भारतीय स्त्री : परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में

SHARE:

भारतीय स्त्री परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में बच्चों के कापी-किताब, खाने का डिब्बा, पानी की बोतल, पति के आॅफिस जाने के सारे इन्तजाम, मोजे से ले

भारतीय स्त्री : परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में


संचार क्रांति एवं आर्थिक उदारीकरण के परिवर्तन की लहर ने सामाजिक सम्बन्धों की व्याख्या में व्यापक परिवर्तन किया है। समूचा विष्व सिमट कर एक गाॅव बन गया है, बदलते युग में स्त्री की स्थिति भी बदलती है, परन्तु तेजी से बदल रहे समाज, संस्कृति और परिवार में महिला की स्थिति पहले के समान ही है। जैसे उसकी दादी-नानियाॅ घरेलू उपकरणों से जूझती आयी है, स्त्री आज भी वैसे ही जूझ रही है। स्त्री इन सभी क्रियाकलापों को अपनी नियति मान कर षिरोधार्य कर लेती है और आजीवन पत्नीत्व का पालन करते हुए पति के कन्धे पर लदकर स्वर्ग जाने की कामना करती हुई सिधार जाती है। स्त्रियों को विरासत में ये सारी परम्परायें मिली है, वर्तमान में भी हर सुबह घड़ी की अलार्म के साथ उठकर पति व बच्चों के लिए करते-करते उसे इतना भी समय नहीं कि न्यूज-पेपर की हेडलाईन ही देख लें। 

बच्चों के कापी-किताब, खाने का डिब्बा, पानी की बोतल, पति के आॅफिस जाने के सारे इन्तजाम, मोजे से लेकर रूमाल, स्मार्टफोन और पेन एक-एक वस्तुओं को याद से पकड़ाना, अन्यथा कुछ भूल जाने पर उलहानों एवं कामचोर का मेडल बड़े आयोजन के साथ प्राप्त होता है। इन सारे ताने-बाने में आपाधापी रस्साकसी में स्वयं के लिए निकाली गई एक चाय की कप टेबल पर यथावत् रखी हुई बरबस ही उसे यह भान कराता है कि तुम्हारे खातें में इतवार नहीं। इसके बाद षुरू होता है दूसरा सीन घड़ी पर दृष्टि पड़ते ही बाॅस ही घूरती हुई आॅखे अनायास ही आकर यह याद दिला लेती है कि मैडम! अगर आपका ध्यान घर में ही है तो क्यों नहीं इस्तीफा दें देती? मेरे कम्पनी को आप जैसी गैर जिम्मेदार ‘पर्सन’ की आवष्यकता नहीं, तात्पर्य यह है कि आज सबसे ज्वलन्त प्रष्न ही महिला विमर्ष का है।भारतीय स्त्री के सन्दर्भ में न सिर्फ वर्तमान समाज में अपितु इससे पूर्व के समाजों में भी यह प्रष्न प्रायः उठते रहे की नारी की आदर्ष भूमिका, छवि क्या होनी चाहिए? वे कौन से पैटर्न है जिनके अनुरूप उसका चरित्र निर्माण हो? परम्परा और आधुनिकता के मध्य उसकी स्थिति कैसी व क्या होनी चाहिए? पतिव्रत्य धर्म के नाम पर गान्धारी की भाॅति पट्टी बांध लेती है तो अब कहा जाता है कि गान्धारी अगर धृतराष्ट्र की आंखे बन गई होती तो महाभारत जैसा भयानक, विनाषक युद्ध न होता और न बांधती है तो शास्त्र सम्मत, नीति सम्मत, धर्म सम्मत और पतिव्रता पर ही प्रष्न खड़े किये जाने लगते है। प्रत्येक युग में स्त्री के सन्दर्भ में इस तरह के प्रष्न उठते है कि महिला की आचार षास्त्र के नाम पर अपने लिए निर्दिष्ट किये गये रूढ़ीवादी, बर्वर, नियमों को खण्डित करके नवीन मार्ग का आकांक्षी होना चाहिए। व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए प्रष्नाकुल होना चाहिए अथवा इन नियमों को अपनी अन्तिम नियति मान लेना चाहिए, वर्तमान में इन दोनों विकल्पों में से किसका वरण स्त्री जाति के लिए श्रेयस्पद होगा? यह तत्काल का सर्वाधिक विचारणीय बिन्दु है।प्रत्येक समकालीन समाज ने महिला से ही परम्परा को संजोये जाने की मांग की है। 

महिला के सन्दर्भ में परम्परा और आधुनिकता के सवाल बार-बार उठाये गये हैं। सवाल यह भी है कि क्यों सिर्फ महिला के सन्दर्भ में  ही ये प्रष्न खड़े किये जाते है? क्यों उससे ही परम्पराओं की धरोहर को संजोए रखने की अपेक्षा की जाती है? जिसके जन्म को षोकप्रद बताया गया। त्रिया चरित्र देवताओं के लिए भी अगम तथा न विष्वास योग्य माना गया। जिसके मन को भेडि़यों जैसा चतुर कहा गया, जिसको ‘माया’ ‘ठगिनी’ कहकर तिरस्कृत किया गया। पुरूषों द्वारा स्त्री को ‘अवला’ कहकर स्त्री को संरक्षित-सुरक्षित करने का प्रयास किया गया। यहाॅ तक तो युक्तिसंगत माना जा सकता है परन्तु नारी के अधिकार में स्वतन्त्रता की परिकल्पना भी नीति संगत नहीं है यह सोच मानव के आधार पर समीचीन नहीं मानी जा सकती। नारी की स्वतन्त्र इयन्ता की सोच भी कलंकपूर्ण मानी जाने लगी है यह भाव भारतीय जनमानस में इतना बद्धमूल हुआ, एक विवरण प्राप्त होता है कि कैसे ‘उत्तर भारतीय लोक जीवन मे पुत्र जन्मोत्सव पर ‘सोहर’ नामक संस्कार गीत गाया जाता है’ एक बानगी देखिए-

गायी कऽ गोबरवा लिहले
बहुआ त ओरियाॅ-ओरियाॅ
डोले लीऽऽ
हे सासू! आज मोरा कपरा धमक लैंऽ
कवन घरवा लीपूॅ।
सासू त बोलहिं के रहली
ननद बोलि दिहलिं
तोहरा त बिटिया जनमि हैंऽऽ
लीपहू घरवा भुसउल।।

उपर वर्णित सोहर गीत में एक ऐसी महिला का चित्र हैं जिसको प्रसव-पीड़ा उठ रही है, सिर पीड़ा से तप रहा है, उसको यह पूर्व आभास हो चुका है कि अब षिषु गर्भ से दुनियां में आने के लिए व्याकुल है। स्त्री अपने हाथ में गाय का गोबर लिए सास को खोजती है, एक कमरे से दूसरे कमरे में आकुल हो कर घूमती है, सास को देखकर पूछती है कि सौर गृह (डिलिवरी रूम) किस कक्ष में होगा? ताकि वह उस कक्ष को गोबर से लीप-पोत कर पवित्र कर लें। सास के उत्तर से पहले ही वहा बैठी हुई ननद बड़ी निष्ठुरता से उसको ताना देकर कहती है कि-‘तोहर त बिटियाॅ जनमिहै, लिपहू घरवा भुसउल।’ यह एक अजन्मी स्त्री षिषु के लिए दूसरी स्त्री की सोच है, दुर्भावना है इस स्थिति में हमें यह स्वीकार करने मे तनिक भी आपत्ति नहीं है कि भारतीय नारी के लम्बे संघर्षपूर्ण इतिहास के लिए मात्र पितृसत्त ही उत्तरदायी नहीं जान पड़ती।स्त्री को जितना दर्द, आघात पितृसतात व्यवस्था ने दी है उससे कही ज्यादा तकलीफ उसको अपनी ही जाति से मिली है परन्तु आज महिला निराष नहीं है। आज ऐसा लग रहा है कि सैकड़ो वर्षो से बन्द पड़े मजबूत प्राचीरों के दरवाजे खुल गये हैं। उसमें से महिलाओं का रेला निकल आया हो। आज के युग में नारी और नारीवाद को लेकर विमर्ष और व्यवहार के तर्ज पर जोरदार पहल चल रही है। नारीवाद को यात्रा का यह सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है।जब देष में सषक्तिकरण की बहसे छेड़ी गयी तो अस्तित्व पर ही कठिनाई आ गई। पैदा होने का अधिकार छिनने लगा कि समस्या का समूल नाष ही कर दिया जाये। ऐसी संकीर्ण मानसिकताओं ने नारी जाति के पुष्पित-पल्लवित होने से पूर्व ही विषवेल की भांति समूलोच्छेदन कर देना चाहा जो कभी संकट बन सकती थी, परन्तु अदम्य जिजीविषा लिए नारी जाति ने यह बता दिया कि-

“लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते है।
हमने उस हाल में जीने की कसम खाई है।।”

देष की नारियों ने लम्बे प्रयास के बाद पहले खिड़कियाॅ खोली फिर दरवाजे खोल दिये जिसमें से परिवर्तन की बयार अन्दर आने लगी। दषकों बाद अब चित्र बदलने लगा है। स्त्री-पुरूषों का क्षेत्र माने जाने वाले गढ़ो में भी अपनी पैठ बनाने लगी है। घर की चैखट से बाहर निकली हैं। श्रम और उत्पादन मे हिस्सेदारी करने मार्केट तक चली आयी है। आधी आबादी को कड़ी प्रतियोगिता देकर योग्य प्रतिद्वन्दी सिद्ध हो रही है ंअनेको दुराचार व जख्मो को पाने के बाद भी हार मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसने न सिर्फ दुर्ग द्वार पर दस्तक दी है बल्कि दरवाजे खोलने का जोखिम भी उठाया है। 

भारतीय स्त्री : परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में
भारतीय स्त्री की पारम्परिक छवि का दर्षन बहुधा गाॅवो-देहातों में दृष्टव्य होता था, यह बात भी थी कि यह अभिजात वर्ग की महिलाओ का चित्र है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बनाये रखने में भी अभिजात कुल की महिलायें ही आगे रहती है या तो कहे कि ये स्त्रियों द्वारा आदर्ष स्त्री रूदी का चोला पहनाकर पितृसत्ता समाज में अन्य वर्गो की स्त्रियों के बीच इस व्यवस्था को बनाये रखने का दबाव बनाता है। आज जब हम आधुनिकता के साॅचे में फिट हुई भारतीय नारी की तस्वीर को देखते है तो एक वेआबरू यथार्थ से अवगत होते है जो कि ‘सोषलाइट वूमन’ के रूप मे ग्लैमर और चमक-दमक से चुॅधियायी हुई आॅखो वाली स्त्री दिखती है, न्यूजपेपर के तीसरे पेज पर अपनी फोटो देखना जिसके जिन्दगी का अन्तिम शौक हो इसी के सामान्तर भी कुछ अन्य आकृतियाॅ भी दृष्टिगोचर होती है वे है-मेल, स्त्रीपर्स, जिगैलोज और एक जुमला हवा में लहराता है-‘सब चलता है।’आधुनिकता के नाम पर बही जिस आॅधी रूपी बयार ने भारतीय नारी के आॅखो में गर्दे गुबार भर दिये है, वह सचमुच विचारणीय है। शादी और परिवार के नाम पर त्याग, समर्पण एवं उत्तरदायित्वों का एक लम्बा  एक तरफा मांगपत्र परम्परा ने उसके समक्ष रखा तो आधुनिकता ने उसे टटन, घुटन, अवसाद और अपसंस्कृति की सौगात प्रदान की है, अन्ततः कुल जमा पूॅजी दर्द-पीड़ा, इधर कुॅआ उधर खाई! कहने का तात्पर्य बस इतना है कि यदि उसके कार्यक्षेत्र में बढ़ोतरी हुई, उत्तरदायित्व बढ़ा है तो उसकी समकालीन भूमिका को देखते हुए, समाज को, परिवार को उसके प्रति सदाषनी और सहानुभूतिपूर्वक दृष्टिकोण धारण करना चाहिए था लेकिन वास्तविकता उसके मीलों दूर थी। 

अपनी कामकाजी बहू, भाभी या बेटी के प्रति महिला सदस्यों के साथ-साथ उसके पति द्वारा भी कोई उदारता नहीं बरती जाती। ‘विलासितापूर्ण जीवन शैली की ललक, भौतिकवादी मानसिकता, बलवती महत्वाकाक्षांए एवं अन्य सामाजिक, आर्थिक कारकांे ने भारतीय महिला के तात्कालिक जीवन को जटिल, थकाऊ और तनावग्रस्त कर दिया है।’ स्त्री अपने लिए ‘ब्रीदिग स्पेस’ की कामना कर रही है। यह स्पेस उसे अपने घर पर ही मिल सकता है पर उसका अपना घर भी कहाँ है? वर्जीनिया वुल्फ से लेकर महादेवी वर्मा तक सभी आमों-खास औरतों को आज भी अपने घर की तलाष हैं जिसको वे अपना कह सकें। जहाँ उन्हे इस बात का हमेषा डर न सता रहा हो, धमकी न मिलती हो कि-मेरी उंगलियों के इषारों पर चलोगी तो धक्के देकर निकाल दी जाओगी। पुरूष  समानता पर बहुतो लेखनी चली, पढ़ा भी गया, लम्बी लड़ाइयाॅ लड़ी गई व जारी भी है परन्तु इस विषय पर अभी तक मानसिक गत्यावरोध वैसा ही है जैसा पूर्व दिनों में था। वर्तमान में ‘माइण्ड सेट’ परिवर्तन की आवष्यकता है। समकालीन युग में नारी की स्थिती पर स्वस्थ व सन्तुलित विचार करने की आवष्यकता है जो एक तरफ आर्थिक स्वायत्ता प्राप्त करती है तो दूसरी तरफ घरेलू हिंसा का षिकार भी होती हैं महिला कानूनों का निर्माण दिनों दिन हो रहा है। कानूनों का प्रचार-प्रसार भी हो रहा है फिर भी सार्थक बदलाव की महत्ती आवष्यकता अनुभव होती जान पड़ती है।एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी ज्ञात होता है कि जैसे-जैसे भारतीय महिला अर्थोपार्जन के लिए घरों से बाहर निकली है वैसे-वैसे उसको घर और बाहर से जुड़े फैसले में छोटी-मोटी सहभागिता मिलने लगी हैं। किन्तु निर्णय करने की भूमिका अभी भी पुरूष के पास ही हैं। स्त्री की ओर से हुआ निर्णय उसको अपने सत्ता को हिलाता नजर आता हैं, स्त्रियां भी विद्रोह करके यह भूमिका प्राप्त नहीं करना चाहती क्योंकि इसका परिणाम उनको घर बिखरने, परिवार टूटने तथा बच्चों का भविष्य चैपट हो जाने के रूप में प्राप्त होता है। 

अर्थ स्वातन्त्रय ने महिला की स्थिति तो सृदृढ़ की परन्तु इससे अधिक लाभान्वित पुरूष ही हुआ है। अब घर रूपी गाड़ी उसे चलाने के लिए अकेले मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है, महिला अपने स्तर से छोट-मोटे निर्णय ले पा रही है पर सर्दियों के दमन, षोषण का दंष झेल रही, पुरूष की परछाई मात्र अस्तित्व वाली स्त्री के भीतर अभी उतनी हिम्मत आनी बाकि है कि वह अपने अहम फैसले बिना किसी के मदद के खुद ले सके। इस आत्मविष्वास और सबलता को प्राप्त करने में उसको अभी समय लगेगा।आज आधुनिकता के जिस हवा में हम सांस ले रहे है वहाँ महिला को ‘प्रोडक्ट’ बना कर ‘प्रोडक्ट बेचने’ जीरो फिगर के संप्रत्यय को प्रभावी रूप से प्रचारित व प्रसारित किया जा रहा है जिसकी परिणति-एनाॅक्जिया नरवोसा व बुलिमिया जैसी ‘इटिंग डिस्आर्डर’ के रूप मे सामने आती है।भारतीय नारीवाद शोर-शराबे, हंगामे और हलचलों के बीच अपने गन्तव्य के प्रथम चरण पर है। यह भी उतना ही सत्य है कि कोई भी वाद, विचारधारा, अपने प्रारम्भिक चरण में प्रतिवाद व निषेध की विसंगतियाॅ अवष्य झेलता है। पुरातन व नूतन का टकराव चलता रहता है, नई व्यवस्था का स्पष्ट स्वरूप दृष्टिगत होता है। प्राचीन व्यवस्थायें शनै-शनै धूमिल होने लगती है, वह अप्रांसगिक और अनुपयोगी सिद्ध कर दी जाती है। भारतीय नारी का परम्परागत व आधुनिक विमर्ष अभी इसी चरण पर है।यह यथार्थ है कि पूरे जहांन का नक्षत्र बदल रहा है तो उसके बषिन्दों का नक्षा भी बदलना चाहिए और बदल भी रहा है, इतना तो परिवर्तन अवष्य आया है कि आज स्वतन्त्र नारी में अपने शरीर से पुरूष का एकाधिकार समाप्त करने का हौसला आया है। 

