छुट्टी के दिन का आनंद पर निबंध | Essay on Holiday for Students

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छुट्टी के दिन का आनंद पर निबंध


म सभी लोग सप्ताह के सात में से छह दिन मशीन के समान कार्य करते हैं ,किन्तु सातवें और अंतिम दिन ,वह पूर्ण विश्राम कर अपने शरीर और मन की थकान मिटाकर फिर से स्फूर्ति एवं उत्साह पूर्ण होकर कार्य करना चाहता है। अतः सप्ताह के आरम्भ से ही मानव ,अंतिम दिन के आनंद की कल्पना में लीन होकर जीवन की सभी चिंताओं से मुक्ति के विषय में विचार करना आरम्भ कर देता है। 

जहाँ तक सप्ताह के अंतिम दिन को मनाने के ढंग का सम्बन्ध है ,वह संपन्न और विपन्न वर्ग के लिए पृथक होता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार सप्ताहांत व्यतीत करता है। 

मनोरंजन के साधन

छुट्टी के दिन का आनंद पर निबंध | Essay on Holiday for Students
संपन्न वर्ग के पास मनोरंजन के अनेक साधन होते हैं। वह वैसे भी सप्ताह भर अनेक प्रकार के तनावों से ग्रस्त रहता है। अतः सप्ताह के अंतिम दिन के लिए यह वर्ग अपने मित्र अथवा सम्बन्धियों के साथ पहले ही योजना बना लेता है। मौसम के अनुसार घर से बाहर जाकर पिकनिक मनाकर अपनी पूरी सप्ताह की थकान तथा तनाव को दूर करता है। यह स्थान कोई प्राकृतिक स्थल हो सकता है, जहाँ वह कुछ समय अपने पारिवारिक सदस्यों तथा मित्रों के साथ तनाव मुक्त जीवन बिताकर अपना मनोरंजन कर सकता है। कुछ व्यक्ति होटलों की रंगीनियों में रात व्यतीत करते हैं। कुछ लोग दूरदर्शन पर फिल्म देखकर सप्ताह का अंतिम दिन व्यतीत करते हैं। 

मध्यम वर्ग अपना समय अपनी नौकरी की चिंताओं से मुक्त होकर व्यतीत करता है। यह लोग अपने अधिकारी के घर ,उसकी चमचागिरी में समय व्यतीत करते हैं। 

निम्न वर्ग की नियति तो सदैव एक सी ही होती है। उसे तो प्रतिदिन कुंवा खोदकर पानी पीना पड़ता है। उसके सामने तो व्यापक आवश्यकतायें और सीमित साधनों का विकल्प होता है। वह वर्ग तो सातों दिन काम करता है। सप्ताहांत में भी उसे परिश्रम करना पड़ता है। 

जहाँ तक मनोरंजन का प्रश्न है दूरदर्शन ,चलचित्र अथवा अन्य कोई कार्य करके अपना मनोरंजन करना पड़ता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनोरंजन के साधन और क्षेत्र व्यापक होने के कारण संपन्न वर्ग के लिए सप्ताहांत की कल्पना सुखद होती है। मध्यम वर्ग चलचित्र देखकर ,सीमित क्षेत्र में घूमकर अपना समय मनोरंजन द्वारा व्यतीत करता है। निर्धन वर्ग भी इसी प्रकार इस दिन को अपने दृष्टिकोण और स्थिति के अनुसार मनाता है। 

छुट्टी की मधुर कल्पना

एक महान कवि ने इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रकार किये हैं - 

यह साँझ-उषा का आँगन, आलिंगन विरह-मिलन का। 
चिर हास-अश्रुमय आनन, रे इस मानव जीवन का!​

उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने परिवर्तन के सम्बन्ध में अपने विचार बड़े ही मार्मिक शब्दों में स्पष्ट किये हैं। कवि  मशीनी जीवन को एक भार और उबाऊ मानकर उससे बचना चाहता है। कवि भी जीवन में परिवर्तन को पसंद करता है। वह दुःख के बाद सुख तथा सुख के बाद दुःख को जीवन के लिए अनिवार्य मानता है। मैं भी इस विचार का समर्थक हूँ। कुछ मिलाकार यही कहा जा सकता है कि चाहे मानव का सम्बन्ध किसी भी वर्ग ,जाति से क्यों न हों ,सप्ताह के अंतिम दिन की कल्पना उसके लिए सदैव ही सुखद होती है। सचमुच ,सप्ताहांत की कल्पना ही मधुर है।

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