हिंदी साहित्य में गद्य काव्य गद्य गीत गद्य काव्य की विशेषताएं गद्य कितने प्रकार के होते हैं ? गद्य काव्य के प्रमुख लेखक उद्भव और विकास गद्यकाव्य की पर
हिंदी साहित्य में गद्य काव्य | गद्य गीत
निबंध और प्रगीत के बीच की रचना गद्य काव्य होती है। हिंदी जगत में इस प्रकार की रचनाओं के लिए दो शब्द प्रचलित हैं - गद्यकाव्य और गद्यगीत। डॉ.पद्मसिंह शर्मा ने हिंदी के गद्यकाव्य पर शोध प्रबंध उपस्थित किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यद्यपि व्यावहारिक रूप में गद्यगीत तथा गद्यकाव्य में अंतर अवश्य ही है ,किन्तु सामान्य रूप से दोनों प्रकार की रचनाओं के लिए एक ही शब्द गद्यकाव्य का प्रयोग किया जा सकता है और उससे स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता है। उनके अनुसार गद्यगीत तथा गद्यकाव्य में केवल एक अंतर है। गद्यगीत में केवल एक भाव या विचार की अवतारणा होती है और उसमें कल्पना की प्रधानता होती है ,किन्तु गद्यकाव्य में एक से अधिक भावों अथवा विचारों की अवतारणा हो सकती है और उसमें कल्पना की प्रधानता का होना भी आवश्यक नहीं है। केवल इस अंतर को छोड़कर दोनों गद्यकाव्य तथा गद्यगीत का स्वरुप समान होता है। उसमें मौलिक अंतर नहीं है। अतः हम उन्हें एक मानेंगे।
गद्य काव्य की विशेषताएं
श्रीविश्वम्भर मानव जी के शब्दों में गद्यगीत शब्द ही इस बात का घोतक है कि गद्य और पद्य के मध्य की कोई वस्तु है। गद्य जो अपनी सीमा में नहीं रहा ,पद्य की ओर बढ़ गया (गीत ,जो अपनी परिधि को नहीं छू सका ,गद्य की ओर लौट आया ,दोनों मिलकर गद्यगीत बन गए ) . गीत के समान ही गद्यगीत आकार में लघु होता है। गीत के समान ही उसमें एक भाव ,एक वृत्ति ,एक वातावरण ,एक विचार का निर्वाह आदि से अंत तक होता है। गीत की भाँती वह रसमय होना चाहिए ,नहीं तो गद्यगीत कहने में कोई सार्थकता नहीं रहेगी। यद्यपि वह छंद के बंधनों में बंधा हुआ नहीं ,परन्तु उसमें शब्दों ,वाक्यांशों या वाक्यों की आवृत्ति इस प्रकार होती है कि छंद का ही आनंद उसमें आता है। डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार - गद्यगीत साहित्य की भावनात्मक अभिव्यक्ति है। इसमें कल्पना और अनुभूति काव्य उपकरणों से स्वतंत्र होकर मानव जीवन के रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए उपयुक्त और कोमल वाक्यों की धारा में प्रवाहित होती है। " डॉ.पद्मसिंह शर्मा कमलेश के शब्दों में - छंद बंधन रहित और इतिवृत्तहीन ऐसी भावपूर्ण कल्पना प्रधान रचना को गद्यकाव्य कहेंगे ,जिसमें बुद्धि तत्व को विशेष महत्व न दिया गया हो। "
डॉ.कमलेश के मतानुसार सफल गद्यकाव्य के निम्नलिखित तत्व होते हैं -
- अनुभूति की गहराई
- भावावेश
- कल्पना की प्रधानता
- कथा तत्व अथवा घटना तत्व की न्यूनता
- एकतथ्यता
- बुद्धि तत्व का हल्का सा पुट
- अनूठा शब्द चयन
- अनूठी वाक्य रचना
हिंदी के सर्वप्रथम गद्यगीत लेखक होना के श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद जी को है। विश्वम्भर मानव ने रामकृष्णदासजी को हिंदी का सर्वप्रथम गद्यकाव्य लेखक माना गया है - हिंदी गद्यकाव्य का श्रीगणेश रामकृष्ण दास से हुआ ,उसके उपरान्त चतुरसेन शास्त्री और वियोगीहरि के नाम आते हैं। " गद्यकाव्य के आरम्भकर्ता सम्बन्धी वाद विवाद को यदि विस्मृत कर दिया जाए तो इतना निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि गद्यकाव्य का आरंभिक रूप चौधरी बद्रीनारायण प्रेमधन और गोविन्दराय मिश्र के गद्य काव्य जैसे गद्यखण्डों में मिल जाता है। स्वतंत्र रूप में गद्यकाव्य का आरंभिक रूप आचार्य चतुरसेन शास्त्री और ब्रजनन्दन सहाय के गद्य्गीतों में मिलता है।
गद्य काव्य कितने प्रकार के होते हैं ?
गद्यगीतों के तीन रूप दिखाई देते हैं - प्रथम चौधरी बदरीनारायण प्रेमधन तथा गोविन्द नारायण मिश्र की रचनाओं में मिलता है। वह गीतांजलि की नहीं ,एक ओर तो वैदिक उपनिषद साहित्य के और दूसरी ओर दशकुमार चरितवासवदत्ता - कादंबरी के काव्यात्मक गद्य की देन है। दूसरा रूप ,निश्चय रूप ही गीतांजलि की देन है। उस गीतांजलि की शैली की छाप स्पष्टत: अंकित है। इस प्रकार की रचनाएँ प्रस्तुत करने वालों में उल्लेखनीय रायकृष्ण दास ,राधिकारमणप्रसाद सिंह ,मोहनलाल मेहता ,शिवपूजन सहाय ,तेजनारायण काक आदि। तीसरा रूप वह है जो इन दोनों के बाद पनपा और जिसे बिना किसी हिचकिचाहट के हिंदी की अपनी चीज कहा जा सकता है। जिन कलाकारों की रचनाओं में यह दृष्टव्य है उनमें दिनेशनंदिनी डालमिया ,माखनलाल चतुर्वेदी ,महावीरप्रसाद दधिची ,राची और ब्रह्मदेव आदि है।
गद्य काव्य के प्रमुख लेखक
इस प्रकार हम देखते हैं कि हिंदी में गद्यकाव्य की परंपरा काफी प्राचीन है। युग परिवर्तन के साथ - साथ इसके रंगरूप में भी अंतर आया है। रायकृष्णदास कृत साधना ,संताप ,प्रवाल ,प्रवाह ,छायापथ आदि है। वियोगीहरि कृत तरंगिनी ,अंतर्नाद,भावना ,प्रार्थना ,श्रद्धाकण ,आचार्य चतुरसेन शास्त्री कृत अन्तस्तल ,तरलाग्नी आदि है। डॉ.रघुवीर सिंह कृत शेष स्मृतियां ,ब्रह्मदेव कृत निशीथ ,आँसू भरी धरती ,उदीची आदि है। रंगनाथ दिवाकर कृत अंतरात्मा से एवं महावीरशरण अग्रवाल कृत गुरुदेव प्रमुख हैं।
बहुत सुंदर
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