक्ति है। वे सरल ,संक्षिप्त ,स्वाभाविक और पात्रोचित हैं। वातावरण निर्माण में भी सहायक है तथा परिस्थितियों के अनुरूप भी हैं। उनके संवादों में नाटकीयता ,हास्य व्यंग और परिहास का पूत तो हैं ही वे पात्रों की क्रिया प्रतिक्रिया और आंतरिक संघर्ष को भी व्यंजित करते दिखाई देते हैं। साथ ही उनमें प्रवाह भी उचित मात्रा में हैं। 

राजेन्द्र यादव की कहानियों में स्वगत भाषणों की भी प्रचुरता है जो पात्रों की सोच ,आन्तरिक दशा ,उलझाव ,भटकाव आदि को व्यंजित करते हैं।  वे अपने आप में उलझे भी हैं। उक्त संवाद लेखन में राजेन्द्र यादव प्रवीण और कुशल हैं। 

भाषा शैली 

राजेन्द्र यादव की कहानियों की भाषा ,सहज ,सरल ,सुबोध तो हैं ही साथ ही व्यंजनाशक्ति से भी पुष्ट है। कथानक का मूल उद्देश्य कथ्य को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करना ही होता है। इस दृष्टि से यादव जी निश्चित रूप से सफल कथाकार माने जा सकते हैं। इनकी भाषा वर्ण्य भावों के अनुकूल है। उनका यह आग्रह नहीं है कि भाषा शुद्ध ,साहित्यिक और संस्कृत तत्सम प्रधान हो। उसमें जहाँ प्रवाह है ,वहीँ प्रचलित विदेशी शब्दों का भी बेहिचक प्रयोग हो उठा है। अभिव्यक्ति को सरल रूप देने के लिए देशज शब्दों के प्रयोग को भी उन्होंने ठीक ही माना है। 

उनकी भाषा में चरित्रों के द्वन्द को अभिव्यक्त करने की शक्ति भी है ,शब्द भंडार समृद्ध हैं। उनकी भाषा परंपरागत न होकर पात्रों की मन स्थितियों ,पारिस्थितियों ,मानसिकताओं के उदघाटन के लिए लचीला रूप लेती जाती है ,जिससे ये सारी स्थितियां स्पष्टतः उभरकर सामने आ जाती है। इनकी भाषा कथ्य और भाव को उलझाती नहीं है और कहानी को आवश्यक विस्तार दे देती है। 

जहाँ तक शैली का सवाल है तो शैली उनकी अपनी निजी है पर वह सशक्त ,प्रभावपूर्ण ,सारगर्भित तो है ,उसमें सजगता चारों ओर लक्षित होती है। उन्होंने समयानुसार कई कथन पद्धतियों का प्रयोग किया है ,जिनमें से नाटकीय मनोविश्लेषणात्मक अत्यधिक प्रभावी है। उनका शिल्प नया और मंजा हुआ है। आरम्भ प्रायः वर्णनात्मक या संवादात्मक होता है। जहाँ उन्होंने महानगरीय जटिलताओं की अभिव्यक्ति की है। वहां शिल्प अपेक्षाकृत अधिक कठिन हो गया है ,जिसमें आम पाठक उलझ जाता है। 

राजेंद्र यादव की कहानियों में उद्देश्य 

नयी कहानी का उद्देश्य परंपरागत ढंग से ढूंढना सहज संभव नहीं है क्योंकि वह जीवन के चारों तरफ केन्द्रित है। यह तो पूणर्तः स्पष्ट है कि यादव जी की कहानियाँ महानगरीय जीवन जटिलताओं से जुडी है और यथार्थ पर आधारित है ,पर यह भी सत्य है कि उनमें व्यक्ति की जिन कुंठाओं ,अजनबीपन ,घुटन आदि का चित्रण हुआ है। उसका अधिकांश भाग पात्राधारित है - पात्र ही उनके लिए जिम्मेदार हैं ,परिस्थितियां भी थोड़ी बहुत जिम्मेदार हो सकती है पर यदि परिस्थितियों से समझौता कर लिया जाए तो पात्र को शायद उतनी कठिन स्थिति में न जाना पड़े ,जितनी में वह जी रहा है। लेखक उसी आदर्श स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता है। यही आज की स्थितियों में वांछित भी है। इसी तथ्य को लक्ष्य करके एक आलोचक की मान्यता है - उनकी रचनाओं में अपना एक व्यक्तित्व और दृष्टि हम पाते हैं। ऐसा लगता है कि आज महानगरीय सड़ी - गली संस्कृति में फँसे मानव को वे प्रेरणा दे रहे हैं। 


COMMENTS

Leave a Reply
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका