गुरु तेग बहादुर जयंती 2021

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असहिष्णुता के खिलाफ थे गुरु तेग बहादुर                  गु रु नानक देव जी ने आज से साढ़े पांच सौ साल पहले कहा था -  जो तउ प्रेम खेलण का चाउ ...

असहिष्णुता के खिलाफ थे गुरु तेग बहादुर


                
गुरु नानक देव जी ने आज से साढ़े पांच सौ साल पहले कहा था - 

जो तउ प्रेम खेलण का चाउ
सिर धर तली गली मोरी आउ
इत मारग पैर धरीजै
सिर दीजै काणि न कीजै

यानी अगर तुम्हें प्रेम करने का, सच्चाई के मार्ग पर चलने का,न्याय के पक्ष में खड़े होने का चाव है, शौक है, जज़्बा है तो अपना सर हथेली पर रखकर इस ओर कदम बढ़ाना यानी यह रास्ता है त्याग का, बलिदान का, आत्मोत्सर्ग का और अगर सचमुच तुमने इस ओर कदम बढ़ा ही दिया है तो फिर सिर देने में यानि न्याय के लिए इंसानियत या फिर धर्म के लिए आत्मोत्सर्ग करने में कतई पीछे नहीं हटना।इसी तरह के विचार कबीरदास ने भी व्यक्त किए थे,जिन्हें सिख गुरुओं की रचनाओं के साथ ही गुरु ग्रंथ साहिब में महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है- 

 कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ
 जो जारे घर आपना, चलै हमारे साथ

 यानि सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले को अपना घर-बार, संसार त्याग करने को हमेशा प्रस्तुत रहना पड़ता है और वही तो इस कठिन रास्तों पर चल सकता है ।इस तरह के चुनौतीपूर्ण कार्य करने वाले दुनिया में विरले ही होते हैं।

गुरु तेग बहादुर
गुरु तेग बहादुर 

इसी तरह के विरले व्यक्तित्व के धनी थे- सिक्खों के नौवे गुरु तेग बहादुर जिन्होंने एक विरल उदाहरण दुनिया के समक्ष रखा। इसी विरलता पर इतिहासकार दौलत राम ने अपनी पुस्तक में लिखा था- आज तक ये तो हुआ है कि एक कातिल(वधिक) मकतूल(वधित) के पास जाए, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई मकतूल खुद चलकर कातिल के पास जाए। इतिहास गवाह है कि जब मुगल सम्राट औरंगजेब की नीतियों के कारण लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनी जा रही थी, असहिष्णुता का ऐसा भयंकर वातावरण था कि आम जनता धर्म परिवर्तन तक को बाध्य हो रही थी।ऐसे में कश्मीरी ब्राह्मण आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर के पास फरियाद लेकर पहुंचे थे। तभी उन्होंने कहा था कि ऐसे समय में किसी महान त्यागी पुरुष को सीधे तौर पर सम्राट के इस फतवे का विरोध करना पड़ेगा यानि अपने बलिदान के लिए तैयार होना पड़ेगा। उस धार्मिक दरबार में महज नौ वर्षीय बालक गोविंद राय ने अपने पिता से यही तो कहा था कि इस समय आप से बढ़कर प्रतिष्ठित और निर्भीक तथा त्यागी पुरुष भला और कौन हो सकता है। उसके पश्चात ही गुरु तेगबहादुर स्वयं अपने साथ पांच विश्वस्त शिष्यों को लेकर दिल्ली गए। वहां जैसा कि सर्व विदित है उनके तीन शिष्य भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला को अनेकों कष्ट देकर मौत के घाट उतार दिया गया था । वहीं गुरु तेग बहादुर Guru Teg Bahadur Jayanti 2021 को भी धर्म परिवर्तन करने के लिए तमाम लालच और फिर कष्ट देकर ना करने पर दिल्ली के चांदनी चौक पर सर कलम कर शहीद कर दिया गया था। वहीं आजकल ऐतिहासिक गुरुद्वारा शीशगंज है। गुरु तेग बहादुर की शहादत का वर्णन करते हुए गुरु गोविंद सिंह ने अपनी रचना- विचित्र नाटक में कुछ यूं लिखा है- 


ठीकर फोरि दिलीस सिर,प्रभु पुर कियो पयान
तेगबहादुर सी क्रिया करी ना किन्हूं आन
तेगबहादुर के चलत भयो जगत को सोक
है है है सब जग भयो, जय जय जय सुर लोक

 ये सत्य है कि उनके इस बलिदान से तात्कालिक समाज पर भयंकर असर पड़ा और सारी कायनात रो पड़ी, लेकिन सबके अंदर अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की एक चिनगारी फूटने लगी और फिर उसी को गुरु गोविंद सिंह जैसे वीर पुरुष का नायकत्व मिला और जो फिर खालसा पंथ के रूप में रूपायित हुआ।

 खालसा पंथ का ये स्पष्ट सिद्धांत रहा है कि- 
 भय काहू को देत नहीं, नहीं भय मानत आन" 

यानि कभी किसी को भय दिखाना नहीं है लेकिन किसी का भय मानना यानि स्वीकार भी नहीं करना है।इन्हीं विचारों की अभिव्यक्ति फिर गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को फा़रसी में लिखे इतिहास प्रसिद्ध ख़त जफ़रनामा में इन शब्दों में की है- 

 चूंकार अज़ हमा हीलते दर गुजश्त
 हलाल अस्त बुरदन ब शमशीर दस्त

यानी जब किसी आतताई को समझाने, बुझाने के सभी प्रयास व्यर्थ हो जाएं, तो फिर अपने हाथ में तलवार धारण कर लेना ही धर्म है।हम अगर आज के संदर्भ में देखें तो भी ये बातें कितनी सार्थक हैं कि जब सारी दुनिया आतंकवाद से बुरी तरह त्रस्त है ऐसे में अगर शांतिपूर्ण बातचीत, समझाने बुझाने के सारे प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं तो फिर मानवता की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग सर्वथा उचित और न्याय संगत है इसके लिए चाहे कितना और कैसा भी त्याग करना पड़े। इसी संदर्भ में फिर हमें गुरु ग्रंथ साहिब में कबीरदास के कहे शब्द याद आ जाते हैं - 

 सुरा सो पहिचानिये,जो लरै दीन के हेत
 पुरजा पुरजा कट मरै, तबहूं न छाडै खेत

यानि वीर पुरुष तो वही है जो गरीबों के लिए,आम जनता के लिए लड़े, संघर्ष करे भले ही उसके लिए उसे अपना सर्वस्व बलिदान ही क्यों न करना पड़े लेकिन अपने कर्तव्य-पथ से पीछे न हटे।

आज शहीदों के सरताज कहे जाने वाले गुरु तेग बहादुर जी के जन्म दिवस की चार सौवीं जयंती पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष भर पूरी श्रद्धा से मनाई जा रही है,वो भी ऐसे समय में जब सारी दुनिया कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कहर से बुरी तरह आक्रांत है। हमें सब को मिलकर बिना किसी मजहबी भेदभाव और राजनीतिक विरोध के मानवता की रक्षा के लिए सहिष्णुता के साथ एक-दूसरे के लिए मददगार साबित होना है तभी तो गुरु तेग बहादुर जी की असहिष्णुता के ख़िलाफ़ लड़ी गई लड़ाई को हम एक सार्थक अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब हो सकेंगे और इस समय कोरोना के खिलाफ जंग में जीत हासिल कर सकेंगे। 




- रावेल पुष्प,
नेताजी टावर,278/ए,एन एस सी बोस रोड, कोलकाता-700047.
मो. 9434198898.
ईमेल: rawelpushp@gmail.com

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