सोने के से दिन | संस्मरण

SHARE:

कल्पनाओं से दूर कभी- कभी मेरा मन बीते दिनों की सैर करने लगता है। आज भी ऐसा ही ही हो रहा है। आज जब मैं बिजली की रोशनी में नहाए भारत की राजधानी दिल्ली म

सोने के से दिन 


ल्पनाओं से दूर कभी- कभी मेरा मन बीते दिनों की सैर करने लगता है। आज भी ऐसा ही ही हो रहा है। आज जब मैं बिजली की रोशनी में नहाए भारत की राजधानी दिल्ली में हूँ तो मुझे अपने उस बचपन का अल्हणपन याद आ रहा है जिसमें न भविष्य के चिंता थी और न ही कुछ खोने का डर। सब अपने से लगते थे लेकिन ज़रा सा गुसा आ जाए तो सब पराये। हालांकि यह सब थोड़ी देर ही रहता था फिर हवा में तैरते बादलों के तरह कब और कहाँ गायब हो जाता था पता न चलता। कुछ घंटों बाद ही अपने किसी साथी से गलबहिंयाँ करते नज़र आते ।हर साल 20मई आती और मात्र एक रुपये गुरूजी को देकर मौखिक रूप से पास होने की खबर सुनते ही मन खुश हो जाता। यह एक रुपया भी घर से बहुत मुश्किल से मिलता। किसी-किसी साल तो न भी मिलता लेकिन गुरू जी हम लोगों से बहुत प्यार करते थे। कभी उन्होंने दक्षिणा माँगी नहीं जैसा कि आजकल के स्कूलों में लूट मची है ।इसके बाद तो स्कूल 1 जुलाई को ही खुलना होता था पहले से ही इंतज़ार रहता था कि छुट्टी होते ही मामा के घर जाना है और खूब मौज उड़ाना है। उस खुशी को आज शब्द में लिख पाना संभव नहीं है। 

सोने के से दिन | संस्मरण
गर्मी की तपती लू में भी बिना बनियान पहने नंगे बदन बगीचे में घूमते रहने का अलग आनंद था ।कच्चे आम तोड़कर सूखी पत्तियों में भून लिया जाता था ।वहीं नमक डालकर इसका शरबत भी बना लिया जाता था। लू से बचने का हमारे पास यही एक उपाय था। मेरे साथियों में से कोई नमक लाता था तो कोई माचिस तो कोई हैंडपंप से पानी भर  लाता था ।भूनने के लिए जो आम तोड़े जाते वे दूसरे के पेड़ों के होते लेकिन भूने जाते अपने जंगल में ताकि किसी को शंका न हो। एक बार तो साहू के पेड़ से आम तोड़कर आए थे ।साहू पेड़ के नीचे बैठकर रखवाली कर रहे थे मेरी मंडली के एक लड़के ने उन्हें बातों में ऐसे उलझाया कि उन्हें पता ही न चला कि  कब दूसरे ने पीछे से उसी पेड़ के आम तोड़ लिए ।अब सोचता हूँ कि यह कितना विचित्र था और गलत भी। खेल तो ऐसे-ऐसे ईज़ाद कर लिए थे कि उनके नाम किताबों में नहीं मिलते। चिल्होरपत्ती,सत्ता , पटरीसुटुर्र का नाम मैंने किसी किताब में नहीं पढ़ा लेकिन हम खूब खेलते थे। कंचे में कुछ विशेष रुचि न थी ,गुल्ली -डंडा में आँख खोने का डर था। वैसे भी पिता जी की ओर से इसे न खेलने  की सख्त ताक़ीद पहले हीकर दी गई थी। 

