हिंदी शब्द का अर्थ और प्रयोग

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हिंदी शब्द का अर्थ और प्रयोग


हिंदी नाम पर विचार करते हुए अधिकाँश भाषाशास्त्रीयों ने हिंदी नाम का सम्बन्ध प्रमुखतः संस्कृत शब्द सिन्धु से स्वीकार किया है। यह नदी विशेष का वाचक है ,किन्तु डॉ.भोलानाथ तिवारी का मत है है कि उस नदी तथा आसपास के क्षेत्र का यह नाम मूलतः संस्कृत का नहीं है ,बल्कि आर्यों के आने से पूर्व से चला आ रहा है। इसका मूल द्रविड़ शब्द सिद या सित जो उस नदी तथा उसके आसपास के प्रदेश का आर्यपूर्व नाथ था। सिन्धु नाम उसी का संस्कृत बनाया हुआ रूप है। ईरान में जाकर यह सिन्धु शब्द ध्वनि परिवर्तन से हिन्दू हो गया और पहले तो यह सिंध प्रदेश का नाम था ,फिर ईरानी भारत के जितने भी भाग से परिचित होते गए ,उसे इसी नाम से अभिहित करते गए। धीरे- धीरे यह पूरे भारत का वाचक हो गया। हिन्दू शब्द आगे चलकर पुरानी फ़ारसी आदि में हिन्द बना और उसका भी अर्थ भारत था। इसी में ईक प्रत्यय लगने से हिन्दीक बना ,जो ग्रीक में जाकर हिन्दीक ,इंदीका तथा अंग्रेजी में इण्डिया बन गया। हिन्दीक में क के लोप होने से हिंदी शब्द बना ,जिसका अर्थ है - भारत का। इसी आधार पर जबान ए हिंदी का अर्थ हुआ -भारत की भाषा और उसका प्रयोग समय समय पर संस्कृत ,प्राकृत तथा आधुनिक भाषाओँ के लिए हुआ। धीरे-धीरे जबान -ए  लुप्त हो गया और केवल हिंदी बचा तथा यह शब्द भारत की केन्द्रीय भाषा के लिए प्रयुक्त होने लगा। 

हिंदी शब्द की उत्पत्ति

हिंदी शब्द का अर्थ और प्रयोग
सामान्यतः यह माना जाता है कि हिंदी शब्द का प्राचीनतम प्रयोग जफरनामा (१४२४ ई.) ग्रन्थ में मिलता है। इसके रचयिता हैं - शरफुद्दीन यजदी। उन्नीसवीं शती के प्रारंभ तक हिंदी नाम उर्दू के लिए भी आता था। हातिम ,नासिख ,सौदा ,मीर तथा ग़ालिब आदि ने अपनी भाषा के लिए इस नाम का भी प्रयोग किया है। १८०० ई.में कलकत्ते में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के पश्चात अंग्रेजों की हिन्दू मुसलमान में फूट डालने की नीति ने उस एक ही मूल भाषा के संस्कृतनिष्ठ रूप के लिए हिंदी तथा अरबी फारसीनिष्ठ रूप के लिए उर्दू को रुद्ध कर दिया। प्रयत्न यह भी रहा है कि हिन्दुओं से हिंदी को जोड़ दिया जाए और मुसलमानों को उर्दू से जोड़ दिया जाए। इस प्रयत्न में तत्कालीन सत्ताधारियों को सफलता भी प्राप्त हुई। 

डॉ.भोलानाथ तिवारी का यह कथन सत्य है कि शब्दों में अरबी -फ़ारसी तथा संस्कृत के अधिक्य की बात छोड़ दी जाए तो हिंदी उर्दू में कोई ख़ास अंतर नहीं है। दोनों ही एक ही भाषा की दो शैलियाँ प्रतीत होती हैं। यही कारण है कि प्रारंभ में हिंदी शब्द का प्रयोग हिंदी और उर्दू दोनों के लिए होता था। 

सामान्यतया  यह माना जाता है कि हिंदी शब्द तीन अर्थों में प्रत्युक्त हो रहा है। ये तीनों अर्थ डॉ.भोलानाथ तिवारी ने अपनी कृति हिंदी भाषा में इस प्रकार दिए गए हैं - 

  1. हिंदी शब्द अपने विस्तृत अर्थ में हिंदी प्रदेश में बोली जाने वाली १७ भाषाओँ का घोतक है। हिंदी साहित्य के इतिहास में हिंदी शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में होता है ,जहाँ ब्रज ,अवधी ,डिंगल ,मैथिलि ,खड़ी बोली आदि प्रायः सभी में लिखित साहित्य का विवेचन हिंदी के अंतर्गत किया जाता है। 
  2. भाषा विज्ञान में प्रायः पश्चिमी हिंदी और पूर्वी हिंदी को ही हिंदी मानते रहे हैं। ग्रियसन ने इसी आधार पर हिंदी प्रदेश की उपभाषाओं को राजस्थानी ,पहाड़ी ,बिहारी कहा था ,जिसमें हिंदी शब्द का प्रयोग नहीं है ,किन्तु अन्य दो को हिंदी मानने के कारण पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी नाम दिया था। इस प्रकार इस अर्थ में हिंदी आठ बोलियों (ब्रज ,खड़ी बोली ,बुन्देली ,हरियाणवी ,कन्नोजी ,अवधी ,बघेली ,छत्तीसगढ़ी ) का सामूहिक नाम है। 
  3. हिंदी शब्द का संकुचित अर्थ है खड़ी बोली हिंदी जो आज हिंदी प्रदेशों की सरकारी भाषा है ,पूरे भारत की राजभाषा है। समाचार पत्रों ,फिल्मों में जिसका प्रयोग होता है तथा जो हिंदी प्रदेश के शिक्षा का माध्यम है और जिसे परिनिष्ठित हिंदी या मानक हिंदी आदि नामों से भी पुकारते हैं। उर्दू भी इसी का एक शैलीय रूपांतर है। 

हिंदी शब्द का भाषागत विकास

डॉ.भोलानाथ तिवारी ने हिंदी शब्द के भाषागत अर्थ के विकास की स्थिति को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया है - 
  1. अपने विकास के प्रथम काल में यह शब्द विदेश में था और विशेषण या संज्ञा के रूप में भारतीय भाषाओँ के लिए प्रयुक्त हो रहा था।  
  2. दूसरा काल वह है कि जब हिंदी शब्द भारत में आया। खुसरों के समय के आसपास हिन्दवी के प्रयोग में आने के बाद मुसलामानों के लिए प्रयुक्त होने लगा। 
  3. तीसरा काल वह है कि जबकि उत्तर या दक्षिण भारत में यह हिन्दवी एवं दखिनी का लगभग समानार्थी होकर मध्यदेशीय भारतीय भाषा के लिए प्रयुक्त हो रहा था। डॉ.भोलानाथ तिवारी ने स्पष्ट किया है कि इस काल में सामान्यतया हिंदी शब्द हिंदीवी का समानार्थी तो था ,किन्तु विभिन्न प्रयोगों पर दृष्टि डालने से ऐसे संकेत मिलते हैं किन्तु हिन्दवी शब्द हिन्दुओं की हिंदी की ओर तथा हिंदी शब्द मुसलामानों की हिंदी की ओर भी कभी कभी झुके हुए थे। हिन्दू अपनी भाषा के अतिरिक्त कभी कभी यदि प्रयोग करते थे तो प्रायः हिंदीवी का। इस काल के अंत में हिंदी नाम अपने में उर्दू ,रेख्ता ,दखिन्नी या हिन्दुस्तानी आदि को भी समाहित किये था। इस काल के प्रारंभ में इस भाषा को देहलवी भी कहते हैं। 
  4. हिंदी शब्द के भाषाई अर्थ से सम्बंधित चौथा काल १८०० ई.के बाद है। गदर के समय तक हिंदी शब्द का प्रयोग प्रायः पूर्वोक्त अर्थ में ही मिलता है। यों आपवादिक रूप से कहीं कहीं उसका प्रयोग भाषाई अर्थ में भी मिलता है। जब फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई तो वहाँ गिलक्रिस्ट हिंदी या हिन्दुस्तानी के अध्यापक नियुक्त हुए ,जब हिंदी का प्रयोग हिन्दुस्तानी भाषा के अर्थ में किया गया। इसकी लिपि देवनागरी थी तथा इसका शब्द समूह संस्कृत की ओर झुका हुआ था। हिंदी नाम आज भी इसी अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है। 

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