देश प्रेम के दाम विभूति पटनायक

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देश प्रेम के दाम विभूति पटनायक


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देश प्रेम के दाम कहानी का सारांश

प्रस्तुत पाठ या कहानी  देशप्रेम के दाम !  लेखक विभूति पटनायक जी के द्वारा लिखित है। स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्से लेने वालों की संख्या अनंत थी । उनके साथ जेल में इतनी सख्ती से व्यवहार किया कि वे सजा के दौरान ही अपने प्राण त्याग दिए । उनमें से बहुतों को अपने आज़ाद भारत को देखने का सपना साकार नहीं हुआ । दरअसल, नारायण दास इन्हीं में से एक थे । परन्तु, उन्हें देश का जो रूप देखना पड़ा उसकी तो उन्होंने कल्पना भी न की थी। 

देश प्रेम के दाम विभूति पटनायक
वर्ष 1942 की बात है । महात्मा जी तथा स्वतंत्रता आन्दोलन के अन्य नेता गिरफ़्तार कर लिए गए थे । इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध जनचेतना जगाने के उद्देश्य से नारायण बाबू भूमिगत हो चुके थे और छद्मवेश में उड़ीसा एक छोर से दूसरे छोर तक आज़ादी की अलख जगाते घूम रहे थे । तभी अंग्रेज़ सरकार की ओर से नारायण बाबू पर हज़ार रूपए के इनाम की घोषणा कर दी गई थी । नारायण बाबू के घर पर उनकी पत्नी सौदामिनी और दो वर्ष के बेटे सनातन ही रहते थे । पुलिस बार-बार नारायण बाबू के घर पर पूछताछ करने पहुँच जाती थी । पिछले दो-तीन महीने में नारायण बाबू आधी रात में एक-दो घंटे के लिए ही एक-दो बार घर पर आए थे । अपनी पत्नी सौदामिनी और बेटे सनातन को सांत्वना देकर चले जाते थे । एक रोज आधी रात में जब वे घर पर आए तो उन्होंने देखा कि सनातन बुखार से बेहाल पड़ा है । पत्नी के आह्वान और पुत्र स्नेह के कारण वे वहीं रुक गए और सनातन को गोद में लेकर रातभर बैठे रहे । सुबह तक नारायण बाबू का मकान पुलिस के घेरे में था । अंततः वे पकड़े गए तथा उन्हें चार वर्ष जेल के अँधेरे में सड़ना पड़ा । महात्मा गांधी के आह्वान पर नौकरी छोड़कर नारायण बाबू पूरे तन-मन से स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद ही चुके थे । वे सोचते थे कि सनातन भी जरूर ब्रिटिश सरकार से लड़ेगा, उनके जीवन का आदर्श उनकी संतान को रास्ता दिखाएगा । लेकिन हो गया सब उलट-पलट । 

देश स्वतंत्र हुआ । पत्नी के चल बसने के पश्चात् नारायण बाबू बड़ी मुश्किल से सनातन को वकालत की पढ़ाई करवाई । लेकिन वह अपने पिता की सोच के प्रतिकूल राह पर चल पड़ा । वह पैसे कमाने व ख़ुद की उन्नति को ज्यादा प्राथमिकता देने लगा । एक रोज अचानक सनातन आकर नारायण बाबू के कहने लगा – बापू, हमारी यूनियन के एक लेबर लीडर चार दिन से आमरण अनशन पर हैं । सरकार हमारी एक भी माँग स्वीकार करने को तैयार नहीं है । उधर लीडर का स्वास्थ्य गिर गया है । एक भी माँग पूरी न होने पर हमारी यूनियन के प्रति श्रमिकों में आस्था नहीं रह जाएगी । वे दूसरी यूनियन में चले जाएँगे । आप यदि मंत्री से कह देते तो चालीस में से कम से कम एक माँग ही सरकार मान लेती.... । 

