अमायरा की नैन्सी नन्हीं अमायरा की भावुकतापूर्ण बातें सुनते-सुनते उसके मम्मी-पापा की आँखों से आँसूओं की धार ज़ारी हो गई थी |वैश्विक महामारी कोरोना
अमायरा की नैन्सी
दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली अमायरा को स्कूल जाना बहुत पसंद था | वह हर रोज अपने पापा के साथ स्कूल टाइम पर पहुँच जाती थी | रंग-बिरंगी किताबों की दुनिया से उसे बेहद लगाव था | उस नन्हीं सी जान में देशभक्ति की सच्ची भावना देखकर, तब मन खु़शियों से भर जाता था, जब वह घर पर अपने टूटे-फूटे शब्दों के सहारे सबको राष्ट्र गान सुनाती थी | वह बिल्कुल सावधान की मुद्रा में खड़ी हो जाती थी और उस वक़्त तक खड़ी रहती थी, जबतक उसके मुताबिक राष्ट्र गान का आख़िरी सफ़र मुकम्मल नहीं हो जाता था | उसकी थोथली और प्यारी आवाज़ सुनकर मानो ऐसा एहसास होता था, जैसे तात्कालीन वातावरण में कोयल मिश्री घोल रही हो | कृष्ण अपने मनमोहक बांसुरी के धुन से गोपियों को मंत्रमुग्ध कर रहे हों | परन्तु, अब सबकुछ विपरीत था | अमायरा न ही स्कूल जा पा रही थी और न ही उसे घर पर मन लग रहा था |
दरअसल, दुनिया भर में वैश्विक महामारी कोरोना ने कहर मचाकर रखा था | सभी स्कूल-कॉलेजों में ताले लटक गए थे | बच्चे अपने-अपने घरों में कैद हो गए थे | बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ उनके बाहरी खेल-कूद भी बंद हो गए थे | लोगों ने खूब कोशिश की कि बच्चों को घर पर ही ऑनलाइन स्टडी करवाया जाए, पर बच्चों के लिए स्कूली वातावरण के बजाय घर पर पढ़ना बेहद मुश्किल काम था | घर पर साथ पढ़ने वाले उनके स्कूली दोस्त नहीं थे और वे टीचर भी नहीं थे, जो उनको तरह-तरह की कहानियाँ सुनाकर पढ़ाया करते थे |
नन्हीं अमायरा जब भी अपने पापा से पूछती कि स्कूल कब खुलेगा पापा, तो उसके पापा का एक ही जवाब होता कि स्कूल जल्द ही खुलेगा बेटा | इस तरह समय गुज़रता गया और लगभग पाँच महीने बीत गए | स्कूल अब भी नहीं खुला था और न ही स्कूल खुलने के कोई आसार दिखाई दे रहे थे | लोग कोरोना के दहशत से जल्दी घर से बाहर तक नहीं निकलते थे | नन्हीं अमायरा घर पर अपने पापा के साथ पढ़ाई तो कर लेती थी, पर अपनी सबसे अच्छी दोस्त नैन्सी को बहुत याद किया करती थी |
जब भी अमायरा से पूछा जाता है कि तुम बड़ी होकर क्या बनोगी ? तब वह फ़ौरन कुछ अजीब सा मुँह बनाते हुए दिलकश अंदाज़ में बोल पड़ती --- " मैं न..! दाक्टर बनूँगी...|"
एक रोज मस्ती-मस्ती में अमायरा के पापा उससे पूछ बैठे कि आप डॉक्टर क्यूँ बनना चाहती हैं बेटा ? तो वह अपनी थोथली जुबान का सहारा लेकर कुछ यूँ बोली थी --- " मैं न कोलोना को भगाना चाहती हूँ पापा ! उछने मेला इछकूल बंद कलवा दिया है..., मेली छबसे प्याली दोस्त को मुझछे अलग कल दिया |"
तभी अमायरा की मम्मी, बेटी की साहस भरी बातों से प्रेरित होकर उसके पास आती है और उसे गोद में बिठाकर बोलती है ---" वाह...! मेरी बेटी इतना दूर तक सोचती है, आई प्राउड ऑफ यू माई डीयर, तुम हमेशा खुश रहो...|"
अमायरा की मम्मी पुनः जिज्ञासा लिए उससे पूछती है --- " क्या नैन्सी तुम्हें बहुत याद आती है बेटा...?"
तभी अपनी मम्मी को जवाब देते हुए नन्हीं अमायरा कहती है --- " मम्मी, नैन्सी के पापा नहीं हैं ! वो न, पैडल चलके इछकूल आती है , उछके कपड़े भी फटे लहते हैं मम्मी ! वो न, लंच भी नहीं लाती , इछीलिए मैं अपना लंच उछको भी दे देती हूँ...|"
तत्पश्चात्, अमायरा अपने पापा को संबोधित करते हुए कहती है --- " पापा...! नैन्सी कैछी होगी पापा ? उछकी मम्मी न, दूछलों के घर पर काम कलती है पापा , आप नैन्सी की मम्मी को काम पल लख लो न पापा ! फिल मैं और नैन्सी साथ में पल्हेंगे और साथ में खेलेंगे...!"
नन्हीं अमायरा की भावुकतापूर्ण बातें सुनते-सुनते उसके मम्मी-पापा की आँखों से आँसूओं की धार ज़ारी हो गई थी | अमायरा की समझदारी पर गर्व करते हुए उसकी मम्मी उसे अपने सीने से लगा ली थी और उसके पापा अमायरा के सर पर हाथ फेरते हुए भावुक होकर बोल पड़े थे --- " तुम अपनी नैन्सी से जरूर मिलोगी बेटा…!"
- मनव्वर अशरफ़ी
जशपुर (छत्तीसगढ़)
मो. 7974912639
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