श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021

SHARE:

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021 हाथी चढ़े, घोड़ा चढ़े, और चढ़े पालकी, नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की Iभाद्रमास में कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र

 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष 



“यदु-नन्द नंदन देवकी-वसुदेव नंदन वन्दनम् I 
मृदु चपल नयनम् चंचलम् मनमोहनम् अभिनन्दनम् II” 

भाद्रमास में कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र की काली अंधियारी लगभग मध्य रात्रि I आकाश में घने बादल I रह-रह कर बिजली की चमक और घनघोर वर्षा I 

मथुरा का बंदीगृह I अचानक तेज प्रकाशविम्ब उत्पन्न हुआ, जिसमें शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए दिव्य चतुर्भुज भगवान नारायण प्रकट हुए। कंश के उस बंदीगृह में केवल दो बंदियों ने ही उस दिव्य चतुर्भूज श्रीनारायण के दर्शन किये, - ‘वासुदेव और देवकी’ I बाकी सभी पहरेदार तो तत्क्षण ही गम्भीर निद्रा के आगोस में समा गए I श्रीनारायण की पावन ध्वनि सिर्फ वासुदेव और देवकी के कानों में गुँजित हुई, - ‘हे देवी देवकी! मैं तुरंत ही तुम्हारे गर्भ से नवजात शिशु के रूप में जन्म ग्रहण करूँगा I हे देव पुरुष वासुदेव! वर्तमान परिस्थितियों की चिंता न कर आप तुरंत ही मेरे शिशु स्वरूप को गोकुल ग्राम में अपने मित्र नन्द जी के घर ले जाइएगा और वहाँ देवी यशोदा ने जिस माया रुपी कन्या को जन्म दी है, उसके स्थान पर मुझे रख कर उस माया रुपी कन्या को आप यहाँ ही अतिशीघ्र लेते आइयेगा I’

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021
श्रीनारायण का आदेश पूरा होते ही अचानक माता देवकी की प्रसव पीड़ा बढ़ी और जैसे ही मध्य रात्रि का बेला हुआ, ठीक तभी श्रीनारायण, माता देवकी के गर्भ से नवजात शिशु रूप में अवतरित हुए I श्रीनारायण की मधुर कर्णप्रिय अल्प क्रुन्दन की ध्वनि सिर्फ वासुदेव और माता देवकी के कानों में ही अमृतरस प्रवाहित की I अभी वासुदेव तो इस चिंता में ही थे कि मजबूत जंजीरों से बंधे प्रभु की आज्ञा का पालन भला कैसे करूँगा I पर यह क्या? तुरंत ही वे मजबूत उन जंजीरों से मुक्त हो गए I बंदीगृह के दरवाजे भी एक-एक कर स्वतः ही खुलते गए I तत्काल कुछ अन्य वस्तु न पाकर वासुदेव जी ने बंदीगृह में ही फलों के लिए रखी एक टोकरी में, पत्नी देवकी के ही वसन के एक टुकड़े में अपने नवजात ईश्वरीय शिशु को लपेट कर रखा और अविलम्ब ईश्वरीय आदेशानुसार गोकुल ग्राम के लिए चल पड़े I बेचारी सद्य:प्रसूति माँ देवकी अपने जन्मा को भर निगाह से देख भी तो न पाई थी I पर ईश्वरीय आदेश में ही अपने शिशु पुत्र की रक्षा की बात को समझ कर वह अपने कलेजे को कठोर बनाकर अपने नवजात शिशु की मंगल कामना करते हुए उसे को विदा की I माँ का विशाल कलेजा हर कष्ट को सह कर ही अपनी सन्तान की रक्षा ही चाहती है I देवी देवकी भी तो एक माता ही रही!

वासुदेव जी भाद्रमास के अतुलित वर्षाजल को धारण किये गर्व से उफनती यमुना के तट पर अपने शिशु पुत्र के साथ पहुँचे I यमुना अपने पति श्रीनारायण को इस शिशु रूप में भी पहचान गई और उनके चरण स्पर्श हेतु इठलाने लगी I पर यमुना के इस अशांत रूप को देखकर वासुदेव जी कुछ विचलित हो गए, तभी श्रीनारायण की वही पूर्व ध्वनि उनके कानों में गुँजित हुई, - ‘वर्तमान परिस्थितियों की चिंता न कर आगे बढ़ते जाएँ I’ – और वासुदेव एक साधारण टोकरी में त्रिलोक स्वामी को अपने माथे पर धारण किये यमुना के जल में प्रवेश किये I शेषनाथ भी शायद निर्धारित योजना के अनुकूल यमुना-जल में पहले से ही तैयार बैठे थे I तुरंत छत्रप बनकर अपने प्रभु के ऊपर तन गए I पर बेचारी यमुना क्या करे? इतने करीब होकर भी अपने स्वामी के चरणों से दूर! अपने स्वामी के चरण स्पर्श हेतु वह और व्यग्र होकर लहरों के रूप में उछल भरने लगी I गहराई भी बढ़ती ही जा रही थी I यमुना भी अपनी व्यग्रता में वासुदेव जी को डुबोती ही जा रही थी I पहले कन्धा डूबा, फिर मुँह-नाक और आँख डूबे I अब तो उनका सिर भी जल तल होने लगा I यमुना अपने उद्देश्य पूर्ती हेतु और ऊँची उछाल भरने लगी I शायद टोकरी में अठखेलियाँ करता शिशु दोनों की परीक्षा ही तो ले रहा था I तब शिशु ने अपने कोमल चरण को नीचे लटका दिया I शिशु स्वरूप अपने पति के चरणस्पर्श कर यमुना तृप्त हो गई और वासुदेव जी के मार्ग पर निरंतर घटती हुई उन्हें सुगम मार्ग प्रदान करती रही I वासुदेव जी इस रहस्य को न समझ सके I यमुना पार कर वासुदेव जी उसे धन्यवाद दिए I यमुना भी अन्तः भाव से शिशु स्वरूप श्रीनारायण से पुनः दर्शन देने का निवेदन की I शिशु टोकरी में ही मुस्कुराते हुए यमुना को आश्वस्त किया, मानों कह रहा हो, - ‘ तुम्हारे बिना तो मेरी बाल-लीलाएँ अधूरी ही रह जाएगी, प्रिये! मैं तुम्हारे करीब ही बाल क्रीड़ाएँ किया करूँगा I’ 

उस काली अंधियारी बरसती रात्रि में वासुदेव गोकुल में अपने मित्र नन्द के द्वार पर पहुँचे I सभी बंद दरवाजे स्वतः ही खुल गए I सभी लोग यहाँ तक कि उनके मित्र नन्द जी और सद्य:प्रसूति यशोदा जी भी गम्भीर निद्रा में बेसुध पड़े हुए दिखें I वासुदेव जी अपने मित्र और उनकी पत्नी को मन ही मन प्रणाम किये और प्रसूति गृह में प्रवेश कर बहुत ही सावधानी से अपने शिशु पुत्र को यशोदा के पास धीरे से रख कर उनकी माया रुपी पुत्री को उठा लिए I एक बार मन हुआ कि अपने शिशु पुत्र को मन भर देख तो लेवें, पर पुत्र प्रेम और विलम्ब होने के डर से उससे मुख मोड़कर द्रुतगति से उस गृह से निकल पड़े I बरसाती रात्रि में गिरते-बचते पुनः मथुरा के बंदीगृह पहुँच गए I मन ही मन सोच रहे थे कि उनके भीगे और कीचड़ से सने वस्त्रों से उनकी और ईश्वरी चाल पकड़ ली जाएगी I बंदीगृह के सभी दरवाजे अभी भी खुले ही पड़े थे I एक-एक कर दरवाजे को पार करते गये और वे दरवाजे भी एक-एक कर स्वतः ही बंद होते गए I बंदीगृह में पहुँचते ही माया रुपी यशोदा नंदिनी को उन्होंने जैसे ही देवी देवकी के के अंक में रखा, वैसे ही कारा की मजबूत बेड़ियाँ पुनः उनके हाथ-पैर को बंधित कर दीं I उनके वस्त्र पूर्व की भांति सूखे और कीचड़हीन हो गए I उस मुख्य बंदीगृह का दरवाजा भी स्वतः ही बंद हो गया I बंदीगृह के रक्षक भी गम्भीर निद्रा से अचानक जाग गए I 

बंदीगृह में नवजात शिशु की क्रुन्दन की कर्णप्रिय मधुर ध्वनि गूँज उठी I रक्षकप्रमुख दौड़ पड़ा अपने महाराज कंश को सूचना देने I कुछ समय में अपने विकराल स्वरूप में मथुरा नरेश कंश बंदीगृह में प्रकट हुआ I अपनी बहन देवकी के अंक से उस नवजात शिशु को छिन्न लिया I गौर से देखा तो यह नवजात कन्या शिशु थी I पर उससे हत्यारे को क्या? उसे तो बस आकाश वाणी के वही उवाच स्मरण था, – ‘देवकी की आठवीं संतान ही तेरा काल है I वही तेरी मृत्यु का कारण होगा I’ अब भला वह पापी-हत्यारा अपने हाथ आये अपने सम्भावित काल को छोड़ कर अपनी मृत्यु को कैसे निश्चित कर सकता है?

अतः वह पूर्व आदतन उस शिशु कन्या को भी पास के बड़े चट्टान पर पटक मारने के लिए उछाला I पर यह कैसी विडम्बना? वह कन्या शिशु स्वतः ऊपर उठ गई और गगन भेदी भीषण आवाज में कठोरता से कही, - ‘पापी हत्यारा कंश! तुम्हारा काल जन्म ले चूका है I बच सकते हो तो बच जाओ I वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ - और वह माया शिशु अंतर्ध्यान हो गई I

“हाथी चढ़े, घोड़ा चढ़े, और चढ़े पालकी,
नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की I”

‘जय श्रीकृष्ण’ 

कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव, भाद्रमास, कृष्णपक्ष, अष्टमी तिथि, सोमवार, विक्रम संवत 2078, 30 अगस्त, 2021



श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101
(पश्चिम बंगाल)
सम्पर्क सूत्र – 9062366788.
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका