जलाओ दिए कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर

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जलाओ दिए कविता - गोपालदास नीरज


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जलाओ दिए कविता का भावार्थ  व्याख्या 


जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, 
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, 
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, 
निशा की गली में तिमिर राह भूले, 
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, 
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम सभी को ऐसा दिया जलाना चाहिए जिससे धरती पर तनिक भी अँधेरा न रह जाए। कवि चाहता है कि सब कुछ प्रकाशमान हो जाए। चारों ओर इस तरह रौशनी हो जाए कि अँधेरा रात में भी अपना रास्ता भटक जाए। अँधेरे में मुक्ति का रास्ता इस तरह साफ़ हो कि रौशनी ही रौशनी हो जाए। रौशनी इस तरह स्थायी और निरंतर रहे कि रात का अँधेरा कभी भी न रहे और प्रभात का मधुर और सुहावना प्रकाश सदैव बना रहे। अँधेरे से कवि का अभिप्राय अज्ञान ,दुःख कष्ट ,उदासी ,घृणा और अहिंसा से उत्पन्न होने वाला संताप है। कवि चाहता है कि कुछ ऐसे प्रयत्न किये जाएँ कि धरती पर इनमें से कुछ भी न रहें बल्कि ज्ञान ,विद्या ,ख़ुशी तथा प्रेम का प्रकाश ही रहे। 

जलाओ दिए कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में, 
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी, 
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी, 
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी, 
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही, 
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 

व्याख्या - कवि का कहना है कि कोई भी सृजन अथवा रचना का कार्य अधूरा ही रहेगा जब तक संसार के किसी भी क्षेत्र में किसी भी चेहरे पर उदासी होगी। यदि किसी को दुःख अथवा संताप है तो हम नहीं कह सकते हैं कि हमने किसी आदर्श चीज़ की रचना की है। जब तक इस धरती पर लहू बहता रहेगा ,मानव में हिंसा और घृणा की भावना रहेगी हम नहीं कह सकते कि हममें पूर्ण रूप से सजगता आ गयी है। ऐसे तो तो बर्बादी का सिलसिला निरंतर चलता रहेगा भले ही हम दिवाली मना कर अपनी खुशियों की मिथ्या अभिव्यक्ति क्यों न करते रहे। अतः कवि  चाहता है कि धरती पर प्रेम ,अहिंसा और खुशियों का प्रकाश हो और कहीं भी घृणा ,दुःख तथा हिंसा का अँधेरा न रह जाए।  

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में, 
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा, 
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के, 
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा, 
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब, 
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

व्याख्या - कवि इन पंक्तियों में अपनी बात को स्पष्ट करता है। कवि का मानना है कि मात्र दीपक की रौशनी से ही संसार से वह अँधेरा नहीं मिट सकता है जिसकी ओर वह संकेत कर रहा है। वास्तव में कवि मानव के ह्रदय में ख़ुशी ,प्रेम ,अहिंसा और ज्ञान का उजाला करना चाहता है। अतः वह कहता है कि सभी तारे भी अगर गगन से क्यों न उतर कर नीचे चले ,आयें मानव ह्रदय में उजाला नहीं होगा। कवि का कहना है कि दुःख ,पीड़ा ,कष्ट और अज्ञान की यह अँधेरी रात तभी समाप्त होगी जब स्वयं मनुष्य दीप का रूप धारण करके आये। ऐसी स्थिति में वह स्वयं भी रोशन हो और दूसरों को भी प्रकाश प्रदान करें। अतः कवि चाहता है कि धरती पर प्रेम ,अहिंसा और खुशियों का प्रकाश हो और कहीं भी दुःख ,घृणा और अहिंसा का अँधेरा न रह पाए। 


