Koi Nahi Paraya Poem कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है कविता | Gopal Das Neeraj

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कोई नहीं पराया कविता



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कोई नहीं पराया कविता का अर्थ भावार्थ


कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।

मैं ना बँधा हूँ देश काल की जंग लगी जंजीर में
मैं ना खड़ा हूँ जाति−पाति की ऊँची−नीची भीड़ में
मेरा धर्म ना कुछ स्याही−शब्दों का सिर्फ गुलाम है
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट−घट में राम है
मुझ से तुम ना कहो कि मंदिर−मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ
मेरा तो आराध्य आदमी− देवालय हर द्वार है
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।

Koi Nahi Paraya Poem
कोई नहीं पराया

व्याख्या -
प्रस्तुत कविता में कवि गोपालदास नीरज जी अपने पाठकों को विश्व मैत्री का पाठ पढ़ाते हैं। कविता में कहते हैं कि संसार में उनके लिए कोई पराया नहीं है। कवि किसी देश काल के बंधन में बंधा नहीं है। वह जाति - पाती ,उंच नीच का भेदभाव नहीं मानता है। वह धर्म की किताबों में लिखे गए शब्दों में भी बंधा नहीं है। उसे सारे संसार से प्रेम है ,इसीलिए प्रत्येक स्थान पर उसे भगवान् के दर्शन होते हैं। यह कारण है कि कवि केवल मंदिर मस्जिद पर ही अपना सर नहीं झुकाता ,बल्कि उसे जहाँ भी मनुष्य के दर्शन होते हैं ,वहां वह मंदिर का द्वार समझता है। कवि पूरे संसार को अपना घर मानता है ,उसके लिए कोई पराया नहीं है। 

कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इन्सान है,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है,
अरे नहीं देवत्व मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी,
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि मुझे हर परिस्थिति में मनुष्य से प्रेम है। मुझे मनुष्यता पर बहुत ही गर्व है। मुझे देवता नहीं बनना है और न ही मुझे देवत्व का सुख प्राप्त करना है। मनुष्यों के बीच जो भाई -चारा और स्नेह है ,उसे छोड़कर मुझे देवताओं की अमरता नहीं चाहिए। मुझे स्वर्ग की सुन्दर मनोहर कहानियाँ सुनाकर मोहित करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे धरती से प्रेम है और यह धरती सैकड़ों स्वर्गों से भी कोमल है। अतः कवि के लिए कोई भी प्यारा नहीं है। सारा संसार ही उसके लिए घर है। 

मैं सिखलाता हूँ कि जिओ औ' जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को,
हँसी इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी,
चलो इस तरह कुचल न जाये पग से कोई शूल भी,
सुख न तुम्हारा सुख केवल जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।

व्याख्या - कवि प्रस्तुत पंक्तियों में कहता है कि मैं सभी को साथ में जीवन बिताने का सन्देश देता हूँ। जियो और जीने दो का सन्देश ही बहुमूल्य है। हम जितना प्यार और भाई चारे को बाँट सको ,वह उतना ही अच्छा है। यदि हम हँसना ही चाहे ,तो दलितों को भी और समाज में जिनका सम्मान नहीं होता है ,उन्हें भी साथ लेकर चलना चाहिए। हमें इस तरह काम करना चाहिए कि किसी भी तरह का नुकशान न हो ,चाहे वह काँटा ही क्यों न हो। हमारा सुख केवल हमारा नहीं होता है ,बल्कि संसार का भी उसमें कुछ भाग होता है ,जिस तरह फूल केवल डाल के लिए ही नहीं बल्कि बगीचे का भी हिस्सा होता है। अतः इन्ही बातों को देखते ही कवि के लिए कोई पराया नहीं है ,बल्कि सारे संसार के लिए वह है। 

गोपाल दास नीरज
गोपाल दास नीरज

मुझे मिली है प्यास विषमता का विष पीने के लिए,

मैं जन्मा हूँ नहीं स्वयँ-हित, जग-हित जीने के लिए,
मुझे दी गई आग कि इस तम को मैं आग लगा सकूँ,
गीत मिले इसलिए कि घायल जग की पीड़ा गा सकूँ,
मेरे दर्दीले गीतों को मत पहनाओ हथकड़ी,
मेरा दर्द नहीं मेरा है, सबका हाहाकार है ।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।