नारायण बाबू ने बेटे से पूछा – मैं कौन हूँ ? मंत्री मेरी बात क्यों रखेंगे ? तभी सनातन ने याद दिलाते हुए कहा कि हमारे श्रम मंत्री भी स्वतंत्रता सेनानी थे । आपके साथ जेल में थे । आपने इस देश के लिए तीन बार में कुल सात साल की जेल भोगी है, इसलिए वे आपकी बात जरूर रखेंगे ।  इतने में बेटे की बात सुनकर नारायण बाबू गुस्से से लाल हो गए । बेटे को डपटते हुए सवालों की झड़ी लगा दी – तुम क्या समझते हो, मैं व्यक्तिगत लाभ के लिए जेल गया था ? इसलिए देश की सेवा की थी क्या ? उसकी क्या मजूरी माँगी जाती है ? क्या तुम्हें पता है, गोकुल भोल आमरण अनशन कर जेल में ही शहीद हो गया था । उसके जीवन का मूल्य चुकाया किसी ने ? क्षुद्र स्वार्थ के लिए, वह भी अनशन तोड़ने का दिन तय करके जो लोग आमरण अनशन करते हैं, उन्हें क्या सत्याग्राही कहा जाता है...? बोलो, चुप क्यों हो गए ? 

सनातन पिता की बात सुनकर क्रोध भरी खामोशी लिए वहाँ से चला जाता है । उसकी चाल से नारायण बाबू को अनुमान हो जाता है कि बेटे के साथ रहा-सहा संबंध भी इसी क्षण टूट गया । आजकल तो नारायण बाबू के परिवार में न उनके बेटे-बहु या संगी साथी उनको समझ पाते हैं और न ही उनको समझा पाते हैं । अपने परिवार में नारायण बाबू बिलकुल निःसंग, अनावश्यक और फ़ालतू चीज़ की तरह उपेक्षित पड़े रहते । अपने ही घर में पराए बन गए । तबियत बिगड़ने पर वे किसी से कुछ नहीं कहते । वे समझ गए हैं कि इस युग में पैसा ही सब कुछ है । जिसमें पैसा कमाने की कला नहीं, उसके जीवन का कोई मूल्य नहीं । यहाँ पैसे के अभाव में सच्चे आदमी को कोई नहीं पूछता । 
एकदिन बहु मधुमिता को कोरापुट में अखबार पढ़कर पता चला कि ससुर (नारायण बाबू) बीमार हैं । उसने फ़ौरन स्कूल से छुट्टी ली और कुछ फल और दवाइयाँ कटक से ले आईं । अचानक से पत्नी को देखकर सनातन हैरान होकर पूछा तो उसने अखबार में पढ़ने की बात स्वीकारी । तभी सनातन ने निर्लिप्त भाव से कहा – बीमारी अचानक नहीं आई । कई दिनों से खाट से लगे हैं । उम्र भी हो चली है । घिसटने से बेहतर है चले जाएँ । तुमने नाहक ही अपनी छुट्टी खर्च की । तभी मधुमिता ने दबे स्वर में कहा – क्या कह रहे हैं ! वे देश के गौरव हैं । आज़ादी के लिए सात साल जेल में रहने के एवज़ में केंद्र सरकार ने उनके लिए 500 रूपए महिना भत्ता मंज़ूर किया है..., देखिए यह पत्र आया दिल्ली से ।  मधुमिता की बात सुनकर सनातन भी चौंक उठा । बहुत दिन पहले उसी ने बापू की इच्छा के खिलाफ़ जबरन उनके हस्ताक्षर लेकर एक दरख्वास्त दिल्ली भेज दी थी । उसे हैरानी इस बात की थी कि वह बिना किसी सिफ़ारिश के मंज़ूर कैसे हो गई ! 

मधुमिता के कहने पर सनातन डॉक्टर को बुलाने गया । मधुमिता ने जब ससुर की सेवा करने के भाव से जब नारायण बाबू के पाँव सहलाए तो वे जिज्ञासा प्रकट किए – कौन गोकुल ? 

