संक्षेपण किसे कहते है? प्रमुख विशेषताएँ, उदाहरण तथा नियम

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संक्षेपण किसे कहते है? प्रमुख विशेषताएँ, उदाहरण तथा नियम


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संक्षेपण का अर्थ एवं परिभाषा

किसी विस्तृत बात को संक्षेप में इस प्रकार कह देना कि उसका सारा आशय उसके संक्षिप्त रूप में आ जाए तो
संक्षेपण किसे कहते है? प्रमुख विशेषताएँ, उदाहरण तथा नियम
संक्षेपण कहलाता है।अंग्रेजी में इसे Precis writing कहते हैं। राजकीय कार्यों में संक्षेपण का बहुत बड़ा महत्व है। विविध कार्यों से सम्बंधित विस्तृत पत्र सरकारी कार्यलयों में पहुँचते हैं ,जिन अधिकारियों को निर्णय लेना होता है ,उनके पास इतना समय नहीं होता है कि विस्तार से सारे तथ्यों तब समझे। इसके लिए आवश्यक होता है कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी उन विस्तृत पत्रों का संक्षेप तैयार करें ,ये संक्षेप ऐसे हों तो पत्रों के मूल आशय को प्रकट करें और पत्र के सारे बिंदु इसमें आ भी जाएँ। संक्षेपणकर्ता को चाहिए कि सर्वप्रथम वह पत्र के मूल विषय को शीर्षक रूप में रख दें ,फिर विस्तृत पत्र का संक्षेप प्रस्तुत करे। इस तरह संक्षेपण एक कला है ,जो सतत अभ्यास से आती है। संक्षेपणकर्ता को भाषा का अच्छा ज्ञान होना चाहिए ,तभी वह यह कार्य कर पायेगा। इस आधार पर संक्षेपण की परिभाषा अधोलिखित रूप में दी जा सकती है - 

किसी विस्तृत विवरण ,व्याख्या पत्र व्यवहार अथवा वक्तव्य एवं लेख की अनावश्यक ,अप्रासंगिक ,बार-बार दोहराई गयी तथा असम्बद्ध बातों को हटाकर ,अत्यंत संक्षेप में इस तरह प्रस्तुत करना कि विस्तृत रूप का मूल भाव आ जाए - संक्षेपण कहलाता है। 

इस प्रकार संक्षेपण एक महत्वपूर्ण आलेख है। इसे पढ़ लेने के बाद निर्णय लेने वाले अधिकारी को सारी बातें समझ में आती रहती है और वह सम्बंधित विषय पर उपयुक्त निर्णय तक पहुँचने में कोई कठिनाई नहीं अनुभव करता है .किसी ने ठीक ही है कि संक्षेपण किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण ,बड़ी मूर्ति का लघु अंकन तथा बड़े चित्र का छोटा चित्रण है। 

संक्षेपण की विशेषता

आदर्श संक्षेपण  की तीन प्रमुख विशेषता है - 
  • भावगत पूर्णता 
  • संक्षिप्तता 
  • भाषा प्रयोग की दक्षता 
  1. भावगत पूर्णता - जिस लेख या व्याख्यान अथवा पत्र का संक्षेपण किया जा रहा है ,उसकी सारी बातें संक्षेपण में आनी चाहिए ,तभी संक्षेपण कलात्मक होगा। इसके लिए आवश्यक है कि संच्शेपाकर्ता अपनी तरफ से कोई न बात जोड़कर मूल लेख की ही बातों का सार - संक्षेप प्रस्तुत करे। संक्षेपण व्याख्या ,भावार्थ ,सारांश अथवा आशय से सर्वथा भिन्न है। इसमें सारी बातें वही कहनी है ,जो मूल का अंश है ,न उनकी व्याख्या करनी है ,न उनका आशय प्रस्तुत करना है ,न ही सारांश देना है ,मूल के विस्तार को बड़ी दक्षता के साथ संक्षेप में रख देना है ,यही संक्षेपण की पूर्णता होगी। 
  2. संक्षिप्तता - यह संक्षेपण की कुंजी है। आकार की दृष्टि से संक्षेपण को मूल का तृतीय अंश होना चाहिए। आजकल प्रतियोगी परीक्षाओं में संक्षेपण हेतु संख्या निर्धारित कर दी जाती है। कुशल संक्षेपणकर्ता वही है ,जो इस सीमा से न बहुत आगे बढ़े न पीछे रह जाए। यह सब होगा कैसे ? इसके लिए आवश्यता होगी सधे हुए अभ्यास की और विस्तृत भाषा ज्ञान की। 
  3. भाषा प्रयोग की दक्षता - संक्षेपणकर्ता को पर्याप्त भाषा ज्ञान होना चाहिए। भाषा ज्ञान से तात्पर्य है कि एक तो उसे भाषा का व्याकरणिक ज्ञान हो ,दूसरे उसमें भाषागत रचनात्मकता भी हो। प्रथम से उसकी भाषा में शुद्धता रहेगी ,व्याकरण ज्ञान से भाषा में शुद्धता आती है। रचनात्मकता भाषा में प्रवाहमयता ,सरलता एवं स्पष्टता लाती है। इन सबके होने के साथ ही संक्षेपणकर्ता में सतत अभ्यास की प्रवृत्ति भी होनी चाहिए। सतत अभ्यास से ही भाषा में क्रमबद्धता आती है। जहाँ तक संक्षेपण के लिए आदर्श भाषा के स्वरुप की बात है ,वह ऐसी होनी चाहिए जिसमें संक्षिप्तता ,क्रमबद्धता तथा स्पष्टता हो। इन विशेषताओं से युक्त संक्षेपण आदर्श संक्षेपण होगा। 

