सुखद घटना जिसने मुझे नई सीख दी | Apne jivan ka sukhad Anubhav

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जीवन के सुखद अनुभव सुखद घटना का वर्णन कीजिए जिसने आपको जीवन में नई सीख दी सुखद घटना जिसने मुझे नई सीख दी मेरे जीवन का अनुभव Apne jivan ka sukhad Anubh

सुखद घटना जिसने मुझे नई सीख दी


जीवन के सुखद अनुभव सुखद घटना का वर्णन कीजिए जिसने आपको जीवन में नई सीख दी Apne jivan ka sukhad Anubhav - कुछ महीनों पहले मेरे साथ कुछ ऐसी घटना घटी जिसे भुलाया नहीं जा सकता है। मेरे पास कुछ समय से अनजान चिट्टी आ रही थी। यह कई बार हो चुका था। जिसमें सिमित शब्दों में दिया गया सन्देश था। लिखा था कि आखिर तुम नहीं माने। तुमने हमारे आदेश को गंभीरता से नहीं लिया। आज समय आ गया है ,जब हम अपना कार्य करेंगे। रात के ठीक दस बजे। हमारे सन्देश का इंतज़ार करो और हमारे बताये पते पर पहुँचों। बिल्कुल अकेले। इसके नीचे केवल कंकाल बना होता। 

अनजान पत्र 

दो महीने पूर्व ....  जब मुझे पहली बार ऐसा लिफाफा मिला ,उस समय शाम के चार बजे थे। मैं विद्यालय से वापस
सुखद घटना जिसने मुझे नई सीख दी | Apne jivan ka sukhad Anubhav
आकर चाय पीने की तैयारी कर रहा था। अचानक छोटी बहन ने एक हरा लिफाफा लाकर मेज़ पर रख दिया। उत्सुकतावश मैंने उसे उठाया और उलट -पलट पर देखा। उस पर केवल मेरा नाम और पता लिखा हुआ था। भेजने वाले के स्थान पर केवल कंकाल का चित्र बना हुआ था। मैंने उत्सुकतावश लिफाफा खोलकर ध्यान से देखा। एक सुंदर से कागज़ पर मात्र कुछ वाक्य टाइप किये गए थे। उनका सार इस प्रकार का था। थोड़ा धन और सम्मान पाकर तुम्हारी आँखें श्याद आकाश में टंग गयी हैं। तुम्हे धरती और यहाँ के मनुष्य नहीं दिखाई देते। सावधान ! अपना व्यवहार सुधारों नहीं तो धरती का बोझ कम करना चाहिए। रात में वैसा ही फोन मिला।  सार था समाचार मिल गया होगा। तुम्हारा अपराध अक्षम्य है। तुम्हारा नंबर ,हमारी सूची में नवाँ है। आज पहले अपराधी को दुनिया से उठाया जाएगा। तुम्हारा नंबर तीन महीने में आएगा। 

इस पत्र को पढ़ते ही मेरा जीवन स्वयं मेरे लिए एक घुटन एवं बोझ बनकर रहा गया। किसी को बता भी नहीं सकता और न उस पर कोई चर्चा ही संभव थी। मेरे बदले चेहरे ने घर में सभी को चौका दिया था। पूछने पर इधर -उधर के बहाने बना देता। लोगों को विश्वास नहीं हुआ है ,यह मैं जानता था ,किन्तु उन्हें संतुष्ट करने में असमर्थ था। खुद मैं इस मामले को समझ नहीं पा रहा था। जितना सोचता ,उतनी ही परेशानी बढ़ती जा रही थी। मैं सोच रहा था कि मुझे न तो कोई पुरस्कार मिला है और न ही आकस्मिक रूप में कोई धन लाभ ही हुआ है। फिर मेरे द्वारा किसकी भावनाओं को इतनी चोट पहुँची कि उसने इस संगठन से मेरी शिकायत कर दी और वह संगठन मेरा जीवन लेने पर उतारू हो गया।  इस सम्पूर्ण समय में मैं तनावग्रस्त ही रहा। किसी कार्य में मन नहीं लगता है। उसके बाद पूरे महीने कुछ नहीं हुआ। मैं भी इस पत्र तथा फोन को किसी बुरे स्वपन के समान भूल गया। 

अगले महीने भी ,ठीक उसी दिन ,उसी समय हरा लिफाफा ,मुझे मिला। वही सन्देश और वैसा ही फोन कॉल। अब मुझे गंभीर होना पड़ा। एक अन्तरंग से सलाह दी कि पुलिस को सूचित करूँ। किन्तु क्या ?  किसके विरुद्ध सूचना लिखूँ।  वे भी मेरा मज़ाक उड़ायेंगे। उसके बाद पुनः एक महीने सब कुछ सामान्य रहा। आज भी वैसा ही रहा। फोन पर मैंने संवाद देने वाले को खूब बुरा-भला कहा ,किन्तु दूसरी ओर से खिल-खिलाने का स्वर सुनाई दिया और सम्बन्ध विच्छेद हो गया। 

मित्रों का मजाक / मेरे तनाव का अंत

अब मुझे यह स्पष्ट हो गया था कि चाहे कोई भी क्यों न हो ,यह मेरी जान लेने पर तुला हुआ है। अतः अब तो इससे दो चार होना ही पड़ेगा। यह सोचकर रात के १२ बजे कब्रिस्तान के पास अंतिम कोठी का दरवाजा खटखटाया। कुछ समय कुछ शोर सुनाई दिया। सीधे अन्दर आ जाओ और कमरे में रखी कुर्सी पर बैठ जाओ। रौशनी जलाने या कोई चलाकी दिखाने की कोई भी कोशिश खतरनाक होगी। मैंने जान पर खेलने का निश्चय किया। बड़े जोर से दरवाजे पर प्रहार किया और अंदाज से स्विच बोर्ड का बटन दबा दिया। मैं यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि वहां मित्रों का समूह मौजूद था। वे सब हँस रहे थे। बाद में उन्होंने विस्तार से बताया कि वे मुझसे पार्टी लेना चाहते थे ,जबकि मैं हाथ नहीं धरने दे रहा था। अंत में मैंने उनकी शर्त स्वीकार कर ली और मेरे तनाव का अंत हुआ। 

सीख - मित्रों द्वारा की गयी दिल्लगी से मुझे यह सीख मिली कि मित्रों को पार्टी दे ही देना चाहिए ,नहीं तो वे आपको बेवजह परेशान कर सकते हैं। 

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