जलाओ दिये कविता का सारांश मूल भाव

जलाओ दीये कविता ,गोपालदास नीरज जी की प्रसिद्ध कविता है। प्रस्तुत कविता में आपने लोगों को सृजन और नवनिर्माण की प्रेरणा दी है। आपका कहना है कि मनुष्य को दिया जलाना चाहिए। किन्तु ऐसा करते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि इस पृथ्वी पर कहीं भी अँधेरा रह न पाए। नयी ज्योति के स्थल बने ,सब जगमगा उठे। जिस मिट्टी को हम प्राप्त कर सकते हैं और उसकी धूल से अँधेरा होता तो उसको धरती से साफ़ कर दो ,उड़ा दो। हर तरफ इस तरह रौशनी हो जाए कि अँधेरा पूर्ण रूप से समाप्त हो जाए। रात के समय भी अँधेरा भटकता रह जाए। यहाँ अज्ञान के अँधेरे को मिटाने तथा विद्या और प्रकाश के अँधेरे को फ़ैलाने की बात हो रही है। 

अँधेरे से मुक्ति का द्वार इस तरह खुले के चारों ओर भरपूर प्रकाश हो जाए। यह प्रकाश निरंतर और स्थायी हो। पुनः न रात्री का अँधेरा आ सके और न उषाकाल का प्रकाश जा सके। अतः प्रकाश के लिए दिए इस तरह जलाये जाएँ कि धरती पर कहीं भी अँधेरा न रह पाए। 


जलाओ दिये कविता के प्रश्न उत्तर

प्र. कवि ने मिटटी को मरणशील क्यों कहा है ? वह कैसे आकाश और स्वर्ग को छू सकती है ?
उ. मिट्टी को सदैव समाप्त किया जा सकता है। आँधी आने पर यह सदैव आकाश की ओर उडती है। मिट्टी का अर्थ मानव देह भी हो सकता है। कहते हैं कि मरने के बाद मनुष्य की आत्मा स्वर्ग की ओर चली जाती है। 

गोपालदास नीरज
प्र. सृजन कब तक अधूरा है ?
उ. सृजन तब तक अधूरा है जब तक विश्व भर में किसी द्वार पर भी उदासी है। 

प्र. सजगता कब तक पूर्ण नहीं मानी जा सकती है ?
उ. सजगता तब तक पूर्ण नहीं मानी जा सकती है जब तक धरती पर मनुष्य के खून की प्यासी रहेगी अर्थात मानव में हिंसा और घृणा रहेगी और धरती पर मानव का खून बहता ही रहेगा। 

प्र. यदि आकाश के असीम प्रकाश वाले सभी तारे और नक्षत्र धरती पर उतर आयें ,फिर भी अँधेरा क्यों नहीं दूर हो सकता है ?
उ. इनसे बाहर का अँधेरा तो दूर हो सकता है। किन्तु कवि ह्रदय के अँधेरे की बात कर रहा है है। वह तो केवल मानव की समस्याओं के समाधान के बाद ही दूर हो सकता है। 

प्र. ह्रदय के अन्धकार को दूर करना क्यों आवश्यक है ? इसे कैसे दूर किया जा सकता है ?
उ. मानव जाति के सुख और शान्ति के लिए ह्रदय के अन्धकार को दूर करना आवश्यक है। मानव की मुख्य समस्याओं के समाधान से मानव ह्रदय के अन्धकार को दूर किया जा सकता है। अज्ञान ,घृणा ,अहिंसा आदि का नाश करके और प्रेम ,सद्भावना ,विद्या ,ज्ञान और गरीबी को दूर करके भी मानव ह्रदय के अन्धकार को दूर किया जा सकता है। 


जलाओ दिए कविता का शब्दार्थ 

दीये  - दीपक 
धरा - पृथ्वी 
मर्त्य - मरणशील 
निशा - रात 
तिमिर - अँधेरा 
दीप्ति - प्रकाश 
गगन - आकाश 
मनुज - मनुष्य 
सृजन - रचना 
सदा - हमेशा 
मुक्ति - छुटकारा 

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. Yeh prashn Uttar book se match nahin karte

    जवाब देंहटाएं
  2. मनूजता नहीं पूर्ण तब तक‌बनेगी। कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यसी

    जवाब देंहटाएं
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