संक्षेपण कैसे किया जाता है ?

संक्षेपण के सम्बन्ध में आवश्यक नियम निम्नलिखित हैं - 
  1. जिस मूल का संक्षेपण करना है उसे ध्यान से दो तीन बार पढ़ें ,उसमें निहित मूल भावों को समझने की चेष्टा करें ,अच्छा हो इन्हें कहीं लिखते भी जाएँ। 
  2. संक्षेपण मूल का संक्षिप्त रूप हैं। अतः इसमें संक्षेपणकर्ता को टीका - टिपण्णी ,आलोचना प्रत्यालोचना आदि से बचना होगा। संक्षेपण में विचारों के खंडनमंडन अथवा स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर नहीं रहता है। अतः इससे बचना चाहिए। 
  3. भाषागत चातुर्य की बात ऊपर की गयी है। संक्षेपण में लेखक के पास इतना अवसर तो रहता है कि वह मूल की पहले कही गयी किसी बात को मध्य या अंत में भी कह सकता है ,परन्तु इससे मूलभाव की तारतम्यता भंग न हो। संक्षेपण के सारे वाक्य व्याकरणिक नियमों के अनुसार एक क्रम में सही सही लिखे जाए। 
  4. आदर्श संक्षेपण की एक अनिवार्य शर्त है कि आप इसका एक समुचित शीर्षक चुन लें। शीर्षक ही आपके संक्षेपण का केन्द्रीय भाव बनेगा। यदि सही शीर्षक की पकड़ हो गयी ,तो संक्षेपण सहज और सटीक होगा। शीर्षक ही बताता है कि लेखक को मूल लेख का केन्द्रीय भाव समझ में आया की नहीं। संक्षेपण का शीर्षक बनाते समय यह ध्यान रखें कि यह छोटा या कम से कम शब्दों वाला हो। जैसे - मान लीजिये मूल लेख में आजकल चले रहे आतंकवाद से सम्बंधित बातें कहीं गयी हो। सन्दर्भतः राज नेताओं की भी चर्चा आ गयी हो तो इसका शीर्षक बनाते समय दोनों बातों को मिश्रित न करें। आदर्श शीर्षक होगा आतंकवाद और राजनीति या आतंकवाद का प्रभाव। 
  5. संक्षेपण की शैली अलंकृत न हो। इसमें उपमा ,उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अप्रासंगिक बातों ,उद्धरण आदि से भी बचें। संक्षेपण में विशेषण और क्रिया विशेषण का प्रयोग न करें। संक्षेपण में समास ,प्रत्यय और कृदंत शब्दों का प्रयोग संक्षिप्तता लाने में सहायक होगा। 
  6. संक्षेपण भूतकाल और परोक्ष कथन में लिखना चाहिए। इसमें अन्य पुरुष का प्रयोग होना चाहिए ,उत्तम पुरुष अथवा मध्यम पुरुष का नहीं। 
  7. संक्षेपण में लम्बे वाक्यों अथवा लम्बे वाक्य खण्डों का व्यवहार न करें। इसमें परोक्षकथन सर्वत्र अन्य पुरुष में होना चाहिए। 
  8. भाषणों में प्रायः समानार्थी शब्द आते हैं,नेतागण अपने भाषणों में ऐसे समानार्थी शब्दों की भरमार कर देते हैं - जैसे धनहीन ,गरीब ,कंगाल ,मुफलिस ,ये सारे शब्द लगभग समानार्थी हैं ,इन्हें हटा दें और उनकी जगह एक शब्द गरीब रख दें। 

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