मधुमिता ने कहा – नहीं, पिता जी, मैं मधुमिता हूँ । आपकी तबियत ख़राब जानकार कोरापुट से चली आई ।  नारायण बाबू को बहु के द्वारा पाँव सहलाए जाने की बात स्वीकार नहीं हो रही थी । जेल के दिनों में गोकुल उनकी सेवा किया करता था । इसलिए मधुमिता के द्वारा पाँव छुए जाने पर वे गोकुल समझकर चौंक उठे ।  जब मधुमिता ने नारायण बाबू से अपनी बातों के दौरान कहा कि सरकार ने 500 रूपए का मासिक भत्ता मंज़ूर किया है ।  तब बहु की बात सुनकर नारायण बाबू की छाती में हुक-सी उठी । तन-मन दर्द से भर गया । चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान लाते हुए कहा – बेटी, सरकारी भत्ते की तरह तेरा स्नेह भी मुझे बहुत देर से मिला । मैं उसका उपभोग कर नहीं पाया । 
मधुमिता ने देखा कि सुसुर के चेहरे का रंग अचानक बदल रहा है । आँखें मूँद गई हैं । चेहरा सचमुच किसी शहीद की तरह है । उन शहीदों की तरह, जिनके चेहरे मधुमिता ने सिर्फ किताबों के पन्नों में देखे हैं... ।। 



देश प्रेम के दाम कहानी के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1- यह कहानी कब की है और भारत के किस राज्य से संबधित है ? 
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, यह कहानी वर्ष 1942 की है और भारत के उड़ीसा राज्य से संबधित है । 

प्रश्न-2- नारायण बाबू बीमार बच्चे को छोड़कर क्यों न जा सके ? 
उत्तर- घर पर पत्नी सौदामिनी अकेली और डरी हुई थी । नारायण बाबू के अलावा दूसरा कोई सहारा भी नहीं था, जिसके बल पर वह बीमार सनातन को बैद्यराज के पास लेकर जा पाती । रात का सन्नाटा भी गहराता जा रहा था । कोई आवारा कुत्ता रात के सूने रास्ते पर भौंक रहा था । ऐसे में अकेली सौदामिनी के पास बीमार बच्चे को छोड़कर नारायण को देशप्रेम की जलती आग में कूदने की हिम्मत नहीं हो रही थी ।  

प्रश्न-3- बेटे और बहु ने नारायण से कहाँ-कहाँ सिफारिश करने को कहा ? 
उत्तर- बेटे ने अपने यूनियन की माँगों की सिफारिश श्रम मंत्री से करने को कहा तथा बहु ने कोरापुट के पहाड़ी जंगली इलाके में हुए अपने ट्रान्सफर आर्डर को मंत्री से बोलकर निरस्त करने की बात कही । 

प्रश्न-4- नारायण बाबू क्यों और कैसे पकड़े गए ? 
उत्तर- घर पर पत्नी सौदामिनी और बेटे सनातन के अलावा कोई नहीं था । आज़ादी के आन्दोलन में ख़ुद खो पूर्णतः झोंक चुके सनातन बाबू घर से बाहर ही रहते थे । अंग्रेज़ी सरकार उनपर एक हज़ार का इनाम घोषित कर चुकी थी । एकदिन जब वे अपने घर पर आए तो बेटे सनातन के बीमार होने की वजह से नारायण बाबू उसकी देखभाल व डॉक्टर से इलाज करवाने के उद्देश्य से रात में घर पर ही रुक गए थे । लेकिन सुबह तक पुलिस उनके घर को घेर चुकी थी । इस प्रकार नारायण बाबू पकड़े गए ।  

प्रश्न-5- सनातन और मधुमिता के स्वभाव में आए परिवर्तन का कारण क्या था ? इससे उनके चरित्र का कौन-सा पक्ष उजागर होता है ? 
उत्तर- सनातन और मधुमिता के स्वभाव में आए परिवर्तन का कारण वह 500 रूपए का भत्ता था, जिसे केंद्र सरकार के द्वारा स्वतंत्रता सेनानी नारायण दास को जीवनभर के लिए मिलना था । 
इससे सनातन और मधुमिता के मतलबी चरित्र होने का पक्ष उजागर होता है । क्योंकि जब नारायण बाबू को बेटे और बहु की ज़रूरत थी, तब उन्होंने उनकी सेवा नहीं की । 

प्रश्न-6- उचित विकल्प का चयन करें - 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 
मैं कौन होता हूँ ? मंत्री मेरी बात क्यों रखेंगे ? – ‘मैं कौन होता हूँ’ का क्या भाव है ? 
(यह कि व्यक्तिगत लाभ के लिए मैं नहीं कहूँगा ।)
मंत्री के सामने क्या बात रखने को कहा जा रहा था ? 
(यूनियन का पक्ष रखने की बात)
‘वे देश के गौरव हैं । जाति के आदर्श हैं ।‘ – कौन किसे बता रहे हैं ? 
(मधुमिता, पति सनातन को)
कैसे पता लगा कि ‘वे’ देश के गौरव हैं ? 
(जब भत्ता मंज़ूर हुआ) 


व्याकरण-बोध 
प्रश्न-7- कोष्ठक में दिए निर्देशानुसार वाक्यों का निर्माण कीजिए -- 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 
जो लोग अच्छे होते हैं वे मान जाते हैं । (सज्जन से आरंभ करें)
(जो सज्जन अच्छे होते हैं वे मान जाते हैं ।)
आप परिवार के साथ हमारे घर आइए । (आप सपरिवार से आरंभ करें)
(आप सपरिवार हमारे घर आइए ।)
दूध स्वास्थ्य को लाभ देता है । (लाभदायक है अंत में लगाएँ)
(दूध स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ।) 
राम ने सीता को देखा और प्रसन्न हुए । (‘और’ को हटाकर) 
(राम सीता को देखकर प्रसन्न हुए ।) 
जैसे ही वेतन मिलेगा मैं रूपए लौटा दूँगा । (‘यदि’ का प्रयोग करें) 
(यदि वेतन मिलेगा तो मैं रूपए लौटा दूँगा ।) 

प्रश्न-8- नीचे दिए गए शब्दों का परिवार पूरा कीजिए -  
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 
अर्थ – समर्थ, धर्मार्थ, आर्थिक 
आदर – अनादर, आदरणीय, आदर्श 
कर्म – सकर्मक, कार्मिक, कर्मनिष्ठ 
ज्ञान – संज्ञान, ज्ञानी, ज्ञानेंद्रिय 
तंत्र – परतंत्र, स्वतंत्र, तांत्रिक 

प्रश्न-9- कर्म और संप्रदान की पहचान कर सही का निशान लगाइए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 
मामा जी बच्चों के लिए मिठाई लाए हैं । – संप्रदान 
अहिल्या ने गंगाधर को दीवान बनाया । - कर्म 
अपने बेटे के वास्ते चले चलो । - सांप्रदान 
घरों को मत उजाड़ो । - कर्म 
माँ बच्चों को खाना खिला रही है । - कर्म 
ईश्वर के निमित्त कुछ दान दिया करो । - संप्रदान 
बच्चे ने किताबों को छुपा दिया । - कर्म 
गुरु जी के लिए पानी लाओ । - संप्रदान 
यात्री ने कॉफ़ी पी । - कर्म 


देश प्रेम के दाम विभूति पटनायक कहानी के शब्दार्थ

द्मवेश – झूठा वेश 
भूमिगत – अज्ञातवास 
अलख जगाना – जागरूक करना 
अधोपतन – गिरावट 
निर्लिप्त – उदासीन, बिना लिप्त हुए 
नाहक – बेकार 
संकेत – इशारा 
भत्ता – गुज़र-बसर के लिए मिलनेवाला धन 
दरख्वास्त – प्रार्थना पत्र 
स्थितप्रज्ञ – स्थिर बुद्धि, आत्मसंतुष्ट 
गुमराह – रास्ता भटकना । 

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