व्याख्या - कवि प्रस्तुत पंक्तियों में कहता है कि मैं सारे संसार की असमानता को समाप्त करना चाहता हूँ। मैं संसार के हित के लिए जन्म लिया हूँ। मैं केवल अपना ही स्वार्थ नहीं देखता हूँ ,मैं सारे संसार में फैले हुए अंधियारे को खत्म करके ,उसमें  प्रकाश को फैलाना चाहता हूँ। मैं ऐसे गीता गाना चाहता हूँ कि जिसमें सारे संसार की पीड़ा को बयान कर सकूँ। मेरे इन दर्द भरे गीत को किसी बंधन में मत बांधों। मेरे गीत केवल मेरे दर्द नहीं है ,बल्कि सारे संसार की पीड़ा को बयान करते हैं। कवि कहता है कि मेरे लिए कोई पराया नहीं है ,बल्कि सारा संसार मेरा घर है। 


कोई नहीं पराया कविता का मूल भाव सारांश

प्रस्तुत कविता कोई नहीं पराया में कवि गोपालदास नीरज जी ,अपने पाठकों को विश्व मैत्री का पाठ पढ़ाते हैं।वे आशावादी कवि हैं। उनके लिए सारा संसार ही उनका परिवार है। उनका कहना है कि इस धरती पर निवास करने वाला हर प्राणी मेरा अपना है ,कोई भी पराया नहीं है। हम सब एक है हमें किसी भी आधार पर अलग नहीं किया जा सकता है ,चाहे वो आधार धर्म ,जाती ,वंश या क्षेत्र हो। हम सब एक है। इस प्रकार यह कविता कोई नहीं पराया ,वसुधैव कुटुम्बकम् का सन्देश देती है।

नीरज मानव प्रेम के अन्यतम गायक हैं। उनके अनुसार इस जग में मानव और मानवता से बढ़कर दूसरा कोई भी सत्य नहीं है। देश-काल, जाति-पाति, धर्म-संप्रदाय, रंग-रूप, स्त्री-पुरुष, ऊँच-नीच और भाषा-संस्कृति आदि जैसे तत्वों का संकीर्ण भेद-भाव उन्हें स्वीकार नहीं, वे सच्चे अर्थों में मानव-पूजक हैं। इसी तथ्य को गोपाल पास 'नीरज' ने 'कोई नहीं पराया' नामक कविता में दर्शाया है। कवि पूरे विश्व को अपना हार और प्रत्येक मनुष्य को अपना मानते हैं। वे विश्व, समाज और परिवार के समस्त भेद-भावों को भूलकर बस प्रेम को महत्त्व देते हैं। उनके अनुसार यह प्रेम ही मानव को मानव मात्र से जोड़ता है, अतः जहाँ प्रेम का वास है, वहाँ ईश्वर है। इसलिए वे किसी भी मंदिर-मस्जिद में सर झुकाने के बजाय मानव के सामने नतमस्तक होना स्वीकार करते हैं। 

कवि के अनुसार इस संसार का आधार मनुष्य ही है। अतः वह जहाँ भी रहे और जैसे भी रहे कवि की दृष्टि में सबसे प्रिय है। कवि को देवत्व पर नहीं बल्कि मनुष्यता पर गर्व है। कवि को ईश्वर, देवत्व और स्वर्ग की काल्पनिक कहानियों में रुचि है। उनकी स्पष्ट मान्यता है कि इस धरती और यहाँ के मनुष्य से बढ़कर कहीं कुछ भी खूबसूरत नहीं है। इसी कारण वह मानवता और मानव को किसी भी मूल्य पर खोना नहीं चाहते हैं । कवि मानवतावादी भावना के सच्चे और ईमानदार सिपाही हैं। इसी कारण वे लोगों को जियो और जीने दो का संदेश देते हैं। उनके अनुसार इस धरती पर सभी का बराबर का अधिकार है, अतः यहाँ पर सबको समान रूप से खुशहाली के साथ जीने का भी हक है। अतः लोगों के बीच आपसी प्रेम को बाँटने की प्रेरणा देते हैं। वे चाहते हैं कि हम इस प्रकार जीवन बिताएँ कि हमारे कार्यों से कमजोर से कमजोर वर्ग को भी कोई नुकसान न हो पाए। उनकी मान्यता है कि मानव सबसे पहले एक विश्वरूपी समाज का हिस्सा है, अतः उसका पहला कर्तव्य दूसरों का हित है। इसी भावना को अंगीकार करने पर ही मानवतावाद का प्रसार हो सकता है। 