गेहूँ की फसल कट जाने पर ढोर चराने में भी गजब की स्वतंत्रता थी।  इसके नाम पर तो चाहे सारा दिन गायब रहो कोई पूछने वाला न था। हाँ ,अगर कोई शिकायत कर दे तो फिर खैर नहीं थी। हाथ-पाँव बाँधकर कुछ देर धूप में छोड़ दिया जाता फिर दादी छुड़ा देतीं। सुधार का यह नायाब तरीका अब किसी पर लागू नहीं होता। मेरी तरह मेरे जानवर भी विचित्र थे। गाय ,बैल, भैंस , बछिया ,बछवा ,पँडिया कुल मिलाकर पूरे बाईस थे। हर दूसरे दिन कोई ने कोई जानवर गायब ही हो जाता था। फिर पिता जी से ढूँढ़ने निकलते और ढूंढ भी लेते। एक बार तो मेरी भैंस के साथ मेरे ताऊ  की भी भैंस गायब हो गई। हुआ यूं कि दूर चरती दो भैंसों को अपना समझकर हम दोनों आम भूनने में और खेलने में लगे थे। शाम को जब उसे बहोरने (हाँकने) गए तो पता चला कि वे भैंसे तो दूसरे गाँव के चरवाहों की हैं। पिता जी और बड़े भाई साहब  तीन दिन बाद भैंसों को खोज सके ।वह भी किसी महानुभाव ने बाँध लिया था नहीं तो पता भी न चलता। भैसों ने उनके गन्ने को चर लिया था।उन दिनों गेहूँ की मड़ाई आज की तरह मशीनों से नहीं होती थी ।गेहूँ के पौधों को धूप में फैला दिया जाता था ।बैलों को उन पर चलाया जाता था ।उनके खुरों से ये पौधे कट-कट कर भूसा बन जाते थे 30-40 बोझ का भूसा बनाने में तीन या चार दिन लगते थे। जब हवा चलती तो इसे ओसा कर अनाज को अलग किया जाता ।अगर हवा न चलती तो परौता(दो लोगों द्वारा चादर के किनारों को पकड़कर  हवा करना ) मारना पड़ता। मैं छोटा था तो यह नहीं करना पड़ता था देखने में खूब मज़ा आता था। बैलों के मुँह पर खोंच (रस्सी का जालीनुमा जिससे जानवर कुछ खा नहीं सकते थे ) नहीं लगाई जाती थी। अनाज खा कर बैल तंदुरुस्त हो जाते थे। खेती का सारा दारोमदार इन्हें बैलों के कंधों पर ही तो था। खेतों की जुताई भी इन्हीं से होती थी। बाद के वर्षों में हल जोतने का कुछ अवसर मुझे भी मिला था लेकिन फिर ट्रैक्टर का ज़माना आ गया ।

माता जी अचार तो रोहिणी नक्षत्र में बनाती थीं लेकिन खटाई हमेशा आर्द्रा में वह भी तीन बार भीगकर काली हो जाने के बाद खूब सुखाकर। अब इसके पीछे क्या कारण था यह तो उन्होंने कभी न बताया लेकिन इससे साल भर के लिए अरहर की दाल का स्वाद बढ़ाया जाता।  सिरका तो अब मिलता ही नहीं जबकि माता जी इसका प्रबंध अपने हाथों से किया करती थीं ।मुझे अच्छी तरह याद है कि पहले बरसात आज की तरह छिटपुट नहीं होती थी। उस समय मैं शायद कक्षा तीन या चार में पढ़ रहा था इतनी बरसात हुई कि कई दिनों तक पानी कम नहीं हुआ क्योंकि जितना पानी निकलता था उससे अधिक बरसात हो रही थी ।कई घर तो गिर गए, तब ज़्यादातर मकान मिट्टी के होते थे। घुटने भर पानी में छप-छप -छप-छप करके चलने का अलग आनंद था ।सावन भादों में तो घनघोर वर्षा होती थी। बचपन में ओले गिरने से दादा जी -पिता जी को दुःख हुआ होगा मुझे तो उसे बीनकर खाने का आनंद आज भी याद आ रहा है । मेरे घर के सामने वाले बड़े तालाब में कुमुद खूब खिलते थे। उस समय शायद आज भी गाँव के लोग इसे बेरा कहते हैं। इसमें कमल नहीं थे लेकिन लहराते तालाब का कुमुद से ढंका होना मन को खुश करता था ।जलमुर्गियों की कुड़कुड़ाहट भी खूब सुनाई देती थी। रात होते ही जंगल से पता नहीं कौन सा कीड़ा ऐसे बोलने लगता जैसे कोई एक ही साँस में लंबे समय तक सीटी बजा रहा हो। जब साँप अपने मुँह में किसी मेढक को भर लेता था तो ढेला मारकर उसे बचाने की कोशिश की जाती थी लेकिन हर बार बचाया नहीं जा सकता था। रात में जानवर अगर रस्सी तुड़ाकर जंगल में चले जाते थे तो उन्हें पकड़ने के लिया हाथबत्ती लेकर ढूँढ़ लिया जाता था। बरसात के कारण बगीचे की पत्तियों के सड़ने से अजीब गंध आती थी लेकिन घिन कभी न आती क्योंकि इसमें टहलने का अभ्यास था। मुझे जानवर चराने , आम भूनने , बातें बनाने का अच्छा अभ्यास हो चुका था लेकिन पढ़ने का अभ्यास बिलकुल भी न था ।यह अभ्यास मेरी छोटी बहन नीलम को था। एक बार गणित में उसे 50 में 40 नंबर मिले लेकिन मुझे 12 नंबर मिले उसे बहकाकर अपने पक्ष में कर लिया। घर जा कर मैं भी अपना 40 नंबर बता दिया। उन दिनों प्राइमरी स्कूल में  कक्षा पाँच से पहले कागज़ी अंकपत्र नहीं मिलता था। सोचा किसी को नहीं पता चलेगा लेकिन मेरे ताऊजी उसी स्कूल में पढ़ाते थे तो बात खुल गई। 

उसी दिन एक साधु आए थे मैंने उनकी इतनी सेवा कर दी कि पिता जी भी कुछ न बोले। मन में दुखी तो थे लेकिन साधू बाबा के सामने मैं बच गया तो फिर बच ही गया। उन दिनों  इलाज़ का एक दस्तूर था ।वह यह कि बुखार किसी भी कारण से हो नीम  का बलका (नीम का सींका और कली मिर्च) पीना पड़ता था लूज मोशन हो जाए तो शीशम की पत्तियों का लिबलिबा घोल और अगर कहीं जल गए तो राखी -पाती से पाला पड़ता। ऐसा मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि एक बार घर में सूजी का हलवा बना था। मेरी बहन ने सोचा उसे कोई देख नहीं रहा, जल्दी से खा ले क्योंकि हो सकता है बाद में उसे कम मिले या मिले ही न ।उसकी यह योजना सफल न हो सकी क्योंकि कड़ाही बड़ी थी और बहुत गर्म भी थी। शायद अभी तुरंत ही चूल्हे से उतारी गई थी। उसका छोटा हाथ हलुए तक पहुँचता इससे पहले ही वह चिल्ला पड़ी क्योंकि कलाई कड़ाही की बारी पर चिपक गई। अब तक उस जगह झलका पड़ गया। अगले दिन फूट भी गया। मैं रोज ही जंगल में बने कुएँ के पास जाता मदार के पत्ते ला कर जलाता। चाची घाव पर सरसों का तेल लगाकर राख चिपका देती और वह बेचारी पुचपुचाता हुआ फफोला लिए घूमती रहती। उसका दुःख तो देखा नहीं जाता था लेकिन अपने वश में मदार के पत्ते लाने से अधिक कुछ न था। चोर की मजबूरी होती होगी लेकिन ईमानदार तो उसे भी अच्छे लगते हैं। मेरा पढ़ने में मन न लगता लेकिन पढ़ने वाले मुझे हमेशा अच्छे लगे। शायद इसीलिए बाद के वर्षों में मैंने पढ़ना शुरू कर भी दिया ।मेरा मिडिल स्कूल कुकुआर में था अपने घर से कुकुआर जाने में  मजीठी  गाँव पार करना पड़ता है जो कोई मुश्किल काम न था लेकिन बरसात के दिनों में यहाँ से बहने वाले नाले को पार करने में मुश्किल आती थी क्योंकि पानी का बहाव बहुत तेज़ होता था। एक बार तो मेरा पैर ऐसे फिसला कि बस्ता ही बह गया। मन में बहुत खुश हुआ कि अब स्कूल नहीं जाना पड़ेगा लेकिन कुछ ही दूर पर यह अटक गया  था। दो दिन सुखाने के बाद फिर स्कूल जाने लायक हो गया। अंग्रेजी ,हिंदी , इतिहास ,भूगोल में कोई परेशानी न थी लेकिन गणित का काम कभी न पूरा हुआ इतना ज़रूर था कि किसी तरह पास हो जाता। बाद में इस विषय को समझने की कुछ कोशिश ज़रूर की लेकिन कामयाबी न मिली तो मैं समझ गया कि रुचि सर्वोपरि है। इसका बलिदान नहीं किया जा सकता।



- भूपेश प्रताप सिंह 
प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश 
8826641526

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1477,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,40,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,77,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,7,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,49,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,9,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,270,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,433,हिंदी लेख,535,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,183,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,425,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,681,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,75,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,23,kavyagat-visheshta,26,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,6,Syllabus,7,tamas-upanyas-bhisham-sahni,3,top-classic-hindi-stories,58,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: सोने के से दिन | संस्मरण
सोने के से दिन | संस्मरण
कल्पनाओं से दूर कभी- कभी मेरा मन बीते दिनों की सैर करने लगता है। आज भी ऐसा ही ही हो रहा है। आज जब मैं बिजली की रोशनी में नहाए भारत की राजधानी दिल्ली म
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiq-TXxiUgIaSfK-0JyEcmfR4x8KctpI3VehoaK_kW8iEsRePQyFqdjd-XzHMehp9WsCzhJU41X2PFKf4fgXRKcCtlzAsA28afmxBfvH-wu8RNgnaFNe-kODsBCkPreyJ16Wwn-9tVWXPbZweNuq_vrXMmI_Cw9VU6YIPJizqiW-L7y_oZpXzWQpRf8Hg/s320/sone-ke-se-din.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiq-TXxiUgIaSfK-0JyEcmfR4x8KctpI3VehoaK_kW8iEsRePQyFqdjd-XzHMehp9WsCzhJU41X2PFKf4fgXRKcCtlzAsA28afmxBfvH-wu8RNgnaFNe-kODsBCkPreyJ16Wwn-9tVWXPbZweNuq_vrXMmI_Cw9VU6YIPJizqiW-L7y_oZpXzWQpRf8Hg/s72-c/sone-ke-se-din.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2023/02/sone-ke-se-din-hindi-sansmaran.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2023/02/sone-ke-se-din-hindi-sansmaran.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका