हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय भावना हिंदी साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना अनंत काल से रही है। राष्ट्रीय विचार धारा अविरल गति से हिंदी में बहती आई है।
हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना
राष्ट्रीय चेतना का सन्देश
रीतिकाल के श्रृंगार और विलासतामय परिस्थितियों का चित्रण करने वाले कवियों के बीच भी राष्ट्रीय चेतना का सन्देश देने वाले कवियों की कमी नहीं थी। भूषण ने छत्रसाल और शिवाजी जैसे राष्ट्र नायकों को अपने काव्य का विषय बनाया और राष्ट्रीयता की धूमिल परिस्थिति में भी राष्ट्रीय प्रेम की आशाभरी किरण बिखेरी। भूषण ही नहीं गोरेलाल ,गुरु गोविन्द सिंह और सेनापति जैसे कवियों की वाणी भी राष्ट्रीय चेतना प्रदान करती है।
डूबत भारत नाथ बेगि जागो अब जागो।
बालस-दवेएहि दहन हेतु चहुँ दिशि सों लागों ॥
महामूढ़ता वायु बढ़ावत तेहि अनुरागो।
कृपादृष्टि की वृष्टि बुझावहु आलस त्यागो॥
बैर फूट ही सों भयो, सब भारत को नास।
तबहुँ न छाड़त याहि सब, बँधे मोह के फाँस॥
वियोगी हरी ,मैथिलीशरण गुप्त ,माखनलाल चतुर्वेदी ,सुभद्राकुमारी चौहान ,जयशंकर प्रसाद ,श्याम नारायण पाण्डेय ,रामधारी सिंह दिनकर ,शिवमंगल सिंह सुमन आदि कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार किया। देश को एक नयी चेतना प्रदान की। माखनलाल चतुर्वेदी ने फूल की चाह के माध्यम से अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय देते हुए लिखा है -
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर बड़े हुए लेकर जिसका रज
तन रहते कैसे तज दोगे, उसको हे वीरों के वंशज !
आधुनिक काल में राष्ट्रीय भावना
आधुनिक काल के अधिकाँश कवियों ने राष्ट्रीय भावना से प्रभावित होकर राष्ट्रप्रेम सम्बन्धी रचनाएं लिखी है। इसमें अतीत भारत की गौरवमयी झांकी है। राष्ट्र नायकों की वीरता और त्याग का चित्र है। प्रसाद के नाटकों ,उनकी कहानियां और गीतों में राष्ट्रीयता की अविरल धारा तरंगित होती है। अरुण यह मधुमय देश हमारा में भारत के गौरव का चित्र हैं। सुभद्राकुमारी चौहान ने वीरांगना झांसी की रानी को अपने काव्य का विषय बनाकर नारियों में भी एक नयी उमंग और नया जोश भर दिया। उनकी कविता वीरों का कैसा हो वसंत ? राष्ट्रीय भाषा की एक अमर रचना है। कविवर श्याम नारायण पाण्डेय ने महान राष्ट्रप्रेमी महाराजा के चरित्र के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना फ़ैलाने का कार्य किया उदाहरण देखिये -अपना सब कुछ लुटा दिया,जननी पद नेह लगाकर
कलित कीर्ति फैला दी है,निद्रित मेवाड़ जगाकर
जग वैभव उत्सर्ग किया,भारत का वीर कहाकर
माता मुख लाली प्रताप ने रख ली लहू बहाकर
भीषण प्रण तक किया रक्त से,समर सिंधु भर डाला
ले नंगी तलवार बढ़ा,सब कुछ स्वाहा कर डाला
इस प्रकार जब हम हिंदी साहित्य के आदिकाल से आजतक के साहित्य का अवलोकन करते हैं तब इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि राष्ट्रीयता की भावना एक पावन सरिता की तरह प्रवाहित होती रहती है। परिस्थितियों के कारण इसमें कभी कभी अवरोध अवश्य उपस्थित होता रहता है ,लेकिन इसकी धारा निरंतर गतिशील रही है।
ये सब अधूरी जानकारियां हैं ।हिन्दी पर इंटर नेट में खोजते हुये अक्सर निराशा ही होती है,अद्यतन जाकरी नहीं मिलती ,नवीकरण जरूरी -जी॰गोपीनाथन
जवाब देंहटाएं