गोपालदास नीरज का जीवन परिचय

वर्तमान समय के सबसे लोकप्रिय और हिन्दी जगत के लाडले कवि गोपाल दास 'नीरज' का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिला के पुरावली गाँव में 4 जनवरी 1925 ई० को हुआ था। इनका वास्तविक नाम गोपाल दास सक्सेना था। काव्य जगत में इनकी पहचान गोपाल दास 'नीरज' के रूप में बनी। इनके पिता बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना थे, जिनकी मृत्यु उस वक्त हो गई, जब 'नीरज' मात्र छ: वर्ष के बालक थे। नीरज की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा इटावा में ही हुई। वहीं से सन् 1942 में प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल की परीक्षा पास की। इसके बाद आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए कभी टाइपिस्ट, कभी कलर्की तो कभी सिनेमाघरों में काम किया। सन् 1949 में इन्होंने इण्डरमीडिएट, 1951 ई० में बी०ए० और 1953 ई० में हिन्दी से एम०ए० किया। 

पढ़ाई समाप्त होने के बाद कई वर्षों तक मेरठ कॉलेज और फिर अलीगढ़ कॉलेज में हिन्दी अध्यापन का कार्य किया। लेकिन बाद में कवि सम्मेलनों में लोकप्रियता ने उन्हें बम्बई की फिल्म नगरी तक पहुँचाया, जहाँ उन्होंने फिल्मों में ढेर सारे गीत लिखे। लेकिन यह मायानगरी भी उन्हें रास नहीं आयी और वे वापस अलीगढ़ लौट आए। अब यहीं स्वतंत्र लेखन तथा कवि सम्मेलन, मुशायरों में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए साहित्य-कोष को समृद्ध कर रहे हैं। 

नीरज मानव-प्रेम के अन्यतम गायक हैं। इनकी रचनाएँ मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति का अनुभव कराती हैं, लेकिन कुछ आलोचक इन्हें निराशवादी भी मानते हैं। इनकी भाषा सरल एवं सहज हैं। इनकी प्रमुख काव्य-कृतियों में दर्द दिया, प्राण- गीत, आसरवरी, बादल बरस गये, दो गीत, नदी किनारे, संघर्ष, लहर पुकारे, गीत भी अगीत भी आदि का नाम लिया जा सकता है। इसके अलावा कुछ पत्रों का संकलन और आलोचनात्मक निबंध भी इनकी साहित्य निधि का हिस्सा है। साहित्य में इनके अमूल्य योगदान के लिए इन्हें विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार, यश भारती पुरस्कार, पद्मश्री एवं पद्म भूषण आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके अलावा इन्हें तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिया गया।  नीरज जी  भाषा संस्थान, लखनऊ के अध्यक्ष रहें हैं। 

पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास 'नीरज' ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे अन्तिम सांस ली।


कोई नहीं पराया कविता के प्रश्न उत्तर 


कविता से 
मौखिक 
प्र. कवि के लिए कोई भी पराया क्यों नहीं है ?
क. कवि सारे संसार को अपना मानता है ,इसीलिए यहाँ कोई उसके लिए पराया नहीं है। 

प्र. कवि किसे अपना आराध्य मानता है ?
ख. कवि संसार में रहने वाले हर मनुष्य को अपना आराध्य मानता है। 

प्र. कवि प्रकार की कहानियाँ नहीं सुनना चाहता है ?
ग. कवि स्वर्ग के सुख की अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनना नहीं चाहता है।

प्र.कवि संसार में क्या बांटना चाहता है ?
घ. कवि सारे संसार में प्रेम और भाई - चारा का सन्देश बांटना चाहता है। 

लिखित 
प्र. कवि मानवता पर अभिमान क्यों करता है ?
क. कवि को अपनी मानवता पर बहुत गर्व है क्योंकि संसार में रहने वाले समस्त प्राणियों से उसे प्रेम है।
 
प्र. कविता में धरती और स्वर्ग की तुलना किस रूप में की गयी है ?
ख. कविता में धरती को स्वर्ग की तुलना में उच्च बताया गया है। स्वर्ग में भले ही सैकड़ों सुख हो उनकी तुलना में धरती ज्यादा कोमल है और यहाँ रहने वाले मनुष्य उत्तम है। 

प्र. कवि कैसा जीवन बिताने की बात कर रहा है ?
ग. कवि सारे संसार की भलाई में लगकर सबका हित करना चाहता है। वह किसी प्रकार सारे संसार में व्याप्त असमानता को दूर करेगा। गरीब दलित में व्याप्त पीड़ा को वह अपने गीतों के माध्यम से आवाज देना चाहता है। इस प्रकार वह स्वार्थ में न लगकर संसार का हित करेगा। 

अर्थ स्पष्ट कीजिये - 
प्र. मुझ से तुम ना कहो कि मंदिर−मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ .

उ. कवि संसार में रहने वाले मनुष्यों को अपना देवता मानता है। उन्हें देवता मानकर ,उनकी सेवा करना चाहता है। यही कारण है कि उसके लिए मंदिर - मस्जिद पर मत्था टेकना बेकार है। 

प्र. मेरा दर्द नहीं मेरा है, सबका हाहाकार है ।

उ. कवि संसार के गरीबों - दलितों की पीडाओं को लेकर चिंतित है। वह उनकी आवश्यकतों को अपने गीतों के माध्यम से आवाज देना चाहता है। इस प्रकार ,उसके गीतों में संसार की विषमता की पीड़ा भी है।  

प्र। इस कविता को पढ़कर क्या आपको लगता है कि आज भी एकता विद्यमान है? 
उत्तर : प्रस्तुत कविता मानवतावाद की भावभूमि पर लिखी गई है, जहाँ सभी के बीच प्रेम के द्वारा एकता स्थापित करने के आदर्श को स्थापित किया गया है। लेकिन वर्तमान में हर देश में फैले जाति-भेद, रंग-भेद, धार्मिक असहिष्णुता, आतंकवाद, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार के द्वारा अधिक से अधिक धन कमाने की होड़, हथियारों का अंधाधुंध उत्पादन और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति को देखते हुए आसानी से कहा जा सकता है कि मानवतावाद और एकता अभी भी दूर की कौड़ी (बहुत ही दुर्लभ) है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि यह कविता एकता स्थापित करने के लिए प्रेरित अवश्य करती है, लेकिन वास्तव में एकता अभी भी हमारी कल्पनाओं में है- सत्य की जमीन पर नहीं ।
 
प्र। “मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है”- का भाव स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : मानव प्रेम के अन्यतम गायक नीरज का सब कुछ मानवतावाद है। उन्हें केवल मानव और उसकी मानवता से प्रेम है। उनकी स्पष्ट मान्यता है कि सृष्टि को रहने लायक बनाने का कार्य मानव ने ही किया है। इस धरती का सबसे विशिष्ट प्राणी मानव है । अतः इस मानव पर कवि को गर्व है। इस धरती पर लोगों को जाति-धर्म- संप्रदाय, रंग-रूप, देशकाल, ऊँच-नीच आदि के भेदभावों में बाँटकर रख दिया गया है। इस भेद-भाव को मिटाकर उन्नत समाज-निर्माण केवल मानवतावाद की भावना के द्वारा ही किया जा सकता है। यही कारण है कि कवि को अपनी मानवतावाद और मानवता की भावना पर अभिमान है ।

प्र। “हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी” का क्या तात्पर्य है? 
उत्तर : कवि मानवतावादी भावना के अनमोल चितेरे हैं । कवि प्रत्येक तरह के संकीर्ण भेदभावों से स्वयं को मुक्त कर विस्तृत मानसिकता स्थापित करना चाहते हैं। इस कारण वे चाहते हैं कि विश्व का आखिरी मानव भी हर तरह की सुख-सुविधाओं और खुशी को प्राप्त कर सके। उनकी विचारधारा है कि हमारी खुशियाँ कभी भी किसी अन्य के मार्ग में दुःख तकलीफ पैदा न करें। कमजोर से कमजोर वर्ग को भी इस धरती पर जीने का अधिकार है। हमें ऐसे जीना चाहिए कि दलित और पीड़ित वर्ग भी हमारी खुशियों में शामिल होकर मुस्कुरा सके। सारांश कि व्यक्तिगत स्वार्थों को भूलकर मानवमात्र के सुख के लिए प्रयासरत रहना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
 
प्र। कवि प्यार को बाँटने की सलाह क्यों देता है? 
उत्तर : प्यार ही वह तत्व है, जो मानव को मानव से जोड़कर रख सकता है। इस संसार में मानव-मानव के बीच अनेक तरह के भेदभावों की खाई तैयार हो चुकी है। कहीं धर्म-संप्रदाय की दीवार है, तो कहीं जाति-पाँति और ऊँच-नीच की, इस कारण मानव आपस में संघर्ष कर रहे हैं। हर ओर वैमनस्य और शत्रुता का माहौल है। ऐसे परिवेश में प्रेम के द्वारा ही सबके मन को जीता जा सकता है। मन पर विजय प्राप्त करके ही एक-दूसरे के साथ जुड़ा जा सकता है। आपसी प्रेम और सहानुभूति के द्वारा ही विश्व में सौहार्द्र फैलाया जा सकता है। तात्पर्य है कि विश्व को एकजुट करने के लिए और सबका सतत विकास करने के लिए आपसी सामंजस्य आवश्यक है। यह सामंजस्य प्रेम के द्वारा ही फैलाया जा सकता है। अतः कवि प्यार बाँटने की सलाह देते हैं।
 
प्र। “सुख न तुम्हारा, सुख केवल, जग का भी उसमें भाग है”— इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करें। 
उत्तर : कवि के अनुसार मानव का सबसे बड़ा धर्म मानवता की स्थापना है। मानवता की स्थापना के लिए विभिन्न प्रकार के भेद-भावों और स्वार्थों से मुक्ति आवश्यक है। कवि का विचार है कि हमारा अपना जीवन हमारा अपना होने से पहले इस जीवन पर समाज का अधिकार है। हम संसार में अपना जीवन लेकर अवश्य आतें हैं, लेकिन हमें एक विशिष्ट व्यक्तित्व इस संसार से ही प्राप्त होता है। अतः इस संसार और समाज के प्रति हमारा दायित्व सबसे पहले हैं। सबके हित के विषय में सोचना और अपने सुख को विश्व में बाँटना ही मानव का सर्वप्रथम दायित्व है । 

प्र . सही उत्तर चुनकर √ लगाइए – 

उत्तर-  निम्नलिखित उत्तर है - 
कवि को क्या भाता है ? 
(मनुजत्व)
कवि अपने साथ किसे हँसाना चाहता है ? 
(धूल को)
कवि को गीत किसलिए दिए गए हैं ? 
(जग की पीड़ा गाने के लिए) 

भाषा से... 
प्रश्न-7 – इन शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची लिखिए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 
दीन – निर्धन, धनहीन, ग़रीब 
राह – रास्ता, पथ, मार्ग 
यत्न – प्रयास, कोशिश, प्रयत्न 
यश – ख्याति, कीर्ति, प्रसिद्धि 
नेह – प्यार, स्नेह, प्रेम 
मित्र – दोस्त, साथी, सखा 

प्रश्न-8 –  नीचे लिखे संयुक्त व्यंजनों से दो-दो शब्द बनाइए – 
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 
ब्द – शब्द , शताब्दी 
ध्य – मध्य , साध्य 
द्व – द्वार , द्वारपाल 
प्य –  प्यारी , प्यासा 
स्व – स्वभाव , स्वामित्व 
स्य –  रहस्य , आलस्य 


कोई नहीं पराया कविता के शब्दार्थ 

आराध्य – पूजा करने योग्य 
देवत्व – देवता होने का भाव 
मनुजत्व – मानवता 
अमरत्व – अमरता
सुकुमार – कोमल 
दलित – दबाया हुआ 
शूल – काँटा 
विषमता – असमानता 
तम – अंधकार 
दर्दीले – दर्द-भरे 

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सटीक विश्लेषण

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  2. फ़ूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है। इसका अर्थ

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: Koi Nahi Paraya Poem कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है कविता | Gopal Das Neeraj
Koi Nahi Paraya Poem कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है कविता | Gopal Das Neeraj
कोई नहीं पराया कविता के प्रश्न उत्तर कोई नहीं पराया कविता का अर्थ Koi Nahin Paraya Kavita Ka Bhavarth गोपाल दास की लिखी हुई कविता कोई नहीं पराया
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