“स्वतंत्रता और समानता मानव का मौलिक अधिकार है, स्त्री को भी मनुष्य माना चाहिए। परम्परा ने इसका घोर अभाव था। परन्तु आधुनिकता से यह आषा की जा सकती है कि वह नारी के मानवीय सम्मान पर सहृदयपूर्वक विचार करे, ऐसे परिवेष का सजृन करें जहाॅ पर सहचार हो, सहयोग हो, सद्भावना हो, स्नहे हो, परस्परपूरता हो, अन्योन्याश्रितता हो। स्त्री-पुरूष एक दूसरे के निमित्त समान रूप से मूल्यवान हो तभी एक स्वस्थ्य और संतुलित सामाजिक पर्यावरण का परिनिर्माण सम्भव हो पाएगा। इसी विष्वास के साथ.....................।”


सन्दर्भग्रन्थ सूची-
पृ0 112, नासिरा शर्मा, औरत औरत के लिए।
पृ0 170, राजेन्द्र यादव, पितृसत्ता के नए रूप।
पृ0 116, भारतीय स्त्री सांस्कृतिक संदर्भ।
पृ0 129, डाॅ0 सविता भारद्वाज, रहना नहीं देष बेगाना।
पृ0 219, ले0 अरविन्द जैन, औरत होने की सजा, राजकमल प्रकाषन, नई दिल्ली।



- नेहा कुमारी
असिसटेन्ट प्रोफेसर
राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,34,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1408,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,29,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,68,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,4,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,21,प्रेमचंद,39,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,3,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,6,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,18,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,10,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,13,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,1,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,117,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,52,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,343,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,335,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,94,hindi stories,656,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,13,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,9,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,32,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: भारतीय स्त्री : परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में
भारतीय स्त्री : परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में
भारतीय स्त्री परंपरा और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में बच्चों के कापी-किताब, खाने का डिब्बा, पानी की बोतल, पति के आॅफिस जाने के सारे इन्तजाम, मोजे से ले
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjK4tbw7krWF2l1CMoE7vSu71cMUgVdIx7L_BSGfp6RnP1sP9bp8m6r-7XUbU11BmhZj4rhB1Ap6cJlCpa39lfGo8ZxHBD7IEDHBrHVqLdngEhVqZ7oRdx4PKrDfkNEEb3NhgNxB_iLqKjKUK9i61Lo0XgRqkHma1fgapISPdeIy7XbvGTd7J8feXJxhg=s320
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjK4tbw7krWF2l1CMoE7vSu71cMUgVdIx7L_BSGfp6RnP1sP9bp8m6r-7XUbU11BmhZj4rhB1Ap6cJlCpa39lfGo8ZxHBD7IEDHBrHVqLdngEhVqZ7oRdx4PKrDfkNEEb3NhgNxB_iLqKjKUK9i61Lo0XgRqkHma1fgapISPdeIy7XbvGTd7J8feXJxhg=s72-c
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2022/01/bharatiya-stree-parampara-adhunikta.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2022/01/bharatiya-stree-parampara-adhunikta.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका